बुधवार, 23 जनवरी 2013

गोंडवाना का सेवा सेवा जय सेवा महामंत्र

यही प्रकृति शक्ति है, यही मातृशक्ति है,
यही परिवार सेवा है, यही जन सेवा है,
यही समाज सेवा है, यही संसार सेवा है.
यह छोटे और बड़े, स्त्री और पुरुष
सभी में नीहित है. भूख में, प्यास में,
बस सेवा ही सेवा है. 
           "सेवा" कोयतूर का धर्म है, सेवा कोयतूर का नैतिक आचरण है, सेवा कोयतूर का सत्कर्म है, सेवा कोयतूरों का महामंत्र है. सेवा शब्द के अर्थ को लेकर अनेक व्यक्तियों में अभी भी भ्रम की स्थिति बनी हुई है. कुछ लोग इसे शिव या शिवा का परिवर्तित रूप मानते हैं. कुछ लोग उच्च वर्ग के हित में निम्न वर्ग द्वारा किया गया कार्य या त्याग को सेवा मानते हैं. कुछ लोग मंदिर में मूर्ती को नियमित जल, फूल इत्यादि चढ़ाने को सेवा मानते हैं. मेरे ख़याल से ये सभी धारणा कोयापुनेमी "सेवा" धारणा से भिन्न है. कोयापुनेम का महामंत्र/मूलमंत्र सेवा है, जो मानवता और मानवीय संबंधों की शाश्वत रक्षा के लिए आदि गुरु पहांदी पारी कुपार लिंगो द्वारा कोया वंशियों को दिया गया है. कुपार लिंगो द्वारा सेवा के अंतर्गत निम्नलिखित की सेवा का विधान है :-

१-     जन्मदाताओं की सेवा 


          प्रत्येक जीव को इस सृष्टि का प्रथम दर्शन कराने वाली दो महाशक्तियां हैं. वे हैं सल्लां और गांगरा शक्ति के धारक माता और पिता. जिन माता पिताओं के प्रति हमारा रोम-रोम चिर है. हमारा तन-मन और बुद्धि उन्ही की दी हुई है. हमारे पास आज जो कुछ भी है, उन्ही की कृपा से है. जब हम पैदा हुए तो असहाय थे, न तो चल फिर सकते थे, न भोजन प्राप्त कर सकते थे, न ही अपनी रक्षा कर पाते थे. उस समय माता पिता ने ही स्वयं कष्ट उठाकर भी पैदा होते ही हमारी सेवा किये. उस समय यदि माता पिता की सेवा नहीं मिलती तो हम जीवित नहीं रह पाते. उन्होंने हमें नहलाये, धुलाये, मल-मूत्र साफ़ किये, स्तनपान कराये. इसलिए माता-पिता के प्रति हमारा भी कर्तव्य बनता है की जब वे वृद्ध हो जावें तो हम उनकी पूर्ण सृद्धा और भक्ति से निस्वार्थभाव से तन, मन और धन से सेवा करें. जन्मदाताओं की सेवा ही सल्लां गांगरा की सेवा और सजोरपेन की पूजा है. जिसने माता पिता के महत्व को नहीं जाना, वह सजोरपेन को नहीं पहचाना. माता पिता को छोड़कर मंदिरों में मूर्ती पूजा किया, तीर्थों में घूम-घूम कर स्नान किया, वह व्यर्थ ही अपने जीवन के बहुमूल्य समय बर्बाद किया. कोयापुनेम में जन्मदाताओं की सेवा को सर्वाधिक प्राथमिकता दी गई है. महिलाओं के लिए सास-ससुर की सेवा सर्वोपरी है. जिस कुल में महिलाएँ विवाह करके लाई जाती हैं, उस कुल के वृद्धजन उनके लिए पूज्यनीय होते हैं.


२-     संतान सेवा 


          युवा स्त्री-पुरुषों के विवाहोपरांत संतान की उत्पत्ति होती है. उनकी सेवा सुश्रुषा का पूर्ण दायित्व उनके माता पिता का होता है. यदि माता पिता अपने बच्चों की ठीक ढंग से सेवा एवं परवरिश करेंगे तो वे भविष्य में होनहार, योग्य नागरिक बनेंगे. बलिष्ट एवं विवेकशील बनेंगे, सत्चरित्र बनेंगे. उनमे सुसंस्कार का समावेश होगा. अधिकांश पढ़े-लिखे सभ्य  कहलाने वाले व्यक्ति अपने बच्चों की सेवा स्वयं न करके किसी नौकर नौकरानियों से सेवा व परवरिश कराते हैं. अधिकांश शहरी माताएं अपने स्तन का दूध अपने बच्चों को नहीं पिलाती और बाजार से दूध खरीद कर पिलाती हैं. वे सोचती हैं कि स्तनपान कराने से उनकी सुन्दरता नष्ट हो जाएगी. परिणामस्वरूप उनकी संतान सुसंस्कारित नहीं हो पाते. अस्वस्थ, कमजोर, विवेकहीन, शीलगुणहीन होते हैं. इसलिए कोयापुनेम में अपनी संतान की सेवा सुश्रुषा स्वयं करने का विधान है.


३-     सगा सेवा


          गोंडी धर्म में सम और विषम गोत्र धारक आपस में एक-दूसरे के सगाजन कहलाते हैं. इन्ही सगाजनों के बीच आपस में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित होते हैं. गोंडों में सभी धार्मिक और सामाजिक कार्य सगाजनों द्वारा संपन्न कराये जाने का विधान है. समाज में विवाह संस्कार, मृत्यु संस्कार या अन्य कोई भी देव पूजन कार्यों में ब्राम्हण, नाई, धोबी आदि से कोई भी कार्य नहीं कराये जाते. ये सभी कार्य सगाजनों द्वारा ही संपादित किये जाते हैं. इसलिए सगाजनों के बीच सामंजस्य और सेवा भाव आवश्यक है. सम और विषम गोत्रीय सगाजन आपस में एक दूसरे के पूज्यनीय होते हैं. उन्हें एक दूसरे की सेवा करनी चाहिए. जब भी जरूरत पड़े, सगाजन आपस में सेवा एवं सहयोग करके समस्त गोंडवाना समाज का कल्याण कर सकते हैं. इस प्रकार की सगा सामाजिक व्यवस्था विश्व के किसी भी धर्म में नहीं हैं. 


४-     दीन दुखियों की सेवा 


          गोंड समाज में कुछ धनी लोग हैं और अधिकांश निर्धन है. बहुतों की स्थिति तो और भी विकट है. उन्हें जिंदा रहने के लिए मुश्किल से आहार मिल पाता है. बीमार होने पर ईलाज नहीं करा पाते. शरीर ढकने के लिए पर्याप्त वस्त्र उपलब्ध नहीं हो पाते. रहने के लिए टूटी फूटी घास पूस की झोपड़ी होती है. इसी में किसी तरह धूप, सर्दी और वर्षा से अपनी जान बचाते हैं. ऐसे व्यक्ति विवाह या मृत्यु संस्कार के अवसर पर या बीमारी पड़ने पर मजबूर हो जाते हैं. अर्थाभाव के कारण ये अपनी रही सही जमीन बर्तन आदि भी बेच डालते हैं. समाज के धनी लोगों का कर्तव्य बन जाता है की वे ऐसे निर्धनों की वक्त आने पर यथासंभव सेवा करे एक व्यक्ति न करे तो समाज के व्यक्ति  चंदा करके उसे कष्ट से बचाने का प्रयत्न करना चाहिए. दीन दुखियों की सेवा निःस्वार्थ भाव से होनी चाहिए ये भी हमारे समाज रूपी शरीर के अंग  हैं. शरीर का एक अंग विकारग्रस्त हो जाने पर पूरा शरीर अस्वस्थ्य हो जाता है. शरीर की कुशलता के लिए सभी अंगो का स्वास्थ्य होना आवश्यक है. इसी प्रकार समाज में सभी का विकास एक साथ होना आवश्यक है.


५ -     धरती की सेवा


            धरती से अनाज पैदा करना, वृक्ष लगाकर फल प्राप्त करना, धरती को खाध डालकर उपजाऊ बनाना ही धरती की सेवा है. गोंडीयनों का मुख्य व्यवसाय कृषि है. कृषि कार्य करना सच्चे मर्द की पहचान समझा जाता है. कृषि कार्य में हिम्मत और मेहनत की जरूरत होती है. भूख, प्यास, सर्दी, गर्मी, बरसात, थकान सभी को सहन करके गोंड धरती की सेवा करता है. पसीना बहाता हुआ सुख की आशा में अथक परिश्रम करता है. अन्न उपजाता है और विश्व का भरण पोषण करता है. आजकल अधिकांश लोग पढ़े लिखे होने के बाद कृषि कार्य नहीं करना चाहते. नौकरी की तलाश में समय बरबाद करते हैं. जो व्यक्ति अपने आपको कृषि के काबिल नही समझते वह मर्द कहलाने योग्य नहीं हैं. धरती माता की सेवा जो व्यक्ति सही लगन से करता है वह कभी भूख से नहीं मरता और कभी भीख नहीं मांगता. धरती माता की गोद में जितने जितने वृक्ष उगाएंगें. वह उससे कई गुनी अधिक फल प्रदान करता है. बड़े बड़े कारखाने स्थापित करने से, गोला बारूद बनाने से धरती की सेवा नहीं होती है. बल्कि धरती की हरियाली नष्ट होती है. धरती की सेवा करने के लिए अधिक से अधिक अनाज पैदा करें. फलदार वृक्ष लगायें. समाज कल्याण के लिए सेवा भाव प्रत्येक कोया जनों में होना चाहिए. एक पवित्र कार्य समझकर उसे करना चाहिये. जिस प्रकार दो सिक्ख आपस में अभिवादन करते समय "सत श्री अकाल " शब्द का प्रयोग करते हैं, मुसलमान अस्सलाम वालेकुम करते हैं, ईसाई गुडमार्निंग कहतें हैं, हिन्दू जयराम जी की कहते हैं. इसी प्रकार हम गोंडी धर्मी लोग अभिवादन करते समय "जय सेवा" कहते रहें. आदि गुरु व्दारा बताया गया यह सेवा मंत्र कोया समाज का मूल मंत्र है. हमे इस मंत्र का जाप श्रृद्धा एवं भक्ति के साथ करना चाहिए इससे हमे आत्म शक्ति एवं प्रेरणा की प्राप्ति होती.
                                               --००--                                  

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