रविवार, 28 जुलाई 2019

सोनभद्र : गोंड आदिवासियों का नरसंहार- भूमाफिया और प्रशासनिक अफसरों के गठजोड़ का नतीजा

उम्भा गाँव का घटना स्थल 
दिनांक 17 जुलाई 2019 को सोनभद्र जिले के घोरावल थाना क्षेत्र के मूर्तियां ग्राम पंचायत के अंतर्गत उम्भा गांव के 10 गोंड आदिवासियों का भू-माफियाओं द्वारा एक नृशंस कत्लेआम की घटना को अंजाम दिया गया, जिसमें की 9 लोग घटनास्थल पर ही हलाक हो गये और एक व्यक्ति अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ा। अभी एक औरत जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रही है। जिसमें जिंदगी अनिश्चित लगती है।

इस घटना के पीछे की पृष्ठभूमि भू-माफियाओं और प्रशासनिक अधिकारियों के गठजोड़ की कहानी कहती है। ग्रामीणों के अनुसार घटना की इस पृष्ठभूमि में मिर्जापुर के तत्कालीन डी.एम., प्रभात कुमार मिश्र ने अपने ससुर (माहेश्वरी प्रसाद सिन्हा) को लगभग 600 एकड़ जमीन जालसाजी से दिलाई थी। यह वही जमीन थी जिस पर इलाके के आदिवासी अपनी पुश्तैनी खेती-बाड़ी कर गुजर-बसर कर रहे थे।

बताया जाता है कि इस जमीन पर ग्राम प्रधान (यज्ञदत्त भूर्तिया) को कब्जा दिलाने के लिए बिहार से करीब 150 लोग आए थे। इनमें ज्यादातर अपराधी किस्म के लोग थे, जो असलहे से लैस थे। अपने पावर का दुरुपयोग करते हुए मिर्जापुर के तत्कालीन डी.एम. रहे प्रभात कुमार मिश्र ने यह सारी भूमि हथियाने का खेल किया है। हैरत की बात यह है कि बिहार के पूर्व आई.ए.एस. प्रभात कुमार मिश्र ने इस जमीन को अवैध तरीके से पहले "आदर्श कोआपरेटिव सोसायटी" के नाम कराया और बाद में अपनी पत्नी आशा मिश्रा और पुत्री विनीता शर्मा के नाम करा लिया था। प्रभात कुमार उस समय मिर्जापुर के डी.एम. थे और यह इलाका उनके कार्यक्षेत्र में ही आता था।

हालांकि सोसायटी का पंजीकरण साल 1978 में ही सब खत्म हो गया था। इसके बावजूद सोसायटी की तथाकथित प्रबंधक उनकी बेटी और पत्नी हो गई। सोसायटी के जमीन के अभिलेख मिर्जापुर और सोनभद्र प्रशासन के पास नहीं हैलेकिन दबंगों और भूमि माफियाओं का दावा है कि उस जमीन का उन्होंने बैनामा कराया है। इतना ही नहीं पटना के एक शख्स जिसका नाम धीरज है, वह हर साल भोले भाले आदिवासियों से प्रति बीघा ढाई हजार रुपये लगान वसूलने आता था। इस मामले में कोर्ट में मुकदमा लड़ रहे रामराज गोंड ने बताया कि आदिवासी समाज के लोग इस जमीन पर कई पुस्तों से जुताई-बुवाई करते आ रहे हैं। लेकिन सोसायटी की तथाकथित प्रबंधक आशा मिश्रा और विनीता शर्मा ने राजस्व विभाग के अधिकारियों पर बेजा दबाव बनाकर फर्जी सोसायटी की जमीन को अवैध तरीके से अपने नाम करा लिया। इसमें आशा मिश्रा के आई.ए.एस. पति प्रभात कुमार मिश्रा एवं बिहार कैडर के आई.ए.एस. भानु प्रताप शर्मा ने अहम भूमिका निभाई। विवाद भले ही 200 बीघे जमीन पर था लेकिन इस फर्जी सोसायटी ने ग्राम समाज की लगभग 600 बीघे जमीन हड़प रखी है। इसी पूर्व आई.ए.एस. अधिकारी प्रभात कुमार मिश्रा ने अवैध तरीके से सोसायटी के जमीन 200 बीघा से अधिक जमीन गुपचुप तरीके से प्रधान यज्ञदत्त भूर्तियाउसके भतीजे और रिश्तेदारों के नाम बेंच दिया। बाद में इसी आई.ए.एस. अधिकारी ने प्रधान यज्ञदत्त के साथ मिलकर पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों पर दबाव डाला। पुलिस व प्रशासनिक अफसरों की हरी झंडी मिलते ही प्रधान सैकड़ों लोगों को लेकर जमीन कब्जाने पहुंच गया। जो भी ग्रामीण मुखर होकर उनके सामने आए उन पर बेरहमी से गोलियां बरसा दी गई। 
      
राजा बड़हर ने दी थी वनवासियों को जमीन- जिस भूखंड के लिए यह नरसंहार किया गया वह जमीन राजा बड़हर आनंद ब्रह्म शाह की थी। राजा ने वनवासियों को यह जमीन खेती करने के लिए दी थी। उम्भा गांव के बुद्धूराम लालमोहनमुन्नीलाल समेत दो दर्जन से अधिक वनवासियों ने "आदर्श को-ऑपरेटिव सोसाइटी" को फर्जी करार देते हुए न्यायालय में वाद दाखिल कर रखा है। यह मुकदमा करीब 65 साल पहले दाखिल किया गया था। मुकदमें में यह साफ-साफ कहा गया था कि विवादित भूमि को राजा बड़हर ने मूल खातेदार बुद्धू को दिया था। इनके पूर्वज गंभीराभीमाबैजनाथआदि लोग खेती करते थे। तब से लेकर अब तक पुस्तों से बनवासी ही इस भूमि पर आबाद हैं। विवादित भूखंड पर कभी भी "आदर्श कोआपरेटिव सोसायटी" का कब्जा नहीं रहा। कागजात माल में सिर्फ नाम के लिए सोसायटी का ब्यौरा अंकित है। इस सोसायटी के अध्यक्ष महेश्वर प्रसाद नारायण सिन्हा रहेजो पटना बिहार के रहने वाले बड़े जमीदार थे। हैरत की बात यह है कि विभिन्न प्रकार से सरकारी और गैर सरकारी जमीन पर फर्जी ढंग से अपना नाम चढ़ाकर बड़े भूमाफिया हो गए थे। इसी क्रम में उन्होंने अपने दामाद आई..एस. प्रभात कुमार मिश्र का सहयोग लिया और फर्जी सोसायटी बना कर उक्त भूखंडों को सोसायटी के नाम दर्ज करा दिया। वनवासी अशिक्षित थे इसका लाभ भूमाफिया ने भरपूर उठाया। करीब 3 माह पूर्व प्रधान वनवासियों के बीच पहुंचे और कहा कि "आदर्श कोऑपरेटिव सोसायटी" की जमीन को उन्होंने खरीद लिया है और उस पर अब कोई खेती नहीं करेगा। इसे लेकर कोर्ट में मुकदमा चल रहा है।

सोनभद्र नरसंहार कांड दबंग भूमाफिया और भ्रष्ट आई.ए.एस. अफसरों के गठजोड़ का नतीजा है। आदिवासियों की जमीन हड़पने के लिए साजिश पर साजिशें होती रही पर किसी ने नहीं सुनी। पुलिस प्रशासन की कौन कहे, सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने भी इनके दर्द पर कानून और न्याय का मरहम लगाने की जरूरत नहीं समझी। पुलिस और प्रशासनिक अफसरों ने आदिवासियों पर इतने जुल्म ढाए की अब उनके सामने बंदूक उठाने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं था। दबंग पुलिस माफिया से मिली पुलिस खुद भी चाहती थी कि वे नक्सली बन जाएं और उन्हें आसानी से शूटआउट कर सकें। कामयाबी नहीं मिली तो आई.ए.एस. अफसरों के साथ मिलकर भूमाफिया ने खुद आदिवासियों को मिटाने की तैयारी की और नतीजा निकला सामूहिक नरसंहार।

इस मामले की पटकथा भी कुछ उसी तरह लिखी जा रही थी जिस तरह नौगढ़ का लाल व्रत कोल, अपनी जमीन के लिए हार्डकोर नक्सली बनने के लिए विवश हो गया था। सोनभद्र का आदिवासी नरसंहार कांड जिस जमीन के लिए रचा गया उसके पक्ष में बिहार के 2 आई.ए.एस. अफसर और इलाके के दबंग भूमाफिया थे। इनके सिर पर पुलिस और प्रशासनिक अफसरों का हाथ था। यह बात आईने की तरह साफ दिखती है कि गोंड जाति के आदिवासी जमीदारी विनाश अधिनियम लागू होने के पहले से ही उम्भा गांव में ग्राम समाज की जमीन पर झोपड़ी डालकर खेती कर रहे थे। यह अधिकार किसी और ने नहीं खुद तत्कालीन राजा बड़हर आनंद शाह ने दिया था। जंगल की जमीन को किसी और ने नहीं नरसंहार में मारे गए आदिवासियों के पूर्वजों ने ही बनाया था। अशिक्षित आदिवासी कागजात में हेरफेर और फर्जीवाड़े से अनजान रहे। जिस जमीन को लेकर यह बड़ी वारदात हुई, वह तीन तरफ नाले से घिरी है। मूर्तियां बंधा बन जाने के बाद वह जमीन सोना उगलने लगी तो उस पर दबंग भूमाफिया यज्ञदत्त भुर्तिया की नजर गड़ गई। उसने आदिवासियों को कीमती जमीन से बेदखल करने के लिए ताना-बाना बुनना शुरू कर दिया। इसके चलते इस जमीन पर तीखी नजर बिहार के दबंग भूमाफिया माहेश्वरी प्रसाद नारायण सिंहा की पड़ी। उन्होंने एक फर्जी सोसायटी बनाई और नाम रखा "आदर्श को- ऑपरेटिव सोसाइटी"। महेश्वरी प्रसाद ने 17 दिसंबर 1955 को अपने चहेते रावट्सगंज के तहसीलदार को प्रभाव में लेकर आदिवासियों की जमीन धोखाधड़ी से सोसायटी के नाम करा लिया। सोसाइटी में उम्भा गांव का कोई नहीं थेथे तो केवल इस भू-माफिया के परिजन और रिश्तेदार।

इस मामले की पटकथा भी कुछ उसी तरह लिखी जा रही थी जिस तरह नौगढ़ का लाल व्रत कोल, अपनी जमीन के लिए हार्डकोर नक्सली बनने के लिए विवश हो गया था। सोनभद्र का आदिवासी नरसंहार कांड जिस जमीन के लिए रचा गया उसके पक्ष में बिहार के 2 आई.ए.एस. अफसर और इलाके के दबंग भूमाफिया थे। इनके सिर पर पुलिस और प्रशासनिक अफसरों का हाथ था। यह बात आईने की तरह साफ दिखती है कि गोंड जाति के आदिवासी जमीदारी विनाश अधिनियम लागू होने के पहले से ही उम्भा गांव में ग्राम समाज की जमीन पर झोपड़ी डालकर खेती कर रहे थे। यह अधिकार किसी और ने नहीं खुद तत्कालीन राजा बड़हर आनंद शाह ने दिया था। जंगल की जमीन को किसी और ने नहीं नरसंहार में मारे गए आदिवासियों के पूर्वजों ने ही बनाया था। अशिक्षित आदिवासी कागजात में हेरफेर और फर्जीवाड़े से अनजान रहे। जिस जमीन को लेकर यह बड़ी वारदात हुई, वह तीन तरफ नाले से घिरी है। मूर्तियां बंधा बन जाने के बाद वह जमीन सोना उगलने लगी तो उस पर दबंग भूमाफिया यज्ञदत्त भुर्तिया की नजर गड़ गई। उसने आदिवासियों को कीमती जमीन से बेदखल करने के लिए ताना-बाना बुनना शुरू कर दिया। इसके चलते इस जमीन पर तीखी नजर बिहार के दबंग भूमाफिया माहेश्वरी प्रसाद नारायण सिंहा की पड़ी। उन्होंने एक फर्जी सोसायटी बनाई और नाम रखा "आदर्श को- ऑपरेटिव सोसाइटी"। महेश्वरी प्रसाद ने 17 दिसंबर 1955 को अपने चहेते रावट्सगंज के तहसीलदार को प्रभाव में लेकर आदिवासियों की जमीन धोखाधड़ी से सोसायटी के नाम करा लिया। सोसाइटी में उम्भा गांव का कोई नहीं थेथे तो केवल इस भू-माफिया के परिजन और रिश्तेदार। 

इस जमीन का रकबा 637 बीघा है। यह जमीन उस समय सोसायटी के नाम की गई जब नामांतरण करने का अधिकार तत्कालीन तहसीलदार को था ही नहीं। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 1150 बी/ आई ए-1300-58 के आदेश के तहत 31 जुलाई 1959 को तहसीलदार को नामांतरण का पावर दिया था। बिहार के भूमाफिया महेश्वरी प्रसाद सिंहा के दमाद मिर्जापुर के डी.एम. रहे प्रभात कुमार मिश्र ने रावट्सगंज के तहसीलदार को मिलाकर फर्जी ढंग से जमीन हड़पने के खेल को अंजाम दे दिया। अभिलेख बताते हैं कि आदिवासियों के पूर्वज गांव में ग्राम समाज की जमीन पर खेती बाड़ी करते रहे। लेकिन भ्रष्ट नौकरशाही ने आई.ए.एस. अफसरों के दबाव में कभी सर्वे नहीं होने दिया। भूमाफिया महेश्वरी प्रसाद सिन्हा के निधन के बाद लगभग 200 बीघे जमीन उनकी पुत्री आशा मिश्रा पत्नी आईएस प्रभात कुमार मिश्रा मिर्जापुर के तत्कालीन डी.एम. की पुत्री विनीता शर्मा पत्नी भानु प्रताप शर्मा के नाम कर दी। विनीता शर्मा के पति भानु प्रताप शर्मा बिहार कैडर के आई.ए.एस. अफसर है। जमीन के दस्तावेजों में लगातार हेरा फेरी की जाती रही। क्योंकि 33/39 एल.आर अधिनियम के लिपिकीय त्रुटि को दूर की जाती है, जिसमें उल्लेख है कि स्वत्व का निर्माण निर्धारण नहीं किया जा सकता। जबकि इस विवाद में आई.ए.एस. अफसर भानु प्रताप शर्मा ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके फर्जी तरीके से फर्जी सोसायटी की करीब 200 बीघा जमीन को अपनी पत्नी विनीता शर्मा और उनकी मां आशा मिश्रा के नाम करवा दिया।

अवैध तरीके से यह नामांतरण 6 सितंबर 1989 को कराया गया। जबकि साल 1947 के पूर्व से ही इस जमीन पर आदिवासी काबिज थे। हैरत की बात यह है कि भूमाफिया ने पहले ग्राम समाज की जमीन को अपने नाम करा लिया और फर्जी तरीके से एक जाली मुख्तार -ए- खास दिल्ली में बनवाकर घोरावल रजिस्ट्रार के यहां एक साथ 144 बीघा जमीन दो करोड़ में बेच दी इस जमीन का सौदा भी उसी दबंग भूमाफिया यज्ञ दत्त भूर्तियां और उसके रिश्तेदारों के साथ किया गया, जिनकी नजर पहले से ही सोना उगलने वाली इस जमीन पर गड़ी थी। रजिस्ट्रेशन अधिनियम की धारा 28 के तहत जहां जमीन का पंजीकरण होना है उसे वहीं का मुख्तार-ए-खास कर सकता है। इस कानून को पुलिस और प्रशासन ने पूरी तरह से अनदेखी कर दी। सत्तारूढ़ दल का शायद ही कोई बड़ा नेता होगा जिनके पास आदिवासियों की अर्जी ना पहुंची हो। चाहे भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह हो या फिर सीएम योगी नाथ, बैनामा निरस्त करने के लिए शायद ही कोई तहसील दिवस नहीं रहा होगा जब आदिवासियों ने गुहार ना लगाई हो। कलेक्टर की देहरी पर इन आदिवासियों ने तो अनगिनत बार मत्था टेका पर उनका दिल भी नहीं पसीजा। इसी बीच सहायक अभिलेख अधिकारी ने उनकी बात सुने बगैर ही एक भूमाफिया के परिवार की धोखाधड़ी से हड़पी गई जमीन दूसरे भू-माफिया के नाम कर दी। यह जमीन ग्राम सभा की थी, लेकिन भ्रष्ट आई.ए.एस. अफसरों, माफिया के गठजोड़ ने आदिवासियों पर जुल्म ज्यादती का पहाड़ तोड़ना शुरू कर दिया। अर्जुन की कहानी उस खत में भी पढ़ी जा सकती है जो उन्होंने 12 दिसंबर 2019 को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को रजिस्टर्ड डाक से भेजी थी। इस पर सौ से अधिक आदिवासियों के अंगूठे के निशान पुलिसिया तांडव और अफसरों की कहानी कहते हैं। आदिवासियों को भले ही श्री अमित शाह ने नहीं पढ़ा, लेकिन उन्होंने खत मेन जो बातें लिखी थी वह सच साबित हुई। खत में लिखा गया है कि भानु प्रताप शर्मा और उनके ससुर सेवानिवृत्त के दबाव में आकर इलाकाई पुलिस ने आदिवासियों को नक्सली बनाने के लिए 60 लोगों पर फर्जी मुकदमे दर्ज किए। यह तीनों मुकदमा अपराध संख्या 112/ 18, 166/18 और 167/18 के तहत पिछले साल दर्ज किए गए। इस बीच पुलिस और पीएसी आदिवासियों के घरों में घुसकर तांडव करती रही। उनकी बहू- बेटियों का शारीरिक शोषण भी  करती रही। नामजद लोगों में से 12 पर गुंडा एक्ट भी लगा दिया गया। बाद में जिलाधिकारी ने निर्दोष ग्रामीणों को जिला बदर भी कर दिया। लाचारी में लोगों को जंगलों में छिपकर रहना पड़ रहा था। आदिवासियों ने पहले ही आशंका जाहिर कर दी थी कि आई.ए.एस. अफसरों के इशारे पर पुलिस उनका दमन और उत्पीड़न कर रही है। इनके दबाव का नतीजा रहा कि कलेक्टर ने उनकी बात नहीं सुनी और उनकी अपील खारिज कर दी।

आदिवासियों की इज्जत और उनके साथ हो रहे जुल्म-ज्यादती को सुनने- देखने की किसी अफसर ने जहमत नहीं उठाई। आदिवासी रामराज सिंह कहते हैं कि पुलिस और प्रशासनिक अफसर उन्हें नक्सली बनाकर मुठभेड़ में मरवाना चाहते थे। आई.ए.एस. अफसरों ने बिहार से भू-माफिया प्रधान की जमीन कब्जाने के लिए बिहार से हथियारबंद लोगों को ट्रैक्टर के साथ भेजा था। साजिश में शामिल आई.ए.एस. अफसरों का ऐसा दबाव था कि घटना के समय पुलिस के आला अफसरों के फोन अचानक स्विच ऑफ हो गए। रामराज ने कहा कि सोनभद्र के डी.एम. भी बिहार के रहने वाले हैं और इस प्रकरण में उनकी भूमिका बेहद रहस्यमय और संदिग्ध है। नरसंहार में शामिल आई.ए.एस. अफसरों के खिलाफ कार्रवाई तभी संभव है जब मामले की सीबीआई जांच हो।  


इस भीषण नरसंहार में वर्तमान में 10 लोग हालाक हो गए और 22 लोग घायलों के रूप में विभिन्न अस्पतालों में भर्ती हैं। वर्तमान में बी.एच.यू के ट्रामा सेंटर में 6 लोग एडमिट हैं और 2 लोग स्वास्थ्य लाभ कर डिस्चार्ज कर दिए गए हैं। इन 6 लोगों में केरवा देवी पत्नी रामप्रसाद की स्थिति नाजुक बनी हुई है। वह आई.सी.यू. में है और उन्हें अभी तक होश नहीं आया। मृतकों में रामचंदर पुत्र लाल शाहराजेश गोंड पुत्र गोविंदअशोक पुत्र नन्हकूरामधारी पुत्र हीरा शाहराम सुंदर पुत्र तेजा सिंहजवाहिर पुत्र जयकरनअशोक गोंड पुत्र हरिवंशबासमती पत्नी नंदलालदुर्गावती पत्नी रंगीला लाल और सुखवन्ती पत्नी राजनाथ। घायलों की सूची में नागेंद्र पुत्र श्री रामजय प्रकाश पुत्र संतलालनिधि दत्त पुत्री श्याम बिहारीअशर्फीलाल पुत्र शारदा प्रसाददिनेश कुमार पुत्र राम प्यारेदेवदत्त पुत्र श्याम बिहारीप्रमोद पुत्र शिव मूरतराकेश सिंह पुत्र सुमंगल लालमहेंद्र पुत्र गुलाबरामरक्षा पुत्र श्री रामसुखवन्ती पत्नी संतलालइंद्र कुमार पुत्र मुन्नीलालसीता पत्नी तेज सिंहछोटेलाल पुत्र चिरकुटचंद्रशेखर पुत्र बलीकरणकेरवा देवी पत्नी राम प्रसादरामदीन पुत्र तेजा सिंहरामलालभगवान दासराजेंद्ररामनाथऔर कमलावती सम्मिलित है।  

दिनांक 21 जुलाई 2019 को मुख्यमंत्री, योगी आदित्यनाथ ने घटनास्थल का दौरा किया और घायलों को 2.5 लाख तथा मृतक आश्रितों को 18.5 लाख की धनराशि की सहायताराशनकार्डआयुष्मान भारत कार्डप्रधानमंत्री आवासउम्भा गांव में पुलिस चौकीअग्नी-शमन दल की स्थापना करने का आश्वासन दिया है। कांग्रेस के महासचिव एंव उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी ने 10-10 लाख रुपए की सहायता की घोषणा मृतक आश्रित परिवारों को देने के लिए किया है। उत्तर प्रदेश शासन ने क्षेत्र में धारा 144 लगा रखा है और ग्राउंड जीरो पर जाने से लोगों को वंचित कर रखा है।

राजनीतिक पार्टियां हैं तो वे राजनीति करेंगे ही और राजनीति में शासन पक्ष की बुराइयां और कमियों को ही बताया जाता है। लेकिन वास्तव में यह सारी चीजें सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था पर निर्भर करती है। भारत में जातीयता और उसके आधार पर अर्थ का निर्धारण सत्य है। कालांतर में बेशक कानूनन जमीदारी प्रथा को समाप्त किया गयालेकिन हकीकत में शासक वर्गों के अंदर सामंती मानसिकता भरपूर है। इसी मानसिकता के तहत ब्राह्मण-भूमिहारों काब्राह्मण-बनियों और प्रशासनिक अफसरों का सीधे सादे लोगों को ठगने, लूटने वाला भू-माफिया तंत्र काम कर रहा है, जिसे यहां भू माफिया और प्रशासनिक अफसरों का गठजोड़ कहा गया है।

इस पूरी कहानी का आधार भाजपा के पूर्व सांसद छोटे लाल खरवारजनसंदेश टाइम्सराष्ट्रीय सहारा के खबरों के आधार पर तथा घायलों के परिवार के सदस्य अजय कुमार गोंडरामप्यारे गोंड आदि के बयान के आधार पर लिखी गई है।

उमेश चंद्र गोंड
उत्तर प्रदेश
                                         
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