
सच्ची इतिहास को देखें तो स्वाधीनता की लड़ाई में सबसे अधिक योगदान जल, जमीन और जंगल
की रक्षा करने में मूलनिवासियों नें हजारों लाखों कुर्बानियां दी. लेकिन इन जंगल, जल और
भूमि की रक्षा करने वालों के पास सर छुपाने झोपड़ी भी नहीं हैं. जीने के लिए रोजगार
भी नशीब नहीं है. राजनीतिज्ञ लोग आज उन्हें मात्र वोट बैंक से अधिक कुछ भी नहीं
बनाया.
आरक्षण से तो मात्र चतुर्थ श्रेणी को भी पूरा नहीं किया जा सका और आगे की श्रेणीयों
का कहना व्यर्थ है. विकास के नाम पर सैकड़ों योजनाएं बने, जिनका वास्तविक क्रियान्वय
फाइलों तक सिमित रह गए. संस्कृति, भाषा और सामाजिक घटकों को अक्षुण बनाएं रखने का
ढोल पिटकर देश के नेता संवेदनशील और अहसान बटोरने का केवल परिचय देते हैं.
देश के पठारों उच्चसम भूमि (जगल पहाड़) में आदि अनंतकाल से बसने वाले अपनी प्रकृति,
परंपरा, प्रथाएँ, भाषा और संस्कृति की युगों से अलग सगल भिन्न पहचान बनाए रखे हैं, जो
अपनी मूल सामाजिक संरचना का ढांचा है. प्रकृति के अधिक नजदीक रहने के कारण प्रकृति,
प्रवृति और शोषण अत्याचार का विरोध एकाएक करने में संयमित है. किन्तु इसका यह मतलब
नहीं कि अन्याय सहने के लिए ही यह समाज पैदा हुआ हो. जुल्म, सहन शक्ति से परे होने
पर व्यवस्था के विरोध करने में पीछे नहीं रहेंगें. इसका परिणाम आज भेदभाव रखने वाले और कुलीन
वर्ग के नीतियों के विरूद्ध अपनी अस्मिता और गौरव को कायम रखने झारखंड, गोरखा
लैंड, नागालैंड के गोंडवानालैण्ड लिए मूलनिवासी आवाज बुलंद कर रहे है. ये आन्दोलन
गैर क़ानूनी नहीं है. यदि सबको समानता का हक है तो फिर ऐसा भेद भाव क्यों ? अपनी
अपनी भाषा का प्रान्त बनाए. अपने समाज को उच्च स्थानों में धर्म भाषा को बढ़ावा
देकर देश में दो तिहाई लोगो के साथ उनकी भाषा धर्म, संस्कृति की उपेक्षा क्यों ?
योजनाओं और विकास का लाभ कुलीन वर्गों को उद्योग व्यापार में केवल उन्ही का
अधिकार क्यों ? इन सब का प्रतिकार करने के लिए जन मानस का आक्रोश आंदोलन के रूप
में दिनों दिन सामने आता जा रहा है.
अपने हक, अपने सांस्कृतिक धरातल, सामाजिक संरचना को जीवित रखने के लिए संघर्ष
के लिए तैयार होना गैर क़ानूनी नहीं है. एक वर्ग अपने हितों की रक्षा के लिए देश का
बजट लगा दे और दूसरा मुह ताकता रहे ? यह कैसा प्रजातंत्र हैं ? यह सवाल खड़ा होता है
! अपना भला स्वतः के व्दारा होता है, अपनी आँखों से नींद आती है. यह आम बात है. अपना समाज, अपना विकास, आर्थिक,
सामाजिक, धार्मिक प्रगति कि उपेक्षा करने एवं दिखावा प्रदर्शित करने राजनीतिक रूप में छलने वालों के
प्रति सचेत होकर चेतना का उबाल पैदा हो जाए और पृथक पहचान के लिए संगठित आंदोलन का
उग्र रूप दिखाई दे तो ईसमे आश्चर्य क्या है ?
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