विश्व आदिवासी दिवस
विश्व आदिवासी दिवस क्या है ?
"एक तीर एक कमान, सब आदिवासी एक सामान"
INTERNATIONAL DAY OF WORLD'S INDIGENOUS PEOPLE
दिनांक 9 अगस्त 2011
स्थान- इंडोर स्टेडियम, बूढ़ा तालाब के पास, रायपुर (छत्तीसगढ़)
विश्व आदिवासी दिवस क्या है ?
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूरे विश्व में शान्ति स्थापना के साथ-साथ विश्व के देशों में पारस्परिक मैत्रीपूर्ण समन्वय बनाना, एक-दूसरे के अधिकार एवं स्वतंत्रता को सम्मान के साथ बढ़ावा देना, विश्व से गरीबी उन्मूलन, शिक्षा एवं स्वास्थ्य के विकास के उद्देश्य से 24 अक्टूबर 1945 में "संयुक्त राष्ट्र संघ" का गठन किया गया, जिसमे अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, भारत सहित वर्तमान में 193 देश सदस्य हैं। अपने गठन के 50 वर्ष बाद "संयुक्त राष्ट्र संघ" ने यह महसूस किया है कि 21 वीं सदी में भी विश्व के विभिन्न देशों में निवासरत जनजातीय (आदिवासी) समाज अपनी उपेक्षा, गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा का अभाव, बेरोजगारी एवं बंधुआ मजदूर जैसे समस्याओं से ग्रसित हैं. जनजातीय समाज के उक्त समस्याओं के निराकरण हेतु विश्व के ध्यानाकर्षण के लिए वर्ष 1994 में "संयुक्त राष्ट्र संघ" के महासभा द्वारा प्रतिवर्ष 9 अगस्त को "INTERNATIONAL DAY OF THE WORLD'S INDIGENOUS PEOPLE" विश्व आदिवासी दिवस मनाने का फैसला लिया गया. तत्पश्चात पूरे विश्व यथा अमेरिकी महाद्वीप, अफ्रीकी महाद्वीप तथा एशिया महाद्वीप के आदिवासी बाहुल्य देशों में 9 अगस्त को "विश्व आदिवासी दिवस" बड़े जोर-शोर से मनाया जाता है, जिसमे भारत भी प्रमुखता से शामिल है.
भारत में निवासरत आदिवासियों के सर्वांगीण विकास के लिए भारत के संविधान में किए गए प्रावधान
वर्ष 1947 में भारत के स्वतंत्रता पश्चात भारत के लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था चलाने के लिए संविधान का निर्माण किया गया, जिसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया. संविधान में कुल 22 भाग, 12 अनुसूची एवं 395 अनुच्छेद हैं. इनमे से सर्वाधिक अनुच्छेद- अनुसूचित जनजातियों (आदिवासियों) के हित संरक्षण के लिए हैं, जिनमे निम्न मुख्य हैं :-
(१) अनुच्छेद 366 में - अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित किया गया है.
(२) अनुच्छेद 342 में - पूरे भारत के प्रत्येक राज्य में निवासरत आदिवासी (अनुसूचित जनजाति) जातियों की सूची घोषित किया गया है.
(३) अनुच्छेद 244(1) में - अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन एवं नियंत्रण के बारे में उपबंध हैं.
(४) अनुच्छेद 244(1)5 - में अनुसूचित क्षेत्रों को लागू विधि (क़ानून) का स्पष्ट प्रावधान है अर्थात इन क्षेत्रों में भूमि का अंतरण और आवंटन, बैंकिंग सिस्टम, शान्ति एवं प्रशासन इत्यादि संबंधी प्रशासनिक कार्य गैर आदिवासी क्षेत्रों से अलग होगा.
(५) अनुच्छेद 244(1) - अंतर्गत 73 वाँ संविधान संशोधन द्वारा पांचवी अनुसूची पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम 1996 पेशा क़ानून के तहत अनुसूचित क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाले सभी ग्राम पंचायतों के सरपंच पद एवं जनपद/जिला पंचायतों के अध्यक्ष पद तथा उक्त पंचायतों के कुल 50 प्रतिशत से अधिक पंच/जनपद सदस्य/जिला पंचायत सदस्य के लिए आरक्षित हैं. इसी प्रकार अनुसूचित क्षेत्रों में लागू अन्य क़ानून जैसे- कृषि उपज मंडी/को-आपरेटिव एक्ट, जल उपभोक्ता संस्था एक्ट, वन प्रबंधन समिति एक्ट, स्थानीय स्वशासन (नगर पंचायत/नगर पालिका परिषद/नगरपालिक निगम एक्ट) में भी आरक्षण लागू होना चाहिए.
(६) अनुच्छेद 14 में समता के अधिकार के तहत जनजातीय समाज को न्याय दिलाने के लिए विशेष प्रावधान हैं जैसे- अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 में शोषण के विरुद्ध संरक्षण के विशेष प्रावधान हैं.
(७) अनुच्छेद 14(4) में - अनुसूचित जनजातियों के साथ धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करने का प्रावधान हैं तथा इनके उन्नति के लिए विशेष उपबंध (आरक्षण) बनाने का प्रावधान हैं.
(८) अनुच्छेद 16(4) में - अनुसूचित जनजातियों के लिए शासकीय नौकरियों एवं पदों में जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने का प्रावधान है.
(९) अनुच्छेद 23 में - मानव का व्यापार, जबरन काम कराना इत्यादि शोषण के विरुद्ध रक्षा का प्रावधान है.
(१०) अनुच्छेद 275 में - अनुसूचित जनजातियों के कल्याण तथा अनुसूचित क्षेत्रों के विकास के लिए भारत की संचित निधि से राज्य सरकार को अनुदान राशि देने का प्रावधान है.
(११) अनुच्छेद 330 में - विधान सभा एवं 332 में - लोकसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान है.
(१२) छत्तीगढ़ भू-राजस्व संहिता 165 एवं 170(ख) के अनुसार अनुसूचित क्षेत्र एवं अनुसूचित जनजातियों की भूमि को गैर आदिवासी द्वारा अंतरण नहीं किया जा सकता. अर्थात छलपूर्वक खरीदी-बिक्री या भू-अर्जन नहीं किया जा सकता.
(१३) छत्तीसगढ़ को-आपरेटिव सोसायटी एक्ट 1960 की धारा-48(ख) के कंडिका 2(क) अनुसार "किसी सोसायटी में जहां सदस्यों कि कुल संख्या के कम से कम आधे सदस्य अनुसूचित जनजातियों के हैं, वहाँ ऐसा प्रतिनिधि केवल जनजातियों के सदस्यों में से होगा."
(१४) आदिवासियों के सर्वांगीण विकास के लिए भारत के जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा जुलाई 2006 में "राष्ट्रीय जनजातीय नीति" बनाई गई है.
भारत एवं छत्तीसगढ़ के अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों में केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा भारतीय संविधान के पालन की स्थिति
१- भारत सहकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा प्रकाशित "राष्ट्रीय जनजातीय नीति 2006" की विषय सूची 01-23 में स्वीकार किया गया है कि जनजातियों की उपेक्षा हो रही है एवं जनजातियों के उत्थान के लिए संविधान में किए गए उपबंधों का पालन नहीं हो रहा है. उक्त नीति के कंडिका 18 में किए गए उल्लेख में पाँचवी अनुसूची के अनुसार अनुसूचित क्षेत्र के अनुशासन पर राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को भेजे जाने वाले वार्षिक प्रतिवेदन को रूटीन दस्तावेज कहा गया है. यह भी स्वीकारोक्ति है कि अनुसूचित क्षेत्रों में जनजातियों की हो रही उपेक्षा, उत्पीड़न के कारण ये क्षेत्र उपद्रवी तत्वों का क्रीड़ा स्थल बन गया है.
२- छत्तीगढ़ शासन द्वारा आदिम जाति मंत्रणा परिषद की बैठकों में लिए गए निर्णयों पर क्रियान्वयन नहीं किया जाता है. उदाहरण-
(१) मंत्रणा परिषद की बैठक दिनांक 28-7-2009 की कार्यवाही विवरण कंडिका 5 में दिए गए सुझाव- विस्थापित परिवारों को मुआवजा के अतिरिक्त सम्बंधित उद्योगों में "शेयर होल्डर" भी बनाया जाए. - इस पर क्या कार्यवाही हुई , अब तक सार्वजनिक नहीं हुई है ?
(२) इसी प्रकार उक्त कार्यवाही की कंडिका 4.9 में अनुसूचित क्षेत्रों में गैर आदिवासियों द्वारा आदिवासियों की जमीन खरीद-फरोख्त में कलेक्टर द्वारा दी गई अनुमति में किए गए धोखाधड़ी के सम्बन्ध में क्या कार्यवाही हुई, अब तक सार्वजनिक नहीं हुई है ?
(३) संविधान के अनुच्छेद 16 का पालन नहीं करते हुए छत्तीसगढ़ शासन द्वारा आदिवासियों को जनसँख्या के अनुपात में शासकीय सेवाओं एवं शैक्षणिक संस्थाओं में 32 प्रतिशत आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा रहा है.
(४) संविधान के अनुच्छेद 243(ZC) नगर पालिकाएं में स्पष्ट प्रावधान है कि - "इस भाग की कोई बात अनुच्छेद 244(1) में निर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्रों और इसके खंड (2) में निर्दिष्ट जनजातीय क्षेत्रों को लागु नहीं होगी." इसके बाद भी छत्तीसगढ़ के अनुसूचित क्षेत्रों में स्थित नगर पालिक निगम/नगरपालिका परिषद/नगर पंचायतों के क्रमशः 3, 7 एवं 26 पद अध्यक्ष के एवं 265 वार्ड मेंबर के पद को आदिवासियों से छीनकर गैर आदिवासियों को दे दिया गया है.
(५) भू-राजस्व संहिता की धारा 170(ख) में दिए गए प्रावधान अनुसार गैर आदिवासियों द्वारा खरीदे गए जमीन को, आदिवासियों के पक्ष में निर्णय आने के बाद भी इन्हें वास्तविक कब्जा नहीं मिल पा रहा है.
(६) भू-राजस्व संहिता की धारा 165 का उल्लंघन करते हुए अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों की जमीन की खरीदी-बिक्री के साथ-साथ उद्योगों के लिए अधिग्रहित किया जा रहा है. बस्तर में - टाटा, एस्सार, रायगढ़-जशपुर में - जिंदल, कोरबा-जांजगीर-चांपा में - वेदांता, वीडियोकान, सरगुजा में - नालको एवं हिंडाल्को इत्यादि कंपनियों द्वारा आदिवासियों की जमीन को छीनकर बेघर-द्वार किया जा रहा है.
(७) छत्तीसगढ़ को-ऑपरेटिव सोसायटी एक्ट 1960 की धारा 48(ख) की उप धारा 2(क) का उल्लंघन कर अपेक्स बैंक, मार्केटिंग फेडरेशन इत्यादि में अनुसूचित क्षेत्रों में गैर आदिवासियों का चुनाव कर प्रतिनिधित्व दिया जा रहा है.
(८) अनुसूचित क्षेत्रों में नक्सली समस्या से अब तक 1,000 आदिवासी नागरिक एवं सुरक्षाबल मारे गए हैं.
(९) छत्तीसगढ़ निर्माण पश्चात आदिवासियों के लिए आरक्षित 5 विधान सभा सीट को समाप्त कर दिया गया.
(१०) छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक व्यवस्था एवं न्यायपालिकाओं में आदिवासियों की स्थिति/दुर्गति- 15/7/2011 की स्थिति में -
१- उच्च न्यालय बिलासपुर में आदिवासी जजों कि संख्या - 00 (कोई नहीं).
२- जिले में कलेक्टर - 18 जिलों में केवल- 02 (केवल डेढ़-डेढ़ वर्ष के लिए).
३- जिले में एस.पी. - 18 जिलों में केवल- 01 (केवल डेढ़ वर्ष के लिए).
४- जिला एवं सत्र न्यायाधीश - 18 जिलों में केवल - 01 (एक).
५- महाधिवक्ता कार्यालय में आदिवासी वर्ग के शासकीय वकील - 00 (कोई नहीं).
६- संभागीय स्तर पर पुलिस महानिरीक्षक (आई.जी.) - चारों संभागों में- 00 (कोई नहीं).
७- जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी - 18 जिलों में केवल - 02 (दो).
8- जिला शिक्षा अधिकारी - 20 शिक्षा जिलों में केवल - 03 (तीन).
९- वन मंडलाधिकारी - 27 वन जिलों में से केवल - 03 (तीन).
१०- महाविद्यालयों में आदिवासी वर्ग के प्राचार्य छ.ग. में कुल - 164 में केवल - 03 प्राचार्य.
११- सहायक आयुक्त (जिला स्तरीय पद) आदिम जाति विभाग - 18 जिलों में केवल - 02 (दो).
१२- उप संचालक, कृषि - 18 जिलों में केवल - 05 (पांच).
१३- मुख्यमंत्री सचिवालय (प्रशासनिक) में पदस्थ आदिवासी अधिकारी/कर्मचारी - 00 (कोई नहीं).
१४- राज भवन ([प्रशासनिक) में पदस्थ आदिवासी अधिकारी/कर्मचारी - 00 (कोई नहीं).
१५- छत्तीसगढ़ शासन, मंत्रालय में आदिवासी वर्ग के प्रमुख सचिव - केवल - 01 (एक).
१६- छत्तीसगढ़ शासन, मंत्रालय में आदिवासी वर्ग के सचिव - केवल - 01 (एक).
१७- छत्तीसगढ़ शासन के 31 आयोग/निगम/मंडल में आदिवासी अध्यक्ष/सचिव - 00 (कोई नहीं).
(अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग को छोड़कर)
(अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग को छोड़कर)
१८- छत्तीसगढ़ के आदिवासी वर्ग के जजों को समय पूर्व (2011) में दिए गए अनिवार्य सेवानिवृति की संख्या - 16.
अतः सर्व आदिवासी समाज से अपील है कि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वरा घोषित "विश्व आदिवासी दिवस" 9 अगस्त 2011 को त्यौहार के रूप में मानते हुए अपने-अपने घरों में दीपक अवश्य जलाएं तथा इंडोर स्टेडियम, बूढा तालाब के पास, रायपुर में आयोजित कार्यक्रम में अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होकर अपनी जागरूकता का प्रदर्शन करें.
विनीत
(१) अखिल भारतीय गोंड महासभा (२) अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद (३) अखिल भारतीय कुडुख उराँव समाज (४) अखिल भारतीय हल्बा समाज (५) छ.ग.कँवर समाज (६) छ.ग.सरना उराँव आदिवासी समाज (७) छ.ग.संवरा समाज (८) छ.ग.कमार समाज (९) छ.ग.कंडरा समाज (१०) छ.ग.बैगा आदिवासी समाज (११) छ.ग. बिंझवार समाज (१२) छ.ग.भतरा आदिवासी समाज (१३) छ.ग. भुंजिया आदिवासी समाज (१४) छ.ग.बिरहोर समाज (१५) छ.ग.कोरवा समाज (१६) छ.ग.माडिया-मुरिया समाज एवं छ.ग.के समस्त आदिवासी विद्यार्थी संगठन.
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Very Good.....
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