कुदरत ही हमारा 'साहित्य', 'संस्कार', और 'व्यवहार' है। ऐसा हमारे पुरखे बतलाते आए हैं। हमारे मानव बिरादरी के तीज तिहार/ त्योहार के बारे में बतलाने के लिए इस कुदरती 'साहित्य', 'संस्कार' और 'व्यवहार' के अलावा हमारे पास व्यक्तिगत रूप से कुछ भी नहीं है। जो कुछ भी है वह हमारे ऐतिहासिक बिरादरी/ पुरखों/ समाज के द्वारा इस कुदरत को पढ़कर ग्रहण किए हुए सांस्कारिक संरचना से व्यक्तित्व निर्माण तथा विकास के साथ बेलेंसिंग/ सम-समृद्धि का नैसर्गिक खजाना और उस खजाने से जीवन में संतोष प्राप्त करते हुए कुदरत के साथ समानान्तर जीवन जीने की खुशनुमा अनुभूति मात्र है।
समाज के बुजुर्ग आज भी कहते हैं कि उनके सारे जीवन संस्कारों का स्त्रोत कुदरत ही है। कुदरत के समस्त घटक- मिट्टी, पत्थर, जंगल, घास, लता, फूल, फल, नदी, पहाड़, पशु पक्षी और उनकी बोली भाषा, हवा, पानी, ऊर्जा, बादल, वर्षा, प्रकाश, छांव, रंग ...... इन सभी के गुणधर्म से हमारा कुदरतीय साहित्य संरचना का निर्माण और जीवन संस्कारबद्ध है।
समाज के बुजुर्ग आज भी कहते हैं कि उनके सारे जीवन संस्कारों का स्त्रोत कुदरत ही है। कुदरत के समस्त घटक- मिट्टी, पत्थर, जंगल, घास, लता, फूल, फल, नदी, पहाड़, पशु पक्षी और उनकी बोली भाषा, हवा, पानी, ऊर्जा, बादल, वर्षा, प्रकाश, छांव, रंग ...... इन सभी के गुणधर्म से हमारा कुदरतीय साहित्य संरचना का निर्माण और जीवन संस्कारबद्ध है।
किसानों की हड्डीतोड़ मेहनत से उनके खेतों में लहलहाती फसल |
दियारी/ दिवारी/ दीपावली, यह गोंडवाना धरा का अतिप्राचीन त्योहार है। संभवतः जब मानव
समाज इस धरा पर खेती करना प्रारंभ किया तब से यह मनाया जा रहा है। बारिस की खेती/
फसल पकने पर यह त्योहार देश के कोने कोने में उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह फसल
पकने और कुदरत के खुशनुमा शरद ऋतु के आगमन के साथ ही आता है। खेतों एवं बाड़ियों मे बारिस
की विभिन्न फसलें बोने/ लगाए जाने के बाद कम समय मे पकने वाली फसलें शरद ऋतु आने तक कटने लगती है या कट जाती हैं।
इन्हीं सबसे पहले पके हुए अनाज से देश के किसान प्रथमतः कुदरत और अपने पुरखों को
धन्यवाद स्वरूप अर्पण करने का त्योहार 'नया खानी, नवा खानी' मनाता है। 'नया खानी' का आशय
कुदरत की उस सहानुभूति से है, जिसने मिट्टी मे मिलाए गए अनाज/ बीज के अंकुरण से लेकर पकने तक के लिए आवश्यक बारिस, ऊर्जा, उर्वरा प्रदान करते हुए कीट पतंग इत्यादि से कुदरत के द्वारा उसकी
सुरक्षा की गई और अब इसे ग्रहण करने हेतु किसान, कुदरत और अपने पुरखों से अनुमति लिया है। किसान अपने मेहनत की कमाई के इस नए अनाज को 'नया खानी' के रूप मे कुदरत और अपने पुरखों को अर्पण करने के पश्चात ही अपने परिवार
को इसे खाने की अनुमति देता है।
जब तक एक एक दाना आपकी थाली तक न पहुँच जाए तब तक यह मेहनत सतत चलता रहता है |
दियारी मे बैलों/ गायों ... के साथ परिवार के लोग भी खाना खाते हैं |
इसलिए हर बार हम कहते हैं कि दिवाली, यह विशुद्ध रूप से प्रकृति, प्रकृति पूजकों और प्रकृति के साथ समानान्तर जीवन जीने वालों का त्योहार है। प्रकृति के खुशनुमा व्यवहारिक परिवर्तन और लोक समृद्धि के स्वागत का त्यौहार है। प्रकृति के पूजकों के द्वारा जांगरतोड़ मेहनत से अपने खेतों में बोए गए फसल के पकने पर उल्लास प्रकट करने का त्यौहार है। इस फसल के लिए फसल प्रदाता कुदरत/ प्रकृति और फसल को उगाने में योगदान देने वाले सहयोगी जीवन साधन तथा पुरखों की वंदना, आराधना और उनका आभार प्रकट करने का त्यौहार है।
इस देश और दुनिया के मूलवंश इसी कुदरत और अपने पुरखों की कुदरतीय साहित्य की मूल
सामाजिक, सांस्कारिक, परंपरा, प्रथा अनुसार अपने धार्मिक संस्कार और
त्योहारों का कट्टरता से निर्वाह कर रहे हैं। इस देश में मनाए जाने वाले तीज
त्योहारों की कुदरतीय मानव सांस्कारिक खूबसूरती के प्रकाश में ऐतिहासिक हत्यारों
को देवी देवता बनाकर खड़ा किया जा रहा है ! यह एक गंभीर ऐतिहासिक साजिस के तहत किया
जा रहा है ! खर्चीली चमक धमक भरी सांस्कृतिक आधुनिकता के आड़ में, हमारे ऐतिहासिक पुरखों के कत्ल करके हमें ही उन कातिलों का खुशी खुशी स्वागत करने पैगाम दिया
जा रहा है ! इसमे वैदिक लेप (आवरण) चढ़ाया जाकर परग्रही पैरोकारों को अपने आदिम पुरखों की सामाजिक संस्कृति के रूप मे स्वीकार नही किया जा सकता।
देश में भादो महीने मे मनाया जाने वाला त्योहार, गणेश चतुर्थी के गणेश का
जन्मोत्सव का स्वरूप वर्ष 1905 में पूणे (महाराष्ट्र) से शुरू हुआ। इस गणेश
जन्मोत्सव के स्वरूप के जन्मदाता बालगंगाधर तिलक माने जाते हैं। ग्रन्थों का कहना
है कि बुद्धि के दाता गणेश अपनी माता के मैल से अवतरित हुए ! क्या उस समय के लोग जीवन में कभी कभार ही नहाते थे, जो कि उनके शरीर मे नवजात बच्चे के वजन के बराबर मैल जम जाता था ? क्या उस समय लोग कहीं से, कुछ भी चीज से इंसान पैदा कर देते थे ? इंसानी शरीर में हाथी
के सिर, चूहे की सवारी वाले गणेश के जन्म और जीवन चरित्र बड़ा
मनोरंजक तथा हास्यास्पद है ! इस बुद्धि के दाता के जन्म और जीवन की कथा चमत्कारों
से भरा पड़ा है। उनकी आरती/ स्तुति- "अंधन को आँख देत कोढ़िन को काया, बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया", के शब्द कुदरत, इंसान, ज्ञान, विज्ञान सभी के अस्तित्व और आवश्यकता को नकारने व धिक्कारने मे लगे हुए है
!
भादो के खत्म होते ही कुँवार पक्ष मे बंगाल के वेश्यालयों की मिट्टी से गढ़ी गई
दुर्गा की स्थापना, आदिम महानायक महिषासुर के
हत्या के प्रतीक माने जाते हैं ! इस दुर्गा नाम के आपके पुरखा हत्यारन, 10 हाथ वाले पुतले को गलियों मे बैठाकर 9 दिन तक मनाए जाने वाले जश्न को देखा
होगा ! इसी क्रम मे फिर 10वें दिन राम के द्वारा लंकाकोट के प्रजारक्षक, रक्ष संस्कृति के जनक, महाराजा महात्मा रावण की
हत्या, बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न भी देखा होगा ! क्या 8-10
हाथ पाँव वाले स्त्री, पुरुष और पशुओं का स्वर्ग से इस धरती
पर अवतरण, केवल धरती के इन्सानों/ योद्धाओं की जालसाजी और
बेरहमी से हत्या करने के लिए ही हुए ?
इन स्वर्गवासियों ने धरती के खुशनुमा वातावरण के हर पक्ष मे अवतरित होकर
इतिहास के और किन किन देशज महापुरुषों/ योद्धाओं की हत्या की, क्यों और किस साजिस के तहत की
गई, इनके कारण आज भी आपके सामाजिक,
सांस्कृतिक इतिहास तथा लोक भाषा, लोकवाणी और लोकोक्तियों के गर्भ मे दफन हैं। आपको इतिहास के गर्भ में दफन उन कारणों को खोजना, जानना और
आपके जनमानस को अवगत कराना आवश्यक है। जिससे आप अथवा आपका भविष्य ऐसे विकृत इतिहास
को बदलकर अपने पुरखों का मूल इतिहास रच सकें।
इस धरा के मूल आदिम वंशों की दिवाली, महात्मा रावण के हत्यारा राम के अयोध्या
वापस आने पर दीपक जलाकर उनके स्वागत से संबंध नहीं रखता है। यह हत्या करने वाले
हत्यारों के स्वागत का उत्सव नहीं है। यह स्वर्गवासियों के किसी भी चमत्कारिक शक्ति के धरती
पर अवतरित वंशों के स्वागत का त्यौहार नहीं है। रामायण, गीता, कृष्ण
के गोवर्धन पर्वत से सम्बंधित भी नहीं है। यह आपके अग्रजों ने भी सत्यापित किया
है। ऐसे 8-10 हाथ पाँव वाले स्त्री, पुरुष या विकृत पशुदेह के
रूप मे मैल से पैदा होने, वेश्यालयों की मिट्टी से पैदा होने वाले या खीर खाने से पैदा होने वाले जीव, चमत्कारी लोग, जो हमारी जन, धन, धरा, संस्कृति और धर्म के लिए किसी न किसी तरह विनाशकारी और घातक रहे हैं,
ऐसी प्रथा, परम्परा, त्यौहार
से इस धरा के मूलवंशों का कोई वास्ता नहीं हैं।
इसलिए मेरा स्पष्ट मानना है कि इस त्योहार को किसी अयोध्या के राम के पौरुष का विजयकर्म, पुन्य की अभिलाषा, मिथकता और ग्रंथों की दृष्टि से देखना व मनाना बंद करना होगा। कुदरत ने जीवों को श्रमजीवी बनाया और उनके जीवनरक्षक प्रणाली विकसित की। इसलिए इस सृष्टि पर जीवन कुदरत/ प्रकृति से मिला। भोजन प्रकृति से मिला, मिल रहा है और मिलता रहेगा। जीवन के समस्त संसाधन प्रकृति की ही देन है। इंसानों के ज्ञान, विज्ञान, तकनीकी, संस्कृति और उनके समस्त साधन प्रकृति की ही देन हैं। सारे जीव और उनका जीवन प्रकृति की ही उपज हैं, तो मनुष्य को भ्रम क्यों हो रहा है कि सृष्टि को बनाने वाला कोई ब्रम्हा नाम का जीव है, जो ब्रम्ह्लोक में रहता है ! यदि वह जीव किसी ब्रम्ह्लोक का निवासी है तो उसका और उसके वंशों का इस धरती और हमारे कर्मों, तीज त्योहारों से क्या नाता ? जीवों के जीवन का रिश्ता नाता इस पुखराल (प्रकृति), धरती और उसके समस्त संसाधनों से है। हम प्रकृति के विवेकी जीवफल हैं, प्रकृतिभोगी हैं। इसलिए हमारा तीज त्यौहार और सारे जीवन कर्म प्रकृति से संबंध रखते हैं। किसी विष्णु के अंश, अयोध्या के राम या स्वर्ग के भगवानों से इस त्योहार का कोई संबंध नहीं है।
आदिम वंशों का हृदय प्रकृति की तरह विशाल है। इसलिए समाज मे सिद्दत से प्रकृति
प्रेम कूट कूट कर भरा है। आदिम जनों का जीवन प्रकृति की तरह सरलता और वास्तविकता से भरा है। इसलिए त्यौहरों की वास्तविकता को जानिए। किसी भी त्यौहार में अपने आनंद और उल्लास के लिए प्रकृति और उसके
समस्त उपयोगी जीवीय घटकों को किसी भी प्रकार से क्षति पहुंचाने से बचें। सृष्टि के
जीवन संसाधनों की सुरक्षा करना हमारा सबसे बड़ा मानव नैतिक धर्म, जवाबदारी और दायित्व है। इस देश में किसी चमत्कारी दुनिया के लोग, आप और आपके पुरखों को चाहे जितना भी अनपढ़, नंगे, भूखे, अंधविश्वासी, अशिक्षितता फूहड़ता का ताज पहना दे, किन्तु दुनिया के वैज्ञानिक और उनका विज्ञान अंततः आदिम वंशों को ही इस धरा के सबसे योग्य रक्षा प्रणाली के जनक मानते हैं। हमें खुशी है, इसी
तरह से जब आप अपने जीवन की अनंत कठिनाईयों, अपने ऐतिहासिक
पूर्वजों की बेरहमी से हत्या, असुरक्षा, अन्याय, अत्याचार की धधकती ज्वाला को हृदय मे स्थान
देते हुए इस धरती के सभी इंसान और जीवों की दुनिया की सुरक्षा की चिंता करते हैं।
आईए पुनः इस दिवाली त्योहार मे कुछ इस तरह के नीतियों/ तरीकों को अपनाकर हम
सभी कुदरत, जीव,
जन, धन और जीवन की सुरक्षा के लिए अपना योगदान दें :-
1) जीवों के जीवन और स्वास्थ्य की दृष्टि से सबसे खतरनाक बारूद के फटाके का
धुंवा होता है। फटाका खरीदना और जलाना दोनों कुदरत और जीवन के लिए हानिकारक हैं। देश मे दिवाली के अवसर पर बेतरतीब तरीके से फोड़े जाने वाले फटाकों से वायुमंडल
के प्राणवायु में जहरीली गैस का प्रभाव बढ़ जाता है। हवा में जहरीली गैस की मात्रा
बढ़ने से घातक और जानलेवा बीमारियाँ पैदा होते हैं। इसकी खरीदी से धन की हानि तो
होती ही है साथ ही सबसे बड़ा नुकसान हमारे प्राण वायु, जल, मिट्टी और पर्यावरण को होता है। बड़े
फटाकों के फूटने से उठने वाला ध्वनि तरंग सुनने की क्षमता को खराब करता है या ख़त्म
ही कर देता है। मधुमक्खी, पशु पक्षियों को भी आहत कर देता है। इससे समस्त पर्यावरण और
जन को अनेक तरह से नुकसान के अलावा एक भी लाभ नहीं हैं। इसलिए फटाका खरीदना और
जलाना बंद करें।
2) बच्चों में दीपावली त्यौहार के अवसर पर फटाका जलाने के लिए काफी उत्साह होता
है। उनके उत्साह को बनाए रखने के लिए उन्हे खिलौनों से सुरक्षित फोड़े जा सकने वाले
टिकिया/ फटाके दें। बच्चों को फटाका खरीदने और फोड़ने से होने वाले नुकसान के बारे
से समझाएं और जागरूक करें। बच्चे हमारे भविष्य हैं। भविष्य के लिए ही प्रकृति का
संरक्षण आवश्यक है। उन्हें किस्से कहानियों के रूप मे अपने समाज, पुरखों की संस्कृति के
अनुसार उत्सवों की सारगर्भिता, सार्वभौमिकता के सम्बन्ध में बालमन
से जरूर संवाद करें और उनकी कोरी बुद्धि मे संस्कारों का संवर्धन करें। इस छोटे से
प्रयास से हम अपने समाज, अपने पूर्वजों की संस्कृति को अपने
भविष्य के लिए भी सहेज पाएंगे।
3) प्रकृति हमारा धरोहर है। प्रकृति हमारे जीवन का संरक्षक है। प्रकृति हमारी
संस्कृति का अभिन्न अंग है। प्रकृति हमारे भोजन, जीवन और सुरक्षा के संसाधनों का स्त्रोत
है। इसलिए इसे नुकसान पहुंचाना स्वयं के जीवन को क्षति पहुंचाना है।
4) व्यापार करना अच्छी बात है, किन्तु जिस व्यापार से प्रकृति, जीव, जीवन और कुदरत को तीव्र नुकसान पहुँचने का खतरा हो, उसका उत्पादन और उपयोग करना बांध करें। कुदरत और जन जीवन को नुकसान पहुंचाने वाले सामग्रियों का व्यवसाय कर
धन कमाना सबसे खतरनाक व सबसे बड़ा पाप है।
5) धन के लालच में डूबे हुए लोग त्योहारों में अधिक से अधिक धन कमाने के लिए त्योहारी
खाद्य पदार्थों, मिठाई इत्यादि चीजों मे हानिकारक रसायन, रंग, नकली दूध, नकली खोवा मिलाकर आकर्षक व स्वादिष्ट बनाते
हैं और बेचते हैं। ऐसे खाद्य सामाग्री जहरीले हो सकते हैं। होटलों के आकर्षक दिखने वाले ऐसे त्योहारी खाद्यपदार्थों को खरीदने से बचें। जहां
तक हो सके अपने अपने घरों मे बना हुआ मिष्ठान ग्रहण करें। आदिम जनों में ऐसे
विधियों से धन कमाने की लालच नहीं है। वह परीश्रम से धन कमाने पर विश्वास रखता है।
कठोर परीश्रम ही सफलता का माध्यम है। अपनी खून पसीने की गाढ़ी कमाई जन, जीवन और प्रकृति को क्षति पहुंचाने वाले चीजों की खरीदी पर खर्च न करें।
6) धन से धन भी कमाया जाता है। यदि आपके पास धन है, उससे कुछ खरीदना चाहते हैं
तो दिवारी के मौके पर अपने बच्चे और परिवार के लिए LIC जीवन
बीमा खरीदें। यह उनके भविष्य का सबसे बड़ा तोहफा और उनके जीवन के संरक्षण का साधन
होगा। यदि आपके पास कुछ ज्यादा खर्च करने की क्षमता है तो समाज के किसी ऐसे अनाथ
बच्चे के सुरक्षा, संरक्षण व अध्ययन के लिए उस राशि का बांड
पत्र या LIC जीवन बीमा खरीद दें, जिससे
कम से कम समाज के एक बच्चे की जीवन की नेक जिम्मेदारी का सदा सुखद आभाष होते
रहेगा।
7) इस प्रकृति के कोई भी दिन और रात शुभ या अशुभ नहीं होते।
प्रतिदिन इंसान और जीव जन्म लेते हैं और मरते हैं। पुष्य नक्षत्र, धन तेरस के शुभ अवसर के नाम से
धन खर्च करने के लिए अधिक उत्साही न बनें। हमारे द्वारा खर्च किए जाने वाला धन
जिसके पास जाता है, वही धन तेरस है। जिसके पास जाता है वह
धनवान हो जाता है और हम खरीदने वाले कंगाल। यह हमारे अविवेकी और अनियंत्रित सोच का
प्रतिफल है।
8) प्रतिवर्ष जब धरती पुत्रों/ किसानों के हड्डी तोड़ मेहनत, परीश्रम का फल खेत के लहलहाते फसल के रूप मे प्राप्त होते ही व्यापारियों
के धन का प्रतिनिधित्व करने वाले
पुशयनक्षत्र, धन तेरस और शुभ मुहूर्त की बांछें खिल
उठती है ! जितना आप अपने खेत मे पकी फसलों के लिए खुशी नहीं मनाते, उससे कई गुना ज्यादा पुशयनक्षत्र, धन तेरस के शुभ
मुहूर्त पर व्यापारी वर्ग खुशी मनाता है। वह आपको इस मुहूर्त मे अधिक से अधिक धन
खर्च करके अपना सामान खरीदने के लिए प्रेरित करता है। इन व्यापारियों के लोक
लुभावन झांसे मे न आकर अपने खून पसीने की गाढ़ी कमाई सोच समझ कर अतिआवश्यक वस्तुओं
पर ही खर्च करें।
9) "धनतेरस" के शुभ मुहूर्त के चक्कर में न पड़ें। शुभ
मुहूर्त का प्रचार प्रसार करना व्यापारी और धनवान लोगों का हमसे धन लूटने का तरीका
है। जैसे ही हम धरती पूजकों, कृषकों के खेत का अनाज पकता है, वैसे ही पुष्य नक्षत्र, धनतेरस जैसे शुभ मुहूर्तों
का शैलाब फूट पड़ता है ! ऐसे आकर्षक, चमत्कारी, शुभ मुहूर्त के भँवर (चक्र) कि ओर खींचने वाले शैलाब की विनाशकारी धारा
से अपने मन और धन को नियंत्रण मे रखें। ये शुभ मुहूर्त आपके कमाई को लूटने की सोची
समझी साजिस है। मनुष्य के लिए हर दिन और
हर रात शुभ मुहूर्त से भरे होते हैं। कोई भी दिन और रात
अशुभ नहीं होता।
10) अधिकतर देखने में आता है कि
लोग दीपावली त्यौहारों में तास के पत्ते खेलते हैं। खेल में एक पक्ष हारता है और एक जीतता
है। जीतने वाला उत्साही और हारने वाला कुपित होता है। यह परिस्थितियां व्यक्तिगत,
पारिवारिक, सामाजिक दुराव और आर्थिक नुकसानदेह कारण भी पैदा करता
है। इसलिए ऐसे नुकसानदेह स्वरुप के खेलों से बचें। मनोरंजन के लिए अन्य
स्वास्थ्यवर्धक खेल खेलें, किन्तु पैसे की हार जीत के लिए
नहीं। यह कानूनन अपराध है।
11) जिस प्रकृति ने जीव,
जीवन और जीवन जीने के संस्कारपूर्ण माध्यम तीज, त्यौहार तथा ज्ञान, विज्ञान व पराविज्ञान दिया,
वह प्रकृतिसंगत मानव सामाजिक संस्कृति किसी भी प्रकार की नैतिक
प्रगति के लिए बाधक नहीं हैं। यदि कोई बाधा उत्पन करता है तो वह है अपने सामाज व
सांस्कारिक दृष्टिकोण के प्रति इच्छाशक्ति का अभाव, स्वविवेक।
अपने पूर्वज, सामाज और संस्कृति के प्रति निष्ठा को मजबूत
रखते हुए जीवन को संवारने का प्रयास करें। यही प्रकृति और प्रगति का नियम है।
12) जब तक मानव जीवन में
संस्कारों का नियम, बंधन और महत्व है, तब
तक ही हम “मानव” हैं। असांस्कारिकता
पशुता की निशानी है। इसलिए अपने सामाजिक जीवन संस्कारों का आदर और सामान करते हुए
प्रगति के पथ पर आगे बढिए।
13) इन सबसे ऊपर अपने माता पिता, दादा दादी, सास ससुर और परिवार की सेवा, सम्मान, सुरक्षा और बच्चों की शिक्षा आवश्यक है। अच्छी शिक्षा इस देश में बहुत महंगी है। शिक्षा से ही समाज की समृद्धि के रास्ते खुल सकते हैं। बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने से ही वे अपने जीवन मे अपेक्षित समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं। अतः दीपावली के कथित धन समृद्धि की देवी ‘लक्ष्मी’ की अराधना का संदेश देने के बजाय बच्चों को बेहतर शिक्षा प्राप्त करने के
लिए प्रेरत करते हुए तन, मन, धन से सहयोग
करें।
14) नशा, शरीर, बुद्धि, विवेक, ज्ञान और धन का नाश करता है।
इसलिए नशा से दूर रहें और परिवार के साथ दिवारी तिहार का आनंद उठाएं।
इन्ही भावनाओं के साथ ही
आप सभी को दियारी तिहार की मंगलकामनाएँ।
*****
Very nice sir
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