ब्रम्हांड / सृष्टि का निर्माण किसने किया, यह एक अनसुलझा / रहस्य है. सभी धर्मों में, सभी समाजों में, एक ईश्वर, गाड, अल्लाह, को स्वीकार किया गया है, जिसने पृथ्वी, आकाश, समुद्र, सभी जीव, निर्जीव, प्राणी, वनस्पतियों की रचना की. यद्यपि ऐसी किसी शक्ति के अस्तित्व में होने का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिलता है. अगर यह मान लिया जाय कि ब्रम्हांड का निर्माण भगवान ने किया, तो यह प्रश्न उठना वाजिब है कि भगवान को किसने बनाया, वह कहाँ से आया. अभी हाल में महान वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंग ने अपनी पुस्तक Grand Design में कहा है कि सृष्टि, ब्रम्हांड, जीवन का निर्माण (Creation) स्वतः भौतिक शास्त्र के नियमों के अनुसार हुआ है. यह तो पता नहीं कि भगवान है कि नहीं, लेकिन अगर स्टीफन हाकिंग की बात माना जाए तो सृष्टि, ब्रम्हांड के निर्माण में भगवान की कोई भूमिका नहीं है.
हिन्दू शास्त्रों में भी कहा गया है कि शिव जी की उत्पत्ति भी स्वतः हुई है. इसीलिए उन्हें स्वयंभू या शंभू कहा गया है. स्वतः स्फूर्त उत्पत्ति (Self creation) का सिद्धांत हमारे यहाँ पहले से मौजूद है. यह सिद्धांत स्टीफन हाकिंग के सिद्धांत से मेल खाता है. एक अदृश्य महाशक्ति अस्तित्व को भी सभी धर्म स्वीकार करते हैं. इस्लाम में अल्लाह, क्रिस्चिऐनिटी में गाड और हिन्दुओं में अनेकों देवी देवताओं का अस्तित्व स्वीकार किया गया है. यद्यपि इसका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नही मिलता है. हिन्दुओं में मुख्य रूप से ब्रम्हा, विष्णु, महेश को मान्यता प्राप्त है. इसके अतिरिक्त 33 कोटि देवी देवताओं के अस्तित्व में होने की बात स्वीकार की गई है. हिन्दुओं में सभी देवी देवताओं को कल्पना के मुताबिक शारीरिक आकार प्रकार दिया गया है. यह शायद इसलिए है कि साधारण आदमी के लिए आकार विहीन किसी अदृश्य शक्ति की कल्पना कर पाना मुश्किल कार्य है. यद्यपि भगवान है कि नहीं, इस बारे में कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है और न तो इसको प्रमाणित या गलत साबित किया जा सकता है, फिर भी किसी भी रूप में भगवान के अस्तित्व में विश्वास करना विशुद्ध रूप से आस्था का विषय है. किसी की भी आस्था पर प्रश्न नही उठाया जाता है. किसी की आस्था को चोट पहुंचाना घृणित कार्य है.
अगर कर्मकांड, पूजा पद्धति को छोड़ दें तो ऐसे बहुत से सिद्धांत हैं जो सब धर्मों में समान हैं. झूठ नही बोलना, सहिष्णुता, चोरी नहीं करना, ग़रीबों पर दया करना आदि ऐसे बहुत से सिद्धांत हैं, जो सामान रूप से सभी धर्मों में सर्वमान्य है. समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए इन नियमों की उपयोगिता है. इन सिद्धांतों का पालन कराने में भगवान के डंडे का डर हमेशा ही बड़ा उपयोगी साबित होता है.
कर्ता (Creator) को सभी धर्मावलम्बी अलग अलग नामों से पुकारते हैं. ऐसे किसी भगवान, अल्लाह, गाड का अस्तित्व है कि नहीं, इस पर हमेशा संशय बना रहता है. भगवान हो या न हो उसका डर ही समाज को सुव्यवस्थित रखने में बड़ा उपयोगी साबित होता है. कई बार तो देखने में आता है कि आदमी भारी से भारी मुसीबत में हो मंदिर में जाकर 5 या 11 रूपये का प्रसाद चढ़ाने से ही मुसीबत टल जाती है. बड़ी से बड़ी मुसीबतों का इस तरह समाधान होते मैंने देखा है.
एक प्रश्न यह उठता है कि भगवान ने हमें बनाया या हमने भगवान का आविष्कार किया. अगर भगवान ने हमको बनाया तो फिर भगवान को किसने बनाया. हिन्दुओं में अगर कर्म के सिद्धांत को माना जाय तो अपने कर्मों के अनुसार ही हमें उसके परिणाम भोगने पड़ते हैं. इसका निर्धारण कौन करेगा कि अपने कर्म के अनुसार किसको क्या फल मिलना चाहिए ? इस कारण एक निष्पक्ष महाशक्ति की आवश्यकता महसूस होती है. भगवान है या नहीं, इस पर विवाद अनावश्यक है. यह न तो साबित किया जा सकता है और न तो पूरी तरह नकारा जा सकता है. इतना निश्चित है कि हमें भगवान की जरूरत जरूर है, काल्पनिक ही सही. भगवान का आविष्कार हमने इसलिए किया कि एक ऐसी शक्ति हो जिसके सर पर हम सारी जिम्मेदारी डाल दें और उसके सामने बैठकर अपने सुख-दुःख सुना सकें और उसकी कृपा के भागी बनें.
ज्ञान, अज्ञान, विज्ञान और भगवान
ज्ञान और अज्ञान का अंतर बहुत भ्रम पैदा करने वाला है. एक ज्ञान वह है जो हमें साधू, महात्मा, उपदेशक, प्रवचनकर्ता बताते हैं. आजकल प्रवाचंकर्ताओं की बाढ़ आई हुई है. आत्मा, परमात्मा, भगवान, भगवती की बातें की जाती हैं. कहा जाता है कि यह दुनिया माया है. इस माया को छोड़कर एक अदृश्य परमात्मा, जिसके अस्तित्व के बारे में कुछ भी पता नहीं है, को प्राप्त करने में ध्यान लगाना चाहिए. सांसारिक चीजों से विमुख होकर ईश्वर में ध्यान लगाना चाहिए. मान लीजिए अगर एक ईश्वर या सृष्टिकर्ता मौजूद है तो उसने तो सृष्टि के सृजन का काम कर भी दिया, अब बार-बार उसे क्यों परेशान किया जाय. हम अपने कर्तव्य का निर्वाह क्यों न करें. जो प्रवाचंकर्ताओं को सुनने जाते हैं, वे पता नहीं कितना उनकी बातों का अनुपालन करते हैं. भगवान ने निर्धारित कर दिया है कि कर्म के अनुसार फल मिलता है, इसलिए अच्छे कर्म करो.
इतने सब प्रचार और प्रसार के बावजूद देश में अत्याचार, अनाचार, लूटमार, भ्रष्टाचार धोखाधड़ी, व्याभिचार, गरीबी, बीमारी, भुखमरी, गैरबराबरी, अराजकता, परस्पर संघर्ष बढ़ता जा रहा है. कवि नीरज जी के शब्दों में है- "कदम कदम पर मंदिर मस्जिद, कदम कदम पर गुरुद्वारे, भगवानों की बस्ती में हैं जुल्म बहुत इंसानों पर." हमारे संत, महात्मा, स्वामी, प्रवचनकर्ता, हमें पलायनवाद का उपदेश देते हैं. कहा जाता है सब कुछ छोड़कर केवल एक अज्ञात शक्ति 'भगवान', जिसके अस्तित्व का कुछ अता पता नहीं, में ध्यान लगाओ, मोक्ष और निर्वाण प्राप्त करने का यही एक तरीका है. भगवान अगर है तो क्या वे चाहेंगे कि सारा समय उनके ध्यान में बर्बाद किया जाए ? अब भगवान को क्यों बार-बार परेशान किया जाए. क्या हमारे लिए यह उचित नहीं बनता कि हम अपने कर्तव्य का समुचित निर्वाह करें. गीता को महत्वपूर्ण बताया गया है- 'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन.' यानी कर्म के अनुसार ही फल मिलता है. भगवान ने इसका सूत्र बना दिया है कि जैसा कर्म करोगे वैसा फल पाओगे. जाहिर है भगवान किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहेंगे. उन्होंने हमें अपने कर्म के भरोसे छोड़ दिया है.
गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी राम चरित मानस में लिखा है- 'कर्म प्रधान विश्व करि राखा, जो जस करही तस फल चाखा.' हमें अपने कर्तव्य को समझना होगा. हमें अपने दायित्व को समझना होगा. परिवार, समाज और अपने राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य को निभाना होगा. दुनिया में करने को इतना कुछ है. समाज में व्याप्त गरीबी, भुखमरी, बीमारी, भ्रष्टाचार, बेईमानी, चोरी, लूटमार, हिंसा, व्याभिचार के खिलाफ संघर्ष करने का क्या हमारा कर्तव्य नहीं बनता है ? मानव मात्र का दुःख दूर करना भगवान की सबसे बड़ी सेवा है. भगवान भी अपेक्षा रखते हैं कि जिस उद्देश्य की पूर्ती के लिए उन्होंने सृष्टि का निर्माण किया, जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हमें इस धरती पर भेजा, हम उसका निर्वाह करें. आँख मूंदकर ध्यान लगाकर माला जपने से भगवान खुश नही होंगे. हमें अच्छे कर्म करके भगवान की अपेक्षा पर खरा उतरना होगा. कोई आसान रास्ता उपलब्ध नहीं है. भगवान को चापलूसी एकदम पसंद नहीं है. भगवान का नाम रटने से हमें अपने दुष्कर्मों के फल से मुक्ति नहीं मिलेगी.
भगवान बुद्ध के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने वर्ष तक घनघोर साधना की, लेकिन उनको सिद्धि नहीं मिली. फिर उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई कि दीन दुखियों की सेवा करना ही सबसे बड़ी साधना है. वह ग़रीबों, कोढियों, बीमारों की सेवा करने में लग गए. यह है सच्चा ज्ञान.
अब आईए विज्ञान में कितना ज्ञान है इस पर विचार कर लें. विज्ञान का मतलब है विधिवत, व्यवस्थित ज्ञान, यानी 'Systematic knowledge'. विज्ञान में वही सिद्धांत स्वीकार होते हैं, जो प्रायोगिक परीक्षण में खरे उतरते हैं, जिनको साबित किया जा सकता है. जो सिद्धांत आगे चलकर गलत पाए जाते हैं, उन्हें छोड़ दिया जाता है. वैज्ञानिक अनुसंधान एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है. विज्ञान प्रकृति के रहस्यों को उद्घाटित करता है. पंडित जवाहरलाल नेहरु ने लिखा है- 'Science illuminates dark corners of life'. विज्ञान प्रकृति के रहस्यों को समझकर उनका उपयोग मानव जीवन को सार्थक बनाने के लिए करता है. आज सभ्यता जिस विकास की स्थिति में पहुंची है, वह विज्ञान की देन है. विद्युत, हवाई जहाज, रेलवे, बीमारियों के इलाज के लिए नई-नई दवाईयों और यंत्रो का आविष्कार विज्ञान के माध्यम से संभव हुआ है. आज विज्ञान ब्रम्हांड के रहस्यों को जानने में लगा हुआ है. मानव जीवन को सुखमय और जीने लायक बनाने में विज्ञान की मुख्य भूमिका रही है. आध्यात्मिक ज्ञान अगर तथाकथित परलोक, जिसके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है, की चिंता करता है, तो विज्ञान इस लोक की चिंता करता है. अगर हम पलायनवाद, कर्मकांड, अंधविश्वास को छोड़ दें, तो ज्ञान और विज्ञान का समन्वय संभव है.
इससे अलग, प्रकृति के नियमों का भी हमें ख्याल रखना होगा. विकासवाद के सिद्धांत को अनदेखा नही किया जा सकता. धर्म और विज्ञान को ध्यान में रखकर हमें सामान्य व्यवहार की ऐसी मर्यादाएं स्थापित करनी होंगी. एक ऐसी लक्ष्मण रेखा खींचनी होगी, जिसका सब लोग अनुपालन करें. एक स्वस्थ सामाजिक व्यवस्था के लिए यह अनिवार्य है.
भगवान का स्वरुप
भगवान के अस्तित्व और सत्ता को लेकर अनेक आशंकाएं मेरे और सभी के मस्तिष्क को उद्द्वेलित करती रहती है. हमारी जानकारी के मुताबिक़ भगवान भी कई हैं. हिन्दुओं के ईश्वर या भगवान हैं, तो मुसलामानों के अल्लाह, सिक्खों के वाहे गुरु और ईशाईयों के गाड इत्यादि इत्यादि. हर तरह के भगवानों को लेकर उनके आकार प्रकार, डील डौल, लम्बाई चौड़ाई, रूप रंग, वेश भूषा, आहार विहार, व्यवहार के बारे में असमंजस की स्थिति उत्पन्न होती है. भगवानों को लेकर एक परिकल्पना उभरती है. हिन्दुओं में तो विभिन्न भगवानों को आकार, प्रकार, निश्चित वेश भूषा में एक विशेष रहने के स्थान में बताया जाता है. गाड को यूरोपियनों की तरह लंबा चौड़ा, गोरा चिटठा, सूट बूट, टाई हैट में और इंग्लिश बोलने वाला होना चाहिए. अल्लाह का अगर कोई भौतिक स्वरुप हुआ तो उन्हें लंबी दाढ़ी वाला, पतली मोहरी के पायजामे और कुर्ता में, तुर्की टोपी लगाए हुए अरबी, फ़ारसी या उर्दू बोलने वाला होना चाहिए. वाहे गुरु नान वेजीटेरियन होने की कल्पना की जा सकती है. हिंदू देवी देवताओं के आहार के बारे में भ्रम की स्थिति है. हिंदुओं में एक मायने में स्थिति बेहतर है कि देवियों को भी उचित स्थान दिया गया है. उनकी अनदेखी नहीं की गई है. कभी कभी तो देवियाँ देवताओं पर भी भारी पड़ती हैं. समस्या हिंदू देवी देवताओं की जनसंख्या को लेकर आती है.
ये असख्य है. इनकी असली जनसंख्या पता कर पाना लगभग असंभव है. बताया जाता है कि हिन्दू देवी देवताओं की संख्या 33 कोटि या करोड़ है. मगर मान भी लिया जाय कि हिंदू देवी देवताओं की जनसंख्या स्थिर है, तो भी इतनी बड़ी जनसंख्या की बिजली, पानी, सड़क, परिवहन, ऊर्जा, स्वास्थ्य, शिक्षा, क़ानून व्यवस्था, आवास की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उचित प्रबंधन कर पाना निश्चित ही अत्यंत दुरूह कार्य होगा. इतनी बड़ी जनसंख्या का आवास कहाँ होगा, यह भी रहस्यमय है. इनकी जीवन मृत्यु भी होती है कि नहीं, बीमार पड़ने पर चिकित्सा की क्या व्यवस्था होती होगी, यह सब रहस्यमय है. हमारे देवी देवताओं के आवास एवं परिधान को लेकर भी विचित्र स्थिति है. हमारे सभी देवी देवताओं को रत्न जटित सोने का मुकुट पहना दिया जाता है. भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शैया पर विश्राम कर रहे हैं और लक्ष्मी जी उनके पैर दबा रही हैं, मानो विष्णु जी के पास विश्राम करने के अलावा कोई काम ही न हो. शिव भगवान बिच्छु, सांप लपेटे कैलाश पर्वत पर विराजमान हैं. कई देवी देवता पहाड़ की गुफा/कन्दरा में रह रहे हैं.
स्वर्ग और देवताओं के राजा इंद्र हैं. इंद्र सबसे कायर और डरपोक देवता हैं. राक्षसों द्वारा हमला किए जाने पर ये कभी विष्णु जी, कभी शिव जी और कभी दुर्गा जी की शरण में हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं. हमारे देवताओं के पास आधुनिक वाहनों का भी अभाव है. विष्णु जी गरुण की सवारी करते हैं तो शिव जी नंदी की. इंद्र ऐरावत हाथी की सवारी करते हैं. शायद यही कारण है कि ये जरूरत के वक्त जरूरत की जगह पर नहीं पहुँच पाते. भगवान जी जिस तरह से दुनिया का प्रबंधन कर रहे हैं, उससे ज्यादा आशावान नहीं हुआ जा सकता. भगवान जी का संसार का प्रबंधन बहुत ही खराब है. संसार में चारों ओर अराजकता, अत्याचार, अनाचार, चोरी, लूटमार, ह्त्या, व्याभिचार, भ्रष्टाचार का बोलबाला है. भगवान जी की प्रबंधन क्षमता पर एक बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह लगता है. ईश्वर, अल्लाह, गाड, वाहेगुरु, और अन्य सभी भगवानों के पारस्परिक संबंध, आपसी व्यवहार कैसा होगा, यह भी विचारणीय हैं. ये लोग जब आपस में मिलते होंगे तब किस भाषा में, क्या बात करते होंगे ? आशा है इनके आपसी संबंध सुमधुर और सौहार्द्रपूर्ण ही होंगे. बाक़ी भगवान जाने.
डॉ.एस.शंकर सिंग
नव भारत टाईम्स (ब्लॉग)
दिनांक 05 दिसंबर, 2012 से साभार
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