ऋग्वेद में एक व्यक्ति, एक स्थान में कहता है कि मै मन्त्रों की रचना करता हूँ | मेरे पिता चिकित्सक हैं | मेरी माता गेंहूँ आटा पीसने का कार्य करती है | इससे यह स्पष्ट होता है कि जातिगत भेद-भाव स्वार्थवश कथित विशिष्ट वर्ग के द्वारा थोपी गई है | विश्व प्रशिद्ध इतिहासकार पेंका का मत है कि आर्यों ने यूरेशिया (मध्य यूरोप एवं एशिया) के वोल्गा नदी के कछार से लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व जम्बूद्वीप (शंभू द्वीप, गोंडवाना लैंड), रेवाखंड में प्रवेश किया | तब सम्पूर्ण भारत गोंडवाना लैंड कहलाता था | वृहद गोंडवाना लैंड में दक्षिणी गोलार्ध- आस्ट्रेलिया, अफ्रिका, दक्षिण अमेरिका, अंटार्कटिका, जावा, सुमात्रा द्वीप समूह जुड़ा था | यह भूगोल वेत्ताओं ने स्पष्टतः स्वीकार लिया है, क्योंकि यहाँ जो यूकेलिप्टस के वृक्ष पाए जाते हैं, जिसे नीलगिरी भी कहते हैं, आस्ट्रेलिया से भारत लाया गया था, ऐसी मान्यता थी जो कि अब निर्मूल सिद्ध हो चुकी है, वस्तुतः मध्यप्रदेश में नदियों के कछारों में पाए गए जीवाश्म यूकेलिप्टस के ही हैं और सम्पूर्ण भारत में इन महा भूखंडों के प्राणी, वनस्पति के जीवाश्म पाए जाते हैं, वे एक सामान हैं |
यूरेशिया में प्रवासियों ने इस संस्कृति के सभ्य धरती पर किस प्रकार प्रवेश किया, किस तरह यहाँ के निवासियों को उंच-नीच का भेदभाव डालकर, दस्तावेज और ग्रन्थ लिखकर वर्चस्व कायम किया | इनके विवेकपूर्ण अध्ययन और विश्लेषण से इन तथ्यों को ज्ञात किया जा सकता है | उनके द्वारा रचित इतिहास इस बात का प्रमाण है कि यहाँ पर ही अपना रक्त संबंध और नश्ल भी मिलाने में कामयाब हो गए | आर्य और अनार्य जैसी भिन्न प्रकृति के संस्कृतियों से हिंदू संस्कृति के वर्ण व्यवस्था का निर्माण किया | वही ग्रन्थ वर्ण व्यवस्था और आर्यों के सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक सत्ता कायम करने का अनुकूल अस्त्र बने | आर्यों द्वारा निर्मित धर्म के प्रचार स्तंभ, मंदिर, धाम, पीठ की स्थापना कर इस धरती के मूलनिवासियों को स्वीकार कराने का राज्य आश्रय तथा सत्ता प्रमुख को अपने बस में कर इस धरती के मूलनिवासियों को स्वीकार कराने का राज्य आश्रय तथा सत्ता प्रमुख को अपने बस में कर सम्पूर्ण समाज को अपने कब्जे में किया गया |
यूरेशिया में प्रवासियों ने इस संस्कृति के सभ्य धरती पर किस प्रकार प्रवेश किया, किस तरह यहाँ के मूल निवासियों को उंच-नीच का भेदभाव डालकर दस्तावेज और ग्रन्थ लिखकर वर्चस्व कायम किया | इनके विवेकपूर्ण अध्ययन और विश्लेषण से इन तथ्यों को ज्ञात किया जा सकता है | इनके द्वारा रचित इतिहास इस बात का प्रमाण है कि यहाँ पर ही छल से अपना रक्त संबंध और नश्ल भी मिलाने में कामयाब हो गए | आर्य और अनार्य जैसी भिन्न प्रकृति के संस्कृतियों से हिन्दू संस्कृति के वर्ण व्यवस्था का निर्माण किया | वही ग्रन्थ वर्ण व्यवस्था और आर्यों के सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक सत्ता कायम करने का अनुकूल अस्त्र बने | आर्यों द्वारा निर्मित धर्म के प्रचार स्तंभ मंदिर, धाम, पीठ की स्थापना कर इस धरती के मूल निवासियों को स्वीकार कराने का राज्य आश्रय तथा सत्ता प्रमुख को अपने बस में कर संपूर्ण समाज को अपने कब्जे में किया गया |
उन ग्रंथों में अपने ही वर्ग के हित साधन तथा उनकी ही भलाई हो, पूजा हो, इसलिए यह इतनी सफाई से छल, बल, ईर्ष्या, कपट के भेद भाव से यहाँ लोगों को असभ्य या संस्कारहीन का दर्जा देकर उन परिस्थितियों का निर्माण किया गया, जिससे यहाँ के मूल निवासी अपना सबकुछ भूलकर मोहवश उनका अनुशरण करते हैं | सैकड़ों वर्ष पूर्व इस धरा के गोंड आदिवासी मूल निवासी दैत्य, दानव, राक्षस, भूत, पिशाच और निशाचर कहलाते थे | इनके धर्मग्रन्थों में वर्णित विलेख आज भी सबूत के तौर पर मौजूद हैं | प्राचीन काल से अब तक इनके धर्मग्रंथों के ये शब्द आदिम जनों के साथ मात्र द्वेष और घृणा के द्योतक हैं |
क्या आपने कभी इस विषय पर चिंतन किया है कि हमें आदिवासी क्यों कहा गया है ? यह मूल वंशियों का देश गोंडवाना कहलाता था | यहाँ पर निवास करने वालों को गोंड कहा जाता था, किन्तु हम उस "गोंड" और उसके "गोंडवाना" धरा के गौरव को भुला दिया है | आर्यों के तिलिस्मी वर्ण व्यवस्था, ढ़ाचा का खाल ओढ़कर, संपन्न व्यक्ति दानी बन गए, दानियों के सुरक्षा में लगे क्षत्रीय, मध्यम वर्ग व्यवसायी और शेष शूद्र | आर्थिक रूप से कमजोर को शूद्र की श्रेणी में समझने लगे | यहाँ के मूल निवासी गोंड लोग वर्ण व्यवस्था से अलग हैं | उनकी संस्कृति, परंपराएं, प्रथाएं, धर्म, भाषा आर्यों से भिन्न हैं | इसके बावजूद यह सच है कि कोई जाति पूछता है उसे यूँ ही टाल देते हैं अथवा संकोचवश अपनी जाति या समुदाय का नाम बताने में सकुचाते हैं | वर्ण व्यवस्था के उंच नीच का ज्ञान बोध हो जाने के कारण समुदाय का नाम बताने में अपराध बोध का चादर ओढ़कर ठाकुर या सामान्य प्रचलित सरनेम (उपनाम) का आड़ लेकर कितने उपाय ढूँढने का उपक्रम करते हैं | हमें अपना मूल उपत्पत्तिक समुदाय का नाम, गोत्रनाम बताने में संकोच क्यों ? कोई गलत कार्य तो कर नहीं रहे हैं ! यह हमारी सबसे बड़ी भूल है | हमें गर्व से अपना नाम, गोत्र नाम और अपने मूल उत्पत्तिक समुदाय का नाम गौरवान्वित होकर बताना चाहिए, जैसे जैसे आर्य लोग बताते हैं | इस देश में अपना प्रथम हक़ बनता है कि हम अपनी माँ की गोद में हैं, अपने घर, अपने जमीन पर हैं | हम आर्यों की तरह अप्रवासी अथवा शरणार्थी तो कदापि हैं नहीं |
आत्मविश्वास और अपने सच्चाई के आदर्श हमारे रगों में हैं | हमारी आत्मशक्ति में इस धरती का रक्त प्रवाहित होता है | फिर भी हम सच्चाई और इमानदारी की संस्कार को झुठलाने वाले नाकामयाब उद्देश्य का सहारा लेते हैं | अपने विशिष्ट गुण और भोलेपन की खास पहचान को झुठलाने का प्रयास करते हैं | वर्तमान में ऐसे अनेकों उदाहरण हैं |
सच्चाई से आदिवासी इतना लबरेज है कि यदि ह्त्या का अपराध भी किया तो हथियार सहित थाने के सामने जा खड़ा होता है और जैसा किया वैसा पुलिस को बता देता है | बस्तर की एक घटना इसी प्रकार है | एक आदिवासी ने विवाद बढ़ने पर एक व्यक्ति को कोल्हाडी से जान से मार डाला | जब थाने को सूचना मिली तो थानेदार तीन सिपाहियों सहित उस आदिवासी के घर पहुच गया | थानेदार पियक्कड़ था | उसने आदिवासी के घर पहुँचते ही दारू की मांग की | थानेदार, सिपाही और आदिवासी मिलकर खूब दारु पिए | थानेदार इतना पी गया कि खड़े होना मुश्किल | शाम होने को चली थी | थाना भी पहुंचना था | ऐसी स्थिति में सिपाहियों ने और उस आदिवासी ने थानेदार को खाट में लिटाकर थाना पहुंचाए | थानेदार को जब तक होस नही आया तब तक वह आदिवासी थाने में ही कुल्हाड़ी को लेकर बैठा रहा | यही है सच्चाई और इमानदारी की जड़ता | किए हैं तो किए हैं, नहीं किए हैं तो नहीं किए हैं | वचन से पत्थर की लकीर होते हैं | जमीन फटे या आसमान गिरे | दुनिया की कोई ताकत उनके सत्य वचन को झुठला नहीं सकती | ऐसा उदाहरण किसी मानव समाज में देखने को कदापि नहीं मिलेगा | ऐसे आदर्श के होते हुए ही आदिवासी दूसरों का शिकार बन रहा है | आर्यों के कुटिल चाल में फंसकर जन्म से मृत्यु तक शोषण के चक्र में बंध गया है | मानव समाज में, राज्य सत्ता में, धर्म में, सामाजिक, सांकृतिक, आर्थिक विकास की योजनाएं बनती है मूलनिवासियों के लिए, किन्तु सुख भोगते हैं आर्य लोग !!
यूरेशिया में प्रवासियों ने इस संस्कृति के सभ्य धरती पर किस प्रकार प्रवेश किया, किस तरह यहाँ के निवासियों को उंच-नीच का भेदभाव डालकर, दस्तावेज और ग्रन्थ लिखकर वर्चस्व कायम किया | इनके विवेकपूर्ण अध्ययन और विश्लेषण से इन तथ्यों को ज्ञात किया जा सकता है | उनके द्वारा रचित इतिहास इस बात का प्रमाण है कि यहाँ पर ही अपना रक्त संबंध और नश्ल भी मिलाने में कामयाब हो गए | आर्य और अनार्य जैसी भिन्न प्रकृति के संस्कृतियों से हिंदू संस्कृति के वर्ण व्यवस्था का निर्माण किया | वही ग्रन्थ वर्ण व्यवस्था और आर्यों के सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक सत्ता कायम करने का अनुकूल अस्त्र बने | आर्यों द्वारा निर्मित धर्म के प्रचार स्तंभ, मंदिर, धाम, पीठ की स्थापना कर इस धरती के मूलनिवासियों को स्वीकार कराने का राज्य आश्रय तथा सत्ता प्रमुख को अपने बस में कर इस धरती के मूलनिवासियों को स्वीकार कराने का राज्य आश्रय तथा सत्ता प्रमुख को अपने बस में कर सम्पूर्ण समाज को अपने कब्जे में किया गया |
यूरेशिया में प्रवासियों ने इस संस्कृति के सभ्य धरती पर किस प्रकार प्रवेश किया, किस तरह यहाँ के मूल निवासियों को उंच-नीच का भेदभाव डालकर दस्तावेज और ग्रन्थ लिखकर वर्चस्व कायम किया | इनके विवेकपूर्ण अध्ययन और विश्लेषण से इन तथ्यों को ज्ञात किया जा सकता है | इनके द्वारा रचित इतिहास इस बात का प्रमाण है कि यहाँ पर ही छल से अपना रक्त संबंध और नश्ल भी मिलाने में कामयाब हो गए | आर्य और अनार्य जैसी भिन्न प्रकृति के संस्कृतियों से हिन्दू संस्कृति के वर्ण व्यवस्था का निर्माण किया | वही ग्रन्थ वर्ण व्यवस्था और आर्यों के सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक सत्ता कायम करने का अनुकूल अस्त्र बने | आर्यों द्वारा निर्मित धर्म के प्रचार स्तंभ मंदिर, धाम, पीठ की स्थापना कर इस धरती के मूल निवासियों को स्वीकार कराने का राज्य आश्रय तथा सत्ता प्रमुख को अपने बस में कर संपूर्ण समाज को अपने कब्जे में किया गया |
उन ग्रंथों में अपने ही वर्ग के हित साधन तथा उनकी ही भलाई हो, पूजा हो, इसलिए यह इतनी सफाई से छल, बल, ईर्ष्या, कपट के भेद भाव से यहाँ लोगों को असभ्य या संस्कारहीन का दर्जा देकर उन परिस्थितियों का निर्माण किया गया, जिससे यहाँ के मूल निवासी अपना सबकुछ भूलकर मोहवश उनका अनुशरण करते हैं | सैकड़ों वर्ष पूर्व इस धरा के गोंड आदिवासी मूल निवासी दैत्य, दानव, राक्षस, भूत, पिशाच और निशाचर कहलाते थे | इनके धर्मग्रन्थों में वर्णित विलेख आज भी सबूत के तौर पर मौजूद हैं | प्राचीन काल से अब तक इनके धर्मग्रंथों के ये शब्द आदिम जनों के साथ मात्र द्वेष और घृणा के द्योतक हैं |
क्या आपने कभी इस विषय पर चिंतन किया है कि हमें आदिवासी क्यों कहा गया है ? यह मूल वंशियों का देश गोंडवाना कहलाता था | यहाँ पर निवास करने वालों को गोंड कहा जाता था, किन्तु हम उस "गोंड" और उसके "गोंडवाना" धरा के गौरव को भुला दिया है | आर्यों के तिलिस्मी वर्ण व्यवस्था, ढ़ाचा का खाल ओढ़कर, संपन्न व्यक्ति दानी बन गए, दानियों के सुरक्षा में लगे क्षत्रीय, मध्यम वर्ग व्यवसायी और शेष शूद्र | आर्थिक रूप से कमजोर को शूद्र की श्रेणी में समझने लगे | यहाँ के मूल निवासी गोंड लोग वर्ण व्यवस्था से अलग हैं | उनकी संस्कृति, परंपराएं, प्रथाएं, धर्म, भाषा आर्यों से भिन्न हैं | इसके बावजूद यह सच है कि कोई जाति पूछता है उसे यूँ ही टाल देते हैं अथवा संकोचवश अपनी जाति या समुदाय का नाम बताने में सकुचाते हैं | वर्ण व्यवस्था के उंच नीच का ज्ञान बोध हो जाने के कारण समुदाय का नाम बताने में अपराध बोध का चादर ओढ़कर ठाकुर या सामान्य प्रचलित सरनेम (उपनाम) का आड़ लेकर कितने उपाय ढूँढने का उपक्रम करते हैं | हमें अपना मूल उपत्पत्तिक समुदाय का नाम, गोत्रनाम बताने में संकोच क्यों ? कोई गलत कार्य तो कर नहीं रहे हैं ! यह हमारी सबसे बड़ी भूल है | हमें गर्व से अपना नाम, गोत्र नाम और अपने मूल उत्पत्तिक समुदाय का नाम गौरवान्वित होकर बताना चाहिए, जैसे जैसे आर्य लोग बताते हैं | इस देश में अपना प्रथम हक़ बनता है कि हम अपनी माँ की गोद में हैं, अपने घर, अपने जमीन पर हैं | हम आर्यों की तरह अप्रवासी अथवा शरणार्थी तो कदापि हैं नहीं |
आत्मविश्वास और अपने सच्चाई के आदर्श हमारे रगों में हैं | हमारी आत्मशक्ति में इस धरती का रक्त प्रवाहित होता है | फिर भी हम सच्चाई और इमानदारी की संस्कार को झुठलाने वाले नाकामयाब उद्देश्य का सहारा लेते हैं | अपने विशिष्ट गुण और भोलेपन की खास पहचान को झुठलाने का प्रयास करते हैं | वर्तमान में ऐसे अनेकों उदाहरण हैं |
सच्चाई से आदिवासी इतना लबरेज है कि यदि ह्त्या का अपराध भी किया तो हथियार सहित थाने के सामने जा खड़ा होता है और जैसा किया वैसा पुलिस को बता देता है | बस्तर की एक घटना इसी प्रकार है | एक आदिवासी ने विवाद बढ़ने पर एक व्यक्ति को कोल्हाडी से जान से मार डाला | जब थाने को सूचना मिली तो थानेदार तीन सिपाहियों सहित उस आदिवासी के घर पहुच गया | थानेदार पियक्कड़ था | उसने आदिवासी के घर पहुँचते ही दारू की मांग की | थानेदार, सिपाही और आदिवासी मिलकर खूब दारु पिए | थानेदार इतना पी गया कि खड़े होना मुश्किल | शाम होने को चली थी | थाना भी पहुंचना था | ऐसी स्थिति में सिपाहियों ने और उस आदिवासी ने थानेदार को खाट में लिटाकर थाना पहुंचाए | थानेदार को जब तक होस नही आया तब तक वह आदिवासी थाने में ही कुल्हाड़ी को लेकर बैठा रहा | यही है सच्चाई और इमानदारी की जड़ता | किए हैं तो किए हैं, नहीं किए हैं तो नहीं किए हैं | वचन से पत्थर की लकीर होते हैं | जमीन फटे या आसमान गिरे | दुनिया की कोई ताकत उनके सत्य वचन को झुठला नहीं सकती | ऐसा उदाहरण किसी मानव समाज में देखने को कदापि नहीं मिलेगा | ऐसे आदर्श के होते हुए ही आदिवासी दूसरों का शिकार बन रहा है | आर्यों के कुटिल चाल में फंसकर जन्म से मृत्यु तक शोषण के चक्र में बंध गया है | मानव समाज में, राज्य सत्ता में, धर्म में, सामाजिक, सांकृतिक, आर्थिक विकास की योजनाएं बनती है मूलनिवासियों के लिए, किन्तु सुख भोगते हैं आर्य लोग !!
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