शनिवार, 19 जनवरी 2013

गोंडी धर्म और विश्व शान्ति

                 मानव जीवन को सौम्य और सुसंस्कृत बनाने वाले जीवन मार्ग को ही धर्म कहते हैं. आज विश्व में अनगिनत धर्म, पंथ विकसित हो गए हैं जो अपने आप को अलग और श्रेष्ठ धर्म की संज्ञा से विभूषित करते हैं. हिन्दू, इस्लाम, ईसाई, सिक्ख, यहूदी आदि धर्म अपने आप को श्रेष्ठ बताकर वर्चस्व कायम रखना चाहते हैं. इन धर्मों के अपने अपने ग्रन्थ हैं और ये ग्रन्थ मानव रचित हैं. इन ग्रंथों में मनुष्य के विचार और कल्पनाओं के संग्रह हैं. अलग-अलग धर्मग्रंथ अलग-अलग मनुष्यों के विचार और उनकी कल्पनाओं को व्यक्त करते हैं. प्रत्येक मनुष्यों के विचार और कल्पनाएँ अलग-अलग होती हैं. एक व्यक्ति की कल्पनाएँ अन्य व्यक्तियों को पसंद नहीं आती. इसलिए धर्मावलंबियों में मतभेद है. विश्व के जितने भी धर्म कल्पना पर आधारित हैं वे सभी बल पूर्वक या छलपूर्वक लादे गए हैं. ये  धर्मावलम्बी यह जानते हुए भी कि अमुक मान्यता कपोल कल्पित है, फिर भी भयवश अंधानुकरण करते चले जाते हैं. इन धर्मों के ठेकेदारों ने स्वर्ग-नरक का भय बताकर धर्म के पक्ष-विपक्ष में तर्क करने की योजना को ही निरस्त कर दिया है और उन खोखले धर्मों के पक्ष में आँख बंद करके गुणगान करने का ही मार्ग प्रशस्त किया है. आखिर वे अपने धर्म की आलोचना से इतने घबराते क्यों हैं कि आलोचना करने वालों के लिए तलवार लेकर उठ खड़े हो जाते हैं ! जबकि शाश्वत सत्य पर तो आलोचना का प्रभाव ही नहीं पड़ता. शाश्वत सत्य धर्म वही है, जो निर्विवाद हो और निर्विवाद केवल प्रकृति ही है.


          प्राचीन काल के अनार्यों ने आर्यों के यज्ञविधान (अन्न जारण प्रथा) का विरोध किया सो आर्यों ने अनार्यों के संस्कृति और वैभव को मिटा देने का संकल्प लिया. इसी तारतम्य में बौद्धों की भी बड़ी तादात में हत्या किये. इसी प्रकार ईसाई और इस्लाम में भी धर्म को लेकर मारकाट, हत्याएं होती रहती है. जिस धर्म के नाम पर एक मानव दूसरे मानव के रक्त का प्यासा हो वह धर्म नहीं है. ऐसी धर्म की उपस्थिति में विश्व शान्ति स्थिति नहीं बन सकती. संकीर्ण विचारधारा को धर्म का नाम देकर विश्व शान्ति की दुहाई देना निरा मूर्खता है. आज सभी सुसंस्कृत कहे जाने वाले अधिकांश विधर्मी कुत्ते, बिल्लियों को तो बिस्तर में सुलाते हैं. अपनी थाली में खाना खिलते हैं और अन्य वर्गों के मनुष्यों की छाया को स्पर्श करने से भी परहेज करते हैं. उनका स्पर्श किया हुआ भोजन त्याज्य है, परन्तु उन्ही का कमाया हुआ अनाज त्याज्य नहीं है. सबसे आश्चर्य की बात यह है कि जिस वर्ग के मनुष्य को छूना पाप समझते हैं, उसी वर्ग की महिलाओं से बलात्कार करना त्याज्य नहीं है.


          हिन्दू धर्म ग्रंथों में लिखा है कि उनके धर्म के विषय में सन्देश करना पाप है. ऐसा करने वाला अंत में नरक में जाता है. वहाँ उन्हें अनेक यातनाएं दी जाती है. इस धर्म को मानने वाला स्वर्ग जाता है. वहाँ उसे देवी देवताओं के सामान सुख मिलता है. सच तो यह है कि हिन्दू ग्रंथों में जो स्वर्ग नरक की बात लिखी गई है, वह कोरी कल्पना है. वर्तमान युग में अन्तरिक्ष के विभिन्न ग्रह-उपग्रहों की जानकारी प्राप्त कर ली गई है परन्तु स्वर्ग और नरक नामक ग्रहों का कहीं भी पता नहीं है. हिन्दू ग्रंथों में आर्यों और अनार्यों के युद्ध का वर्णन अनार्य राजाओं की हत्या, उनकी संस्कृति का विध्वंश, यज्ञ विधान (अन्न जारण प्रथा) का प्रचार, नायक नाईकाओं का मिलन एवं विरह आदि का ही वर्णन है, इनके सिवा कुछ भी नहीं है. फिर भी बहकावे में आकर भयवश लोग उन्ही को धर्मग्रंथ समझकर पूजते हैं. आज तक लोगों को उस धर्म से क्या मिला है ? भेदभाव, तिरस्कार, साम्प्रदाईकता, गरीबी बस.


          आज विश्व स्तर पर सर्वत्र अशांति है. सभी जगह युद्ध की आशंकाएं  हर समय बनी रहती है. अधिकांश युद्ध, मार-काट और मतभेद धर्म के नाम पर ही होते हैं. धार्मिक मतभेद और युद्ध संकीर्ण मान्यताओं के कारण होते हैं. आज विश्व में जितने छोटे-बड़े सम्प्रदाय हैं, उनकी मान्यताएं एक-दूसरे  से नहीं मिलती. इसलिए वे सर्वमान्य एवं सार्वभौमिक नहीं हो सकते. जब तक एक सर्वमान्य और सार्वभौमिक धर्म अस्तित्व में नहीं होगा और उससे सब लोग परिचित होकर उसकी मान्यताओं को आत्मसात नहीं करेंगे तब तक विश्व शान्ति स्थापित नहीं हो सकती. एक सर्वमान्य एवं सार्वभौमिक धर्म का निर्माण करना आज मनुष्य के बूते की बाहर की बात है, क्योंकि सभी मनुष्यों के विचार अलग-अलग होते हैं. इस प्रकार का धर्म विश्व में एक ही है जो सर्वमान्य एवं सार्वभौम को कायम रख सकता है. वह है "कोया पूनम". इस धर्म के सभी नीति नियम और मान्यताएं मानव निर्मित नहीं हैं, वरण प्रकृति पर आधारित है. प्रकृति के नियम क्षेत्रीयता, जातीयता, साम्प्रदायिकता आदि संकीर्णताओं से मुक्त एक सार्वभौमिक नियम है. वर्षा, ठण्ड, धूप सभी मनुष्यों पर सामान रूप से प्रभाव डालते हैं. वे किसी धर्म या जाति के लिए नहीं होते. इसी प्रकार प्रकृति के समस्त गतिविधियों का प्रभाव समस्त चर-अचर, जड़-चेतन प्राणियों पर पड़ता है. हम सब उसी प्रकृति के अवयव हैं. प्राकृतिक तत्वों से हमारा शरीर निर्मित है. इसलिए हम इस प्रकृति के एक ही नियम से संचालित हो सकते हैं.


          यदि प्रकृति के इन नियमों को विश्व में सर्वत्र अनुकरण करें तो राष्ट्रों को सुरक्षा सम्बन्धी हथियारों का बजट समाप्त कर देना पड़ेगा, क्योंकि सभी सत्य ज्ञान संपन्न होकर एक दूसरे का सहयोग और सेवा करेंगे तथा वैमनष्यता समाप्त हो जाएगी. ईर्ष्या, द्वेष, युद्ध विध्वंश, साम्प्रदायिकता आदि शब्द लुप्त हो जायेंगे. जिस प्रकार आकाशीय पिंड अपने अपने परिपथ में घुमते हुए आपस में नहीं टकराते. इसी प्रकार हम भी सही रास्ते पर चलते हुए आपस में नहीं टकरायेंगे तब विश्व में शान्ति और सुव्यवस्था स्थापित हो सकती है. यदि विश्व के सभी देश अपने अपने संकीर्ण साम्प्रदायिकता के दायरे में रहकर विश्व शान्ति की बातें करते हैं तो वे अरण्य रोदन के शिवा कुछ नहीं कर रहे हैं. कोया पूनम की मान्यताओं से विश्व में झगड़े फसाद आपसी टकराव समाप्त हो सकते हैं और एक सौहाद्रपूर्ण वातावरण का निर्माण हो सकता है.

           आज कोयाजनों के प्राकृतिक शक्तियों का अमूल्य धरोहर है जिसका वे उपयोग करना नहीं जानते. यदि वे इनका उपयोग शुरू कर दें तो विश्व के सभी धर्म और सम्प्रदाय उनके सामने घुटने टेक देंगें. कुछ आर्य धर्मियों का विचार है कि वे यज्ञ हवन इसलिए करते हैं क्योंकि इसके द्वारा वे विश्व शांति की कमाना करते हैं. पर्यावरण में सुधार होगा, परन्तु गौर कीजिये कि एक गरीब जो रात दिन लंगोटी लगाकर ठण्ड और धूप को  सहन करके पसीने बहाकर मेहनत से अन्न पैदा करता है, उस गाढ़ी कमाई को आग के हवाले कर देने से क्या विश्व में शांति आ सकती है ? कदापि नही. उन अन्न जलाने वालों को क्या मालूम कि भूख की तड़फ क्या होती है. भूख से हमारे गरीब  भाइयों का किस तरह विकास अवरुद्ध होता है. देश में गरीबी का सबसे मुख्य कारण आर्यों का यज्ञ प्रथा ही है. हिंदु धर्म के लोग गरीबी से वाकिफ नही हैं, क्योंकि इन्हें तो मुप्त में खाने को मिल जाता है. वे भीख मांग लेने का धंधा भी कर लेते हैं. हमारे समाज में इस प्रकार की घृणित प्रथा नहीं है. हम तो बिना मेहनत के खाना सीखा ही नहीं हैं. यह अधर्म का काम है. जो लोग जीवन संघर्ष में टिक नही पाते वे या तो साधू सन्यासी बनने का ढोंग रचाते हैं या भीख मांगने का कायराना हरकत करते फिरते हैं. गोंड कभी भीख नहीं मांगता क्योंकि वह कायर नहीं है. वह तो जीवन संघर्ष में मरते दम तक पसीने बहाकर अन्न पैदा करता है और सभी जीवों का उदर पोषण करता है. यदि देश को समृद्ध और विकसित बनाना है तो गोंडी धर्म के सिद्धांतों का आत्मसात करना होगा. देश धन धान्य से सम्पन्न होगा. कोई भूखा नहीं रहेगा तो चोरी डकेती लड़ाई-झगड़ा सब शांत हो जायेंगें. यदि हमे विश्व में वर्ग विहीन, जाति विहीन स्वस्थ्य समाज की स्थापना करनी है तो हमें "कोया पुनेम" (गोंडी धर्म) के आदर्शों का अनुकरण करना पड़ेगा. हमें विधर्मियों के लच्छेदार बातों में कदापि नहीं आना है. स्वविवेक का सहारा लीजिए. सत्य ज्ञान और सत्यमार्ग का अनुसरण कीजिये. निश्चित ही निकट भविष्य में इसके लाभ आपके जीवन में परिलक्षित होंगें. गोंडी धर्म के पवित्र आदर्शों का प्रचार प्रसार कीजिये और विश्व शांति के निर्माण में अपना अपूर्व योगदान दीजिये.
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