सोमवार, 30 जुलाई 2012

भूख से बड़ा भगवान ?

राजा इंद्र ने अनेक भीषण दुष्कर्म किए, लेकिन जगत के पालनहार कहे जाने वाले विष्णु ने इंद्र को दण्डित नही किया. फिर भला राजा बली, महाराजा बाली और लंकापति रावण को दण्डित करने का औचित्य क्या था ? मारे गए सभी महाबली शिव के भक्त थे तथा इनमे से कोई भी दुष्ट या बलात्कारी नही था. इंद्र को जीवित रखकर शिव भक्तों को छल कपट से मारना कहाँ का न्याय है ?

          तीनों लोकों में निवास करने वाले तैंतीस करोड़ देवी देवताओं वाला भारत, अपनी आध्यात्मिक, धार्मिक व सांस्कृतिक विशेषताओं के लिए सम्पूर्ण विश्व में विख्यात है. दुनिया के किसी भी देश और वहाँ रहने वाली मानव जातियों के पास, इतने भगवान व उनके इतने अवतार नही हैं. पृथ्वी में जितनी भी मानव सभ्यताएं तथा देश, विश्व मानचित्र में विद्दमान हैं, उन पर भगवान की इतनी कृपा और दया कभी नही हुई, जितनी भारत भूमि पर हुई. भारतीय पौराणिक गाथाओं के अनुसार सृष्टि में अत्यधिक पाप कर्म से मानव जाति को मुक्त कराने एवं मानव कल्याण हेतु जगत के पालनहार कहे जाने वाले भगवान विष्णु पृथ्वी पर अवतार लेते रहे हैं. दुनिया की किसी भी कोने में निरंतर ईश्वरीय अवतार होने का कोई लिखित-अलिखित दस्तावेज, ग्रन्थ या धार्मिक प्रमाण आज मौजूद नहीं हैं, भारत को छोड़कर. दुनिया के सबसे बड़े धर्म ईसाईयत (ईसाई) में, प्रभू ईसामसीह को परमेश्वर का पुत्र माना गया. यहूदियों में संभवतया ईसा मसीह, परमेश्वर के पहले दूत या पुत्र कहे जा सकते हैं. दुनिया के दूसरे बड़े धर्म इस्लाम में, हजरत महोम्मद साहब को अल्लाह या खुदा का दूत-पैगम्बर स्वीकारा गया है. दोनों ने अपने महान उपदेशों व कार्यों से तत्कालीन मानव जाति को अधर्म से धर्म का मार्ग दिखाकर एक नए पंथ को जन्म दिया.


          कालान्तर में दोनों अनुयायी ईसाई और मुसलमान कहलाए. ईसा मसीह और महोम्मद पैगम्बर को पृथ्वी में आये दो हजार बारह वर्ष पूरे हो चुके हैं. इनका धरती में पुनरागमन अभी तक नही हुआ. वैसे बाइबिल और कुरान में यह स्पस्ट चेतावनी दी गई है कि, मनुष्य अपने आचार-विचार व व्यवहार को उनके बताए गए सिद्धांतों के अनुरूप रखे, अन्यथा परम पिता परमेश्वर/खुदा अपने नेक बन्दों को बचाने के लिए, पृथ्वी में पुनः अपना दूत भेजेगा. मनुष्य को जिस प्रकार हवा, पानी, प्रकाश और भोजन की अनिवार्य आवश्यकता है, ठीक उसी तरह मानव जाति को अनेकानेक कारणों से, धर्म की भी आवश्यकता है. फिर चाहे कोई भी हो. काल परिस्थितियों के अनुरूप मनुष्य द्वारा स्वेच्छापूर्वक स्वीकार किया जाता है.


          वर्तमान विश्व के मानचित्र में भारत ही एक मात्र ऐसा देश है, जहां ईश्वर को दूत भेजने की अपेक्षा स्वयं आना पड़ा है. वह भी एक बार से काम नही चला. भारत में भगवान को ५२ बार आना पड़ा. इससे एक बात स्पस्ट होती है कि, दुनिया के सभी मानवों में भारत के लोग सबसे बड़े अधर्मी और पापी थे. या फिर यहाँ पर मानव अपने तपोबल या योगबल से महामानव बने तथा अपने योगबल और तपोबल से प्राप्त शक्तियों का दुरूपयोग करने के कारण, उस महामानव को दण्डित करने के लिए भगवान अवतरित हुए. ऐसा ५२ बार हुआ, अतः भारत में भगवान को बार-बार आना पड़ा. भारत की पौराणिक कथाओं में जिन राक्षसों या असुरों का वध करने के लिए, भगवान विष्णु को बार-बार धरती में आने का कष्ट उठाना पड़ा, वे सभी राक्षस, भगवान शिव के उपासक और शिवशक्ति से संपन्न थे. अपनी आध्यात्मिक शक्तियों से इंद्रियों को पराजित कर, शिव उपासकों नें महाबल प्राप्त किया था, लेकिन उन्हें दुष्ट, अज्ञानी, अहंकारी और धर्म विरोधी करार देकर, छल-कपट से मार दिया गया. यह पौराणिक कथाएं कई सौ हजार साल पुरानी बताई जाती है.


          अंग्रेज जब भारत आये, उस समय देश में ९०% लोग अनपढ़ और अज्ञानी थे. शिक्षा और ज्ञान अर्जन का अधिकार १०% विशेष वर्गों तक सीमित था. पढ़े-लिखे, विद्वान धर्माचार्यों ने जो भी बताया, देश की अशिक्षित जनता उसे आँख मूंदकर स्वीकार्य करती रही. देश में पहली बार ९०% पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों को शिक्षित बनाने का कार्य अंग्रेजों ने प्रारंभ किया. गुलाम भारतियों के लिए स्कूल खोले गए. अंग्रेजों ने शिक्षा के साथ-साथ, हिंदू धर्म में व्याप्त कुरीतियों व धार्मिक पाखंडों को समाप्त करने के लिए उपाय किए. सती प्रथा और बाल विवाह समाप्त कर विधवा विवाह को कानूनी संरक्षण दिया. भारत में स्त्री शिक्षा निषेध थी. अंग्रेजों ने महिलाओं की शिक्षा के द्वार खोल, ९०% भारतीयों को शिक्षित बनाने का महानतम कार्य प्रारंभ किया. आजादी के आते तक बड़ी सख्या में लोग पढ़ने-लिखने लगे तथा आजादी के बाद देश में संविधान द्वारा स्थापित, जनता का जनता द्वारा शासन स्थापित हो गया. ६५ वर्ष की आजाद उम्र तक एस.टी., एस.सी., और ओ.बी.सी. वर्ग ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सांशिक ही सही, लेकिन उल्लेखनीय सफलताएं अर्जित की. वैसे आज भी भारत दुनिया का सबसे बड़ा अशिक्षित देश है.


          अब बुद्धी और ज्ञान से प्रकाशित यह मानव मस्तिष्क पौराणिक कथाओं के अनुसार अपने पूर्वजों के नरसंहार की गाथाओं को सुनकर उद्द्वेलित हो रहा है. जब तक वह अनपढ़ था, तब तक वह ठीक था. क्योंकि बिना ज्ञान के मनुष्य पशुतुल्य होता है. ज्ञान आने से विवेक जागृत होता है. पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों के ज्ञानचक्षु खुलने से अत्यंत गंभीर प्रश्न आकार ले रहे हैं कि, राजा इंद्र ने अनेकानेक भीषण दुष्कर्म किए, लेकिन जगत के पालनहार कहे जाने वाले श्री विष्णु ने इंद्र देव को दण्डित नही किया. फिर भला राजा बली, महाराजा बाली और लंकापति रावण को दण्डित करने का औचित्य क्या था ? मारे गए सभी महाबली भगवान शिव के भक्त थे तथा इनमे से कोई भी दुष्ट या बलात्कारी नही थे. अतः इंद्र को जीवित रखकर शिवभक्तों को छल-कपट से मारना इन कहाँ का न्याय है ?


          मुगलों और अंग्रेजों की १००० साल गुलामी के बाद, भारत का राजपाट, संविधान के अनुसार स्थापित होने तथा वर्ण, जाति और धर्म में सभी को समानता व स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त होने के उपरान्त, जनता के द्वारा चुनी गई सरकारों को, केन्द्र तथा राज्यों में सत्ता संचालन का अधिकार मिला. भारत के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में सुमार छत्तीसगढ़ियों को भी १२ साल पहले, छतीसगढ़ के रूप में नया राज्य मिल गया. राज्य बनने के पहले तक छतीसगढ़, अपनी सादगी, ईमानदारिता, दरिद्रता और अशिक्षा के लिए देश के टॉप टेन में शामिल था और है. आदिवासी बाहुल्यता व आदिम संस्कृति से रचा बसा छत्तीसगढ़, राज्य बनने के बाद गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, शोषण और अत्याचार के टॉप टेन से बाहर तो नही निकल पाया, किन्तु नक्सलवाद, नकलवाद और सलवाजुडूम की आग में भी, नंबर वन अवश्य हो गया.


          श्री विष्णु के हाथों मारे गए महाबलियों को, आदिम व असभ्य बताया गया. अर्थात वर्तमान आदिम जन जातियां उन्ही की वंशज मानी जायेंगी. छत्तीसगढ़ की सारी फ़िजां में आदिम जातियों की गंध राजनांदगाँव से दंतेवाड़ा होते हुए जशपुर तक प्रयक्ष रूप से महसूस की जा सकती है. आदिम जातियों की महक पहले भी स्वीकार नही की गई तथा आज भी बर्दास्त करने लोग तैयार नही हैं. आक्रांत आर्यों के छल-कपट से परास्त आदिम जातियां, अपने स्वाभिमान के साथ जंगलों, पहाड़ों और कंदराओं में छुप गईं और सैकड़ों साल अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करते-करते, पुनः ज्ञानार्जन के माध्यम से अपने लूटे हुए, कुचले हुए, मान-सम्मान और अधिकारों को प्राप्त करना चाहती है, तो सत्ता में बैठे लोग, उसके संवैधानिक अधिकारों से वंचित रखने के लिए, नित नए-नए उपक्रमों द्वारा उसका विकासपथ अवरुद्ध कर देने के लिए जी-जान से लगे हुए हैं.


          राज्य निर्माण के १२ वर्ष पूर्ण होने के उपरान्त भी, आदिवासी विकास की कोई मौलिक अधोसंरचना परिलक्षित नही हो रही है. अज्ञानता, अजागारुक्ता, कुपोषण, भूख, अंधविश्वासों, कुरीतियों और सबसे बड़ा वाद नक्सलवाद से जकड़ा आदिवासी समाज, आज भी शासकीय संरक्षण का मोहताज है. सरकारी नक्सलवाद के खिलाफ, चारु मजुमदार का नक्सलवाद, आदिवासी क्षेत्रों में स्थापित हो गया. सलवाजुडूम का सुरर्शन तीन प्रकार से आदिवासियों का ही गर्दन काटता रहा है. एक नक्सलियों की, दूसरी पुलिस अधिकारियों, कर्मचारियों की तथा तीसरी सलवा जुडूम में भाग लेने वाले और न लेने वाले लोगों की. इस सुदर्शन से काटने वाली तीनों गर्दन आदिवासियों की ही हैं. जिस राज्य में क़ानून का राज्य स्थापित करने हेतु, सशस्त्र संघर्ष चल रहा हो, प्रतिदिन बम ब्लास्ट, विस्फोट, गोलीबारी, हत्याएं, बलात्कार, अपहरण, आगजनी और पलायन हो रहा हो, प्रतिमाह करोड़ो रूपये, शान्ति व्यवस्था बहाल करने पर व्यय किए जा रहें हों, उस राज्य में प्रतिदिन साधु-संतों, महात्माओं व प्रवचनकर्ताओं की बेमौसम बाढ़, यज्ञ, हवन और अनुष्ठान से, किस समस्या का निवारण किया जा रहा है ? छतीसगढ़ की धरती से अचानक देश के इन महात्माओं का तीव्र प्रेम और अनुराग, २ करोड़ छत्तीसगढ़ियों की कौन सी भूख का ईलाज किया गया ? शारीरिक भूख और आध्यात्मिक भूख में बड़ा अंतर होता है. पुरोहितों, पंडितों व धर्मशास्त्रों का कार्य मनुष्य की आध्यात्मिक भूख को तृप्त करना होता है. आध्यात्मिक शान्ति के ठेकेदारों का शारीरिक भूख से कभी आमना सामना नही हुआ. अतः वे भूख से ऐंठती आंतों की चीख सुन नहीं पाते और न ही महसूस कर पाते हैं. धरती की किसी भी कोने में भक्ति से भूख पर विजय पाप्त नही हुई और हो भी नही सकती. विश्व की सबसे बड़ी क्रांतियां भूखजनित हुईं. भूख आधारित क्रांतियों ने राजा के ईश्वरीय अवतार को परास्त कर, सर्वप्रथम शारीरिक भूख से निजात पाई. पेट की आंतों की तृप्ति के बिना, ज्ञान का प्रकाश कभी विकसित हुआ है और न कभी हो सकता है.

          छत्तीसगढ़ एक आदिवासी बाहुल्य राज्य है. इस राज्य में सबसे अधिक भूखा और नंगा कोई व्यक्ति है तो वह केवल आदिवासी ही है. राज्य में सबसे अधिक भयभीत और प्रताड़ित भी सिर्फ आदिवासी है. राज्य का सबसे गरीब और कमजोर व्यक्ति भी आदिवासी है. जिस राज्य की बहुत बड़ी संख्या, शासन के सहयोग से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हो, उस राज्य में अधिक धार्मिक उत्सवों, मेलों, कुम्भों, प्रवचनों और उपदेशों की क्या आवश्यकता है ? शहीद वीर नारायाण सिंह जिसे राज्य का प्रथम स्वतंत्रता सेनानी घोषित किया गया है, उनके मजार में पिछले कई वर्षों से दिया जलाने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री और मंत्रियों के पास समय नही है, लेकिन राजिम स्नान कर पूरा मंत्रीमंडल छत्तीसगढ़ के समस्त मागरिकों के कष्टों का निवारण कर रहा है ! नक्सलवाद से मरने वालों में छत्तीसगढ़, देश में नंबर एक पर है. आदिवासियों के ऊपर होने वाले शारीरिक उत्पीडन में राज्य का तीसरा स्थान है. कृषि भूमि पर उद्द्योग स्थापित करने, एम.ओ.यूं. हस्ताक्षर करने में राज्य सर्वप्रथम स्थान पर है. राजिम कुम्भ में करोड़ो रुपयों से भी अधिक का प्रतिवर्ष स्नान हो रहा है. संत कबीर कहते थे- "भूखे भजन न होए गोपाला". छत्तीसगढ़ भूखे, गरीब और अशिक्षित लोगों का प्रदेश है. इस राज्य को मंदिरों, मठों की नहीं, विद्यालयों की आवशयकता है. अंग्रेजी माध्यमों की पब्लिक स्कूलों से, गांवों के विकलांग सरकारी स्कूलों की शिक्षा से पल्लवित  छत्तीसगढ़ियों के बच्चे क्या प्रतियोगिता करेंगे ? छत और शिक्षक विहीन पाठशालाएं, जिसे हम शिक्षा का मंदिर कहते हैं, इनके जीर्णोद्धार में राज्य का सर्वाधिक धन क्यों खर्च नही होता ? छत्तीसगढ़ को साधू बाबाओं की नही, शिक्षकों की जरूरत है. राज्य को कथाकारों की नही, व्याख्याताओं की जरूरत है. छत्तीसगढ़ के लोग वैसे भी देश में पुण्यात्मा के लिए विख्यात हैं, अतः महात्माओं की सत्संग की आवश्यकता उन राज्यों को ज्यादा है, जहां दुष्टात्मा बहुसंख्यक में हैं.



कमल आजाद


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15 टिप्‍पणियां:

  1. mujhe bada hi dukh hota hai, jab pata chalta hai ki isayi missionariyan aadiwsiyo ko dharmantarit kar rahe hain. gondwana darshan ko shahri logo ke samne rakhne se pahle un aadiwsiyo ko matantarit hone se roken unhe iske bare me batayen .
    main aapki bato se thoda sahmat hun. kyoki jitna gyan rahega utna hi prawachan hoga.
    ye to bhagwan hi jane ki purano ki kathaye kalpanik hain ya itihas hai.
    waise shivbhakto par sahanubhuti kyo hai aapko.
    waise in angrejo ko kuch dhnyawad to dena padega, kyoki ahankari brahmano se thoda chhutkara inse hi mila , aur hum sabhi ko ved, puran, upnishad padhne ko mil saka. mai sudra jati ka hun. par bhale bramhano se nafrat karta hun par mujhe mahan sanskrit grantho wa sanatan dharma ke asli guno ko janne ka mauka mila. aaj mere paas sabhi ved, puran, ramaran, mahabharat, manusmriti, aur vaigyanik grantho ka kosh hai. sath hi bhaarat ke chaukane wale aur garv karne wale tathyo ke saved pages hain.

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  2. ek link deta hun......
    http://vaigyanik-bharat.blogspot.com/2010/06/blog-post_06.html

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  3. यह बात सत्य है संजय, जितना ज्ञान रहेगा इंसान उतना ही प्रवचन करेगा. आपके पास जितना आधुनिक ज्ञान है उतना ही बोल पा रहे हो. इतिहास उतना ही पढ़ पाए हो जितना ब्राम्हणों के वैदिक सिलेबस में है. लेकिन ब्राम्हणों का सिलेबस नहीं बना था तब भारत ही नहीं संपूर्ण गोंडवाना कैसा था वह इतिहास कैसा था तुम्हे पता नहीं है. आज भारत को आप लोग जितना विकसित कहते हो, उससे ज्यादा एक मात्र रावण का कुनबा विकसित था. जिस आईने में आप लोग आज भारत का चेहरा देख रहे हो, क्या वह हमारा या अपना भारत कहने लायक है ? "वैज्ञानिक भारत डॉट ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम" मैंने देखा है और पढ़ा है. कौन से इतिहास को पढते हो संजय ? क्या यही इतिहास भारत का इतिहास है ? क्या यही संस्कृति भारत की है ? क्या इन्हों में लिख दिया वही सत्य है ? इन्ही ग्रंथो में लिखा है वही सत्य है ? इन ग्रंथो को कब लिखा गया पता है ? क्या आपको इनकी प्राचीनता पर विश्वास है ? क्या आपको गोंडवाना क्या है, पता है ? सायद नहीं. चाहे आप कितने भी ग्रंथ पढ़ लो, कितना ही विज्ञान पढ़ लो, कितना ही ज्ञान बटोर लो, जो मन और शरीर से अंधा, बहरा, गूंगा और लंगड़ा हो, जो आधुनिकता के मान पर दूसरों के कन्धों पर ही अपने जीवन का आश्रय ग्रहण कर लिया हो, यह सब बातें उसकी समझ से परे है. आपको पता है जन्म संस्कार, शिक्षा (गोटूल) संस्कार, विवाह संस्कार और मृत्यु संकार किसने दिए ? विज्ञान किसकी देन है ? दुनिया को घर बनाने की तकनीकी किसने सिखाया ? आप कहोगे विश्वकर्मा ने ! आप यह भी कहोगे की सृष्टि की रचना ब्रम्हा ने किया ! वह इसलिए कि आपने ब्रम्हा को ग्रंथो से जाना. आपने शंकर और शिव को जाना है "महादेव" को नहीं ! आपने वही पढ़ा है जो सिलेबस में दिया है. इसमें आपका कोई दोष नहीं, क्योंकि अन्धों को आईने की जरूरत नहीं होती और न ही खुद से चलने वालों को बैसाखी की ! हम खुद की आँखों से देखना चाहते है. अपने पैरों से चलना चाहते है. अपने विवेक से सोचना चाहते है. अपना इतिहास पढ़ना और पढ़ाना चाहते है. गैरों की जूती हमें पहनने की आदत नहीं है. अपनी जमीन पर अपना अलग आईना है. यदि आदिवासियों और दलितों को गैरों का आईना देखना होता तो, दलित और आदिवासी क्यों कहलाते, वैज्ञानिक भारत में ! यह वह भारत है जो दलितों, आदिवासियों और गोंडवाना के मूलनिवासियों के नीव पर खड़ा है. आप जिस आधुनिक भारत, समाज, विज्ञान और इतिहास की बात करते हो हजारों वर्षों से केवल और केवल मूलनिवासियों के करोड़ों छातियों पर झंडा गड़ाई हुई भारत है, जिसे लोग सान से कहते है हमारा भारत महान !

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    1. SIR ...SEWA-SEWA ........AAPKE VICHARO SE MAI POORNATAH SAHMAT HOON .SARANSH KI BAT MUJHE YAH LAGTA HAI . KI VISHWA SANSKRITI ....KI MOOL AVDHARNA YADI LIYA GAYA HAI TO VAH GONDI SANSKRITI HI HAI ...JIS SANSKRITI ME PRAKRITI KE SAMAN EK BHI TRUTI NA HO ....VAH SWABHAVIK HAI ..VISHWA SANSKRITI KI JANNI HOGI HI.../ YAH BAT ALAG HAI KI ..LOGO KA GONDI SANSKRITI KO DEKHANE SAMAJHNE KA NAJARIYA /DARASHTIKON KYA HAI.?....

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  4. Raja Indra jo ki itne badnaam ho gaye...... Sabse pahle aap yadi VED padhe to usme payenge ki usme sabhi dewta param bramh maane gaye, use prakriti sakti ka manwiy nirupan hi kiya, aap log prakriti pooja ka aalaap karte rahte hain , prachin kal me har maanaw aadiwasi hi tha , usne apne mansik wikas kar aage ki sabhyata banayi , bhasa , lipi aadi ka vikas kiya, tab jaake aaj ki sabhyata ban payi, aasmaan se ye sidhe aise hi to nahi aaye .
    indra dewta bhi ek mahan prakriti sakti ke roop me VED me hai, wahi kabhi visnu, kabhi surya , kabhi anya kisi naam se sambodhit huwa. hai wahi param sakti. waha wah dushto ka naash karne wala mana gaya hai. Ab jab puran ki baat karte hain to we bahut baad ki rachnaayen hai , ise prachin kal ki kahaniya ya ye kahe ki lokkahani hai. koi uski sachchayi nahi jaanta, ab inhi purano me 3 category hai, 1.shiv puran,2. vishnu puran, 3.bramha puran . 18 purano me tino ke 6 - 6 puran hai, baki anya up puran kahlate hai. Inme tridevo ki manyata sthapit ki gayi hai, jaise mahadew ka trishul hai, trigun hai, trilok hai, Inme tridevo ko mukhya dev sthapit kiya hai, indra ko kewal devo ka raja mana gaya hai, ab is baat par bhi sochiye ki in purano me yadi asuro ko maarne ki kahaniyan likhi gayi hai to raja indra ke vyabhichar ko bhi dikhaya hai, anya devo ke ahankar ko bhi nirupit kiya tatha unko wapas sadmarg bhi dikhaya. Indra kahani ka uddeshya yah hai ki yadi koi chahe wah dewta ho yadi dushkarma karta hai to use dand milta hai, Indra ko kai shrap mile, dewta nashwar nahi wo amar kahe gaye hain. Prachin kal me tino mato ko ek me milane karya in purano ne kiya. inhi ne kaha ki we ek dushre ke aaradhya hain.
    Raja Bali ne tino loko ko jeet liya tha tab dewo ke liye rahne ka sthan nahi tha, manwo ke lok ko bhi jeet liya tha. isliye vishnu ne swarga ko uski asli maalik ko wapas karane ke liye ye karya kiya, aur unhe wapas patal lok jo ki asuro ka lok kaha gaya hai me bhej diya na ki mara tha. aur na hi ye dand hai, Bali ne apne bhai par vishwas nahi kiya , usko bhagakar uski patni ko jabardasti apna banana chaha. kya koi jeth apni bahuriya jo putri saman hai se sambandh rakhega. ye galat tha.
    asur log yago ko band karwate the, dewo ka pujan mana karte the , aap log bhi badadew ki puja karte ho ,yadi hum usme badha dalen, ho sakta hai aapke dew pujan se prakriti santulan banta ho ya koi vaigyanik karan ho. to kya aap log mujhe chhod doge. jabki dewo ka bhojan yahi yagya se prapta hawi hi tha.
    asur ardh daivik saktiya hi thi, tabhi to swarga me ja sakti thi, kisi maaanaw ka waha jana kabhi bhi nahi dikhaya gaya hai.
    apne logo ki halat ka jimmedar inko thahrane se aapki tarrakki nahi ho jayegi, kya koi brahman un jangal me bhi pooja karwane katha karwane ko jaate hain kya. mai to ye maanta hun ki jo aaj jangal me hai wo waha sada se rahte aaye hain, in kathawo me wanwasiyo ka bhi warnan hai.
    Ek tathya ye bhi hai ki Iran desh ke log hi asur the, kyoki unke awesta me unka leader ahur (asur) the aur virodhi inrda the. to ab bhi kya aap apne ko asur wansaj maanenge.

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    1. आप लोग मन, बुद्धि और शरीर से गुलाम हो चुके हो. इस गुलामी का कोई इलाज नहीं है.

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    2. mujhe maloom hai parte ji, kaun usi itihas ko manta hai, jo ki hame gulam banakar rakhne walo dwara likhe itihas ko hi maante hai....... aarya dravid vibhajan kiski upaj hai.... mai bahut bato par aapse sahmat hun par mai kisi samuh ya samaaj dwara kiye kisi galat karya se pure dharm ko galat nahi maanta, kyonki yah dharma itna vistrit hai, ki har koi isme sama jata hai, har darshan yaha manya hai. badhyata yaha nahi.s
      SC ST OBC GENERAL ka vibhajan kisne kiya tha , kisi puran me to nahi hai, sab ST wale mool niwasi hain , to baki log ko aap videshi bana de rahe ho, yahi galat baat hai, agar aap samyata sthapit karke sanskriti ka utthan karte to koi vidwesh ki baat hi nahi hoti,
      "foot dalo raz karo" ki niti ka yahi to uddeshya hai,
      kya hum ek dusre se bhed badhakar khush rah sakte hain....
      samyata sthapit karna un puran kahaniyo se sikhe.., jo ek taraf vairagi shiv ko aadi dev manti hai, bramha wa vishnu bhi unki pooja karte hain, shiv ji bhi vishnu aur bramha ko pujya maante hai. ye itihas ho jaruri nahi par bhinna maton ko eksar karne saamrthya inme hi hai.

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  5. facebook dwara kripya judne ki koshis kare, meri id sanjay.marar.patel@gmail.com

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  6. dilip ji me sahmat hu aapki bato se jise jitna gyan utni hi bat karte he logo ne sirf ek pahlu ko dekha jo unhe dikhaya gaya dusra pahlu jo wo dekhna chahte he unhe dikhaya nhi jata aapne jo dusra pahlu prastut kiya uske liye dhanywad ...........

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  7. gondwana laind ki punah sata pure hidustan me ho sakta hai
    prantu eske liye ek manch , ek mantr, aur ek jadu ki chhdi ki jrurat hai
    R.N. GOUND (TYAGI)
    (film produsar mumbai 9833863106)

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