आदिवासियों के लिए
बने वनाधिकार कानून और ग्राम सभा की ताकत को लगभग ख़त्म किया मोदी सरकार ने |
-नेशनल जयस नई दिल्ली
जल जंगल और ज़मीन
पर दावा करेने वाले जंगल क्षेत्रो में रहने वाले देश के आदिवासियों के उलटे दिन शुरू | राज्यसभा में पास हुआ कंपन्सेटरी अफॉरेशटशन फण्ड बिल जो की वनाधिकार अधिनियम के
बिलकुल विपरीत |
-नेशनल जयस
आज देश के बड़े भू-भाग पर जंगल क्षेत्र मौजूद हैं, जिनमें आदिवासियों की जनसंख्या का सबसे ज्यादा हिस्सा निवास करता है | आदिवासी अपने जीवनयापन के लिए खेती और
वनसंपदा पर पूरी तरह निर्भर रहता है | उसे वनाधिकार कानून 2006 के रूप में
संवैधानिक अधिकार मिला हुआ था, लेकिन दुर्भाग्य देश के 15 करोड़ आदिवासियों के 47 गुलाम आदिवासी सांसदों, जो अपने ही सामाज के अस्तित्व की रक्षा करने के लिए
कानून बनाने के पहल करने के बजाय आदिवासियों के अस्तित्व को ख़त्म करने वाले कानून बनवा रहे हैं |
आज राज्यसभा में मोदी सरकार ने एक ऐसा कानून बनवा लिया जो
आदिवासियों को अपने जल, जंगल और ज़मीन के लिए मिले अधिकारों को लगभग ख़त्म कर देगा और
जो आदिवासी समुदाय विरोध करने का प्रयास करेंगे उन्हें नक्सलवाद के नाम पर मिटा
दिया जाएगा | यही आने वाले समय में आदिवासीओ के भविष्य का कड़वा सच है |
आज देश में अलग अलग छोटे बड़े 700 से अधिक आदिवासी समुदाय हैं | आदिवासियों की सूचि में वृद्धि का क्रम जारी है | जिनकी कुल जनसंख्या लगभग 15 करोड़ है, जो अपने अपने क्षेत्रों से चुनकर 47 आदिवासी
सांसदों को आदिवासी समाज की आवाज उठाकर आदिवासियों के अस्तित्व की रक्षा के लिए भेजे हैं | लेकिन
दुर्भाग्य देश के आदिवासियों का है कि रक्षक ही भक्षक बन गए हैं तथा आदिवासियों के ही
अस्तित्व को मिटाने वाले कानून बनवा रहे हैं | देश के कोई भी आदिवासी संगठन दबाव
बनाने या इसके खिलाफ न्याय संगत कुछ करने के लिए खड़े वाला नहीं दिख रहा है !
आज गुरूवार को 28 जुलाई 2016 को कंपन्सेटरी अफॉरेशटशन फण्ड
बिल पास हुआ, जो विधेयक वन अधिकार अधिनियम "फारेस्ट राईट एक्ट" (FRA) के एकदम उलटा है |
वन अधिकार
अधिनियम जिसे अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत वनवासी (वन अधिकारों को मान्यता) कानून भी कहा जाता है | अनुसूचित जनजातियों और वनों में रहने वाले दूसरे वनवासियो को वनभूमि पर
खेती करने, छोटे मोटे वन उत्पादों का इस्तेमाल करने और जंगल में
मवेशियों को चराने का हक़ देता था | इसमें ग्राम सभाओं की बड़ी भूमिका है कि किस वन
सम्पदा पर किसका अधिकार होगा, यह ग्रामसभा तय करेगी | यहाँ तक कि अगर जंगल की ज़मीन का
स्तेमाल किसी परियोजना के लिए किया जाता है तो इसके लिए पहले ग्रामसभा की सहमति
लेनी पड़ती थी | इस कंपन्सेटरी अफॉरेशटशन फण्ड बिल (कैम्पा) में ग्राम सभाओं की भूमिका का कोई
जिक्र नहीं किया है और न ही कहीं इस बात का उल्लेख है कि कैम्पा की 42000 करोड़ का उपयोग आदिवासियों और
परंपरागत वननिवासियो के कल्याण के लिए किया जाएगा |
विधेयक कहता है की कैम्पा में जमा धन इस्तेमाल के लिए वन
विभागों के जरिये किया जाएगा, लेकिन जंगल पर जिन आदिवासियों का परंपरागत
अधिकार है, उनके प्रतिनिधित्व और उत्तरदायित्व का बारे विधेयक मौन है | चर्चा
तो यह भी है कि पर्यावरण मंत्रालय एफ.आर.ए. के कुछ प्रावधानों को ख़त्म करने के
बारे में भी सोच रहा है | मकसद ग्राम सभाओं की भूमिका कम करना या ख़त्म करना है | इसके लिए
उसने जनजातीय मंत्रालय पर दबाव भी बनाया है | जबकि सुप्रीम कोर्ट उड़ीसा के
नियामगिरी पर्वत मामले में स्पस्ट रूप से कह चुकी है कि ग्राम सभा की सहमति के
बिना कोई भी परियोजना नहीं लगाईं जा सकती है | यहाँ वेदांता के साथ मिलकर सरकार
बाक्ससाइट खनन का प्रोजेक्ट चला रही थी, जिससे डोंगरिया कोंध के आदिवासी नाराज थे | लेकिन अब सरकार ने आदिवासी सांसदों को विश्वास में लेकर कंपन्सेटरी अफॉरेशटशन फण्ड
बिल पास करा लिया है, जिससे देश में आदिवासियों के अस्तित्व को ख़त्म करने की बीजेपी
सरकार ने पूरी तैयारी कर ली है |
कंपन्सेटरी अफॉरेशटशन फण्ड बिल वही बिल है, जिसमे कहा गया है कि इस धन का 90 प्रतिशत हिस्सा राज्यो को दिया जाएगा ताकि वे वनरोपण कार्यक्रम चला
सके | कंपन्सेटरी अफॉरेशटशन यानी क्षतिपूर्ति वानिकी अस्सी के दशक
की अवधारणा है |
जब भी आदिवासियों का विनाश करना होता है, तो विकास के नाम पर जंगल की ज़मीन पर विकास की कोई परियोजना शुरू की जाती है, जिसके लिए पड़े
पैमाने पर जंगलो को काटा जता है | आदिवासियों को जंगलो से उजाड़ा जाता है | आदिवासियों का जमीन छीनकर विस्थापित कर दिया जाता है | इसे सरकारी
भाषा में गैर वानिकी उद्देश्य के लिए वन भूमि का डायवर्जन कहा जता है | ऐसे मामलो
में 1980 का वन संरक्षण अधिनियम कहता है, कि वन भूमि के जितने हिस्से को किसी और
काम में लगाया जाता है, उसके बराबर हिस्से पर पेड़ लगाए जाना चाहिए | पेड़ लगाए जाने का काम
हर कोई नहीं कर सकता है | इसलिए यह सरकार के हिस्से में आता है | जंगल रातों रात
नहीं लगाए जा सकते है न ही उनसे तुरंत लाभ हासिल किया जा सकता है | इसलिए कानून कहता
है कि डायवर्टेड ज़मीन की नेट प्रेजेंट वैल्यू निकाल कर वन भूमि को डायवर्ट करने वाली
कंपनी से उसे वसूला जाएगा | यह जंगल काटने का मुआवजा है |
पिछले 10 सालों में इस मुआवजे के नाम पर 42000 करोड़
रूपये जमा हो चुके हैं | यह राशि हर साल 6 हजार करोड़ रूपये के हिसाब से बढ़ रही है और
कंपन्सेटरी अफॉरेशटशन मैनेजमेंट प्लानिग अथॉरिटी (कैम्पा) में जमा होती जा रही है, जिस पर पहला हक़ देश के आदिवासियों का होना चाहिए | यह पैसा आदिवासियों के विकास पर
उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक स्तथि को बेहतर बनाने में इस्तेमाल होनी चाहिए, लेकिन देश का दुर्भाग्य है कि ऐसा कहीं हो रहा है न ही होने वाला है | आदिवासियों के जंगल काटकर हासिल हुए पैसों को हड़पने के
लिए बीजेपी सरकार ने बिल पास करा लिया है और देश के 47 आदिवासी सांसद और 574 आदिवासी विधायक सब अपनी अपनी राजनितिक पार्टियों की गुलामी करने में ही रह गए | लेकिन नेशनल जयस मिशन 2018 के माध्यम से आदिवासियों के साथ गद्दारी करने वाले सभी
जनप्रतिनिधियों को उखाड़ कर फेक देगा |
वर्ष 2004 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कैम्पा का गठन किया गया था | इससे पहले विभिन्न राज्य की सरकारें विकास परियोजनाओं के मुआवजे के नाम
पर हजारो करोड़ रूपये जमा कर चुकी थी, लेकिन उनके पास इस धन को इस्तेमाल करने की कोई
व्यवस्था नहीं थी | सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह धन कैम्पा को हस्तांतरित
किया गया, लेकिन दिक्कत यह थी कि इस अकूत सम्पति का इस्तेमाल कैसे करे ? इसके लिए
मोदी सरकार ने आदिवासी विनाशकारी कानून बनाया है, जिसका आज तक ना तो किसी आदिवासी सांसद ने
विरोध किया न ही किसी आदिवासी विधायक ने | देश के किसी आदिवासी संगठन ने भी विरोध नहीं किया, लेकिन नेशनल जयस देश की सरकार से आदिवासियों के जंगल काटने पर इकट्ठे हुए इस 42000 करोड़ रूपये का स्तेमाल सिर्फ आदिवासियों के विकास पर खर्च करने की मांग
करेगा और अगर सरकार नहीं मानेगी तो देश के 15 करोड़ आदिवासीओ में से 1 करोड़ आदिवासी, मिशन 2018 के लिए दिल्ली की ओर कूच करेंगे और संसद का घेराव कर आदिवासियों के अधिकार उन्हें दिलाने व उनके संरक्षण के लिए कड़े कानून बनाने के लिए बाध्य करेगा |
नेशनल जयस देश के प्रत्येक आदिवासी समुदाय से अपील करता है, आप सभी मिशन 2018 से जुड़ें और आदिवासियों के आन, बान, शान उनके जल, जंगल, जमीन की रक्षा, संविधान की रक्षा और बिरसा मुंडा के सपने आबुआ दिशुम आबुआ राज को साकार करने के लिए "मिशन 2018 दिल्ली चलो" से जुड़ें |
डॉ हिरा अलावा जयस
नेशनल जयस संरक्ष नई दिल्ली
जय आदिवासी युवा शक्ति
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