राजा इंद्र ने अनेक भीषण दुष्कर्म किए, लेकिन जगत के पालनहार कहे जाने वाले विष्णु ने इंद्र को दण्डित नही किया. फिर भला राजा बली, महाराजा बाली और लंकापति रावण को दण्डित करने का औचित्य क्या था ? मारे गए सभी महाबली शिव के भक्त थे तथा इनमे से कोई भी दुष्ट या बलात्कारी नही था. इंद्र को जीवित रखकर शिव भक्तों को छल कपट से मारना कहाँ का न्याय है ?
तीनों लोकों में निवास करने वाले तैंतीस करोड़ देवी देवताओं वाला भारत, अपनी आध्यात्मिक, धार्मिक व सांस्कृतिक विशेषताओं के लिए सम्पूर्ण विश्व में विख्यात है. दुनिया के किसी भी देश और वहाँ रहने वाली मानव जातियों के पास, इतने भगवान व उनके इतने अवतार नही हैं. पृथ्वी में जितनी भी मानव सभ्यताएं तथा देश, विश्व मानचित्र में विद्दमान हैं, उन पर भगवान की इतनी कृपा और दया कभी नही हुई, जितनी भारत भूमि पर हुई. भारतीय पौराणिक गाथाओं के अनुसार सृष्टि में अत्यधिक पाप कर्म से मानव जाति को मुक्त कराने एवं मानव कल्याण हेतु जगत के पालनहार कहे जाने वाले भगवान विष्णु पृथ्वी पर अवतार लेते रहे हैं. दुनिया की किसी भी कोने में निरंतर ईश्वरीय अवतार होने का कोई लिखित-अलिखित दस्तावेज, ग्रन्थ या धार्मिक प्रमाण आज मौजूद नहीं हैं, भारत को छोड़कर. दुनिया के सबसे बड़े धर्म ईसाईयत (ईसाई) में, प्रभू ईसामसीह को परमेश्वर का पुत्र माना गया. यहूदियों में संभवतया ईसा मसीह, परमेश्वर के पहले दूत या पुत्र कहे जा सकते हैं. दुनिया के दूसरे बड़े धर्म इस्लाम में, हजरत महोम्मद साहब को अल्लाह या खुदा का दूत-पैगम्बर स्वीकारा गया है. दोनों ने अपने महान उपदेशों व कार्यों से तत्कालीन मानव जाति को अधर्म से धर्म का मार्ग दिखाकर एक नए पंथ को जन्म दिया.
कालान्तर में दोनों अनुयायी ईसाई और मुसलमान कहलाए. ईसा मसीह और महोम्मद पैगम्बर को पृथ्वी में आये दो हजार बारह वर्ष पूरे हो चुके हैं. इनका धरती में पुनरागमन अभी तक नही हुआ. वैसे बाइबिल और कुरान में यह स्पस्ट चेतावनी दी गई है कि, मनुष्य अपने आचार-विचार व व्यवहार को उनके बताए गए सिद्धांतों के अनुरूप रखे, अन्यथा परम पिता परमेश्वर/खुदा अपने नेक बन्दों को बचाने के लिए, पृथ्वी में पुनः अपना दूत भेजेगा. मनुष्य को जिस प्रकार हवा, पानी, प्रकाश और भोजन की अनिवार्य आवश्यकता है, ठीक उसी तरह मानव जाति को अनेकानेक कारणों से, धर्म की भी आवश्यकता है. फिर चाहे कोई भी हो. काल परिस्थितियों के अनुरूप मनुष्य द्वारा स्वेच्छापूर्वक स्वीकार किया जाता है.
वर्तमान विश्व के मानचित्र में भारत ही एक मात्र ऐसा देश है, जहां ईश्वर को दूत भेजने की अपेक्षा स्वयं आना पड़ा है. वह भी एक बार से काम नही चला. भारत में भगवान को ५२ बार आना पड़ा. इससे एक बात स्पस्ट होती है कि, दुनिया के सभी मानवों में भारत के लोग सबसे बड़े अधर्मी और पापी थे. या फिर यहाँ पर मानव अपने तपोबल या योगबल से महामानव बने तथा अपने योगबल और तपोबल से प्राप्त शक्तियों का दुरूपयोग करने के कारण, उस महामानव को दण्डित करने के लिए भगवान अवतरित हुए. ऐसा ५२ बार हुआ, अतः भारत में भगवान को बार-बार आना पड़ा. भारत की पौराणिक कथाओं में जिन राक्षसों या असुरों का वध करने के लिए, भगवान विष्णु को बार-बार धरती में आने का कष्ट उठाना पड़ा, वे सभी राक्षस, भगवान शिव के उपासक और शिवशक्ति से संपन्न थे. अपनी आध्यात्मिक शक्तियों से इंद्रियों को पराजित कर, शिव उपासकों नें महाबल प्राप्त किया था, लेकिन उन्हें दुष्ट, अज्ञानी, अहंकारी और धर्म विरोधी करार देकर, छल-कपट से मार दिया गया. यह पौराणिक कथाएं कई सौ हजार साल पुरानी बताई जाती है.
अंग्रेज जब भारत आये, उस समय देश में ९०% लोग अनपढ़ और अज्ञानी थे. शिक्षा और ज्ञान अर्जन का अधिकार १०% विशेष वर्गों तक सीमित था. पढ़े-लिखे, विद्वान धर्माचार्यों ने जो भी बताया, देश की अशिक्षित जनता उसे आँख मूंदकर स्वीकार्य करती रही. देश में पहली बार ९०% पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों को शिक्षित बनाने का कार्य अंग्रेजों ने प्रारंभ किया. गुलाम भारतियों के लिए स्कूल खोले गए. अंग्रेजों ने शिक्षा के साथ-साथ, हिंदू धर्म में व्याप्त कुरीतियों व धार्मिक पाखंडों को समाप्त करने के लिए उपाय किए. सती प्रथा और बाल विवाह समाप्त कर विधवा विवाह को कानूनी संरक्षण दिया. भारत में स्त्री शिक्षा निषेध थी. अंग्रेजों ने महिलाओं की शिक्षा के द्वार खोल, ९०% भारतीयों को शिक्षित बनाने का महानतम कार्य प्रारंभ किया. आजादी के आते तक बड़ी सख्या में लोग पढ़ने-लिखने लगे तथा आजादी के बाद देश में संविधान द्वारा स्थापित, जनता का जनता द्वारा शासन स्थापित हो गया. ६५ वर्ष की आजाद उम्र तक एस.टी., एस.सी., और ओ.बी.सी. वर्ग ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सांशिक ही सही, लेकिन उल्लेखनीय सफलताएं अर्जित की. वैसे आज भी भारत दुनिया का सबसे बड़ा अशिक्षित देश है.
अब बुद्धी और ज्ञान से प्रकाशित यह मानव मस्तिष्क पौराणिक कथाओं के अनुसार अपने पूर्वजों के नरसंहार की गाथाओं को सुनकर उद्द्वेलित हो रहा है. जब तक वह अनपढ़ था, तब तक वह ठीक था. क्योंकि बिना ज्ञान के मनुष्य पशुतुल्य होता है. ज्ञान आने से विवेक जागृत होता है. पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों के ज्ञानचक्षु खुलने से अत्यंत गंभीर प्रश्न आकार ले रहे हैं कि, राजा इंद्र ने अनेकानेक भीषण दुष्कर्म किए, लेकिन जगत के पालनहार कहे जाने वाले श्री विष्णु ने इंद्र देव को दण्डित नही किया. फिर भला राजा बली, महाराजा बाली और लंकापति रावण को दण्डित करने का औचित्य क्या था ? मारे गए सभी महाबली भगवान शिव के भक्त थे तथा इनमे से कोई भी दुष्ट या बलात्कारी नही थे. अतः इंद्र को जीवित रखकर शिवभक्तों को छल-कपट से मारना इन कहाँ का न्याय है ?
मुगलों और अंग्रेजों की १००० साल गुलामी के बाद, भारत का राजपाट, संविधान के अनुसार स्थापित होने तथा वर्ण, जाति और धर्म में सभी को समानता व स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त होने के उपरान्त, जनता के द्वारा चुनी गई सरकारों को, केन्द्र तथा राज्यों में सत्ता संचालन का अधिकार मिला. भारत के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में सुमार छत्तीसगढ़ियों को भी १२ साल पहले, छतीसगढ़ के रूप में नया राज्य मिल गया. राज्य बनने के पहले तक छतीसगढ़, अपनी सादगी, ईमानदारिता, दरिद्रता और अशिक्षा के लिए देश के टॉप टेन में शामिल था और है. आदिवासी बाहुल्यता व आदिम संस्कृति से रचा बसा छत्तीसगढ़, राज्य बनने के बाद गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, शोषण और अत्याचार के टॉप टेन से बाहर तो नही निकल पाया, किन्तु नक्सलवाद, नकलवाद और सलवाजुडूम की आग में भी, नंबर वन अवश्य हो गया.
श्री विष्णु के हाथों मारे गए महाबलियों को, आदिम व असभ्य बताया गया. अर्थात वर्तमान आदिम जन जातियां उन्ही की वंशज मानी जायेंगी. छत्तीसगढ़ की सारी फ़िजां में आदिम जातियों की गंध राजनांदगाँव से दंतेवाड़ा होते हुए जशपुर तक प्रयक्ष रूप से महसूस की जा सकती है. आदिम जातियों की महक पहले भी स्वीकार नही की गई तथा आज भी बर्दास्त करने लोग तैयार नही हैं. आक्रांत आर्यों के छल-कपट से परास्त आदिम जातियां, अपने स्वाभिमान के साथ जंगलों, पहाड़ों और कंदराओं में छुप गईं और सैकड़ों साल अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करते-करते, पुनः ज्ञानार्जन के माध्यम से अपने लूटे हुए, कुचले हुए, मान-सम्मान और अधिकारों को प्राप्त करना चाहती है, तो सत्ता में बैठे लोग, उसके संवैधानिक अधिकारों से वंचित रखने के लिए, नित नए-नए उपक्रमों द्वारा उसका विकासपथ अवरुद्ध कर देने के लिए जी-जान से लगे हुए हैं.
राज्य निर्माण के १२ वर्ष पूर्ण होने के उपरान्त भी, आदिवासी विकास की कोई मौलिक अधोसंरचना परिलक्षित नही हो रही है. अज्ञानता, अजागारुक्ता, कुपोषण, भूख, अंधविश्वासों, कुरीतियों और सबसे बड़ा वाद नक्सलवाद से जकड़ा आदिवासी समाज, आज भी शासकीय संरक्षण का मोहताज है. सरकारी नक्सलवाद के खिलाफ, चारु मजुमदार का नक्सलवाद, आदिवासी क्षेत्रों में स्थापित हो गया. सलवाजुडूम का सुरर्शन तीन प्रकार से आदिवासियों का ही गर्दन काटता रहा है. एक नक्सलियों की, दूसरी पुलिस अधिकारियों, कर्मचारियों की तथा तीसरी सलवा जुडूम में भाग लेने वाले और न लेने वाले लोगों की. इस सुदर्शन से काटने वाली तीनों गर्दन आदिवासियों की ही हैं. जिस राज्य में क़ानून का राज्य स्थापित करने हेतु, सशस्त्र संघर्ष चल रहा हो, प्रतिदिन बम ब्लास्ट, विस्फोट, गोलीबारी, हत्याएं, बलात्कार, अपहरण, आगजनी और पलायन हो रहा हो, प्रतिमाह करोड़ो रूपये, शान्ति व्यवस्था बहाल करने पर व्यय किए जा रहें हों, उस राज्य में प्रतिदिन साधु-संतों, महात्माओं व प्रवचनकर्ताओं की बेमौसम बाढ़, यज्ञ, हवन और अनुष्ठान से, किस समस्या का निवारण किया जा रहा है ? छतीसगढ़ की धरती से अचानक देश के इन महात्माओं का तीव्र प्रेम और अनुराग, २ करोड़ छत्तीसगढ़ियों की कौन सी भूख का ईलाज किया गया ? शारीरिक भूख और आध्यात्मिक भूख में बड़ा अंतर होता है. पुरोहितों, पंडितों व धर्मशास्त्रों का कार्य मनुष्य की आध्यात्मिक भूख को तृप्त करना होता है. आध्यात्मिक शान्ति के ठेकेदारों का शारीरिक भूख से कभी आमना सामना नही हुआ. अतः वे भूख से ऐंठती आंतों की चीख सुन नहीं पाते और न ही महसूस कर पाते हैं. धरती की किसी भी कोने में भक्ति से भूख पर विजय पाप्त नही हुई और हो भी नही सकती. विश्व की सबसे बड़ी क्रांतियां भूखजनित हुईं. भूख आधारित क्रांतियों ने राजा के ईश्वरीय अवतार को परास्त कर, सर्वप्रथम शारीरिक भूख से निजात पाई. पेट की आंतों की तृप्ति के बिना, ज्ञान का प्रकाश कभी विकसित हुआ है और न कभी हो सकता है.
छत्तीसगढ़ एक आदिवासी बाहुल्य राज्य है. इस राज्य में सबसे अधिक भूखा और नंगा कोई व्यक्ति है तो वह केवल आदिवासी ही है. राज्य में सबसे अधिक भयभीत और प्रताड़ित भी सिर्फ आदिवासी है. राज्य का सबसे गरीब और कमजोर व्यक्ति भी आदिवासी है. जिस राज्य की बहुत बड़ी संख्या, शासन के सहयोग से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हो, उस राज्य में अधिक धार्मिक उत्सवों, मेलों, कुम्भों, प्रवचनों और उपदेशों की क्या आवश्यकता है ? शहीद वीर नारायाण सिंह जिसे राज्य का प्रथम स्वतंत्रता सेनानी घोषित किया गया है, उनके मजार में पिछले कई वर्षों से दिया जलाने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री और मंत्रियों के पास समय नही है, लेकिन राजिम स्नान कर पूरा मंत्रीमंडल छत्तीसगढ़ के समस्त मागरिकों के कष्टों का निवारण कर रहा है ! नक्सलवाद से मरने वालों में छत्तीसगढ़, देश में नंबर एक पर है. आदिवासियों के ऊपर होने वाले शारीरिक उत्पीडन में राज्य का तीसरा स्थान है. कृषि भूमि पर उद्द्योग स्थापित करने, एम.ओ.यूं. हस्ताक्षर करने में राज्य सर्वप्रथम स्थान पर है. राजिम कुम्भ में करोड़ो रुपयों से भी अधिक का प्रतिवर्ष स्नान हो रहा है. संत कबीर कहते थे- "भूखे भजन न होए गोपाला". छत्तीसगढ़ भूखे, गरीब और अशिक्षित लोगों का प्रदेश है. इस राज्य को मंदिरों, मठों की नहीं, विद्यालयों की आवशयकता है. अंग्रेजी माध्यमों की पब्लिक स्कूलों से, गांवों के विकलांग सरकारी स्कूलों की शिक्षा से पल्लवित छत्तीसगढ़ियों के बच्चे क्या प्रतियोगिता करेंगे ? छत और शिक्षक विहीन पाठशालाएं, जिसे हम शिक्षा का मंदिर कहते हैं, इनके जीर्णोद्धार में राज्य का सर्वाधिक धन क्यों खर्च नही होता ? छत्तीसगढ़ को साधू बाबाओं की नही, शिक्षकों की जरूरत है. राज्य को कथाकारों की नही, व्याख्याताओं की जरूरत है. छत्तीसगढ़ के लोग वैसे भी देश में पुण्यात्मा के लिए विख्यात हैं, अतः महात्माओं की सत्संग की आवश्यकता उन राज्यों को ज्यादा है, जहां दुष्टात्मा बहुसंख्यक में हैं.
छत्तीसगढ़ एक आदिवासी बाहुल्य राज्य है. इस राज्य में सबसे अधिक भूखा और नंगा कोई व्यक्ति है तो वह केवल आदिवासी ही है. राज्य में सबसे अधिक भयभीत और प्रताड़ित भी सिर्फ आदिवासी है. राज्य का सबसे गरीब और कमजोर व्यक्ति भी आदिवासी है. जिस राज्य की बहुत बड़ी संख्या, शासन के सहयोग से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हो, उस राज्य में अधिक धार्मिक उत्सवों, मेलों, कुम्भों, प्रवचनों और उपदेशों की क्या आवश्यकता है ? शहीद वीर नारायाण सिंह जिसे राज्य का प्रथम स्वतंत्रता सेनानी घोषित किया गया है, उनके मजार में पिछले कई वर्षों से दिया जलाने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री और मंत्रियों के पास समय नही है, लेकिन राजिम स्नान कर पूरा मंत्रीमंडल छत्तीसगढ़ के समस्त मागरिकों के कष्टों का निवारण कर रहा है ! नक्सलवाद से मरने वालों में छत्तीसगढ़, देश में नंबर एक पर है. आदिवासियों के ऊपर होने वाले शारीरिक उत्पीडन में राज्य का तीसरा स्थान है. कृषि भूमि पर उद्द्योग स्थापित करने, एम.ओ.यूं. हस्ताक्षर करने में राज्य सर्वप्रथम स्थान पर है. राजिम कुम्भ में करोड़ो रुपयों से भी अधिक का प्रतिवर्ष स्नान हो रहा है. संत कबीर कहते थे- "भूखे भजन न होए गोपाला". छत्तीसगढ़ भूखे, गरीब और अशिक्षित लोगों का प्रदेश है. इस राज्य को मंदिरों, मठों की नहीं, विद्यालयों की आवशयकता है. अंग्रेजी माध्यमों की पब्लिक स्कूलों से, गांवों के विकलांग सरकारी स्कूलों की शिक्षा से पल्लवित छत्तीसगढ़ियों के बच्चे क्या प्रतियोगिता करेंगे ? छत और शिक्षक विहीन पाठशालाएं, जिसे हम शिक्षा का मंदिर कहते हैं, इनके जीर्णोद्धार में राज्य का सर्वाधिक धन क्यों खर्च नही होता ? छत्तीसगढ़ को साधू बाबाओं की नही, शिक्षकों की जरूरत है. राज्य को कथाकारों की नही, व्याख्याताओं की जरूरत है. छत्तीसगढ़ के लोग वैसे भी देश में पुण्यात्मा के लिए विख्यात हैं, अतः महात्माओं की सत्संग की आवश्यकता उन राज्यों को ज्यादा है, जहां दुष्टात्मा बहुसंख्यक में हैं.
कमल आजाद
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