बुधवार, 23 अक्तूबर 2019

आदिम वंशों मे “दियारी तिहार” की महत्ता

कुदरत ही हमारा 'साहित्य', 'संस्कार', और 'व्यवहार' है। ऐसा हमारे पुरखे बतलाते आए हैं। हमारे मानव बिरादरी के तीज तिहार/ त्योहार के बारे में बतलाने के लिए इस कुदरती 'साहित्य', 'संस्कार' और 'व्यवहार' के अलावा हमारे पास व्यक्तिगत रूप से कुछ भी नहीं है। जो कुछ भी है वह हमारे ऐतिहासिक बिरादरी/ पुरखों/ समाज के द्वारा इस कुदरत को पढ़कर ग्रहण किए हुए सांस्कारिक संरचना से व्यक्तित्व निर्माण तथा विकास के साथ बेलेंसिंग/ सम-समृद्धि का नैसर्गिक खजाना और उस खजाने से जीवन में संतोष प्राप्त करते हुए कुदरत के साथ समानान्तर जीवन जीने की खुशनुमा अनुभूति मात्र है।

समाज के बुजुर्ग आज भी कहते हैं कि उनके सारे जीवन संस्कारों का स्त्रोत कुदरत ही है। कुदरत के समस्त घटक- मिट्टी, पत्थर, जंगल, घास, लता, फूल, फल, नदी, पहाड़, पशु पक्षी और उनकी बोली भाषा, हवा, पानी, ऊर्जा, बादल, वर्षा, प्रकाश, छांव, रंग ...... इन सभी के गुणधर्म से हमारा कुदरतीय साहित्य संरचना का निर्माण और जीवन संस्कारबद्ध है। 

किसानों की हड्डीतोड़ मेहनत से उनके खेतों में लहलहाती फसल 
दियारी/ दिवारी/ दीपावली, यह गोंडवाना धरा का अतिप्राचीन त्योहार है। संभवतः जब मानव समाज इस धरा पर खेती करना प्रारंभ किया तब से यह मनाया जा रहा है। बारिस की खेती/ फसल पकने पर यह त्योहार देश के कोने कोने में उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह फसल पकने और कुदरत के खुशनुमा शरद ऋतु के आगमन के साथ ही आता है। खेतों एवं बाड़ियों मे बारिस की विभिन्न फसलें बोने/ लगाए जाने के बाद कम समय मे पकने वाली फसलें शरद ऋतु आने तक कटने लगती है या कट जाती हैं। इन्हीं सबसे पहले पके हुए अनाज से देश के किसान प्रथमतः कुदरत और अपने पुरखों को धन्यवाद स्वरूप अर्पण करने का त्योहार 'नया खानी, नवा खानी' मनाता है। 'नया खानी' का आशय कुदरत की उस सहानुभूति से है, जिसने मिट्टी मे मिलाए गए अनाज/ बीज के अंकुरण से लेकर पकने तक के लिए आवश्यक बारिस, ऊर्जा, उर्वरा प्रदान करते हुए कीट पतंग इत्यादि से कुदरत के द्वारा उसकी सुरक्षा की गई और अब इसे ग्रहण करने हेतु किसान, कुदरत और अपने पुरखों से अनुमति लिया है। किसान अपने मेहनत की कमाई के इस नए अनाज को 'नया खानी' के रूप मे कुदरत और अपने पुरखों को अर्पण करने के पश्चात ही अपने परिवार को इसे खाने की अनुमति देता है।

जब तक एक एक दाना आपकी थाली तक न पहुँच जाए
तब तक यह मेहनत सतत चलता रहता है  
दियारी मे बैलों/ गायों ... के साथ परिवार के लोग भी खाना खाते हैं 
कार्तिक महीने में शरद ऋतु के आते तक प्रायः धान की फसलें पूर्णतः पक कर तैयार हो जाती हैं। जब पूरा फसल पक कर तैयार हो जाता है तो किसानों मे जीवन समृद्धि की उम्मीदों के साथ खुशहाली जीवंत हो उठता है। इसी खुशी मे खेतों मे पकी नई फसल/ अनाज को घरों मे लाकर सुरक्षित संधारण करने के लिए अपने खलिहान, घरद्वार, कोठी-ढोली की साफ सफाई की जाती है। घर मे अनाज प्रवेश करने पर आनंदित, हर्षोल्लास से सम्मानपूर्वक चरण धोकर, दीप धूप जलाकर उसका स्वागत सत्कार किया जाता है। इस प्राप्त फसल के लिए कुदरत, पेन, पुरखे, खेती करने व जीविका के लिए सहयोगी, उपयोगी पशु- गाय, बैल, भेड़, बकरी .... को रंग, फूलहार पहनाकर, सजा धजाकर सभी का सम्मान, स्वागत, सेवा सत्कार किया जाता है। उनको धन्यवाद, आभार स्वरूप नए अनाज और नया साग का भोजन/ भोग कराना, मिष्ठान अर्पित कराने का प्रयोजन ही 'दियारी/ दीवारी/ दिवाली' है।

इसलिए हर बार हम कहते हैं कि दिवाली, यह विशुद्ध रूप से प्रकृति, प्रकृति पूजकों और प्रकृति के साथ समानान्तर जीवन जीने वालों का त्योहार है। प्रकृति के खुशनुमा व्यवहारिक परिवर्तन और लोक समृद्धि के स्वागत का त्यौहार है। प्रकृति के पूजकों के द्वारा जांगरतोड़ मेहनत से अपने खेतों में बोए गए फसल के पकने पर उल्लास प्रकट करने का त्यौहार है। इस फसल के लिए फसल प्रदाता कुदरत/ प्रकृति और फसल को उगाने में योगदान देने वाले सहयोगी जीवन साधन तथा पुरखों की वंदना, आराधना और उनका आभार प्रकट करने का त्यौहार है।

इस देश और दुनिया के मूलवंश इसी कुदरत और अपने पुरखों की कुदरतीय साहित्य की मूल सामाजिक, सांस्कारिक, परंपरा, प्रथा अनुसार अपने धार्मिक संस्कार और त्योहारों का कट्टरता से निर्वाह कर रहे हैं। इस देश में मनाए जाने वाले तीज त्योहारों की कुदरतीय मानव सांस्कारिक खूबसूरती के प्रकाश में ऐतिहासिक हत्यारों को देवी देवता बनाकर खड़ा किया जा रहा है ! यह एक गंभीर ऐतिहासिक साजिस के तहत किया जा रहा है ! खर्चीली चमक धमक भरी सांस्कृतिक आधुनिकता के आड़ में, हमारे ऐतिहासिक पुरखों के कत्ल करके हमें ही उन कातिलों का खुशी खुशी स्वागत करने पैगाम दिया जा रहा है ! इसमे वैदिक लेप (आवरण) चढ़ाया जाकर परग्रही पैरोकारों को अपने आदिम पुरखों की सामाजिक संस्कृति के रूप मे स्वीकार नही किया जा सकता।

देश में भादो महीने मे मनाया जाने वाला त्योहार, गणेश चतुर्थी के गणेश का जन्मोत्सव का स्वरूप वर्ष 1905 में पूणे (महाराष्ट्र) से शुरू हुआ। इस गणेश जन्मोत्सव के स्वरूप के जन्मदाता बालगंगाधर तिलक माने जाते हैं। ग्रन्थों का कहना है कि बुद्धि के दाता गणेश अपनी माता के मैल से अवतरित हुए ! क्या उस समय के लोग जीवन में कभी कभार ही नहाते थे, जो कि उनके शरीर मे नवजात बच्चे के वजन के बराबर मैल जम जाता था ? क्या उस समय लोग कहीं से, कुछ भी चीज से इंसान पैदा कर देते थे ? इंसानी शरीर में हाथी के सिर, चूहे की सवारी वाले गणेश के जन्म और जीवन चरित्र बड़ा मनोरंजक तथा हास्यास्पद है ! इस बुद्धि के दाता के जन्म और जीवन की कथा चमत्कारों से भरा पड़ा है। उनकी आरती/ स्तुति- "अंधन को आँख देत कोढ़िन को काया, बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया", के शब्द कुदरत, इंसान, ज्ञान, विज्ञान सभी के अस्तित्व और आवश्यकता को नकारने व धिक्कारने मे लगे हुए है ! 

भादो के खत्म होते ही कुँवार पक्ष मे बंगाल के वेश्यालयों की मिट्टी से गढ़ी गई दुर्गा की स्थापना, आदिम महानायक महिषासुर के हत्या के प्रतीक माने जाते हैं ! इस दुर्गा नाम के आपके पुरखा हत्यारन, 10 हाथ वाले पुतले को गलियों मे बैठाकर 9 दिन तक मनाए जाने वाले जश्न को देखा होगा ! इसी क्रम मे फिर 10वें दिन राम के द्वारा लंकाकोट के प्रजारक्षक, रक्ष संस्कृति के जनक, महाराजा महात्मा रावण की हत्या, बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न भी देखा होगा ! क्या 8-10 हाथ पाँव वाले स्त्री, पुरुष और पशुओं का स्वर्ग से इस धरती पर अवतरण, केवल धरती के इन्सानों/ योद्धाओं की जालसाजी और बेरहमी से हत्या करने के लिए ही हुए ?

इन स्वर्गवासियों ने धरती के खुशनुमा वातावरण के हर पक्ष मे अवतरित होकर इतिहास के और किन किन देशज महापुरुषों/ योद्धाओं की हत्या की, क्यों और किस साजिस के तहत की गई, इनके कारण आज भी आपके सामाजिक, सांस्कृतिक इतिहास तथा लोक भाषा, लोकवाणी और लोकोक्तियों के गर्भ मे दफन हैं। आपको इतिहास के गर्भ में दफन उन कारणों को खोजना, जानना और आपके जनमानस को अवगत कराना आवश्यक है। जिससे आप अथवा आपका भविष्य ऐसे विकृत इतिहास को बदलकर अपने पुरखों का मूल इतिहास रच सकें। 

इस धरा के मूल आदिम वंशों की दिवाली, महात्मा रावण के हत्यारा राम के अयोध्या वापस आने पर दीपक जलाकर उनके स्वागत से संबंध नहीं रखता है। यह हत्या करने वाले हत्यारों के स्वागत का उत्सव नहीं है। यह स्वर्गवासियों के किसी भी चमत्कारिक शक्ति के धरती पर अवतरित वंशों के स्वागत का त्यौहार नहीं है। रामायण, गीता, कृष्ण के गोवर्धन पर्वत से सम्बंधित भी नहीं है। यह आपके अग्रजों ने भी सत्यापित किया है। ऐसे 8-10 हाथ पाँव वाले स्त्री, पुरुष या विकृत पशुदेह के रूप मे मैल से पैदा होने, वेश्यालयों की मिट्टी से पैदा होने वाले या खीर खाने से पैदा होने वाले जीव, चमत्कारी लोग, जो हमारी जन, धन, धरा, संस्कृति और धर्म के लिए किसी न किसी तरह विनाशकारी और घातक रहे हैं, ऐसी प्रथा, परम्परा, त्यौहार से इस धरा के मूलवंशों का कोई वास्ता नहीं हैं।

इसलिए मेरा स्पष्ट मानना है कि इस त्योहार को किसी अयोध्या के राम के पौरुष का विजयकर्म, पुन्य की अभिलाषा, मिथकता और ग्रंथों की दृष्टि से देखना व मनाना बंद करना होगा। कुदरत ने जीवों को श्रमजीवी बनाया और उनके जीवनरक्षक प्रणाली विकसित की। इसलिए इस सृष्टि पर जीवन कुदरत/ प्रकृति से मिला। भोजन प्रकृति से मिला, मिल रहा है और मिलता रहेगा। जीवन के समस्त संसाधन प्रकृति की ही देन है। इंसानों के ज्ञान, विज्ञान, तकनीकी, संस्कृति और उनके समस्त साधन प्रकृति की ही देन हैं। सारे जीव और उनका जीवन प्रकृति की ही उपज हैं, तो मनुष्य को भ्रम क्यों हो रहा है कि सृष्टि को बनाने वाला कोई ब्रम्हा नाम का जीव है, जो ब्रम्ह्लोक में रहता है ! यदि वह जीव किसी ब्रम्ह्लोक का निवासी है तो उसका और उसके वंशों का इस धरती और हमारे कर्मों, तीज त्योहारों से क्या नाता ? जीवों के जीवन का रिश्ता नाता इस पुखराल (प्रकृति), धरती और उसके समस्त संसाधनों से है। हम प्रकृति के विवेकी जीवफल हैं, प्रकृतिभोगी हैं। इसलिए हमारा तीज त्यौहार और सारे जीवन कर्म प्रकृति से संबंध रखते हैं। किसी विष्णु के अंश, अयोध्या के राम या स्वर्ग के भगवानों से इस त्योहार का कोई संबंध नहीं है।

आदिम वंशों का हृदय प्रकृति की तरह विशाल है। इसलिए समाज मे सिद्दत से प्रकृति प्रेम कूट कूट कर भरा है। आदिम जनों का जीवन प्रकृति की तरह सरलता और वास्तविकता से भरा है। इसलिए त्यौहरों की वास्तविकता को जानिए। किसी भी त्यौहार में अपने आनंद और उल्लास के लिए प्रकृति और उसके समस्त उपयोगी जीवीय घटकों को किसी भी प्रकार से क्षति पहुंचाने से बचें। सृष्टि के जीवन संसाधनों की सुरक्षा करना हमारा सबसे बड़ा मानव नैतिक धर्म, जवाबदारी और दायित्व है। इस देश में किसी चमत्कारी दुनिया के लोग, आप और आपके पुरखों को चाहे जितना भी अनपढ़, नंगे, भूखे, अंधविश्वासी, अशिक्षितता फूहड़ता का ताज पहना दे, किन्तु दुनिया के वैज्ञानिक और उनका विज्ञान अंततः आदिम वंशों को ही इस धरा के सबसे योग्य रक्षा प्रणाली के जनक मानते हैं। हमें खुशी है, इसी तरह से जब आप अपने जीवन की अनंत कठिनाईयों, अपने ऐतिहासिक पूर्वजों की बेरहमी से हत्या, असुरक्षा, अन्याय, अत्याचार की धधकती ज्वाला को हृदय मे स्थान देते हुए इस धरती के सभी इंसान और जीवों की दुनिया की सुरक्षा की चिंता करते हैं।

आईए पुनः इस दिवाली त्योहार मे कुछ इस तरह के नीतियों/ तरीकों को अपनाकर हम सभी कुदरत, जीव, जन, धन और जीवन की सुरक्षा के लिए अपना योगदान दें :-

1) जीवों के जीवन और स्वास्थ्य की दृष्टि से सबसे खतरनाक बारूद के फटाके का धुंवा होता है। फटाका खरीदना और जलाना दोनों कुदरत और जीवन के लिए हानिकारक हैं। देश मे दिवाली के अवसर पर बेतरतीब तरीके से फोड़े जाने वाले फटाकों से वायुमंडल के प्राणवायु में जहरीली गैस का प्रभाव बढ़  जाता है। हवा में जहरीली गैस की मात्रा बढ़ने से घातक और जानलेवा बीमारियाँ पैदा होते हैं। इसकी खरीदी से धन की हानि तो होती ही है साथ ही सबसे बड़ा नुकसान हमारे प्राण वायु, जल, मिट्टी और पर्यावरण को होता है। बड़े फटाकों के फूटने से उठने वाला ध्वनि तरंग सुनने की क्षमता को खराब करता है या ख़त्म ही कर देता है। मधुमक्खी, पशु पक्षियों को भी आहत कर देता है। इससे समस्त पर्यावरण और जन को अनेक तरह से नुकसान के अलावा एक भी लाभ नहीं हैं। इसलिए फटाका खरीदना और जलाना बंद करें।

2) बच्चों में दीपावली त्यौहार के अवसर पर फटाका जलाने के लिए काफी उत्साह होता है। उनके उत्साह को बनाए रखने के लिए उन्हे खिलौनों से सुरक्षित फोड़े जा सकने वाले टिकिया/ फटाके दें। बच्चों को फटाका खरीदने और फोड़ने से होने वाले नुकसान के बारे से समझाएं और जागरूक करें। बच्चे हमारे भविष्य हैं। भविष्य के लिए ही प्रकृति का संरक्षण आवश्यक है। उन्हें किस्से कहानियों के रूप मे अपने समाज, पुरखों की संस्कृति के अनुसार उत्सवों की सारगर्भिता, सार्वभौमिकता के सम्बन्ध में बालमन से जरूर संवाद करें और उनकी कोरी बुद्धि मे संस्कारों का संवर्धन करें। इस छोटे से प्रयास से हम अपने समाज, अपने पूर्वजों की संस्कृति को अपने भविष्य के लिए भी सहेज पाएंगे।

3) प्रकृति हमारा धरोहर है। प्रकृति हमारे जीवन का संरक्षक है। प्रकृति हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है। प्रकृति हमारे भोजन, जीवन और सुरक्षा के संसाधनों का स्त्रोत है। इसलिए इसे नुकसान पहुंचाना स्वयं के जीवन को क्षति पहुंचाना है।

4) व्यापार करना अच्छी बात है, किन्तु जिस व्यापार से प्रकृति, जीव, जीवन और कुदरत को तीव्र नुकसान पहुँचने का खतरा हो, उसका उत्पादन और उपयोग करना बांध करें। कुदरत और जन जीवन को नुकसान पहुंचाने वाले सामग्रियों का व्यवसाय कर धन कमाना सबसे खतरनाक व सबसे बड़ा पाप है।

5) धन के लालच में डूबे हुए लोग त्योहारों में अधिक से अधिक धन कमाने के लिए त्योहारी खाद्य पदार्थों, मिठाई इत्यादि चीजों मे हानिकारक रसायन, रंग, नकली दूध, नकली खोवा मिलाकर आकर्षक व स्वादिष्ट बनाते हैं और बेचते हैं। ऐसे खाद्य सामाग्री जहरीले हो सकते हैं। होटलों के आकर्षक दिखने वाले ऐसे त्योहारी खाद्यपदार्थों को खरीदने से बचें। जहां तक हो सके अपने अपने घरों मे बना हुआ मिष्ठान ग्रहण करें। आदिम जनों में ऐसे विधियों से धन कमाने की लालच नहीं है। वह परीश्रम से धन कमाने पर विश्वास रखता है। कठोर परीश्रम ही सफलता का माध्यम है। अपनी खून पसीने की गाढ़ी कमाई जन, जीवन और प्रकृति को क्षति पहुंचाने वाले चीजों की खरीदी पर खर्च न करें।

6) धन से धन भी कमाया जाता है। यदि आपके पास धन है, उससे कुछ खरीदना चाहते हैं तो दिवारी के मौके पर अपने बच्चे और परिवार के लिए LIC जीवन बीमा खरीदें। यह उनके भविष्य का सबसे बड़ा तोहफा और उनके जीवन के संरक्षण का साधन होगा। यदि आपके पास कुछ ज्यादा खर्च करने की क्षमता है तो समाज के किसी ऐसे अनाथ बच्चे के सुरक्षा, संरक्षण व अध्ययन के लिए उस राशि का बांड पत्र या LIC जीवन बीमा खरीद दें, जिससे कम से कम समाज के एक बच्चे की जीवन की नेक जिम्मेदारी का सदा सुखद आभाष होते रहेगा।

7) इस प्रकृति के कोई भी दिन और रात शुभ या अशुभ नहीं होते। प्रतिदिन इंसान और जीव जन्म लेते हैं और मरते हैं। पुष्य नक्षत्र, धन तेरस के शुभ अवसर के नाम से धन खर्च करने के लिए अधिक उत्साही न बनें। हमारे द्वारा खर्च किए जाने वाला धन जिसके पास जाता है, वही धन तेरस है। जिसके पास जाता है वह धनवान हो जाता है और हम खरीदने वाले कंगाल। यह हमारे अविवेकी और अनियंत्रित सोच का प्रतिफल है।

8) प्रतिवर्ष जब धरती पुत्रों/ किसानों के हड्डी तोड़ मेहनत, परीश्रम का फल खेत के लहलहाते फसल के रूप मे प्राप्त होते ही व्यापारियों के धन का प्रतिनिधित्व करने वाले  पुशयनक्षत्र, धन तेरस और शुभ मुहूर्त की बांछें खिल उठती है ! जितना आप अपने खेत मे पकी फसलों के लिए खुशी नहीं मनाते, उससे कई गुना ज्यादा पुशयनक्षत्र, धन तेरस के शुभ मुहूर्त पर व्यापारी वर्ग खुशी मनाता है। वह आपको इस मुहूर्त मे अधिक से अधिक धन खर्च करके अपना सामान खरीदने के लिए प्रेरित करता है। इन व्यापारियों के लोक लुभावन झांसे मे न आकर अपने खून पसीने की गाढ़ी कमाई सोच समझ कर अतिआवश्यक वस्तुओं पर ही खर्च करें।  

9) "धनतेरस" के शुभ मुहूर्त के चक्कर में न पड़ें। शुभ मुहूर्त का प्रचार प्रसार करना व्यापारी और धनवान लोगों का हमसे धन लूटने का तरीका है। जैसे ही हम धरती पूजकों, कृषकों के खेत का अनाज पकता है, वैसे ही पुष्य नक्षत्र, धनतेरस जैसे शुभ मुहूर्तों का शैलाब फूट पड़ता है ! ऐसे आकर्षक, चमत्कारी, शुभ मुहूर्त के भँवर (चक्र) कि ओर खींचने वाले शैलाब की विनाशकारी धारा से अपने मन और धन को नियंत्रण मे रखें। ये शुभ मुहूर्त आपके कमाई को लूटने की सोची समझी साजिस है। मनुष्य के लिए हर दिन और हर रात शुभ मुहूर्त से भरे होते हैं। कोई भी दिन और रात अशुभ नहीं होता।

10) अधिकतर देखने में आता है कि लोग दीपावली त्यौहारों में तास के पत्ते खेलते हैं। खेल में एक पक्ष हारता है और एक जीतता है। जीतने वाला उत्साही और हारने वाला कुपित होता है। यह परिस्थितियां व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक दुराव और आर्थिक नुकसानदेह कारण भी पैदा करता है। इसलिए ऐसे नुकसानदेह स्वरुप के खेलों से बचें। मनोरंजन के लिए अन्य स्वास्थ्यवर्धक खेल खेलें, किन्तु पैसे की हार जीत के लिए नहीं। यह कानूनन अपराध है।

11) जिस प्रकृति ने जीव, जीवन और जीवन जीने के संस्कारपूर्ण माध्यम तीज, त्यौहार तथा ज्ञान, विज्ञान व पराविज्ञान दिया, वह प्रकृतिसंगत मानव सामाजिक संस्कृति किसी भी प्रकार की नैतिक प्रगति के लिए बाधक नहीं हैं। यदि कोई बाधा उत्पन करता है तो वह है अपने सामाज व सांस्कारिक दृष्टिकोण के प्रति इच्छाशक्ति का अभाव, स्वविवेक। अपने पूर्वज, सामाज और संस्कृति के प्रति निष्ठा को मजबूत रखते हुए जीवन को संवारने का प्रयास करें। यही प्रकृति और प्रगति का नियम है।

12) जब तक मानव जीवन में संस्कारों का नियम, बंधन और महत्व है, तब तक ही हम मानवहैं। असांस्कारिकता पशुता की निशानी है। इसलिए अपने सामाजिक जीवन संस्कारों का आदर और सामान करते हुए प्रगति के पथ पर आगे बढिए।

13) इन सबसे ऊपर अपने माता पिता, दादा दादी, सास ससुर और परिवार की सेवा, सम्मान, सुरक्षा और बच्चों की शिक्षा आवश्यक है। अच्छी शिक्षा इस देश में बहुत महंगी है। शिक्षा से ही समाज की समृद्धि के रास्ते खुल सकते हैं। बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने से ही वे अपने जीवन मे अपेक्षित समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं। अतः दीपावली के कथित धन समृद्धि की देवी लक्ष्मी  की अराधना का संदेश देने के बजाय बच्चों को बेहतर शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरत करते हुए तन, मन, धन से सहयोग करें।
  
14) नशा, शरीर, बुद्धि, विवेक, ज्ञान और धन का नाश करता है। इसलिए नशा से दूर रहें और परिवार के साथ दिवारी तिहार का आनंद उठाएं।

इन्ही भावनाओं के साथ ही आप सभी को दियारी तिहार की मंगलकामनाएँ।



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रविवार, 28 जुलाई 2019

सोनभद्र : गोंड आदिवासियों का नरसंहार- भूमाफिया और प्रशासनिक अफसरों के गठजोड़ का नतीजा

उम्भा गाँव का घटना स्थल 
दिनांक 17 जुलाई 2019 को सोनभद्र जिले के घोरावल थाना क्षेत्र के मूर्तियां ग्राम पंचायत के अंतर्गत उम्भा गांव के 10 गोंड आदिवासियों का भू-माफियाओं द्वारा एक नृशंस कत्लेआम की घटना को अंजाम दिया गया, जिसमें की 9 लोग घटनास्थल पर ही हलाक हो गये और एक व्यक्ति अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ा। अभी एक औरत जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रही है। जिसमें जिंदगी अनिश्चित लगती है।

इस घटना के पीछे की पृष्ठभूमि भू-माफियाओं और प्रशासनिक अधिकारियों के गठजोड़ की कहानी कहती है। ग्रामीणों के अनुसार घटना की इस पृष्ठभूमि में मिर्जापुर के तत्कालीन डी.एम., प्रभात कुमार मिश्र ने अपने ससुर (माहेश्वरी प्रसाद सिन्हा) को लगभग 600 एकड़ जमीन जालसाजी से दिलाई थी। यह वही जमीन थी जिस पर इलाके के आदिवासी अपनी पुश्तैनी खेती-बाड़ी कर गुजर-बसर कर रहे थे।

बताया जाता है कि इस जमीन पर ग्राम प्रधान (यज्ञदत्त भूर्तिया) को कब्जा दिलाने के लिए बिहार से करीब 150 लोग आए थे। इनमें ज्यादातर अपराधी किस्म के लोग थे, जो असलहे से लैस थे। अपने पावर का दुरुपयोग करते हुए मिर्जापुर के तत्कालीन डी.एम. रहे प्रभात कुमार मिश्र ने यह सारी भूमि हथियाने का खेल किया है। हैरत की बात यह है कि बिहार के पूर्व आई.ए.एस. प्रभात कुमार मिश्र ने इस जमीन को अवैध तरीके से पहले "आदर्श कोआपरेटिव सोसायटी" के नाम कराया और बाद में अपनी पत्नी आशा मिश्रा और पुत्री विनीता शर्मा के नाम करा लिया था। प्रभात कुमार उस समय मिर्जापुर के डी.एम. थे और यह इलाका उनके कार्यक्षेत्र में ही आता था।

हालांकि सोसायटी का पंजीकरण साल 1978 में ही सब खत्म हो गया था। इसके बावजूद सोसायटी की तथाकथित प्रबंधक उनकी बेटी और पत्नी हो गई। सोसायटी के जमीन के अभिलेख मिर्जापुर और सोनभद्र प्रशासन के पास नहीं हैलेकिन दबंगों और भूमि माफियाओं का दावा है कि उस जमीन का उन्होंने बैनामा कराया है। इतना ही नहीं पटना के एक शख्स जिसका नाम धीरज है, वह हर साल भोले भाले आदिवासियों से प्रति बीघा ढाई हजार रुपये लगान वसूलने आता था। इस मामले में कोर्ट में मुकदमा लड़ रहे रामराज गोंड ने बताया कि आदिवासी समाज के लोग इस जमीन पर कई पुस्तों से जुताई-बुवाई करते आ रहे हैं। लेकिन सोसायटी की तथाकथित प्रबंधक आशा मिश्रा और विनीता शर्मा ने राजस्व विभाग के अधिकारियों पर बेजा दबाव बनाकर फर्जी सोसायटी की जमीन को अवैध तरीके से अपने नाम करा लिया। इसमें आशा मिश्रा के आई.ए.एस. पति प्रभात कुमार मिश्रा एवं बिहार कैडर के आई.ए.एस. भानु प्रताप शर्मा ने अहम भूमिका निभाई। विवाद भले ही 200 बीघे जमीन पर था लेकिन इस फर्जी सोसायटी ने ग्राम समाज की लगभग 600 बीघे जमीन हड़प रखी है। इसी पूर्व आई.ए.एस. अधिकारी प्रभात कुमार मिश्रा ने अवैध तरीके से सोसायटी के जमीन 200 बीघा से अधिक जमीन गुपचुप तरीके से प्रधान यज्ञदत्त भूर्तियाउसके भतीजे और रिश्तेदारों के नाम बेंच दिया। बाद में इसी आई.ए.एस. अधिकारी ने प्रधान यज्ञदत्त के साथ मिलकर पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों पर दबाव डाला। पुलिस व प्रशासनिक अफसरों की हरी झंडी मिलते ही प्रधान सैकड़ों लोगों को लेकर जमीन कब्जाने पहुंच गया। जो भी ग्रामीण मुखर होकर उनके सामने आए उन पर बेरहमी से गोलियां बरसा दी गई। 
      
राजा बड़हर ने दी थी वनवासियों को जमीन- जिस भूखंड के लिए यह नरसंहार किया गया वह जमीन राजा बड़हर आनंद ब्रह्म शाह की थी। राजा ने वनवासियों को यह जमीन खेती करने के लिए दी थी। उम्भा गांव के बुद्धूराम लालमोहनमुन्नीलाल समेत दो दर्जन से अधिक वनवासियों ने "आदर्श को-ऑपरेटिव सोसाइटी" को फर्जी करार देते हुए न्यायालय में वाद दाखिल कर रखा है। यह मुकदमा करीब 65 साल पहले दाखिल किया गया था। मुकदमें में यह साफ-साफ कहा गया था कि विवादित भूमि को राजा बड़हर ने मूल खातेदार बुद्धू को दिया था। इनके पूर्वज गंभीराभीमाबैजनाथआदि लोग खेती करते थे। तब से लेकर अब तक पुस्तों से बनवासी ही इस भूमि पर आबाद हैं। विवादित भूखंड पर कभी भी "आदर्श कोआपरेटिव सोसायटी" का कब्जा नहीं रहा। कागजात माल में सिर्फ नाम के लिए सोसायटी का ब्यौरा अंकित है। इस सोसायटी के अध्यक्ष महेश्वर प्रसाद नारायण सिन्हा रहेजो पटना बिहार के रहने वाले बड़े जमीदार थे। हैरत की बात यह है कि विभिन्न प्रकार से सरकारी और गैर सरकारी जमीन पर फर्जी ढंग से अपना नाम चढ़ाकर बड़े भूमाफिया हो गए थे। इसी क्रम में उन्होंने अपने दामाद आई..एस. प्रभात कुमार मिश्र का सहयोग लिया और फर्जी सोसायटी बना कर उक्त भूखंडों को सोसायटी के नाम दर्ज करा दिया। वनवासी अशिक्षित थे इसका लाभ भूमाफिया ने भरपूर उठाया। करीब 3 माह पूर्व प्रधान वनवासियों के बीच पहुंचे और कहा कि "आदर्श कोऑपरेटिव सोसायटी" की जमीन को उन्होंने खरीद लिया है और उस पर अब कोई खेती नहीं करेगा। इसे लेकर कोर्ट में मुकदमा चल रहा है।

सोनभद्र नरसंहार कांड दबंग भूमाफिया और भ्रष्ट आई.ए.एस. अफसरों के गठजोड़ का नतीजा है। आदिवासियों की जमीन हड़पने के लिए साजिश पर साजिशें होती रही पर किसी ने नहीं सुनी। पुलिस प्रशासन की कौन कहे, सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने भी इनके दर्द पर कानून और न्याय का मरहम लगाने की जरूरत नहीं समझी। पुलिस और प्रशासनिक अफसरों ने आदिवासियों पर इतने जुल्म ढाए की अब उनके सामने बंदूक उठाने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं था। दबंग पुलिस माफिया से मिली पुलिस खुद भी चाहती थी कि वे नक्सली बन जाएं और उन्हें आसानी से शूटआउट कर सकें। कामयाबी नहीं मिली तो आई.ए.एस. अफसरों के साथ मिलकर भूमाफिया ने खुद आदिवासियों को मिटाने की तैयारी की और नतीजा निकला सामूहिक नरसंहार।

इस मामले की पटकथा भी कुछ उसी तरह लिखी जा रही थी जिस तरह नौगढ़ का लाल व्रत कोल, अपनी जमीन के लिए हार्डकोर नक्सली बनने के लिए विवश हो गया था। सोनभद्र का आदिवासी नरसंहार कांड जिस जमीन के लिए रचा गया उसके पक्ष में बिहार के 2 आई.ए.एस. अफसर और इलाके के दबंग भूमाफिया थे। इनके सिर पर पुलिस और प्रशासनिक अफसरों का हाथ था। यह बात आईने की तरह साफ दिखती है कि गोंड जाति के आदिवासी जमीदारी विनाश अधिनियम लागू होने के पहले से ही उम्भा गांव में ग्राम समाज की जमीन पर झोपड़ी डालकर खेती कर रहे थे। यह अधिकार किसी और ने नहीं खुद तत्कालीन राजा बड़हर आनंद शाह ने दिया था। जंगल की जमीन को किसी और ने नहीं नरसंहार में मारे गए आदिवासियों के पूर्वजों ने ही बनाया था। अशिक्षित आदिवासी कागजात में हेरफेर और फर्जीवाड़े से अनजान रहे। जिस जमीन को लेकर यह बड़ी वारदात हुई, वह तीन तरफ नाले से घिरी है। मूर्तियां बंधा बन जाने के बाद वह जमीन सोना उगलने लगी तो उस पर दबंग भूमाफिया यज्ञदत्त भुर्तिया की नजर गड़ गई। उसने आदिवासियों को कीमती जमीन से बेदखल करने के लिए ताना-बाना बुनना शुरू कर दिया। इसके चलते इस जमीन पर तीखी नजर बिहार के दबंग भूमाफिया माहेश्वरी प्रसाद नारायण सिंहा की पड़ी। उन्होंने एक फर्जी सोसायटी बनाई और नाम रखा "आदर्श को- ऑपरेटिव सोसाइटी"। महेश्वरी प्रसाद ने 17 दिसंबर 1955 को अपने चहेते रावट्सगंज के तहसीलदार को प्रभाव में लेकर आदिवासियों की जमीन धोखाधड़ी से सोसायटी के नाम करा लिया। सोसाइटी में उम्भा गांव का कोई नहीं थेथे तो केवल इस भू-माफिया के परिजन और रिश्तेदार।

इस मामले की पटकथा भी कुछ उसी तरह लिखी जा रही थी जिस तरह नौगढ़ का लाल व्रत कोल, अपनी जमीन के लिए हार्डकोर नक्सली बनने के लिए विवश हो गया था। सोनभद्र का आदिवासी नरसंहार कांड जिस जमीन के लिए रचा गया उसके पक्ष में बिहार के 2 आई.ए.एस. अफसर और इलाके के दबंग भूमाफिया थे। इनके सिर पर पुलिस और प्रशासनिक अफसरों का हाथ था। यह बात आईने की तरह साफ दिखती है कि गोंड जाति के आदिवासी जमीदारी विनाश अधिनियम लागू होने के पहले से ही उम्भा गांव में ग्राम समाज की जमीन पर झोपड़ी डालकर खेती कर रहे थे। यह अधिकार किसी और ने नहीं खुद तत्कालीन राजा बड़हर आनंद शाह ने दिया था। जंगल की जमीन को किसी और ने नहीं नरसंहार में मारे गए आदिवासियों के पूर्वजों ने ही बनाया था। अशिक्षित आदिवासी कागजात में हेरफेर और फर्जीवाड़े से अनजान रहे। जिस जमीन को लेकर यह बड़ी वारदात हुई, वह तीन तरफ नाले से घिरी है। मूर्तियां बंधा बन जाने के बाद वह जमीन सोना उगलने लगी तो उस पर दबंग भूमाफिया यज्ञदत्त भुर्तिया की नजर गड़ गई। उसने आदिवासियों को कीमती जमीन से बेदखल करने के लिए ताना-बाना बुनना शुरू कर दिया। इसके चलते इस जमीन पर तीखी नजर बिहार के दबंग भूमाफिया माहेश्वरी प्रसाद नारायण सिंहा की पड़ी। उन्होंने एक फर्जी सोसायटी बनाई और नाम रखा "आदर्श को- ऑपरेटिव सोसाइटी"। महेश्वरी प्रसाद ने 17 दिसंबर 1955 को अपने चहेते रावट्सगंज के तहसीलदार को प्रभाव में लेकर आदिवासियों की जमीन धोखाधड़ी से सोसायटी के नाम करा लिया। सोसाइटी में उम्भा गांव का कोई नहीं थेथे तो केवल इस भू-माफिया के परिजन और रिश्तेदार। 

इस जमीन का रकबा 637 बीघा है। यह जमीन उस समय सोसायटी के नाम की गई जब नामांतरण करने का अधिकार तत्कालीन तहसीलदार को था ही नहीं। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 1150 बी/ आई ए-1300-58 के आदेश के तहत 31 जुलाई 1959 को तहसीलदार को नामांतरण का पावर दिया था। बिहार के भूमाफिया महेश्वरी प्रसाद सिंहा के दमाद मिर्जापुर के डी.एम. रहे प्रभात कुमार मिश्र ने रावट्सगंज के तहसीलदार को मिलाकर फर्जी ढंग से जमीन हड़पने के खेल को अंजाम दे दिया। अभिलेख बताते हैं कि आदिवासियों के पूर्वज गांव में ग्राम समाज की जमीन पर खेती बाड़ी करते रहे। लेकिन भ्रष्ट नौकरशाही ने आई.ए.एस. अफसरों के दबाव में कभी सर्वे नहीं होने दिया। भूमाफिया महेश्वरी प्रसाद सिन्हा के निधन के बाद लगभग 200 बीघे जमीन उनकी पुत्री आशा मिश्रा पत्नी आईएस प्रभात कुमार मिश्रा मिर्जापुर के तत्कालीन डी.एम. की पुत्री विनीता शर्मा पत्नी भानु प्रताप शर्मा के नाम कर दी। विनीता शर्मा के पति भानु प्रताप शर्मा बिहार कैडर के आई.ए.एस. अफसर है। जमीन के दस्तावेजों में लगातार हेरा फेरी की जाती रही। क्योंकि 33/39 एल.आर अधिनियम के लिपिकीय त्रुटि को दूर की जाती है, जिसमें उल्लेख है कि स्वत्व का निर्माण निर्धारण नहीं किया जा सकता। जबकि इस विवाद में आई.ए.एस. अफसर भानु प्रताप शर्मा ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके फर्जी तरीके से फर्जी सोसायटी की करीब 200 बीघा जमीन को अपनी पत्नी विनीता शर्मा और उनकी मां आशा मिश्रा के नाम करवा दिया।

अवैध तरीके से यह नामांतरण 6 सितंबर 1989 को कराया गया। जबकि साल 1947 के पूर्व से ही इस जमीन पर आदिवासी काबिज थे। हैरत की बात यह है कि भूमाफिया ने पहले ग्राम समाज की जमीन को अपने नाम करा लिया और फर्जी तरीके से एक जाली मुख्तार -ए- खास दिल्ली में बनवाकर घोरावल रजिस्ट्रार के यहां एक साथ 144 बीघा जमीन दो करोड़ में बेच दी इस जमीन का सौदा भी उसी दबंग भूमाफिया यज्ञ दत्त भूर्तियां और उसके रिश्तेदारों के साथ किया गया, जिनकी नजर पहले से ही सोना उगलने वाली इस जमीन पर गड़ी थी। रजिस्ट्रेशन अधिनियम की धारा 28 के तहत जहां जमीन का पंजीकरण होना है उसे वहीं का मुख्तार-ए-खास कर सकता है। इस कानून को पुलिस और प्रशासन ने पूरी तरह से अनदेखी कर दी। सत्तारूढ़ दल का शायद ही कोई बड़ा नेता होगा जिनके पास आदिवासियों की अर्जी ना पहुंची हो। चाहे भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह हो या फिर सीएम योगी नाथ, बैनामा निरस्त करने के लिए शायद ही कोई तहसील दिवस नहीं रहा होगा जब आदिवासियों ने गुहार ना लगाई हो। कलेक्टर की देहरी पर इन आदिवासियों ने तो अनगिनत बार मत्था टेका पर उनका दिल भी नहीं पसीजा। इसी बीच सहायक अभिलेख अधिकारी ने उनकी बात सुने बगैर ही एक भूमाफिया के परिवार की धोखाधड़ी से हड़पी गई जमीन दूसरे भू-माफिया के नाम कर दी। यह जमीन ग्राम सभा की थी, लेकिन भ्रष्ट आई.ए.एस. अफसरों, माफिया के गठजोड़ ने आदिवासियों पर जुल्म ज्यादती का पहाड़ तोड़ना शुरू कर दिया। अर्जुन की कहानी उस खत में भी पढ़ी जा सकती है जो उन्होंने 12 दिसंबर 2019 को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को रजिस्टर्ड डाक से भेजी थी। इस पर सौ से अधिक आदिवासियों के अंगूठे के निशान पुलिसिया तांडव और अफसरों की कहानी कहते हैं। आदिवासियों को भले ही श्री अमित शाह ने नहीं पढ़ा, लेकिन उन्होंने खत मेन जो बातें लिखी थी वह सच साबित हुई। खत में लिखा गया है कि भानु प्रताप शर्मा और उनके ससुर सेवानिवृत्त के दबाव में आकर इलाकाई पुलिस ने आदिवासियों को नक्सली बनाने के लिए 60 लोगों पर फर्जी मुकदमे दर्ज किए। यह तीनों मुकदमा अपराध संख्या 112/ 18, 166/18 और 167/18 के तहत पिछले साल दर्ज किए गए। इस बीच पुलिस और पीएसी आदिवासियों के घरों में घुसकर तांडव करती रही। उनकी बहू- बेटियों का शारीरिक शोषण भी  करती रही। नामजद लोगों में से 12 पर गुंडा एक्ट भी लगा दिया गया। बाद में जिलाधिकारी ने निर्दोष ग्रामीणों को जिला बदर भी कर दिया। लाचारी में लोगों को जंगलों में छिपकर रहना पड़ रहा था। आदिवासियों ने पहले ही आशंका जाहिर कर दी थी कि आई.ए.एस. अफसरों के इशारे पर पुलिस उनका दमन और उत्पीड़न कर रही है। इनके दबाव का नतीजा रहा कि कलेक्टर ने उनकी बात नहीं सुनी और उनकी अपील खारिज कर दी।

आदिवासियों की इज्जत और उनके साथ हो रहे जुल्म-ज्यादती को सुनने- देखने की किसी अफसर ने जहमत नहीं उठाई। आदिवासी रामराज सिंह कहते हैं कि पुलिस और प्रशासनिक अफसर उन्हें नक्सली बनाकर मुठभेड़ में मरवाना चाहते थे। आई.ए.एस. अफसरों ने बिहार से भू-माफिया प्रधान की जमीन कब्जाने के लिए बिहार से हथियारबंद लोगों को ट्रैक्टर के साथ भेजा था। साजिश में शामिल आई.ए.एस. अफसरों का ऐसा दबाव था कि घटना के समय पुलिस के आला अफसरों के फोन अचानक स्विच ऑफ हो गए। रामराज ने कहा कि सोनभद्र के डी.एम. भी बिहार के रहने वाले हैं और इस प्रकरण में उनकी भूमिका बेहद रहस्यमय और संदिग्ध है। नरसंहार में शामिल आई.ए.एस. अफसरों के खिलाफ कार्रवाई तभी संभव है जब मामले की सीबीआई जांच हो।  


इस भीषण नरसंहार में वर्तमान में 10 लोग हालाक हो गए और 22 लोग घायलों के रूप में विभिन्न अस्पतालों में भर्ती हैं। वर्तमान में बी.एच.यू के ट्रामा सेंटर में 6 लोग एडमिट हैं और 2 लोग स्वास्थ्य लाभ कर डिस्चार्ज कर दिए गए हैं। इन 6 लोगों में केरवा देवी पत्नी रामप्रसाद की स्थिति नाजुक बनी हुई है। वह आई.सी.यू. में है और उन्हें अभी तक होश नहीं आया। मृतकों में रामचंदर पुत्र लाल शाहराजेश गोंड पुत्र गोविंदअशोक पुत्र नन्हकूरामधारी पुत्र हीरा शाहराम सुंदर पुत्र तेजा सिंहजवाहिर पुत्र जयकरनअशोक गोंड पुत्र हरिवंशबासमती पत्नी नंदलालदुर्गावती पत्नी रंगीला लाल और सुखवन्ती पत्नी राजनाथ। घायलों की सूची में नागेंद्र पुत्र श्री रामजय प्रकाश पुत्र संतलालनिधि दत्त पुत्री श्याम बिहारीअशर्फीलाल पुत्र शारदा प्रसाददिनेश कुमार पुत्र राम प्यारेदेवदत्त पुत्र श्याम बिहारीप्रमोद पुत्र शिव मूरतराकेश सिंह पुत्र सुमंगल लालमहेंद्र पुत्र गुलाबरामरक्षा पुत्र श्री रामसुखवन्ती पत्नी संतलालइंद्र कुमार पुत्र मुन्नीलालसीता पत्नी तेज सिंहछोटेलाल पुत्र चिरकुटचंद्रशेखर पुत्र बलीकरणकेरवा देवी पत्नी राम प्रसादरामदीन पुत्र तेजा सिंहरामलालभगवान दासराजेंद्ररामनाथऔर कमलावती सम्मिलित है।  

दिनांक 21 जुलाई 2019 को मुख्यमंत्री, योगी आदित्यनाथ ने घटनास्थल का दौरा किया और घायलों को 2.5 लाख तथा मृतक आश्रितों को 18.5 लाख की धनराशि की सहायताराशनकार्डआयुष्मान भारत कार्डप्रधानमंत्री आवासउम्भा गांव में पुलिस चौकीअग्नी-शमन दल की स्थापना करने का आश्वासन दिया है। कांग्रेस के महासचिव एंव उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी ने 10-10 लाख रुपए की सहायता की घोषणा मृतक आश्रित परिवारों को देने के लिए किया है। उत्तर प्रदेश शासन ने क्षेत्र में धारा 144 लगा रखा है और ग्राउंड जीरो पर जाने से लोगों को वंचित कर रखा है।

राजनीतिक पार्टियां हैं तो वे राजनीति करेंगे ही और राजनीति में शासन पक्ष की बुराइयां और कमियों को ही बताया जाता है। लेकिन वास्तव में यह सारी चीजें सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था पर निर्भर करती है। भारत में जातीयता और उसके आधार पर अर्थ का निर्धारण सत्य है। कालांतर में बेशक कानूनन जमीदारी प्रथा को समाप्त किया गयालेकिन हकीकत में शासक वर्गों के अंदर सामंती मानसिकता भरपूर है। इसी मानसिकता के तहत ब्राह्मण-भूमिहारों काब्राह्मण-बनियों और प्रशासनिक अफसरों का सीधे सादे लोगों को ठगने, लूटने वाला भू-माफिया तंत्र काम कर रहा है, जिसे यहां भू माफिया और प्रशासनिक अफसरों का गठजोड़ कहा गया है।

इस पूरी कहानी का आधार भाजपा के पूर्व सांसद छोटे लाल खरवारजनसंदेश टाइम्सराष्ट्रीय सहारा के खबरों के आधार पर तथा घायलों के परिवार के सदस्य अजय कुमार गोंडरामप्यारे गोंड आदि के बयान के आधार पर लिखी गई है।

उमेश चंद्र गोंड
उत्तर प्रदेश
                                         
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