कोया- गुफा, खोह, गर्भ, महुआ का फूल, आधार, मूल बीज.
पुनेम- यह दो अक्षरों से मिलकर बना है- पुय याने सत्य, प्रकृति, सृष्टि (पुकराल). नेम याने मार्ग, रास्ता, पथ, जीवन पथ. इस तरह पुनेम अर्थात सत्य का मार्ग, सत्य का रास्ता, सतमार्ग, जीवन मार्ग, सतपथ. सत्य के मार्ग पर चलना, प्रकृति दर्शन को ग्रहण करना, सत्य के पथ पर चलना, प्राकृतिक गुणों का अनुसरण करना, सत्य को जीवन में उतारना. सत्य, प्रकृति संतुलन के गुणों को धारण कर जीवन यापन करना.
पुनेमी- प्राकृतिक, सत्य को धारण कर चलने वाले लोग, सतमार्गी लोग, सत पथिक, प्रकृति के वाहक, प्रकृति के ज्ञान से प्रकाशित लोग, सृष्टि संतुलन के जनक, पारिस्थिति तंत्र (इकोसिस्टम) के पालन करता, धारक, प्रकृति संरक्षक वंश. प्रकृति, सृष्टि संतुलन के सत्य गुणों को धारण कर जीवन यापन करने वाले लोग, वंश.
तूर- उत्पत्तित, भ्रूण, जीव, संतान, वंश, लोग.
कोयतूर- आधार वंश, मूल वंश, गर्भ से उत्पत्तित, मूल बीज.
कोया पुनेम- आधार सत्य मार्ग या सत्य मार्ग का आधार, आधारिक जीवन.
संय्युंग- पांच की सख्या.
गण्ड या गंड- लोगों का समूह, गण, जन, प्रजा, लोक.
गोंड- गो + अण्ड = गोंड या गोण्ड. गो अर्थात गोंगो- विवेक, ज्ञान, धरती, शक्ति, प्रज्ञ. अण्ड अर्थात जीव, संतान. गोंड या गोण्ड अर्थात विवेकी जीव, धरती जीव, प्रज्ञ जीव, शक्ति युक्त, मानव, मनुष्य का पर्याय.
लेंग- बोली, भाषा.
नार- ग्राम, गाँव, कस्बा.
लेंग- बोली, भाषा.
नार- ग्राम, गाँव, कस्बा.
कोट- राज्य इकाई, राज्य का छोटा भाग.
शंभू- संय्युंग + भू =शंभू. संय्युग याने पांच, भू याने धरती, धरती का भाग, खंड.
शेक- मालिक, राजा, प्रशासक.
शंभूशेक- पांच खंड धरती के मालिक, पांच खण्डों वाली धरती के राजा, पांच खण्डों वाली धरती के अधिपति, पांच खण्डों वाली धरती 'गोंडवाना' के प्रशासक.
गोटूल- गो + टूल =गोटूल. गो अर्थात गोंगो याने शक्ति, प्रकाश, ज्ञान, विवेक. टूल याने स्थान, केंद्र, ठीया, घर. अर्थात ज्ञान का स्थान, ज्ञान प्राप्ति केंद्र, ज्ञान शक्ति स्थल, ज्ञान प्रकाश स्थल, ज्ञान का ठीया, ज्ञान का घर.
पारी- व्यवस्था, रीति, नीति.
कुपार- मष्तिष्क, दिमाग, कपार, मस्तक.
लिंगो- ज्ञानी, ज्ञानवान, ज्ञान का भण्डार, सर्वोच्च, निराकार, शून्य.
पारी कुपार लिंगो- व्यवस्था में दिमाग लगाने वाला ज्ञानी. कोया पुनेम/ गोंडी पुनेम के अद्वितीय प्रणेता. कोया जीवन पद्धिति के निर्धारक. मानव जीवन संस्कार पद्धति के जनक. (1)
पुकराल- सृष्टि, प्रकृति, निसर्ग.
अंडोद्वीप- अंगारा लैंड, धरती का उत्तरी भाग, प्राचीन 4 द्वीपों का समुह भू भाग.
गंडोद्वीप- गोंडवाना लैंड, धरती का दक्षिणी भाग, प्राचीन 5 द्वीपों का समुह भू भाग.
पुकराल- सृष्टि, प्रकृति, निसर्ग.
अंडोद्वीप- अंगारा लैंड, धरती का उत्तरी भाग, प्राचीन 4 द्वीपों का समुह भू भाग.
गंडोद्वीप- गोंडवाना लैंड, धरती का दक्षिणी भाग, प्राचीन 5 द्वीपों का समुह भू भाग.
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
ऊपर लिखे गोंडी शब्द आदिम जनों के कोया पुनेम, गोंडी गण व्यवस्था, प्रजातंत्र के मूल आधार हैं. गोंडवाना की धरा पर विकसित "गोंड" नाम का विशाल आदिम सामाज रुपी पेड़, आधुनिक धरा पर उगे हुए किसी अन्य प्रजातीय समाज रुपी वृक्ष से कहीं अधिक आध्यात्मिक, वैचारिक, समता, समानता, बंधुत्व, भाईचारा के गुणों से संपन्न है. गोंडों की जितनी सामुदायिक शाखाएं हैं, उतनी उनकी भाषाएं. उनकी पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक रीति-नीति के अनुरूप जीवन संतुलन के आधार उनकी अपनी सामुदायिक भाषाओं में नीहित हैं तथा उसी आधार पर अभिव्यक्त होते हैं. इन आदिम प्राकृतिक भाषाओं की विविधता में एकता को समझ पाना किसी समाज शास्त्री, भाषाशास्त्री के लिए अत्यंत कठिन है. इन्ही कठिनाइयों के चलते आधुनिक समाज के बुद्धीजीवी साहित्यकार आदिवासियों के भाषाई तथ्यगत विचारों को मूलतः समझने और प्रस्तुत करने में हमेशा असमर्थ रहे.
इसी के प्रतीक स्वरुप कई अंग्रेजी साहित्यकारों ने आदिम जीवन दर्शन को अज्ञानतावश उसके मूल दर्शन व सैद्धांतिक पक्ष को प्रस्तुत करने में लगभग असफल रहे. इस असफलता के कारण आदिम जनों के साहित्य में अधिकतर चारित्रिक व रूढ़िवादिता के विकृत अध्यायों के अभिलिखित स्वरूप प्रदर्शित हुआ. इस तरह आधुनिक जन मानस के बुद्धि और दृष्टि में आदिम जन हीनता के शिकार होते चले गए.
इस दशा और दिशा के शिकार लोगों पर आज भी प्रबल दावेदारी होती है कि आदिम जन अपनी रूढ़िवादिता के शिकार होकर वह देश की मुख्य धारा से स्वतः दूर होता जा रहा है ! आधुनिता के प्रतियोगी दौड़ में धरातल से शिखर तक डूबे जन मानस के लिए यह समझना कठिन ही नहीं असंभव है, कि जिस बाबा साहब ने संविधान में समता, समानता, बंधुता, भाईचारा, एकता का उल्लेख किया है, वह आदिम मूल जनों के तन, मन और बुद्धि में जन्म जन्मांतर से रेखांकित है. बाबा साहब ने इन्हें भविष्य को देखते हुए शब्दों में पिरोया. संविधान में इन शब्दों से आदिम जनों को नहीं, बल्कि देश के ऐतिहासिक भविष्य को स्वर्ग की सत्ता में स्थापित करने वालों की स्वप्न तन्द्रीय जड़ता को प्रकृति के साथ विलीन करने के लिए संबोधन किया.
भारत वर्ष ही नहीं दुनिया में विकास के स्वप्नदृष्टाओं ने आदिम जनों तथा उनके सामाजिक, सांस्कृतिक जीवन पद्धति को रूढ़िवादी, अंधविश्वासी, गरीबी, लाचरी और पशुता के घ्रणित चरित्र के आईने में ही देखा, दुत्कारा ! दुत्कारा ही नहीं बल्कि उनके मूल प्रकृति दार्शनिक परिवेश में स्वर्ग-नरक, पाप-पुन्य, चमत्कार की परिगाथा थोपने के साथ ही आधुनिक विकास के लिए बलि का बकरा बनाते आया. न्यूनतम निर्वाह की भूमि, प्यास के लिए जल, भोजन के लिए जंगल और नंगा बदन होते हुए भी काफिरों द्वारा जीवन जिर्वाही साधन ही उनसे छीनते गए, फिर भी समाज है कि बिना कोई प्रतिक्रया के जंगलों के अंधेरे में गुमनामी जीवन जीते रहे. मूल वंश में आज भी उनके जीवन निर्वाह की पद्धति, आध्यात्म और सांस्कृतिक जीवन दर्शन में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया है.
अब समाज में धीरे-धीरे जागृति का संदेश प्रसारण हो रहा है. अनेक स्वभाषी साहित्यकार सामाजिक रीति-नीति, संस्कृति, आध्यात्म, दर्शन पर योग्य साहित्यों की रचना कर रहे हैं, जिसमे आदिम सामाजिक पारदर्शी संरचना को भली भांति प्रस्तुत किया जा रहा है. इनमे कई अति उत्साही भी हैं ! गोंडी आरती, महा आरती, गोंडी रामायण, गोंडी महापुराण, गोंडी गीता आदि की रचना भी कर चुके हैं ! उत्साहपूर्ण साहित्य लिखने का यह अत्यंत संवेदनशील और संक्रमण का दौर प्रतीत हो रहा है.
संदर्भ : (1) डॉ. नारवेन कासव टेकाम के शब्द विलेख
इसी के प्रतीक स्वरुप कई अंग्रेजी साहित्यकारों ने आदिम जीवन दर्शन को अज्ञानतावश उसके मूल दर्शन व सैद्धांतिक पक्ष को प्रस्तुत करने में लगभग असफल रहे. इस असफलता के कारण आदिम जनों के साहित्य में अधिकतर चारित्रिक व रूढ़िवादिता के विकृत अध्यायों के अभिलिखित स्वरूप प्रदर्शित हुआ. इस तरह आधुनिक जन मानस के बुद्धि और दृष्टि में आदिम जन हीनता के शिकार होते चले गए.
इस दशा और दिशा के शिकार लोगों पर आज भी प्रबल दावेदारी होती है कि आदिम जन अपनी रूढ़िवादिता के शिकार होकर वह देश की मुख्य धारा से स्वतः दूर होता जा रहा है ! आधुनिता के प्रतियोगी दौड़ में धरातल से शिखर तक डूबे जन मानस के लिए यह समझना कठिन ही नहीं असंभव है, कि जिस बाबा साहब ने संविधान में समता, समानता, बंधुता, भाईचारा, एकता का उल्लेख किया है, वह आदिम मूल जनों के तन, मन और बुद्धि में जन्म जन्मांतर से रेखांकित है. बाबा साहब ने इन्हें भविष्य को देखते हुए शब्दों में पिरोया. संविधान में इन शब्दों से आदिम जनों को नहीं, बल्कि देश के ऐतिहासिक भविष्य को स्वर्ग की सत्ता में स्थापित करने वालों की स्वप्न तन्द्रीय जड़ता को प्रकृति के साथ विलीन करने के लिए संबोधन किया.
भारत वर्ष ही नहीं दुनिया में विकास के स्वप्नदृष्टाओं ने आदिम जनों तथा उनके सामाजिक, सांस्कृतिक जीवन पद्धति को रूढ़िवादी, अंधविश्वासी, गरीबी, लाचरी और पशुता के घ्रणित चरित्र के आईने में ही देखा, दुत्कारा ! दुत्कारा ही नहीं बल्कि उनके मूल प्रकृति दार्शनिक परिवेश में स्वर्ग-नरक, पाप-पुन्य, चमत्कार की परिगाथा थोपने के साथ ही आधुनिक विकास के लिए बलि का बकरा बनाते आया. न्यूनतम निर्वाह की भूमि, प्यास के लिए जल, भोजन के लिए जंगल और नंगा बदन होते हुए भी काफिरों द्वारा जीवन जिर्वाही साधन ही उनसे छीनते गए, फिर भी समाज है कि बिना कोई प्रतिक्रया के जंगलों के अंधेरे में गुमनामी जीवन जीते रहे. मूल वंश में आज भी उनके जीवन निर्वाह की पद्धति, आध्यात्म और सांस्कृतिक जीवन दर्शन में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया है.
अब समाज में धीरे-धीरे जागृति का संदेश प्रसारण हो रहा है. अनेक स्वभाषी साहित्यकार सामाजिक रीति-नीति, संस्कृति, आध्यात्म, दर्शन पर योग्य साहित्यों की रचना कर रहे हैं, जिसमे आदिम सामाजिक पारदर्शी संरचना को भली भांति प्रस्तुत किया जा रहा है. इनमे कई अति उत्साही भी हैं ! गोंडी आरती, महा आरती, गोंडी रामायण, गोंडी महापुराण, गोंडी गीता आदि की रचना भी कर चुके हैं ! उत्साहपूर्ण साहित्य लिखने का यह अत्यंत संवेदनशील और संक्रमण का दौर प्रतीत हो रहा है.
संदर्भ : (1) डॉ. नारवेन कासव टेकाम के शब्द विलेख
महाराज शंभू शेक के ८८ नामों की जानकारी अगर आपके पास हो तो कृपया दिजिय
जवाब देंहटाएंयोगेन्द्र सिंह लोधी
7000245982