पी.एन.बैफलावत
हमारे एक देवी सरस्वती जी को भारत के लोगों को शिक्षित करने का ठेका 4000 साल से मिला हुआ है, पर वो अभी तक भारत के लोगों को 100% साक्षर भी नही कर पाईं, जबकी विश्व के 100 से अधिक देश जो ईसाई और मुश्लिम धर्म को मानते हैं, जहां इस विद्या की देवी सरस्वती का अस्तित्व भी नहीं हैं, फिर भी 100% साक्षर हैं, यह क्या है ?
क्या आपके मन में यह यक्ष प्रश्न नहीं उठता, कि वैदिक काल और अंग्रेजों के आने तक तो यह सरस्वती इन द्विज लोगों के गले में ही क्यों बसती थी ? अंग्रेजों ने सबके लिए शिक्षा के प्रयास और ज्योतिबाफुले दंपत्ति के प्रयास से शूद्र कहलाने वाले देश के लोगों के गले में बसना भी प्रारम्भ कर दिया. ये सब क्या है, जो हम इन धूर्त लोगों का विश्वास कर सरस्वती को विद्या की देवी मानते आ रहे हैं ? हम इन धूर्त लोगों के चंगुल से अपने आप को कब तक मुक्त कर पायेंगे, इस पर गंभीरता से विचार करो.
यह प्रश्न उठता है कि सरस्वती विद्या की देवी हैं, तो सिर्फ भारतीयों के लिए ही या भारत के बाहर के विदेशियों के लिए भी ? विदेशों में सरस्वती का कहीं नामोनिशान नहीं है. तब हम ऐसा क्यों नही कहते कि सरस्वती सिर्फ भारतीयों के लिए विद्या की देवी है ? शिक्षा की क्या स्थिति अपने देश में तथा विदेशों में हैं, इसका आंकड़ा देकर सरस्वती के द्वारा शिक्षा की देन पर मै बात करना बेहतर समझूंगा.
हिन्दू मानसिकता इस्लाम धर्म को अपना विरोधी मानती रही है. इस्लाम प्रधान देशों पर तो किसी सरस्वती को विद्या की देवी की कृपा होने का प्रश्न ही नहीं है. आज की तारीख में अजरबैजान, अल्जीरिया, उजबेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किरजिस्तान, तुर्की, कुवैत, जोर्डन, तजाकिस्तान, बहरीन, मालदीव आदि इस्लाम धर्म प्रधान देश हैं. इन इस्लामिक देशों में शिक्षा की दर शत प्रतिशत है. बिना विद्या की देवी सरस्वती के इन देशों के नागरिकों ने शत प्रतिशत शिक्षा हासिल की है.
चीन, जापान, उत्तरी कोरिया, दक्षिण कोरिया, ताईवान, थाईलेंड, भूटान, मंगोलिया, बर्मा, वियतनाम आदि बौद्ध धर्म प्रधान देश हैं. इन बौद्ध धर्म प्रधान देशों के लोग पूर्णरूपेण अनीश्वरवादी नास्तिक हैं. उन्हें शिक्षा की किसी देवी सरस्वती से कोई लेना देना नहीं है. मगर इन बौद्ध प्रधान देशों के लोग शत प्रतिशत शिक्षित हैं. सैकड़ों ईसाई देशों के लोग शत प्रतिशत शिक्षित हैं. आधुनिक युग में शिक्षा के स्त्रोत ईसाई प्रधान देश ही रहे हैं, खासकर ब्रिटेन की ईसाई मिशनरी. इन सब देशों से अलग भारत और नेपाल हिन्दू धर्म प्रधान देश हैं, जहां के बच्चे रात दिन सरस्वती की वंदना करते रहते हैं. आप सभी को पता है कि भारत और नेपाल हिन्दू धर्म प्रधान देशों में शिक्षा की क्या प्रतिशत है.
सरस्वती विद्या की देवी जरूर है, मगर यह ऐसी देवी रही, जिसे ब्राम्हणों को छोड़कर सभी अछूत नजर आये, उनके कंठों में विराजना अपना अपमान समझती रही. उनको अशिक्षित करती रही और ब्राम्हणों को शिक्षित. आज भारत में शिक्षा की जो सुधरी हुई स्थिति है, वह सरस्वती नहीं माता सावित्री बाई फुले की देन है. आम लोगों की शिक्षा के जनक और जननी तो महामना ज्योतिबा फुले और माता सावित्री बाई फुले हैं. अंग्रेज मैकाले की शिक्षा प्रसार नीति की जड़ में फुले दंपत्ति थे. उनका पूरा समर्थन और सहारा लेकर लार्ड मैकाले ने भारत में शिक्षा का प्रसार किया.
अतः हमें ज्योतिबा फुले दंपत्ति को नमन करना चाहिए. भारत में ज्योतिबा तथा सावित्री बाई फुले ने दबे कुचले लोगों एवं स्त्री शिक्षा प्रारम्भ करके नई युग की नीव डाली. नारी समता का भारत में यह प्रथम प्रयास था और यही स्त्री मुक्ति आंदोलन का इतिहास बनता है. इसी कड़ी में फुले दंपत्ति ने 18 स्कूल खोले. अनेकानेक व्यंग बाणों, बाधाओं, कठिनाईयों और लांछनों को सहते हुए भी शूद्रातिशूद्रों एवं स्त्री वर्ग को ज्ञान दान देने वाले व्यक्तित्व द्वारा सावित्री बाई ने यह साबित कर दिया कि वही नवजागरण काल की प्रथम भारतीय समाज सेविका अध्यापिका है, जिसने आने वाली पीढ़ियों के लिए दीप स्तंभ बनकर पथ प्रदर्शन किया. सावित्री बाई फुले वैदिक काल से शिक्षा के वंचित वर्गों के वास्तविक सरस्वती थी. महाराष्ट्र के सतारा जिले में सावित्री बाई का जन्म 3 जनवरी, 1831 में हुआ. इनके पिता का नाम खंडोजी नवसे पाटिल और माँ का नाम लक्ष्मी था. सन 1840 में 9 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह पूना के ज्योतिबा फुले के साथ हुआ.
सच पूछा जाए तो विद्या व ज्ञान की देवी का नाम सरस्वती न होकर सावित्री बाई फुले है, था और रहेगा. क्या आप सहमत हो ? ऐसी महान देवी को उनके जन्मदिवस पर हार्दिक नमन.
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