शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

गोंडवानाकालीन रायपुर (छत्तीसगढ़) के धरोहर.

राजधानी रायपुर का धरोहर "बूढ़ातालाब"
रायपुर का बूढ़ातालाब १३वी सताब्दी में राजा रायसिंह जगत द्वारा खुदवाया गया था। गोंडवाना साहित्यों में उल्लेख मिलता हैं कि राजा रायसिंह जगत अपनी सेना लाव लश्गर लेकर चांदा राज्य होते हुए तथा लांजी राज्य से अपना लाश्गर को खारून नदि के कछार में डाला। आगे बढ़ने के लिए पुरैना, टिकरापारा में एक विशालतम तालाब खुदवाया। इस ताल को उनके साथ चलने वाले स्त्री-पुरुषों ने १२ एकड़ भूमि को ६ महीने में खोदकर तैयार किये। इसकी खुदाई के कार्य हेतु ३,००० पुरुष एवं ४,००० स्त्रियाँ काम करते थे। हाथी, बैल आदि पशुओं को भी खुदाई के कार्य हेतु उपयोग में लाया गया। कृषि औजारों का भी इस हेतु भरपूर उपयोग किया गया। इसका नामकरण अपने इष्टदेव "बूढ़ादेव" के नाम से किया गया। राजा रायसिंह इसी के पास नगर बसाया जिसका नाम "रयपुर" था, जो अंग्रेजों के समय "रायपुर" हो गया। यहाँ और भी अनेक तालाब बनवाए गए थे।
गोंडवाना कालीन रायपुर का प्रथम शिक्षा एवं साहित्य का केंद्र
"राजकुमार काले"

इस छत्तीसगढ़ में गोंडवाना के राजे, जमीदार और प्रजा ने अपने समाज में शिक्षा, साहित्य के विकास एवं प्रचार हेतु १८८० ई० में ब्रिटिश शासनकाल में राजकुमार कालेज जबलपुर में खोला था। उसे १८८२ में गोंडवाना के राजाओं द्वारा ५०० एकड़ जमीन दान देकर रायपुर में स्थापित कराया गया। रायपुर स्थित यह राजकुमार कालेज अभी भी छत्तीसगढ़ में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर रहा हैं। संगीत कला और साहित्य की विश्व में ज्योति जलाने वाले रायगड़ के राजा भूपदेव सिंह के सुपुत्र राजकुमार चक्रधर सिंह पुर्रे तथा अनेक राजकुमारों ने इसी संस्था से विद्या अर्जित कर विश्व एवं समाज में ज्ञान की ज्योति फैलाये हैं।
"जवाहर बाजार" का विशाल द्वार
राजधानी, रायपुर के जय स्तम्भ चौक से कोतवाली की और जाने वाली मुख्य मार्ग प् मुख्य पोस्ट ऑफिस के आगे बांयी ओर जवाहर बाजार का विशाल द्वार दिखाई देता हैं। ब्रिटिश सरकार के पोलिटिकल एजेंट के रायपुर में रहने के कारण यहाँ के राजा, जमीदार, पटेल और महाजनों को हमेशा सरकारी कामकाज से रायपुर आना पड़ता था, दूर-दूर से आने के कारण उन्हें रायपुर में रुकने के लिए असुविधा होती थी। इसलिए वे सब यहीं बाड़ा बनाकर रहते थे। यहाँ अपनी जरूरत की साग सब्जी, मनिहारी वस्तुओं का क्रय किया जाता था। यह उस समय का विशाल बाजार गोंडवाना के राजा महाराजाओं ने सारंगढ के राजा जवाहर सिंह के नाम से बनवाया था। यह विशाल स्मारक आज नगर निगम की उदासीनता बयां कर रहा हैं। इस दरवाजे पर आज छोटे व्यापारी खील-खूंटी डाल-डाल कर कपड़े और फल सब्जियां टंगा रहे हैं तथा अन्दर की ओर नगर निगम द्वारा स्टेंड बनाकर अपनी आय प्राप्त कर रही है, परन्तु इसके उद्धार के लिए कभी नहीं सोचा।
"टाउन हाल", कलेक्ट्रेट, रायपुर
कलेक्ट्रेट स्थित टाउन हाल सन १९२० में छत्तीसगढ़ के गोंड राजे, जमीदार, मुकद्दम,मालगुजार, महाजनों ने सभा, सगा समाज के सम्मेलन आदि के लिए रायपुर शहर बस जाने के बाद बनवाया था, जिसमे पूरे छत्तीसगढ़ के मुखिया लोग बैठक और सामाजिक सभा सम्मेलन किया कहते थे। आज भी इसका उपयोग इन्ही कार्यों के लिए किया जाता हैं। गोंड समाज के पूर्वजो द्वारा किये गए ऐसे ऐतिहासिक कार्यो को याद कर मन आल्हादित हो उठता हैं। सभी स्मारक गोंडवानाकाल के धरोहर हैं परन्तु आज समाज के लोग इन्हें भूल चुके हैं, किन्तु इन्ही से समाज का गौरव बढ़ता हैं। यह तथ्य हम कैसे भूलें।

2 टिप्‍पणियां:

  1. aadarniya tiru parte ji, gond rajao ke itihas ka aapne aaj jankari diya hai, bahut hi achchhi bat hai, Gond log kshatriya ke saman jati hai, unka koi jatiy karma dusra nahi hai, yaha mai bas itna kahna chahunga ki we Gond raja, sabhi bhaarat ke mul vichar ko samjhte the apni Santana(gondi) parampara ka nirwahan bhi karte the sath hi sanatan(hindu) ko bhi angikar kiye the, uska praman unke dwara banaye gaye mandir mahal aadi se pata chalta hai, sath hi unke naam bhi sanskrit se liye huye the, sangram singh, durgawati, baki gond log singh upnaam lagate hain , yah bhi sanskrit ka shinh hi hai, arthat sher.
    yaha ek aur baat hai, dekhiye raja raisingh ne jo talab khudwaya uska naam Budha dev se budha talab rakha, ye baat mai bhi kahta hun ki chhattisgarh ke sabhi gramo me budhadev virajman hote hain, jinhe hum gram devta kahte hain, bada dev ka naam bahut hi naya hai parte ji. mai to budha dev ko hi maanta hun.
    bas itna batane ki koshis kar rah hun ki kaise prachin kal me we gond raja bhi sanatan ko alag nahi maante the.

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    1. App ko pata nahi hai. Budha dev kise kahte hai. Budha dev ko gram dev nahi kaha jata hai.hamesa se itihaskar log unki jati ka name nahi lugi app samj jayege. Chattisgrh se gond rajao ka itihas mitane lage the aur lage hai raha budha dev ki bat budha dev bahut prachin name hai gond logo ka east dev budha dev hai.jise ham log shiv sambhu kahte hai.

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