शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

बोली से भाषा बनी गोंडी

गोंडी अब तक बहुत सारी बोलियों का समुच्चय थी. बहुत सी बोलियाँ, जिन सभी को गोंडी कहते थे पर उनको बोलने वाले आपस में एक दूसरे को समझ नहीं पाते थे.

भारत में राज्यों का गठन भाषाई आधार पर हुआ था पर गोंडी भाषियों के साथ एक ऐतिहासिक अन्याय हुआ था, जब गोंडी बोलने वाले आदिवासी कम से कम 6 प्रदेशों में बंट गए.

इन सभी प्रदेशों की अपनी भाषा है, जिसने उस प्रदेश में बोले जाने वाली गोंडी पर प्रभाव डाला. वैसे भी हर भाषा  हर कुछ सौ किलोमीटर में थोड़ा रूप बदलती है पर इन विभिन्न राज्यों के कारण गोंडी के विभिन्न रूप जैसे तेलगु गोंडी, हिंदी गोंडी और मराठी गोंडी सामने आए. यद्यपि इन सभी को इसको बोलने वाले गोंडी कहकर की पुकारते रहे पर वे एक दूसरे को समझ नहीं पा रहे थे तो एक दूसरे से और दूर होते गए.

मध्य भारत में 1.2 करोड़ गोंड आदिवासी रहते हैं. मध्य भारत पिछले लगभग 40 सालों से एक सशस्त्र आंदोलन के परिणामों से जूझ रहा है. आज इस आंदोलन का जिसे हम माओवादी या नक्सल आंदोलन भी कहते हैं, एक बहुत बड़ा हिस्सा गोंड आदिवासियों से बना है.

जैसे भारत देश का अंग्रेजी नाम बाहर से आए लोगों ने दिया, वैसा ही गोंड स्वयं को कोया, कोयतूर आदि विभिन्न नामों से पुकारते हैं और उन सभी समूहों को हम सरलता के लिए भी आज गोंड ही कहते हैं.

माओवादी आंदोलन की प्रमुख भाषा गोंडी है. उसके लगभग सभी लड़ाके गोंडी भाषी हैं. उनमे से बहुतों को गोंडी के सिवाय और कोई अन्य भाषा नहीं आती. उनके सेक्रेटरी या संचालक यद्यपि अधिकतर तेलगु, हिंदी, ओड़िया या मराठी जैसी भाषाओं में भी बात कर लेते हैं.

पिछले हफ्ते के पहले गोंडी का एक संवाद माध्यम बनाया जाना संभव नहीं था, जिसे हर गोंडी भाषी समझ सके. उदाहरण के लिए छत्तीसगढ़ में बेमन से ही सही प्राथमिक कक्षाओं के लिए गोंडी के कुछ पाठ्यपुस्तकें बनाई गई हैं पर उत्तर और दक्षिण बस्तर के लिए दो अलग अलग पाठ्यपुस्तकें बनाई  गई हैं.

गोंडी में अब तक किसी सरकारी आदेश का अनुवाद करना भी संभव नहीं था, जिसे हर गोंड समझ सके. जंगल के क़ानून का आज 12 साल बाद भी गोंडी में अनुवाद नहीं हुआ है, जबकि उस क़ानून का निर्माण गोंडी भाषी जैसे जंगल में रहने वाले आदिवासियों के लिए ही हुआ है.

पिछले 4 वर्षो से मध्य भारत के गोंड आदिवासी के कुछ दर्जन प्रतिनिधि हर कुछ महीने किसी न किसी जगह मिलते रहे हैं और पिछले हफ्ते उन्होंने अपना पहला मानक शब्दकोष तैयार किया है. आम तौर पर इस तरह के काम सरकार करती है.

यह संभवतः पहली बार हुआ है जब एक समुदाय ने साथ आकर अपना मानक शब्दकोष बनाया है और सरकार से भी उनको मदद मिली है. अब गोंडी में पत्रकारिता, एक जैसा शिक्षण और प्रशासन का काम किया जा सकेगा. अब उत्तर बस्तर के शिक्षक दक्षिण बस्तर भी जा सकेंगे जो अब तक नहीं हो पा रहा था.

पिछले हफ्ते दिल्ली के इंदिरा गांधी कला केंद्र में मध्य भारत के 7 प्रदेशों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओड़िसा, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक से 80 गोंड आदिवासी एक हफ्ते के लिए जुटे और उन्होंने 4 साल से चल रहे अपने काम को आखिरी रूप दिया.

इस बैठक में समापन समारोह में आंध्र के अर्का माणिक राव ने धाराप्रवाह गोंडी में भाषण दिया और मध्यप्रदेश के गुलजार सिंह मरकाम ने उसका तुरंत फुरंत हिंदी में अनुवाद कर दिया. इस प्रक्रिया की शुरुआत के पहले ये दोनों गोंडी भाषा एक दूसरे का समझ नहीं पाते थे.

गोंडी इलाकों में यदि अब मातृभाषा में शिक्षण शुरू होता है तो बहुत से गोंडी भाषी युवाओं को नौकरी मिलेगी और स्कूलों से ड्रॉप आउट की संख्या घटेगी. माओवादी आंदोलन के अधिकतर लड़ाके स्कूल ड्रॉप आउट हैं. वे स्कूल इसलिए पूरा नहीं कर पाए थे, क्योंकि उनका शिक्षक हिंदी, मराठी, ओड़िसा और तेलगु बोलता था और वे गोंडी समझते थे.

गोंडी के शिक्षक भर्ती करने के लिए हो सकता है कि शुरू में हमें योग्यता में छूट देनी पड़ेगी, क्योंकि आज गोंडी जानने वाले पढ़े लिखों की तादाद कम है. ये अधिकतर गोंडी भाषी इसलिए माओवादियों के साथ जुटे हैं, क्योंकि उनके जीवन की छोटी छोटी दिखने वाली समस्याएं हल नहीं होती, क्योंकि अक्सर अधिकारी और पत्रकार गोंडी नहीं समझता है.

कुछ तकनीकी कंपनियां अब मानक गोंडी का बोलता शब्दकोष और हिंदी से गोंडी और उलटा की मशीन विकसित करने की बात कर रहे हैं. अगर अब गोंडी भाषा में मोबाईल रेडियो जैसे प्रयोग होंगे जहां दूर रहने वाले गोंडी भाषी अपनी समस्याओं की बात कर सकेंगे तो मशीन ट्रांसलेशन के बाद अधिकारी भी उसे समझ सकेंगे.

गोंडी के भाषा बनने को सरकारी मुहर लगनी अभी बाकी है, जिसके लिए उसे भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करना होगा. आशा है सरकार इस दिशा में जल्द कदम उठाकर एक ऐतिहासिक चूक को सही करने की दिशा में महत्वपूर्ण निर्णय लेगी.

इससे मध्य भारत में शान्ति का मार्ग प्रशस्त हो सकता है.
                                                                                                              शुभ्रांशु  चौधरी
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