सोमवार, 9 मई 2016

राष्ट्रीय जनजातीय नीति 2006

स्वतंत्रता के पश्चात भारत में अनुसूचित जनजातियों के विकास के लिए संवौधानिक क्रियान्वयन हेतु कोई विशेष मॉडल तैयार नहीं किया गया |   स्वतंत्रता के लगभग 60 वर्ष बाद जनजातीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जुलाई, 2006 में  भारत के जनजातियों के लिए संविधान में नीहित प्रावधानों के क्रियान्वयन के लिए एक प्रारूप नीति तैयार की गई |  यह नीति वर्ष 2006 में संसद अनुमोदन के लिए पेश किया गया, किन्तु इसे अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया, जो अब तक लंबित है |  भविष्य में भी इसकी पारित होने की संभावना धूमिल है |  प्रारूप में प्रस्तुत तथ्यगत नियम, सामग्री, विचार जनजातीय समाज के विकास हेतु उपयोगी हो सकते हैं |  इसलिए इस प्रारूप नीति की ओर समाज के बुद्धिजीवियों के ध्यानाकर्षण के लिए मूलतः प्रस्तुत किया गया है |

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प्रारूप

राष्ट्रीय जनजातीय नीति 

(भारत की अनुसूचित जनजातियों के लिए नीति)














जनजातीय कार्य मंत्रालय भारत सरकार 

जुलाई, 2006





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विषय सूची

1.  प्रस्तावना
2.  नीति की आवश्यकता
3.  नीति के मार्गनिर्देशक सिद्धांत
4.  नीति के उद्देश्य
5.  रणनीति   
6.  जनजातीय भूमि का हस्तांतरण : काश्तकारी असुरक्षा
7.  जनजातीय वन अंतरापृष्ठ (इंटरफेस)
8.  विस्थापन, पुनर्स्थापना और पुनर्वास
9.  मानव विकास सूचकांक में वृद्धि
     *  शिक्षा, व्यावसाय प्रशिक्षण तथा खेल
     *  स्वास्थ्य
     *  जीविकोपार्जन अवसर
     *  कृषि और बागवानी
     *  प्रवास
     *  ऋण देना एवं ऋणग्रस्तता 
10. क्रांतिक आधारभूत संरचना का सृजन
11. उग्र अभिव्यक्ति
12. विशेष कमजोर जनजातीय समूहों (पीटीजी) का संरक्षण तथा विकास
13. जनजातीय उपयोजना रणनीति को अपनाना
14. सशक्तिकरण
15. लिंग समानता
16. गैर-सरकारी संस्थाओं का समर्थन  
17. जनजातीय संस्कृति एवं पारंपरिक ज्ञान 
18. जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन 
      *  संविधान की पांचवी अनुसूची 
      *  संविधान की छठी अनुसूची 
      *  कार्मिक नीति
19. नियामक एवं सुरक्षात्मक शासन प्रणाली 
20. जनजातियों को अधिसूचित एवं अन-अधिसूचित करना 
21. अनुसंधान एवं प्रशिक्षण 
22. संचार रणनीति 
23. निगरानी मूल्यांकन एवं समीक्षा तंत्र 
      *  कार्यान्वयन की समीक्षा 
      *  नीति की समीक्षा 
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1.  प्रस्तावना

1.1  भारत में जनजातियों के लिए कोई भी नीति तैयार करने में एक बड़ी कठिनाई जनजातीय पहचान, संस्कृति एवं मूल्यों के संरक्षण तथा जनजातियों को मुख्य धारा की जीवन शैलियों के बहाव में बहने से बचाने के प्रयासों के बीच एक उपयुक्त संतुलन स्थापित करने की रही है |  उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के उद्देश्य से बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य परिचर्या और आयसृजन में वृद्धि का सुनिश्चित करते हुए यह संतुलन कायम करना स्वयं में कोई सरल कार्य नहीं है |  पं. जवाहर लाल नेहरु के पंचशील ने जनजातीय विकास को दिशा प्रदान करने से संबंधित राज्य नीति को आधार प्रदान किया |  इस राज्य नीति का उद्देश्य जनजातीय लोगो के लिए एक ऐसा ढांचा उपलब्ध कराना है, जिसमें वे विकास का लाभ उठाते हुए, अपनी परंपरा, सांस्कृतिक जीवन एवं लोकाचार के सर्वोत्तम तत्वों को बनाए रखते हुए स्व-शासन की प्रणाली में अपनी प्रतिभा के अनुसार प्रगति कर सकें |  इसके कार्यान्वयन में कठिनाईयां भी बहुत हैं |  इसका कारण, संविधान के अंतर्गत अनुसूचित जनजातियों की संख्या न केवल बहुत अधिक होनी है (आज की तारीख में लगभग 700 राज्य विनिर्दिष्ट अनुसूचित जनजातियाँ) बल्कि उनमे आपस में भिन्नताएं भी बहुत अधिक हैं | एक जनजाति दूसरी जनजाति से प्रायः भाषा और बोली, रीति-रिवाज, सांस्कृतिक प्रथाओं एवं जीवन शैली के मामले में बिलकुल विशिष्ट है |  इस विशाल विविधता को संरक्षित रखना विशेषकर उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आयसृजन एवं मुख्यधारा में लाने के क्षेत्र में हुए विकास के लाभ प्रदान करना एक बहुत ही कठिन काम है, क्योंकि इससे उनकी विविधता का नष्ट होना अवश्यंभावी है |

1.2  इस विविधता के बावजूद जनजातीय समुदायों में समानताएं भी हैं यद्यपि ये समानताएं बृहत एवं जातिगत हैं |  वे संहत क्षेत्रों में रहते हैं, प्रकति से सामंजस्यपूर्वक सामुदायिक जीवन जीते हैं, उनकी अनोखी संस्कृति होती है, रीति-रिवाज, परम्पराएं और विश्वास अलग-अलग होते हैं, वे सरल स्वभाव, और स्वभाव से गैर-अर्जनशील होते हैं |  किसी समुदाय विशेष को अनुसूचित जनजाति घोषित करने के लिए पिछले कुछ दशकों से कुछ सामान विशेषताओं को व्यापक मानदंड के रूप में प्रयोग किया जा रहा है |  प्रयुक्त मानदंड हैं :  आदिम लक्षण, विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक अलगाव, संपर्क करने में झिझक एवं पिछड़ापन |  लेकिन यहाँ तक ये सभी व्यापक मानदंड आज अनुसूचित जनजातियों पर लागू नहीं होते हैं |  प्रयुक्त कुछ शब्द (यथा आदिम लक्षण, पिछड़ापन) आज के सन्दर्भ में प्रतिष्ठानुकूल नहीं है और उन्हें ऐसे शब्दों से प्रतिस्थापित करने की जरूरत है जो अपमानजनक न हों |

1.3  भारत के संविधान में अनुसूचित जनजातीय समुदायों की जनसंख्या, जिन्हें अनुसूचित जनजातियों के रूप में जाना जाता है, 2001 की जनगणना के अनुसार 84.3 मिलियन है और यह भारत की कुल जनसंखा का 8.2% है | पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और पांडिचेरी एवं चंडीगढ़ के संघ शासित क्षेत्रों को छोड़कर वे सभी राज्यों/ संघ शासित प्रदेशों में फैले हुए हैं |

1.4  अनुसूचित जनजातियाँ पारंपरिक रूप से देश के भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 15% क्षेत्र में रहती हैं |  मुख्य रूप से ये क्षेत्र वनों, पर्वतों, ऊबड़-खाबड़ दुर्गम क्षेत्रों से युक्त प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध हैं |  वे सदियों से अलग-थलग रूप में रह रहे हैं |  अधिकतर का तो आसपास के समाज के साथ कभी संपर्क ही नहीं हुआ है |  उनके इस अलगाव के कारण उनकी प्रगति धीमी रही है, सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास की पद्धति असमान रही है एवं समाज एवं अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा के साथ उनके अस्वैच्छिक मेलजोल के परिणामों का सामना नहीं कर पाते हैं |

1.5  भारत के संविधान में विशेष रूप से समाज के कमजोर वर्गों और अनुसूचित जनजातियों के लिए बेहतर गुणवत्तायुक्त जीवन सुनिश्चित करने के लिए कई प्रावधान हैं |  ये प्रावधान विकासात्मक एवं नियामक स्तर पर सकारात्मक विभेदीकरण एवं पुष्टिकारक कार्रवाई की नीति पर आधारित हैं |  भारतीय संविधान निर्माता अनुसूचित जनजातीय समुदायों की पृथक पहचान एवं पर्यावास के प्रति सचेत थे और इसीलिए उन्होंने कुछ अनुच्छेद एकांतिक रूप से अनुसूचित जनजातियों के हित के लिए संविधान में रखे गए |  इनमे अनुच्छेद 244, 244ए, 275(1), 342, 338 एवं 339 शामिल हैं |

1.6  संविधान की पांचवी अनुसूची में अनुसूचित क्षेत्रों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए प्रशासन एवं नियंत्रण का प्रावधान है, जिसके द्वारा राज्यपालों को अनुसूचित क्षेत्रों में शान्ति एवं सुशासन के लिए विनियम बनाने की शक्तियां प्रदान की गई हैं | इसी तरह छठी अनुसूची में भी असम, मेघालय, त्रिपुरा एवं मिजोरम राज्यों में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में प्रावधान विनिर्दिष्ट हैं |  संविधान के इन सशक्त प्रावधानों से प्राप्त शक्ति से सामाजिक-आर्थिक एवं राजनैतिक समानता के सुनिश्चय के उद्देश्य से प्राप्त करना है |  केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा अनुसूचित जनजातियों और उनके जनजातीय क्षेत्रों के कल्याण एवं सुरक्षा के लिए और भी कई विशिष्ट क़ानून बनाए गए हैं |  इन कानूनों का लक्ष्य अनुसूचित जनजातियों के लिए सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक समानता प्राप्त करना है |

1.7  इन महत्वाकांक्षाओं को वास्तविक रूप प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार संहत क्षेत्रों में रहने वाले विशिष्ट समूह मानकर उनके उत्थान के लिए स्वतंत्रता के समय से ही अनुसूचित जनजाति के आवासीय क्षेत्रों के विकास पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए सक्रीय योजनाएं बनाती रही है | भौगोलिक इकाइयों (जो कि प्रशासनिक इकाइयां भी हैं) के आधार पर विकास का विचार 1953 में 43 जनजातीय ब्लाकों के गठन के साथ शुरू हुआ |  केंद्र और राज्य स्तर पर वार्षिक योजनाओं में अनुसूचित जनजाति की आबादी के अनुपात में वित्तीय आवंटन का प्रावधान करने के लिए जनजातीय उपयोजना का विचार 1974 में पांचवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान शुरू किया गया |  तब से सरकारी/ गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से जनजातीय जीवन के लगभग सभी पहलुओं को शामिल करते हुए बहुत-सी योजनाएं एवं कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं | 

1.8  पिछले 60 वर्षों से बहुत सी अनुसूचित जनजातियाँ दो भागों में बंट गई हैं |  एक भाग तो वह है जो संविधान एवं विभिन्न अधिनियमों एवं कार्यक्रमों के तहत उन्हें दी गई सुरक्षा एवं हितलाभों की गारंटी का लाभ उठाकर अपने एवं अन्यों के बीच विकास की खाई को पाटने में समर्थ हो गए हैं और दूसरा भाग वह, जिन तक ऐसे कार्यक्रम एवं सुरक्षा पहुँचने में असफल रहे हैं और परिणामस्वरूप जो अभी तक खराब स्वास्थ्य, शिक्षा और आय निर्वाह स्तर पर जीवनयापन कर रहे हैं |  फिर भी कुल मिलाकर बढ़ी हुई साक्षरता दर, गरीबी में कमी इत्यादि अनुसूचित जनजाति की सामाजिक-आर्थिक दशा में सुधार, किए गए निवेश के अनुपात में नहीं है |  भारतीय समुदाय के अन्य हिस्सों की तुलना में जनजातीय आबादी का मानव विकास सूचकांक सबसे नीचे है |  इसके अलावा, वे सांस्कृतिक और भौगोलिक बहिष्कार से भी पीड़ित हैं, जो मानव विकास सूचकांक में शामिल नहीं है | इसी तरह अपने लिए चयन हेतु सशक्तिकरण की कमी पर भी ध्यान नहीं दिया गया है |  जनजातीय आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीबी रेखा के नीचे जीता है और उच्च शिशु मृत्यु दर, भयंकर कुपोषण, विभिन संक्रामक रोगों, कम साक्षरता दर और विकास की अत्यंत धीमी गति से पीड़ित है |  अधो-विकास के अलावा वे जनजातीय क्षेत्रो में समुचित प्रशासनिक एवं न्यायिक तंत्र की कमी से और भी ज्यादा वंचित हो गए हैं |

1.9  स्वाधीनता के समय से ही जनजातीय क्षेत्रों में प्रारंभिक मूलभूत ढाँचे का स्त्रोत उनके अनुकूल नहीं रहा है |  जनजातीय क्षेत्रों में सामाजिक और भौतिक अवसंरचना अपर्याप्त तथा अन्य क्षेत्रों की तुलना में बहुत निचले स्तर की रही है जिसके कारण जनजातीय अर्थव्यवस्था में संस्थागत वित्तपोषण सहित निधियों का अवशोषण करने की क्षमता कम है |  इसके अलावा, जनजातीय क्षेत्रों की तथा देश के अन्य भागों की मूलभूत सुविधाओं के बीच का अंतर तेजी से बढ़ रहा है |  देश के अन्य भागों में मूलभूत सुविधाओं के विकास में योगदान देनें वाले निजी क्षेत्र भी जनजातीय क्षेत्रों को छुआ तक नहीं है |

1.10  जनजातीय समुदायों का संपूर्ण जीवन के सान्निध्य में बीतता है और प्रकृति के संरक्षण के साथ सामंजस्य बना रहता है |  अनुसूचित जनजातियों एवं वनों के बीच बहुत मजबूत सहजीवी बंधन है तथा वे संरक्षण के मोर्चे पर सबसे आगे रहे हैं |  विगत में वनों की दोषपूर्ण घोषणा प्रक्रिया के कारण वनों में जनजातियों की जोत की पारंपरिक भूमियों पर अधिकार धीरे-धीरे समाप्त होते गए |  पट्टे की असुरक्षा तथा इन भूमियों से बेदखल होने के खतरे ने जनजातीय समुदायों को भावनात्मक एवं भौतिक रूप से वनों एवं वन्य भूमियों से विमुख कर दिया है |

1.11  जनजातीय अर्थव्यवस्था में भूमि का स्वामित्व उनकी आजीविका, संस्कृति का ध्योतक है और इससे उनकी एक और पहचान बनती है |  अनुसूचित जनजातियों के पास प्रायः ऐसी भूमि होती है जो अनुर्वर ढालू जमीन होती है |  लेकिन ये जमीनें भी बाहरी शक्तियों के कारण अनुसूचित जनजातियों के कब्जे से निकलती जा रही है |  जनजातीय क्षेत्रों में दयनीय भू-अभिलेख प्रणाली तथा उनकी अशिक्षा, गरीबी एवं अज्ञान तथा अन्य लोगों के लालच के कारण कई दशकों से संसाधनों का जनजातियों से गैर-जनजातीयों को हस्तांतरण हो रहा है |  प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँच एवं कब्जे छूटने के कारण वे बहिष्कार एवं आर्थिक दरिद्रता के शिकार हो रहे हैं, यहाँ तक कि उनकी स्थिति प्रवासी श्रमिक, रिक्शा चलाने वाले एवं बोझा ढोने वालों जैसी हो गई है और वे सामाजिक-मनोवैज्ञानिक रूप से बिखर गए हैं |
  
1.12  विभिन्न विकासात्मक कार्यों के कारण जनजातियों का अपनी भूमि से विस्थापन या जबरन बेदखली काफी समय से एक गंभीर समस्या रही है |  इससे उनकी कठिनाईयां और बढ़ गई हैं |  विकासात्मक परियोजनाओं के कारण विस्थापन होता है |  इन परियोजनाओं में वृहत सिंचाई या जल परियोजनाएं, कोयला एवं अन्य खानें, ताप विद्युत संयंत्र एवं खानिज आधारित औद्योगिक इकाइयां शामिल होती हैं |  कानूनन (डी ज्यूरे) विस्थापन के साथ अक्सर व्यापक रूप से वास्तविक (डी फेक्टो) विस्थापन जुड़े होते हैं, जो "जोन ऑफ इन्फलयून्स" के नाम से जाने जाते हैं |  एक ओर जहां अनुसूचित जनजाति अपनी भूमि, आजीविका एवं सामुदायिक जीवन प्रणाली से वंचित हो जाती हैं वहीँ दूसरी ओर अन्य लोग विकास के लाभों से समृद्ध हो जाते हैं |  अक्सर वित्तपोषण सार्वजनिक राजकोष से किया जाता है और पूरे प्रभावित क्षेत्र में यह कार्य होता है |  विस्थापित जनजातियों के अपर्याप्त पुनर्वास से उनके दुखों में वृद्धि हो रही है, वे साधन विहीन, बेरोजगार होकर ऋण के बंधन में जकड़ते जा रहे हैं |

1.13  अनुसूचित क्षेत्रों के लिए सरकार ने एक अधिनियम पारित किया है जिसका नाम है "पंचायतों का प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार) अधिनियम, 1996" (जो पेसा अधिनियम) के नाम से प्रसिद्ध है |  इस अधिनियम का उद्देश्य जनजातीय समाज को प्राकृतिक संसाधनों पर अपने पारंपरिक अधिकार सुरक्षित एवं संरक्षित करने के लिए अपने भाग्य को नियंत्रित करने के लिए योग्य बनाना है |  पेसा की अपेक्षा है कि जहां कहीं राज्य सरकारों के क़ानून केन्द्रीय क़ानून के अनुरूप नहीं हैं, वे अपने मौजूदा कानूनों में परिवर्तन करें |  लेकिन वास्तविकता में इसके पारित होने के दशकों बाद भी जो कुछ किया गया, वह काफी कम है |  कई राज्यों नें क़ानून पारित किए या मौजूदा कानूनों में परिवर्तन किया, लेकिन वे पूर्णतः केन्द्रीय क़ानूनों के अनुरूप नहीं हैं |  कई राज्य सरकारों द्वारा क़ानून की आत्मा के अनुरूप नियम और क़ानून बनाने की अनिच्छा के चलते भी क़ानून का कार्यान्वयन बाधित हुआ है |  जनजातीय समुदायों का सशक्तिकरण न होना भी विकास से सम्बंधित धन संबंधी अथवा अन्य सभी हस्तक्षेपों में वांछित से कम परिणाम देने का महत्वपूर्ण कारक रहा है |

1.14  जनजातियों की ऐसी उपेक्षा का परिणाम यह हुआ की अनुसूचित/जनजातीय क्षेत्र उपद्रवकारी समूहों के क्रीड़ास्थल बन गए जो शोषितों के असंतोष और क्रोध का फायदा उठा रहे हैं |  आज जनजातीय क्षेत्र का एक बड़ा भू-भाग विद्रोही गतिविधियों से प्रभावित है और बड़ी संख्या में आदिवासी उनके दृष्टिकोण के प्रति सहानुभूति रखते हैं |

1.15  ऐसे समय में, जब देश 8% से 9% की दर से जीडीपी विकास दर प्राप्त करने के लिए बढ़ रहा है, और भारतीय समाज का ताना बाना यदि इसी तरह से बनाए रखना हो ताकि वह कई भागों में विदीर्ण न हो तो यह सुनिश्चित करना आवश्यक होगा कि "इन्कलूसिव डेवलपमेंट" की अवधारणा के अनुसार समाज के सभी वर्ग इसके सहभागी बने और विकास से लाभान्वित हों |  आदिवासी उपेक्षा, दोहन और गैर-सशक्तिकरण जरूरतों से संबंधित मामलों पर शीघ्र ध्यान देने की जरूरत होगी |

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2.  नीति की आवश्यकता

2.1  यद्यपि भारत के संविधान में अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण और विकास के लिए तथा अनुसूचित जनजातियों और अन्य कमजोर समूहों के लिए लेवल प्लेइंग फील्ड सुनिश्चित करने के लिए कई प्रावधान विनिर्दिष्ट हैं तथा इसी उद्देश्य से कई अन्य केन्द्रीय और राज्य अधिनियम, साधन और उद्घोषणा विद्दमान हैं, तथापि ऐसी कोई भी नीति नहीं हैं, जो अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण और विकास की समस्या पर ध्यान देने से संबंधित हो |

2.2  कम एचडीआई, घटिया आधारभूत अवसंरचना; प्राकृतिक संसाधन आधार पर घटते नियंत्रण से संबंधित समस्याओं के समाधान की दृष्टि से अपने रहने के स्थान से बेदखल होने का निरंतर बना हुआ भय, समाज की प्रमुख धारा से अलग-थलग और संपदा और अवसरों के वितरण में असमानता और गैर-सशक्तिकरण तथा अनुसूचित जनजातियों को प्रगति और रचनात्मक मार्ग पर लाने के लिए, तथा राष्ट्र निर्माण में उन्हें सक्रिय सहभागी बनाने के लिए अनुसूचित जनजातियों से संबंधित एक राष्ट्रीय नीति का होना आवश्यक है |  यह नीति एक ओर जहां संवैधानिक रक्षोपायों को वास्तविक जामा पहनाने में मददगार होगी वहीँ इससे सामाजिक-आर्थिक विकास भी होगा |  यूपीए सरकार ने भी अपने राष्ट्रीय साझा न्यूनतम कार्यक्रम में सामाजिक-आर्थिक विकास के साथ-साथ जनजातीय समुदायों के अधिकारों के संरक्षण के बारे में अपनी प्रतिबद्धता दर्शाई है |


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3.  नीति के मार्गनिर्देशक सिद्धांत

3.1  नीति के मार्गदर्शक सिद्धांत इस प्रकार हैं :

1)    अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक और राजनैतिक सशक्तिकरण से संबंधित भारत के संविधान में विनिर्दिष्ट और संरक्षित सिद्धांतों (अनुच्छेद 14, 15(4), 16(4), 16(4ए), 46, 243(डी), 244(1), 244(2), 275(1), 330, 332, 335, 338(ए) 339(1), 340, 342, पेसा अधिनियम के माध्यम से अनुसूचित क्षेत्रों तक 73वें और 74वें संविधान संशोधन का विस्तार) है |
2)   नेहरु जी का पंचशील सिद्धांत |

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4.  नीति के उद्देश्य

4.1   राष्ट्रीय जनजाति नीति के उद्देश्य निम्नांकित होंगे :

विनियामक संरक्षण :

       एक ऐसा वातावरण बनाना जो विभिन्न अनुसूचित जनजाति समुदायों की परम्परागत प्रणाली और रीतियों तथा उन्हें प्राप्त अधिकार और रियायतों के संरक्षण और इनके साथ सामाजिक-आर्थिक विकास के तरीकों में सामंजस्य स्थापित करने में सहायक हों ;

-     अनुसूचित जनजातियों के स्वामित्व वाली भूमि को किसी अन्य को स्थानांतरण का निवारण तथा गलत तरीके से स्थानांतरित भूमि का कब्जा वापिस दिलाना ;


-     उपयुक्त क़ानून बनाकर और सभी वन ग्रामों को राजस्व ग्रामों में परिवर्तित करके वन भूमि और अन्य वन अधिकार, जिसमें लघु वन उत्पाद (एमएफपी), खनिज और जल निकायों पर स्वामित्व सम्मिलित हैं, का संरक्षण करना और अधिकार  प्रदान करने के लिए क़ानून बनाना |


-     विस्थापन को न्यूनतम करने की दृष्टि से पुनर्स्थापना और पुनर्वास के लिए कानूनी ढांचा उपलब्ध कराना, यह सुनिश्चित करना कि प्रभावित लोग प्रभाव क्षेत्र में विकास के सहभागी हैं, भूमि के बाजार मूल्य के अतिरिक्त सामाजिक और अवसर लागत की क्षतिपूर्ति करना और समान संपदा संसाधनों पर अधिकार प्रदान करना |

-     वास्तविक वर्तमान मूल्य (एनपीवी) की संकल्पना |


-     पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार) अधिनियम, 1996 के प्रावधानों और भावना के अनुकूल स्व-शासन और स्व-नियम को बढ़ावा देने के लिए जनजातीय समुदायों का सशक्तिकरण |

-     सभी स्तरों पर राजनैतिक निकायों में आदिवासियों की ज्यादा से ज्यादा और सक्रीय सहभागिता के सुनिश्चयन के लिए राजनैतिक अधिकारों का संरक्षण |

सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण 

-     आदिवासी आबादी और सामान्य आबादी के एचडीआई में अंतर को कम करना एवं उसका निवारण करना तथा इनको 2020 तक बराबरी पर लाना |

-     ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक आदिवासी जनजातियों को शेष की बराबरी लाने के लिए हर वर्ष शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर न्यूनतम पांच प्रतिशत और माध्यमिक स्तर पर न्यूनतम तीन प्रतिशत के ड्रापआउट दर में कमी ;


-     ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं, सुरक्षित पेयजल आदि बेहतर स्वच्छता तक पहुँच का सुनिश्चयन ;


-     गरीबी रेखा से नीचे के सभी अनुसूचित जनजाति परिवारों को प्रतिमास प्रति परिवार 25 किलोग्राम खाद्यान्न उपलब्ध कराकर और इस समुदाय को पीडीएस के प्रबंधन तथा स्वामित्व का स्थानातरण करके खाद्य सुरक्षा का सुनिश्चयन |

-     प्राकृतिक संसाधन आधार की उत्पादन क्षमता को बेहतर बनाकर कम से कम 100 दिन के रोजगार की गारंटी के अतिरिक्त जीविका अवसर उपलब्ध कराना ताकि हर वर्ष गरीबी रेखा से अनुसूचित जनजाति के लोगों की संख्या में कम से कम 2 प्रतिशत की कमी लाई जा सके और 2020 तक उन्हें शेष जनसंख्या के बराबर लाया जा सके |


-     अनुसूचित जनजातियों, विशेष रूप से महिलाओं का सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक सशक्तिकरण ताकि वे अपने प्राकृतिक संसाधन आधार पर अपना प्रभावी नियंत्रण बनाए रखने और सभी विकल्पों की जानकारी के साथ निर्णय लेने में समर्थ हो सकें |


-     संसाधनों के इष्टतम समुपयोजन के लिए तथा अपेक्षित विकास स्तर प्राप्त करने के लिए अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों में भौतिक और सामाजिक आधारभूत संरचना का सृजन करना ताकि इसे 2020 तक राज्य के शेष क्षेत्रों के साथ बराबरी पर लाया जा सके |

-     ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक जनजातीय क्षेत्रों में कुल सिंचाई शक्यता के 50% की क्षमता का उपयोग और कुल शक्यता का 2020 तक उपयोग ;

सांस्कृतिक एवं परंपरागत अधिकार

-     जनजातियों के अंतर्नीहित कौशल को प्रोत्साहित करके स्थानीय, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर अनुसूचित जनजाति लोगों की खेलकूद और संस्कृति में सहभागिता को बढ़ाना और तक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में उनकी सहभागिता का सुनिश्चयन ;

-     मानकीकरण, अभिकल्प सहायता, ब्रांडिंग और संगठित विपणन के माध्यम से जनजातीय हस्तशिल्प और आर्गेनिक और नृजातीय (एथनिक) उत्पादों का संवर्धन और विकास तथा 2020 तक उत्पादों के लिए विशिष्ट बाजार बनाना ;

-     एल्कोहल और ड्रग, टोना-टोटकों आदि जैसी बुराईयों और असामाजिक व्यवहार-पद्धतियों के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना और उनका निवारण करना |

-     विरासत में संपदा के प्राप्त होने से सम्बंधित ऐसी रीतियों की जांच, जिसमें महिलाओं को उससे अलग रखा जाता है तथा ऐसी रीतियों में संशोधन ;

विशेषाधिकारों तक पहुँच

-     जनजातियों की सूची में सम्मिलित किरने के लिए नए समुदायों की बढती मांग पर प्रक्रिया के युक्तिकरण द्वारा नियंत्रण |

-     कुछ जनजातियों को अनुसूची से हटाने और विद्दमान जनजातियों के उप-वर्गीकरण की आवश्यकता की जांच करना ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि 2020 तक सभी जनजातियों के लोगों को मिलने वाले लाभ समान रूप से मिल सकें |

-     विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों की जरूरतों के अनुकूल सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक विकास से संबंधित संरक्षण एवं विकास सूक्ष्म योजनाओं के निरूपण द्वारा पीटीजी, जिसे विशेष कमजोर जनजातीय समूह का नाम दिया जाना है, के विकास पर ध्यान केन्द्रित करना; ताकि 2020 तक उन्हें अन्य जनजातियों के बराबर लाया जा सके ;


-     आवश्यकता आधारित विशिष्ट कार्यक्रमों के माध्यम से यायावरी जनजाति (नोमेडिक) और अर्ध-यायावरी (सेमी-नोमेडिक) जनजातियों का वीकास ;

बौद्धिक संपदा अधिकार

अनुसूचित जनजातियों के बौद्धिक संपदा साम्राज्य का संरक्षण और वाणिज्यिक फार्मेट पर इसमें उपयुक्त समुपयोजन ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके अधिकार और हिस्से से कोई छेड़छाड़ न की जा सके |

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5.  रणनीति

5.1  नीति के उद्देश्य प्राप्त करने के लिए मुख्य रूप से निम्नांकित रणनीती अपनाई जाएगी ;

-     अनुसूचित/ जनजातीय क्षेत्रों में संस्थागत प्रबंधों का पुनः उन्मुखीकरण, जिसमें जिलों में गवर्नेंस और डिलीवरी को बेहतर बनाने के लिए प्रशासनिक मशीनरी का सुदृढ़ीकरण और सुधार करना सम्मिलित है ;

-     कुछ सहमत संकेतकों (जैसे अनुसूचित जनजातियों को वापिस दिलाई गई भूमि, अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं के सशक्तिकरण के लिए राज्य सरकारों द्वारा नीति संशोधन, वनों और प्राकृतिक संसाधनों पर अनुसूचित जनजातियों का नियंत्रण और पहुँच, शिशु मृत्यु दर में सुधार, महिला साक्षरता दर, सुरक्षित पेयजल की उपलब्धता, अनुसूचित जनजातीय घरों का विद्धुतीकरण ; सभी जलवायु मार्गों से जोड़े गए जनजातीय गांवों की प्रतिशतता आदि) के आधार पर जनजातीय जिलों और पूरे राज्य से सम्बंधित परिमाणनीय जनजाति विकास सूचकांक का निर्माण करना तथा नियत अंतरालों पर मूल्यांकित जनजातीय विकास सूचकांकों में सुधार करने से संबंधित निधि स्थानांतरण को लिंक करना ताकि 2020 तक अनुसूचित जनजातियों और जनजातीय क्षेत्रों को बराबरी पर लाया जा सके |

-     शिथिल किए गए मानदंडों और जनजातियों की विशिष्ट सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक जरूरतों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए संबंधित मंत्रालयों व विभागों द्वारा सामाजिक और विकास क्षेत्रों में एक पृथक जनजातीय केन्द्रित रणनीति तैयार करना ;


-     जनजातीय क्षेत्रों में 195 आईटीडीपी/ आईटीडीए ; 259 माडा और 82 क्लस्टरों, जो कि जिला ग्रामीण विकास अभिकरणों (डीआरडीए) से भी पहले स्थापित हो चुके थे, को सुदृढ़ करना ताकि वे अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों में प्रशासन की प्रभावी प्रशासनिक इकाई का रूप ले सकें और अनुसूचित जनजातियों से संबंधित सभी विकास और विनियामक कार्यों के लिए एक फोकल प्वाइंट का रूप ले सकें |  टीएसपी निधियों से प्रशासनिक लागत पूरी की जाएंगी |

-      अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों में सिंगल लाईन प्रशासन का प्रारम्भ |

-     अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों में क्षेत्र आयोजना दृष्टिकोण अपनाना और इकोनोमी आफ स्कूल को प्रोत्साहित करना ;

-     जनजातीय उपयोजना रणनीति का पूरी सद्भावना से अनुपालन ताकि नान-लेप्सेबल और नान-डायवर्टिबल ढंग से एक ही बजट शीर्ष के माध्यम से अनुसूचित जनजाति आबादी के अनुपात में केंद्र और राज्य स्तर पर निधियों का आनुपातिक प्रवाह सुनिश्चित किया जा सके ;

-     पूरे जनजातीय क्षेत्रों में संसाधनों को सामान रूप से विस्तृत करते हुए, स्थानीय दशाओं एवं बिना किसी अन्य कार्यक्रमों के साथ संपर्क के अनुसूचित जनजातियों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए प्रयासों एवं संसाधनों का अभिसरण करना |

-     दूरस्थ और कठिन क्षेत्रों में सरकारी अधिकारियों/ कर्मचारियों जैसे अध्यापक, डॉक्टर, पैरा-मेडिकल और अन्य तकनीकी और विभिन्न विभागों के विस्तार (एक्सटेंशन) स्टाफ की उपस्थिति के सुनिश्चन के लिए उपयुक्त कार्मिक नीति तैयार करना ;

-     सेवा अभाव वाले दूरस्थ क्षेत्रों में स्वैच्छिक कार्रवाई का समर्थन ;

-     उपर्युक्त संचार रणनीति का विकास करना ताकि अनुसूचित जनजातियों तक पहुँच को कारगर बनाया जा सके ;

-     विभिन्न मामलों का अध्ययन करने और कार्रवाई योग्य बिंदुओं की पहचान के लिए शिक्षण, नृविज्ञानीय और नीति अनुसंधान को प्रोत्साहित करना ;

-     परिमाणनीय उपलब्धियों से सम्बद्ध समवर्ती फीडबैक और निष्पादन मूल्यांकन से सम्बंधित प्रभावी प्रबोधन और मूल्यांकन तंत्र की संस्थागत प्रणाली की स्थिति प्रदान करना ;

-     पीडीएस आपूर्ति जैसे विभिन्न कार्यक्रमों के अंतर्गत संसाधनों और लाभों को सीधे ही ग्राम सभाओं को स्थानांतरित करने के लिए पेसा अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप समुदाय का सशक्तिकरण ताकि कार्यक्रमों की आयोजना और कार्यान्वयन में समुदाय की सहभागिता और नियंत्रण सुनिश्चित किया जा सके |

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6.  जनजातीय भूमि का हस्तांतरण : काश्तकारी असुरक्षा

6.1   भूमि, मिश्रित खेती व्यवस्था में कृषि, स्थिर और परिवर्तन दोनों, बागवानी, वानिकी और पशुपालन के लिए जनजातियों की जीविका का अत्यंत महत्वपूर्ण स्त्रोत है |  चूंकि भूमि राज्य का विषय है, इसलिए, विभिन्न राज्यों ने जनजातीय भूमि के हस्तांतरण के निवारण के लिए क़ानून बनाए हैं |  तथापि, लोगों ने इन कानूनों से बचने के लिए कई रास्ते निकाल लिए हैं |  जनजातीय भूमि का हस्तांतरण अकेला ही एक ऐसा महत्वपूर्ण कारण है जो जनजातियों की दरिद्रता और उनकी कमजोर आर्थिक स्थिति को घोर अनिश्चितता के लिए जिम्मेदार है |  चिंता की बात यह भी है कि इनके हाथ से गई भूमि अधिकतर अधिक उपजाऊ होती है और उन्हें घटिया गुणवत्ता वाली भूमि पर ही खेतीबाड़ी करने के लिए मजबूर होना पड़ता है जो कि खराब मौसम और वर्षा के दौरान किसी काम की नहीं रह पाती |  भूमि का स्थानांतरण नाजुक जनजातीय अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी होता है |  बड़ी संख्या में गैर-जनजातियों के अनुसूचित क्षेत्रों में प्रवास से भूमि के स्वामित्व में भी परिवर्तन आया है, जिससे अनुसूचित जनजातियों का अहित हुआ है |  इस नीति के माध्यम से, यह सुनिश्चित किया जाएगा कि जनजातीय भूमि का अवैध हस्तांतरण का निराकरण हो और हस्तांतरित भूमि जनजाति के लोगों को वापिस मिले :

(क)   राज्य के हस्तांतरण-रोधी भूमि कानूनों की समीक्षा की जाएगी और उनमें पाई गई कमियों को दूर किया जाएगा ; उन्हें स्पस्ट और सख्त बनाया जाएगा और उन्हें पैसा अधिनियम के अनुरूप बनाया जाएगा |

(ख)   नोडल मंत्रालय विभिन्न राज्य कानूनों में बचाव के रास्तों का त्वरित अध्ययन करेगा और दोनों अर्थात हस्तांतरित भूमि की बहाली और आगे होने वाले हस्तांतरण को रोकने के लिए माडल विधि का निर्माण करेगा |

(ग)   यह भी आवश्यक है कि भारतीय पंजीकरण अधिनियम, जो कि एक केन्द्रीय अधिनियम है, में संशोधन किया जाए ताकि जनजातीय क्षेत्रों में जनजातियों के नाम पंजीकृत विनिर्दिष्ट भूमि के हस्तांतरण को गैर-जनजातियों के नाम पंजीकरण का निवारण किया जा सकें | हस्तांतरी को शपथ-पत्र के साथ संगत दस्तावेज संलग्न करना अपेक्षित होगा जिसमें यह उल्लेख हो कि क्या हस्तांतरी अनुसूचित जनजाति अथवा अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के लिए ही गठित पंजीकृत सोसायटी का सदस्य है अथवा नहीं |

(घ)   भूमि की पुनः बहाली की प्रगति की सावधानीपूर्वक निगरानी इन बातों को ध्यान में रखते हुए की जाएगी ; कुल हस्तांतरित क्षेत्र का निर्धारण, राज्यों के लिए पुनः बहाली का वार्षिक लक्ष्यों का निर्धारण |  यह निगरानी राज्यों में मुख्य सचिव के स्तर पर उच्च स्तरीय शक्तिप्राप्त समिति, (जिसमे जनजातीय क्षेत्रों में कार्य का अनुभव रखने वाले सिविल सोसायटी के कम से कम दो सदस्य भी सम्मिलित हों) करेगी |

(ड.)  जनजातीय भूमि हस्तांतरण के मामलों से निपटने के लिए अनुसूचित क्षेत्रों में विशेष फास्ट ट्रेक-न्यायालयों की स्थापना की जाएगी | मुकदमों के हर चरण पर जनजातीय लोगों को समय पर सक्षम कानूनी सहायता उपलब्ध कराई जाएगी |  न्यायपालिका से कहा जाएगा की जनजातीय भूमि के हस्तांतरण के मामलों के निपटान के लिए एक समय-सीमा जो की 2 वर्ष अथवा 3 वर्ष हो सकती है, अपनाने पर विचार करे |

(च)   अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि के रिकार्ड को कंप्यूटरीकृत और अद्धतन किया जाएगा |  जब भी कभी जनजातियों को भूमि का वितरण किया जाएगा, तो यह पति-पत्नी दोनों के संयुक्त नाम से दर्ज की जाएगी अथवा केवल महिला के नाम ही दर्ज की जाएगी | अनुसूचित जनजातियों के प्रत्येक भूमिहीन परिवार को कम से कम एक हेक्टेयर भूमि आवंटित करने के प्रयास किए जाएंगे |

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7.  जनजातीय वन अंतरापृष्ठ (इंटरफेस)

7.1   भारतीय वन सर्वेक्षण रिपोर्ट, 2003 के अनुसार देश के 63% वन क्षेत्र का लगभग 60.04% और घने वनों का 63% वन क्षेत्र 187 जनजातीय जिलों के अंतर्गत आता है, जबकि इन जिलों का भौगोलिक क्षेत्र देश के भौगोलिक क्षेत्र का केवल 33.6% है |  58 जिलों में से, (जिनका 67% क्षेत्र वन क्षेत्र हैं) 51 जिले जनजातियों के जिले हैं |  आदिवासी जिलों में वन क्षेत्र के 2001 और 2003 के मूल्यांकन की तुलना से पता चलता है कि 3,21,100 हेक्टेयर की निवल वृद्धि हुई है, जो कि आदिवासियों और वनों के बीच एक मरबूत संबंधों का प्रतीक है |  इसमें कोई शंका नहीं है कि प्राकृतिक संसाधनों के रूप में वन पूरे भारत की संपदा है और इस पर हर नागरिक का बराबर का अधिकार है | तथापि, इस बात पर विचार करना होगा कि स्थानीय स्टेकहोल्डरों द्वारा अवसर लागतों सहित लागत वहन की जाए जबकि बिखरे हुए स्टेकहोल्डरों के समूह अर्थात सभी देशवासियों को लाभ प्राप्त हों |  जनजातियों को अपने समीपवर्ती क्षेत्रों को दृष्टिगत रखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता | अनुसूचित जनजातियों को वासभूमि या जीविकोपार्जन का अधिकार प्रदान किए बिना उन्हें अपने परिवेश से विमुख होने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, भले ही यह विमुखीकरण राष्ट्र हित की बात हो |

7.2   विगत में वनों की घोषणा की दोषपूर्ण प्रक्रिया के कारण वनों में जनजातियों की अपनी परंपरागत जोत की भूमि पर अधिकार धीरे-धीरे समाप्त हो गए हैं |  भूमि पर अधिकतर बने रहने की अवधि के प्रति असुरक्षा और भूमि से बेदखल होने के भय के कारण जनजातीय समुदायों का वनों और वन भूमि से भावनात्मक रूप से और भौतिक रूप से मोह भंग हो गया है |  विभिन्न कारणों जैसे मानव-हीन वनों के संरक्षण पर बढ़ते बल के कारण वनों और वनों के आसपास रहने वाले आदिवासियों की दशा अनिश्चित और कमजोर होती जा रही है |  वनों के अंदर रहने वाले जनजातीय लोगों को अपने नाम में कोई जमीन न होने के कारण विभिन्न कल्याण स्कीमों के लाभ नहीं मिल पाते हैं |  उनके नाम जमीन न होने के परिणामस्वरुप वे विभिन्न हकधारिता से वंचित रहते हैं जैसे बैंक ऋण, अधिवास प्रमाणपत्र, सरकार की व्यक्ति लाभ स्कीमों जैसे इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत कुओं का निर्माण, गृह निर्माण आदि |

7.3   अधिकतर जनजातीय परिवारों की जीविका का प्रमुख स्त्रोत एमएफपी का संग्रहण एवं विपणन है, जो उनकी कुल आय का 70% है |  पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार) अधनियम, 1996 के माध्यम से जनजातियों को एमएफपी का स्वामित्व, नियंत्रण एवं प्रबंधन का हस्तांतरण कर देने के बावजूद एमएफपी के संग्रहण और व्यापार पर बड़े पैमाने पर राज्यों के वन विभागों के निगमों का एकाधिकार है, कम से कम उच्च मूल्य उत्पादों के मामलों में |  बहुत से मामलों में, जैसे कि तेंदू पत्ते का ठेकेदारों के माध्यम से वन निगमों द्वारा व्यापार किया जाता है और जनजातीय लोगों को श्रमिकों के रूप में नियुक्त किया जाता है |  लघु वन उत्पादों पर अधिकार न दिए जाने से वनों में एवं वनों के आसपास रहने वाले जनजातीय लोगों के हितों और अधिकारों का अतिक्रमण होता है |  इस नीति के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि :

क)   राज्य सरकारें वन्य अनुसूचित जनजातियों की सुरक्षा प्रदान करने के लिए ऐसे क़ानून बनाए जिनमें उनके निम्नांकित अधिकारों को मान्यता प्रदान की जाए : वन्य भूमि (जिस पर स्वयं खेती की जाती हो) पर उनका अधिकार, एमएफपी का स्वामित्व ; जिसमे संग्रहण, व्यापार और प्रक्रिया के अधिकार सम्मिलित हैं ; एमएफपी के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का प्रावधान ; वन ग्रामों की राजस्व ग्रामों में तबदीली ; जल निकायों, जिसमे मछली पकड़ने के अधिकार, पेसा अधिनियम के अनुसार लघु खनिज पदार्थों पर अधिकार सम्मिलित हैं |

ख)   वैज्ञानिक वानिकी को उन्मुख वनाया जाएगा ताकि जंगली फल, बीज, एमएफपी, घांस, पत्ते और अन्य पर्यावरणीय संपदा वन भूमि से मिलने वाले प्रमुख उत्पादों का रूप ले सकें और इमारती लकड़ी उसका उप-उत्पाद बन सके |  जब से वानिकी उत्पादन की संकल्पना अस्तित्व में आई है, नीति इसके विपरीत रही है |

ग)   वन निगमों का एकाधिकार समाप्त किया जाएगा और सच्चे अर्थो में एमएफपी का स्वामित्व संस्थागत सहायता के साथ समुदायों को न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान करते हुए सौंपा जाएगा |

घ)   आसान प्रसंस्करण गतिविधियों, जैसे कि झाड़ू बनाना, पत्तल बनाना, इमली का प्रसंस्करण, चटाई और रस्सी बनाना तथा अन्य आसान मूल्यवर्धन गतिविधियों को घरेलु/ कुटीर क्षेत्र में प्रोत्साहित किया जाएगा |  लघु स्तर के वन-आधारित प्रतिष्ठानों को इनपुट सामग्रियों की सतत आपूर्ति सुनिश्चित करते हुए समर्थन प्रदान किया जाएगा | प्रबंधकीय और प्रौद्योगिकीय सहायता प्रदान करते हुए, ऋण तक पहुँच को बेहतर बनाते हुए, वन उत्पादों के लिए बेहतर मूल्य प्रदान करने, ग्रामीणों को मदद करने, विपणन समर्थन उलब्ध कराने तथा सतत जीविका के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा |

ड.)  आदिवासी जीविका के अवसरों को कई गुणा करने के लिए और वनों के पुनः रोपण और उत्पादन में उन्हें सम्मिलित करने के लिए राज्य वृक्षों की अंधाधुंध कटाई को रोकने के लिए सख्त उपाय करेगा ; दीर्घ, मध्यम और अल्पावधि विभेदात्मक किस्मों के रोपण के माध्यम से वनरोपण में वनों और वनों के आसपास रह रहे अनुसूचित जनजातियों के स्वयं-साहायता समूह बनाए जाएंगे और उन्हें रोजगार प्रदान किया जाएगा, स्थानीय रूप से एमएफपी वस्तुओं की प्रोसेसिंग को प्रोत्साहित किया जाएगा ताकि मध्यस्थों की संख्या कम की जा सके और बेहतर लाभ प्राप्त किए जा सकें |  राजस्व उद्देशों को दूसरे नंबर पर रखकर अनुसूचित जनजातियों के लोगों के आर्थिक कल्याण का पहला कार्य जीवनपर्यंत अधिकार और स्थानांतरणीय वन संसाधनों से संबंधित होगा |


च)   वर्तमान पद्धतियों को बेहतर बनाने के लिए अनुसंधान और विस्तार कार्य प्रारम्भ किए जाएंगे, आउटपुट और आय में वृद्धि की जाएगी और प्रतिकूल पारिस्थिकी प्रभावों का निराकरण किया जाएगा |


7.4   झूम अथवा पोडू के नाम से जानी जाने वाली शिफ्टिंग खेती ऐसी कृषि पद्धति है, जो प्रमुख रूप से जनजातियों द्वारा की जाती है, तथा सामान्तया ऐसे ढालू पर्वत्रीय क्षेत्रों में की जाती है, जहां खेतीबाड़ी की कोई अन्य पद्धति व्यवहार में नहीं लाई जा सकती |  यह पद्धति मुख्य रूप से देश के उत्तर-पूर्व में और उड़ीसा, आंध्र प्रदेश और झारखंड में विद्दमान है |  प्रेक्टिशनर टेरेस और कंटूर बाँध और मृदा संरक्षण को न्यूनतम करने के लिए मृदा को बांधे रखने वाले पौधों की किस्में लगा सकते हैं |  अंदरूनी क्षेत्रों में, जहां अभी संचार व्यवस्था विकसित नहीं है, टेरेसिंग के लिए उपयुक्त पर्याप्त भूमि उपलब्ध नहीं है तथा जनजाति के लोगों की ऋण अथवा विस्तार तक पहुँच नहीं है, झूम खेती ही एक ऐसी पद्धति है, जो खेती के लिए संभव है |  सीधी ढाल वाले क्षेत्रों में उपयुक्त सीडबेड तैयार करने में होने वाली कठिनाई से बचने का एक यही व्यावहारिक मार्ग है |  कई कारणों से फसल चक्र की अवधि को कम किया गया है, जैसे जनजातीय भूमि को संपन्न कृषक वर्ग द्वारा ले लेना अथवा इसका परियोजनाओं में प्रयोग हो जाना ; जनसंख्या में वृद्धि आदि |  परिवर्तन खेती को प्राकृतिक वनों की भाँती हितकर मान लेना एक अवास्तविक बात होगी - यह एक कृषि पद्धति है जिसके अंतर्गत वनों का प्रयोग किया जाता है |  झूम खेती के बारे में महत्वपूर्ण बात यह है कि यह प्राकृतिक संसाधनों के सामूहिक स्वामित्व को संरक्षण और समर्थन प्रदान करती है |  इस नीति में इस बात को मान्यता प्रदान की गई है कि जिस भूमि ने पड़ती भूमि का रूप ले लिया है, वह वास्तव में पूरे झूम चक्र का एक भाग है और उस भूमि को झूम भूमि के रूप में संरक्षण प्रदान करने की आवश्यकता होगी |


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8.  विस्थापन, पुनर्स्थापना और पुनर्वास

8.1   राष्ट्रीय संसाधनों पर जनजातियों के समुदायों के परंपरागत अधिकारों को कानूनी रूप से समाप्त करने की प्रक्रिया कोलोनियल काल के दौरान शुरू हुई थी और राष्ट्र निर्माण के उद्देश्य से जनजातीय क्षेत्रों से प्राकृतिक संसाधनों का सतत दोहन करते रहने का कार्य स्वतंत्र भारत में जारी रहा |  देश के संसाधनों से समृद्ध क्षेत्रों को, जो अधिकतर अनुसूचित जनजातियों के परंपरागत निवास-स्थलों में स्थित हैं, जहां ज्यादातर गैर-हिमालयी वन, वन्य जीवन, जल और खानिज पदार्थ हैं, पूरे भारत के संसाधनों के रूप में देखा जाता रहा है और दुर्भाग्य से, स्थानीय अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों को समाप्त करके भूमि के लिए नाममात्र की क्षतिपूर्ति का भुगतान करके राष्ट्र के लिए उनका दोहन किया जाता रहा है |  परिणामस्वरुप, जनजातियां अपने निवास स्थानों और घरों को खंड-खंड होने, अपनी संस्कृति के विघटन और अपने समुदायों के बिखराव की साक्षी बनी |  क्षतिपूर्ति के रूप में दी गई धनराशी को भी जनजातीय समुदाय संभालकर नहीं रख सके और वह भी उनके हाथों से निकल गई और जो संसाधनों के स्वामी और संतुष्ट समुदाय थे, वे शहरी भीड़-भाड़ में रोजी-रोटी कमाने के लिए मजदूर बन कर रह गए और अनिश्चितता भविष्य की चिंता में उनका जीवन व्यतीत होने लगा |

8.2   विस्थापन एक बहु-आयामी मानसिक पीड़ा है, जिसके दूरगामी परिणाम होते हैं, जिसकी प्रतिपूर्ति करना सहज नहीं है |  चूंकि जनजातीय भूमि आमतौर से गैर-हस्तांतरणीय होती है, अतः भूमि बाजार अविकसित हैं और जनजातीय क्षेत्रों में भूमि प्राप्त करने की लागत काफी कम होती है |  इसलिए, क्षतिपूर्ति की दर अपर्याप्त होती है, सामान्यतया, यह नोशनल बाजार मूल्यों पर आधारित होती है |  निवल वर्तमान मूल्य (एनपीवी) की संकल्पना वन भूमि पर तब तक लागू होती है, जब इसका प्रयोग गैर-वानिकी प्रयोजनों के लिए किया जाता है, जिसके अंतर्गत गणना भविष्य में प्रोद्भूत प्राकृतिक संसाधन आधार के रूप में गणना की जाती है, विकास परियोजनाओं के लिए अनुसूचित जनजातियों से अधिग्रहित की जा रही भूमि पर लागू होना चाहिए | भूमि के अर्जन की लागत और परियोजना के कार्यान्वयन के पश्चात प्रभावित क्षेत्र में भूमि के मूल्य में अंतर काफी अधिक होता है |  परियोजना से मिलने वाले प्रत्यक्ष/ अप्रत्यक्ष डाउनस्ट्रीम लाभ के कारण प्रापर्टी का मूल्य काफी अधिक बढ़ जाता है |  इससे आवश्यकता से अधिक भूमि के अर्जन की प्रवृति को प्रोत्साहन मिलता है |  विशेष रूप से खनन कंपनियां जरूरत से ज्यादा भूमि का अधिग्रहण करती हैं |


8.3   परियोजना प्रभावित व्यक्ति (पीएएफ) और विशेष रूप से अनुसूचित जनजाति पीएएफ, वर्तमान नीति के अंतर्गत विकास और संपत्ति में होने वाली वास्तविक वृद्धि के लाभ प्राप्त नहीं कर पाते हैं, हालांकि इस विकास पर खर्च होने वाली धनराशि का बड़ा हिस्सा सार्वजनिक निधियों से प्राप्त होता है |  पीएएफ को परियोजना के प्रभावित कमान क्षेत्र/ जोन में अनिवार्य रूप से भूमि के बदले भूमि प्रदान करने का कोई प्रावधान नहीं है |  इसके अतिरिक्त क्षतिपूर्ति व्यक्तियों के लिए होती है न कि समुदायों के लिए |  सामुदायिक संपत्तियों और सामुदायिक मूल्यों और चरित्र का संरक्षण नही किया जाता है |  परियोजना प्रभावित परिवार, 2003 से संबंधित वर्तमान राष्ट्रीय पुनर्स्थापना एवं पुनर्वास नीति के अंतर्गत संपत्तियों की ही क्षतिपूर्ति की जाती है न कि जीविका की |  परिणामस्वरूप, अनुसूचित जनजातियां, जिनके पास थोड़ी-बहुत संपत्ति है और जो ज्यादातर कामन संपत्ति संसाधनों पर निर्भर करते हैं, उन्हें मिलने वाली क्षतिपूर्ति बहुत मामूली होती है और क्योंकि प्राप्त लागत क्षतिपूर्ति की राशि ऋण की वापसी एवं विस्थापन और पुनर्वास के बीच की अवधि में निर्वाह करने में ही समाप्त हो जाती है, वे और ज्यादा, निर्धन हो जाते हैं और परिणामस्वरुप उनके पास भविष्य की जीविका के रूप में कुछ शेष नहीं रहता |


8.4   बड़ी संख्या में माध्यमिक विस्थापनों के कारण गैर-परियोजना प्रभावित अनुसूचित जनजाति परिवार भी बुरी तरह से प्रभावित होते हैं और समाज के अल्प सुधाप्राप्त वर्गों के स्वामित्व वाली भूमि एक हाथ से दूसरे हाथ जाती रहती है |  सिंचाई, खनन और कृषि परियोजनाओं के कारण विधि सम्मत विस्थापन से वस्तुतः बड़ी संख्या में विस्थापन का कार्य होता है, क्योंकि समस्त प्राकृतिक वास विशेष रूप से प्रभावित क्षेत्र पर काफी अधिक हानीकारक प्रभाव पड़ता है |  इन परियोजनाओं के कारण समस्त अनुसूचित क्षेत्र में बड़े परिवर्तन आ जाते हैं, जिसमें जनसंख्या के गठन से होने वाला परिवर्तन प्रमुख है क्योंकि परिवर्तित स्थितियों में अनुसूचित जनजातियां प्री-डोमिनेंस स्थिति में नहीं रह पाती हैं और अंततः जिस संरक्षण के लिए वे कानूनी रूप से हकदार है, उससे वे वंचित हो जाते हैं |


8.5   ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा अधिसूचित एनपीआरआर-2003 में अनुसूचित जनजातियों से संबंधित प्रावधानों में पाई गई में विभिन्न कमियों में सम्मिलित है: लोगों के विस्थापन से संबंधित प्रस्तावों की स्वीकृति के लिए तंत्र का अभाव, आर एंड आर प्लान के कार्यान्वयन के अनुरक्षण के लिए कारगर नोडल एजेंसी की कमी, विभिन्न पद्धतियों को अपनाते हुए परियोजनाओं की स्वीकृति से संबंधित अभिकरणों/प्राधिकरणों की अतिशयता, पुनर्वास नीतियों की अतिशयता, भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 जैसे संगत विधानों में सम्बंधित संशोधनों को सम्मिलित न करना, पेसा अधिनियम में किये गए प्रावधान के अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं के साथ अनिवार्य परामर्श का अभाव, आर एंड आर की स्वीकृति के बिना भूमि अर्जन के कार्यों को आगे बढाने पर कानूनी प्रतिबंध का अभाव, भूमि की अवमूल्यन लागत, भूमि के बदले भूमि के संबंध में किसी प्रावधान का न होना, अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों से सम्बंधित किसी विशेष प्रावधान का आभाव, परियोजना के निष्पादन से पूर्व पुनर्स्थापना एवं पुनर्वास अग्रिम के सुनिश्चियन के लिए कोई क़ानूनी अनिवार्यता का न होना आदि |


8.6   इस निति के  फलस्वरूप अनुसूचित जनजातियों के लिए एक अधिक अनुकूल न्यायोचित एवं निष्पक्ष क़ानूनी व्यवस्था अस्तित्व में आएगी, जिसकी मुख्य विशेषताएं निम्नांकित है :

  • कम से कम या नहीं के बराबर विस्थापन के सिद्धांत का आवश्यक रूप से पालन किया जायेगा |  सभी तकनिकी/ वित्तीय/ विस्थापन विकल्पों का अन्वेषण किया जायेगा तथा इस आशय के यथोचित कारण दिए जायेंगे कि प्रस्तावित परियोजना में कम से कम विस्थापन हो रहा है  |
  • विस्थापन की एक सीमा होनी चाहिए, यथा-किसी एक परियोजना में विस्थापितों की अधिकतम सीमा निर्धारित हो |  यदि परियोजना क्षेत्र में अनुसूचित जनजातियों की बहुलता है तो किसी परियोजना और निरधारित सीमा, जैसे 50,000 व्यक्ति से अधिक लोग विस्थापित हो रहे हैं, तो इस परियोजना पर विचार नही किया जायेगा या फिर परियोजना पर कड़े मूल्यांकन मानदंड लागू होंगे  |
  • विकास परियोजना के प्रारंभ से पहले इसके सामाजिक प्रभाव के व्यापक मूल्यांकन किए जाएं  |
  • पेसा अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार समुदाय के साथ आवश्यक परामर्श के बाद विस्थापन होगा  |
  • उद्योग अथवा संस्थानों, निजी गैर-जनजातीय व्यक्तियों के स्वामित्व या नियंत्रण हेतु क्षेत्र को खोलने के लिए पांचवी तथा छटी अनुसूची के क्षेत्रों पर लागू कानूनों में कोई संशोधन नहीं किया जाएगा |
  • "सार्वजनिक प्रयोजन" की परिभाषा की पुनः समीक्षा की जाएगी |  आबादी के एक वर्ग के लिए जो सार्वजानिक प्रयोजन है वही जनजातीय लोगों के लिए विस्थापन की त्रासदी के रूप में सिद्ध हो सकती है  |
  • जनजातीय भूमि को अधिगृहीत करने के बदले पट्टे पर लेकर उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा तथा इसमें यह व्यवस्था होगी की पट्टे की अवधी समाप्त होने अथवा परियोजना के समय से पहले समाप्त होने के बाद उक्त भूमि असली जनजातीय मालिक को सौंप दी जाएगी  |
  • कमांड क्षेत्र या प्रभाव के जोन में भूमि के बदले भूमि के सिद्धांत का विवेकपूर्ण अनुपालन किया जाएगा |  इसके फलस्वरूप, परियोजनाओं, यथा सिंचाई परियोजना उपरि-प्रवाह क्षेत्र के विस्थापितों तथा अनुप्रवाह क्षेत्र के लाभान्वितों के बीच होने वाली अंतःनिर्मित असमानता को कम किया जा सकता है |
  • अनुसूचित क्षेत्रों से अनुसूचित जनजातीय लोगों के विस्थापन के मामले में जनजातीय परामर्शदात्री परिषद् के साथ परामर्श करना आवश्यक होगा |
  • अनुसूचित क्षेत्रों से विस्थापित किए जाने वाले अनुसूचित जनजातीय लोगों को अनुसूचित क्षेत्र में ही भूमि का आबंटन किया जाएगा |
  • क्षतिपूर्ति की गणना खोले गए वैयक्तिक भूमि अधिकार के विस्थापन मूल्य पर ही नहीं बल्कि भूमि के बाजार-मूल्य, शुद्ध वर्तमान मूल्य, अवसर मूल्य की क्षति, सामुदायिक अधिकार तथा जीविकोपार्जन के आधार पर की जाएगी |
  • उपलब्ध करायी जाने वाली नकदी क्षतिपूर्ति का निवेश ऐसे उद्यमों में किया जायेगा जिससे नियमित आय प्राप्त हो |  उदहारण के लिए संस्थागत ॠण के प्रतिपूरण के साथ इसे परियोजना स्टाफ के लिए निर्मित किए जाने वाले मकानों अथवा दुकानों के लिए निवेश किया जा सकता है, जिससे मासिक किराए इत्यादि के रूप में आय होगी |
  • भूमि एवं अन्य परिसंपत्तियां पति-पत्नी दोनों के नाम अथवा परिवार की महिला के नाम उपलब्ध करायी जाएगी |
  • अप्रयुक्त भूमि को एक नियत समय के बाद कृषि या अन्य उपयोग के उपयुक्त होने की स्थिति में मूल स्वामी या उसके उत्तराधिकारियों को वास्तविक रूप से वापस कर दिया जायेगा |
  • अनुसूचित क्षेत्रों (लघु उद्यमों को छोड़कर) में स्थापित औद्योगिक उद्यमों में समुदाय को उपयुक्त लाभ प्राप्त होंगे |  ये लाभ उक्त उद्योग में उन्हें भागीदार बनाने के रूप में भी हो सकते हैं अथवा स्थानीय क्षेत्र के विकास में लाभों की कुछ प्रतिशतता के उपयोग के रूप में भी हो सकते हैं |  विस्थापित लोग अधिग्रहण से होने वाले लाभों के भागीदार बन जाएंगे |  इस प्रयोजन के लिए कंपनी अधिनियम में उपयुक्त संशोधन किये जाएंगे |
  • परियोजना में रोजगार प्राप्त करने का प्रथम अधिकार परियोजना प्रभावित लोगों का होगा | यहाँ तक कि किसी परियोजना का कार्य प्रारंभ होने से पहले ही परियोजना प्रभावित लोगों के प्रवेश-प्रशिक्षण का आयोजन किया जाएगा |
  • विस्थापन की प्रक्रिया को अधिक मानवीय बनाने के लिए पुनर्स्थापना एवं पुनर्वास के कार्यान्वयन को प्राथमिकता प्रदान की जाएगी |
  • परियोजना प्रभावित परिवारों के प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए धरातल स्तरीय निगरानी प्रणाली बनाए जाने तथा कार्यान्वयन उपरांत सामाजिक लेखा-परीक्षा भी सुनिश्चित की जाएगी |
  • अनुसूचित क्षेत्रों में लागू करने हेतु भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 तथा परियोजना प्रभावित परिवारों के पुनःस्थापना तथा पुनर्वास पर राष्ट्रीय निति, 2003, कोयला-क्षेत्र (अधिग्रहण तथा विकास) अधिनियम, 1957 तथा राष्ट्रीय खनिज निति, 1993 को पेसा अधिनियम, 1996 के अनुरूप बनाने हेतु उनमें संशोधन किया जाएगा | 
8.7   मूल्य लाभ का विस्तृत विश्लेषण तथा इस निति के अनुसार प्रस्तावित पुनर्वास पैकेज को भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धरा 4 के अंतर्गत अधिसूचना में ही उल्लेख किया जाना चाहिए ताकि लोग उसकी जाँच कर सकें |  इन प्रावधानों को उपयुक्त विधान के माध्यम से रखा जायेगा | 

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9.  मानव विकास सूचकांक में वृद्धि

9.1  अनुसूचित जनजातीय आबादी का मानव विकास सूचकांक सामान्य आबादी के मानव विकास सूचकांक की तुलना में सभी मापदंडों की दृष्टि से अति निम्न है, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, आय आदि |  अनुसूचित जनजाति भौगोलिक एवं सांस्कृतिक अलगाव से भी जूझते हैं जो कि मानव विकास सूचकांक में उल्लेख नहीं होता |  इसी तरह के चयन करने की क्षमता की कमी की भी गणना नहीं होती |  अतएव, निम्नांकित क्षेत्रों में नीति निर्धारण का प्रस्ताव किया जाता है :

शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं खेल 

9.2  विकसित समाज के सतत विकास के लिए शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण तत्व है |  वर्ष 1961 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जनजातीय आबादी की साक्षरता दर 8.53% है तथा यह लगातार बढती जा रही है तथा वर्ष 2001 की जनगणना में यह 47.10% तक पहुँच गई है |  तथापि, वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार सकल राष्ट्रीय साक्षरता 64.84% दर से काफी कम है |

9.3  निम्नांकित जनसंख्या आंकड़े अनुसूचित जनजाति तथा अन्य की साक्षरता दर की दशा को दिखलाते हैं :



वर्ष 
कुल जनसंख्या
अनुसूचित जनजाति
पुरुष
महिला
कुल
पुरुष
महिला
कुल
1961
40.40
15.35
28.30
13.83
3.16
8.53
1971
45.96
21.97
34.45
17.63
4.85
11.30
1981
56.38
29.76
43.57
24.52
8.04
16.35
1991
64.13
39.29
52.21
40.65
18.19
29.60
2001
75.26
53.67
64.84
59.17
34.76
47.10








स्त्रोत : चयनित शैक्षिक सांख्यिकी 2002-03, मानव संसाधन विकास मंत्रालय | 

9.4  अनुसूचित जनजातीय बच्चों द्वारा विद्यालय छोड़ने की दर चौंका देने वाली है |  विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा इसके निवारण हेतु कदम उठाए गए हैं यथा, पुस्तकों तथा स्टेशनरियों का वितरण, छात्रवृति, परीक्षा शुल्क का भुगतान, निःशुल्क बस यात्रा, मध्यान्ह भोजन इत्यादि जिनका व्यापक प्रभाव हुआ है परन्तु अभी भी बहुत कुछ किया जाना शेष है |  अपने हिस्से की राशि देने तथा छात्रावासों के रख-रखाव सेवा में कुछ राज्यों का निष्पादन उत्साहवर्धक नहीं है | छात्रावासों के निर्माण की गति अति निम्न है तथा इसमें दी गई सुविधाएं अच्छी नहीं है |


9.5  कम साक्षरता विशेषतः जनजातीय लड़कियों में तथा प्राथमिक शिक्षा तथा उच्चतर शिक्षा स्तर पर विद्यालय छोड़ने की दर अत्यंत चिंता का विषय है |  अतएव, निम्नांकित कदम उठाए जाएंगे :


(क)  संदर्भ विशेष पारंपरिक तथा अभिनव हस्तक्षेप सहित लड़कियों की शिक्षा पर विशेष बल दिया जाएगा |  विद्यालयों के साथ आंगनबाड़ी/ शिशु-गृह जोड़ा जाएगा ताकि लड़कियों को बच्चों की देखरेख के लिए रुकना न पड़े जिससे कि उनकी शिक्षा प्रभावित होती है |  कम साक्षरता वाले महिला पाकेटों में विशेष व अविच्छिन्न शिक्षा पहल/ अभियान जारी रखे जाएंगे/ चलाए जाएंगे |  कम साक्षरता वाले महिला पाकेटों का अर्थ ऐसे जिले से है जहां अनुसूचित जनजाति महिला साक्षरता 35% से कम है |  इसका उद्देश्य ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक अनुसूचित जनजातीय लड़कियों की साक्षरता दर को बढाने से है |


(ख)  अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों के विद्यालयों के अधिकांश शिक्षक गैर-अनुसूचित जनजाति के हैं, जो जनजातीय भाषा, संस्कृति, रीतियों को स्वयं से हीं समझते हैं |  मनोवैज्ञानिक रूप से यह भी एक कारण है जो बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं और वे विद्यालय छोड़ देते हैं |  इसका एक समाधान यह है कि ऐसे प्रणाली को ही बदल दिया जाए जिसके माध्यम से अनुसूचित जनजाति को शिक्षित किया जाता है |  पाठ की बोधगम्यता के लिए अनुसूचित जनजातीय बच्चों को कक्षा 1 से 3 तक मातृभाषा में शिक्षा दी जाएगी |  यह कदम मुख्य रूप  से एक भाषी जनजाति समुदाय के लिए किया जाएगा |  मूल पाठ्य पुस्तकें जनजातीय भाषाओं में तैयार की जाएंगी तथा जनजातीय नेताओं की स्वतंत्रता संग्राम में तथा अन्य क्षेत्रों में उनकी भूमिका, उनके संघर्ष तथा योगदान को संकलित किया जाएगा |  जनजातीय लोगों का चित्रण मूल पाठ्य पुस्तकों में मानवीय गरिमा तथा सद्भाव से किया जाएगा |  इसे ग्यारहवी पंचवर्षीय योजना के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा |


(ग)  प्राथमिक, माध्यमिक तथा उच्च विद्यालय, जो उचित विद्यालय भवन, छात्रावास तथा अन्य आवश्यक आधारभूत सुविधाओं से युक्त हों, का एक आदर्श तंत्र जनजातीय क्षेत्रों में बनाया जाएगा |  प्रतिमान यह होगा कि हर असुरक्षित जनजाति ब्लाक स्तर पर अनुसूचित जनजातीय छात्रों तथा छात्राओं के लिए अलग-अलग एक आवासीय उच्च विद्द्यालय हो ; और प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक प्राथमिक स्तर का विद्यालय तथा लड़कियों के लिए एक प्राथमिक स्तर का छात्रावास हो |  पड़ोस के गैर-जनजातीय छात्रों को भी 10%-25% तक की संख्या में विद्यालय में दाखिला दिया जाएगा ताकि एकता एवं प्रतियोगिता को बढ़ावा दिया जा सके |


(घ)  जनजातीय कार्य मंत्रालय की योजनानुसार 100 एकलव्य विद्यालयों को, जिनमे कक्षा 6 से 12 वी तक की शिक्षा दी जएगी ; बनाकर पूरा करने तथा उन्हें चालू करने के लक्ष्य को प्राप्त किया जाएगा तथा ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक उच्च कोटि के शिक्षण संस्थानों में बदला जाएगा |


(ड.) जनजातीय क्षेत्रों में शिक्षकों की अनुपस्थिति अत्यधिक है, खासतौर पर जब नियुक्तियां जिला स्तर पर की जाती है तो चयनित अभ्यर्थी सामान्यतः जिला मुख्यालय तथा उसके आसपास के होते हैं तथा दूरस्थ क्षेत्र में जाना पसंद नहीं करते हैं |  शिक्षकों की अनुपस्थिति की समस्या के निवारण हेतु रोजगार में स्थानीय पंचायतों के स्थानीय जनजातीय शिक्षकों को तरजीह दी जाएगी तथा शैक्षिक तथा गैर-शैक्षिक कर्मचारियों को ग्राम सभा अथवा ग्राम पंचायत द्वारा नियुक्त ग्राम प्रबंधन समिति के नियंत्रण में रखा जाएगा |


9.6   सरकार अनुसूचित जनजातियों के लिए शिक्षा, खेल तथा रोजगार के अवसरों को बढाने के लिए निम्नांकित उपाय करेगी :

  • महिला तथा पुरुष दोनों की शिक्षा साक्षरता दर में वार्षिक 3% वृद्धि करना |
  • ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक जनजातीय बच्चों का 100% नामांकन तथा उनके खासकर जनजातीय लड़कियों द्वारा विद्यालय छोड़ने को रोक कर उन्हें आबादी के शेष भाग के समतुल्य किया जाएगा |
  • एक किलोमीटर की परिधि में जनजातीय बच्चों के लिए प्राथमिक विद्यालय की स्थापना |
  • पंचायत स्तर पर प्राथमिक खंडों में आवासीय सुविधाओं को खोलना |
  • कक्षा 3 तक के छात्रों के लिए प्राथमिक पुस्तकें प्रमुख जनजातीय भाषाओं में तैयार करना |
  • प्रत्येक खंड में आवासीय उच्च विद्यालय अथवा छात्रावास उपलब्ध कराया जाएगा तथा जनजातीय क्षेत्रों में 600 प्रखंडों में इन विद्यालयों में भोजन तथा अन्य उपभोग की वस्तुएं दी जाएंगी तथा पड़ोस के गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले गैर-जनजातीय परिवारों के छात्रों को 10%-25% तक सींटें उपलब्ध कराई जाएंगी ताकि परस्पर घुल मिल सकें और उनमे प्रतियोगिता की भावना को बढ़ावा मिले |
  • अभिभावकों को उनकी लड़कियों को माध्यमिक स्तर तक विद्यालय में भेजने के लिए प्रोत्साहन राशि दी जाएगी |
  • गैर-जनजातीय क्षेत्रों सहित बड़े शहरों एवं छोटे शहरों में माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा के लिए अनुसूचित जनजातीय लड़के तथा लड़कियों के लिए छात्रावासों का निर्माण |
  • प्राथमिक स्तर से ही प्रत्येक विद्यालय में खेल के लिए उचित अवस्थापना का विकास करना |  विद्यालय के लिए वार्षिक अनुदान में से 5% राशि खेल तथा खेल गतिविधियों के लिए रखी जाएगी |
  • पंचायत या अंतर-पंचायत स्तर पर शिक्षकों की भर्ती के लिए जिला कॉडर के भीतर स्थान निर्धारण करना तथा ग्राम सभा को नियुक्ति तथा नियंत्रण का अधिकार देना |
  • मेट्रिकोत्तर छात्रवृति, समुद्रपारीय छात्रवृत्ति एवं राजीव गांधी राष्ट्रीय छात्रवृत्ति के स्कोप को उच्च शिक्षा के लिए और व्यापक बनाया जाएगा |  उत्कृष्ट जनजातीय खिलाड़ियों को अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुरूप अपनी प्रतिभा उन्नयन के लिए विदेशों में प्रशिक्षण के लिए उचित छात्रवृति दिए जाने हेतु विचार किया जाएगा |
  • ऐसे मान्यताप्राप्त सार्वजनिक/ निजी व्यवसाय प्रशिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जनजातीय अभ्यर्थियों को प्रायोजित किया जाएगा, जो सार्वजनिक/ निजी क्षेत्र दोनों को स्वीकार्य मान्यता प्राप्त सर्टिफिकेट/डिप्लोमा पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं |

 स्वास्थ्य

9.7  सुदूरवर्ती व अलग-अलग जनजातीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य चिंता एक प्रमुख समस्या है |  खाद्य सुरक्षा की कमी, सफाई तथा सुरक्षित पेयजल, अल्पपोषण तथा अधिक गरीबी का स्तर जनजातीय लोगों की स्वास्थ्य दशा को और खराब करता है |  कुपोषण की समस्या बहु-आयामी तथा पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्वरुप की है |  स्वास्थ्य संस्थान बहुत कम हैं और एक-दूसरे से बहुत दूरी पर हैं |  हाल तक, फलों ट्यूमर, कंदों, पत्तों की प्रचुरता, जनजातीय स्वास्थ्य को सकारात्मक रूप से योगदान दिया है | सदियों से जनजातीय लोगों ने अपनी स्वयं की चिकित्सा परिचर्या पद्धति का विकास किया है, जो पकृति प्रदत्त एवं स्थानीय प्रसंस्कृत जड़ी-बूटियों पर आधारित हैं |  निदान प्रक्रिया तथा रोग निवारण के लिए उनकी अपनी प्रणाली है |  परन्तु कौशल एवं प्राकृतिक संसाधन तेजी से गायब हो रहे हैं | साथ ही, पारंपरिक पद्धति से कई बीमारियों का इलाज नही किया जा सकता, लेकिन आधुनिक चिकित्सा पद्धति में उनका इलाज है |  संस्कृति, संपर्क के सूत्र तथा अनुकूलता के आधार पर विभिन्न जनजातियों की स्वास्थ्य सेवा का उपयोग करने की उनकी इच्छा में व्यापक विभिन्नता है |  अनुसूचित जनजातियों, अनुसूचित जातियों तथा अन्यों (व्यक्ति प्रति हज़ार) के कुछ स्वास्थ्य सूचकांक निम्न प्रकार हैं, जो अनुसूचित जनजातियों के ख़राब स्वास्थ्य को दर्शाता है :

शिशु मृत्यु दर
5 वर्ष से नीचे
मृत्यु दर
अधोपोषण
अनुसूचित जाति
83.0
119.3
535
अनुसूचित जनजाति
84.2
126.6
559
सभी
70.0
94.9
470
स्त्रोत : स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत में ग्रामीण स्वास्थ्य पर बुलेटिन, 2005

9.8  अनुसूचित जनजातियों में विशेष रूप से फैलने वाली व्याधियों, चिकित्सा तथा अर्द्ध-चिकित्सा कर्मचारियों तथा सड़कों, बिजली के आधारभूत अवस्थापना में कमी को ध्यान में रखकर स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र तथा सक्षमता को नियोजित किया जाना चाहिए |

9.9   वर्त्तमान में जनजातीय क्षेत्र में प्राथमिक चिकित्सा केंद्र का मानदंड (20,000 की आबादी पर एक) तथा उप केन्द्रों में (3000 की आबादी पर एक) है, जो अन्य क्षेत्रों से कम है | हालाँकि, इन संस्थानों में कार्य करने हेतु चिकित्सक तथा अर्द्ध-चिकित्सा कर्मचारियों को प्राप्त करना कठिन है अतः मानदंडों में छूट देकर और अधिक संस्थानों को बनाना समस्या का समाधान नहीं है क्योंकि इन बढ़ाये गए संस्थानों में कार्य करने वाले कर्मचारियों को जुटाना और अधिक कठिन होगा |  इस बात की पहचान की जनि चाहिए कि इन क्षेत्रों में चिकित्सा कर्मचारियों की काम करने की अनिच्छा एक अत्यंत कठिन समस्या है और इसके कई कारण हैं | अतएव, जनजातीय क्षेत्रों में इस समस्या के समाधान हेतु अलग तरीके अपनाए जाएंगे |  उदाहरण के लिए, जनजातीय क्षेत्र में एक अथवा दो डॉक्टरों वाले कई पीएचसी, जहा डॉक्टरों के बिना किसी सहयोगी कर्मचारियों के स्वयं उपस्थित होना पड़ता है, के बजाए किसी केन्द्रीय स्थान पर 4-5 डॉक्टरों वाला (अनेक चिकित्सकों वाला) चिकित्सा केंद्र की स्थापना की जाए |  इस अनेक चिकित्सकों वाला चिकित्सा केंद्र तक पहुचने के लिए पास के ग्राम से यातायात तंत्र में व्यापक सुधर करन होगा |

9.10   अतएव, निम्नांकित कार्य प्रस्तावित किए जाते हैं |

क)  संस्थानों की नई प्रणाली अथवा पद्धतियां बनाने हेतु प्रयास किए जाएंगे जिससे जनजातियों की आधुनिक स्वास्थ्य परिचर्या तक पहुँच को बढाया जाए |

ख)  भारतीय स्वास्थ्य परिचर्या पद्धति जैसे आयुर्वेद सिद्ध जनजातीय पद्धति एवं आधुनिक चिकित्सा के समन्वय को संवर्धित किया जाएगा |

ग)  पेसा अधिनियम, 1996 के प्रावधानों के अनुसार ग्राम सभा स्वास्थ्य उपकेन्द्रों के अर्द्ध-चिकित्सा कर्मचारी को नियंत्रित करेगी, माध्यमिक पंचायत, प्राथमिक चिकित्सा केंद्र पीएचसी के अर्द्ध-चिकित्सा कर्मचारियों को तथा जिला पंचायत सीएचसी तथा चिकित्सालय के चिकित्सा व अर्द्ध-चिकित्सा कर्मचारियों को अपने संबंधित क्षेत्रों में नियंत्रित करेंगे | 

घ)  पेयजल की निम्नतम गुणवत्ता तथा सफाई एवं स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता में कमी जल-प्रदुषण जनित रोगों के प्रमुख स्त्रोत हैं |  चूँकि जनजातीय क्षेत्रों की भौगोलिक दशाएं भिन्न हैं जिसके कारण पेयजल के विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल किया जाएगा |  अधिकांश जनजातीय क्षेत्रों में पर्याप्त वर्षा होती है |  मैदानी क्षेत्रों में बोर वेल तथा ट्यूबवेल की पर्याप्त व्यवस्था होगी |  उच्च भूमि में गहरे कुएं, की आवश्यकता होगी, जिसकी अनुमानित लगत उच्च होगी |

च)  सरकार अनुसूचित जनजातियों के स्वास्थ्य, पेयजल आपूर्ति, सफाई तथा स्वास्थ्य को बढ़ाने हेतु ये प्रयास करेगी : 
  • जनजातीय क्षेत्रों में महामारी, आनुवंशिक विकृतियों, सिकिल सेल अनेमिया, इत्यादि के उन्मूलन पर बल देना |
  • घरेलू जनजातीय चिकित्सा के साथ आई.एस.एम. एंड एच. के समन्वय हेतु नई रणनीति का विकास करना ताकि स्वस्थ परिचर्या को जनजातीय क्षेत्र के सुदूरवर्ती इलाकों तक पहुंचाया जा सके तथा इसमें जनजातियों के पारंपरिक ज्ञान का योगदान हो |
  • सांगत सांख्यिकी आंकड़े, स्वास्थ्य सूचकांकों यथा, पौष्टिकता की दशा, जीवन प्रत्याशा, आइएमार, एमएमआर, बीएमडी-आधारित मृत्युदर, मद्यपान, अक्षमता दर, आत्महत्या दर का अनुसंधान, संग्रह, समेकन |
  • 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों की स्वास्थ्य आवश्यकता का विशेष ध्यान रखना, रोग-प्रतिरोधी क्षमता का संवर्धन, गंभीर कुपोषण को दूर करना तथा गर्भवती व बच्चे को स्तनपान कराने वाली महिलाओं की परिचर्या करना |
  • जनजातीय समुदाय में स्वास्थ्य, स्वस्थता, बेहतर स्वच्छता के प्रति समग्र जागरूकता बढ़ाना तथा अपनी जल आपूर्ति तथा उन्हें अपनी स्वच्छता प्रणालियों के बारे में योजना बनाने, उसे कार्यान्वित करना और उसका संचालन करने तथा अनुरक्षण करने के लिए शक्तियां प्रदान करना |
  • वर्षाजल संग्रह को प्रोत्साहित करना तथा गुरुत्वाकर्षण आधरित लघु जल आपूर्ति व्यवस्था, जिसे स्थानीय जनजातीय लोगों द्वारा कम प्रचालन वन अनुरक्षण मूल्य पर आसानी से चलाया जा स कता है, का विकास करना ताकि जनजातीय क्षेत्रों में वर्षभर सुरक्षित पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके |
  • जनजातीय क्षेत्रों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली तथा अन्त्योदय अन्न योजना, जिसमें कम से कम 25 किलो प्रति माह अन्न की व्यवस्था हो, की उपलब्धता को बढ़ाना तथा इसके प्रबंधन तथा स्वामित्व पीडीएस को हस्तांतरित करना एवं समुदाय को ग्रामीण रोजगार योजना कार्यक्रम के साथ जोड़ना |
  • सभी अनुसूचित जनजातीय परिवारों को कवर करते हुए प्रत्येक गाँव में ग्राम अन्न बैंकों की स्थापना |
  • ग्यारहवी पंचवर्षीय योजना तक जनजातीय परिवारों के एक कमाऊ सदस्य को स्वास्थ्य बिमा के अंतर्गत लाया जायेगा तथा इसके लिए विशेष व्यवस्था की जाएगी कि प्रत्येक जनजातीय लड़की को प्राथमिक स्तर पर विद्यालय भेजा जाए |

जीविकोपार्जन अवसर 

9.11 अन्य वंचित समूह कि भांति अनुसूचित जनजातीय लोग अपनी भूमि तथा वन से बहुत निकट रूप से जुड़े हैं |  हालांकि भूमि उच्च होती है तथा कृषि वर्षा आधारित होती है तथा उत्पादकता अत्यंत कम होती है |  साथ ही, घटती वन भूमि एवं वन उत्पाद भी अनुसूचित जनजातियों की जीविका को अत्यंत प्रभावित करते हैं |  अतः अनुसूचित जनजातियों की आर्थिक स्थिति के सुधार हेतु भूमि-आधारित अवसर अत्यंत महत्वपूर्ण हैं |  इस पर कार्रवाई देर से होती है |

9.12 गैर-भूमि आधारित्र जीविकोपार्जन अवसर अधिक सीमित होते हैं और इसके लिए जनजातियों के स्वाभाविक कौशल का दोहन करना अपेक्षित होगा | इस समय उनके इस कौशल के लिए उन्हें पर्याप्त पारिश्रमिक नहीं मिलता है | गैर-भूमि आधारित गतिविधियों में अनुसूचित जनजातियां साक्षर अथवा निरक्षर, कुशल अथवा अकुशल हो सकती हैं |  जीविकोपार्जन अवसरों तक उनकी पहुँच में वृद्धि करने के लिए विभिन्न दृष्टिकोण अपनाने होंगे |

क)  अनुसूचित जनजातीय आबादी के साक्षरों के लिए जीविकोपार्जन कार्यक्रमों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण पर जोर दिया जाएगा | आईटीआई, एनआईआरडी, फ़ूड क्राफ्ट इंस्टीट्यूशान इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन डिजाइनिंग आदि जैसे प्रामाणिक संस्थानों को आधुनिकता के साथ कदम मिलाते हुए लक्षित समूहों के लिए पाठ्यक्रम तैयार किए जाएंगे |

ख)  निरक्षर अथवा अर्ध-निरक्षर समूहों के लिए परंपरागत कलाओं और शिल्पों पर आधारित जीविकोपार्जन अथवा कृषि और वन आधारित गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जाएगा |  न केवल भारत में बल्कि विश्व बाजारों में शिल्पकला उत्पादों की विपुल संभाव्यताएं विद्दमान हैं |  सुदृढ़ बाजार संपर्कों का विकास करना होगा और उत्पाद सुधार एवं अभिकल्प के लिए तकनीकी निवेशों की आवश्यकता होगी |  बैंकों, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति वित्त विकास निगम आदि के माध्यम से संस्थागत वित्त का उपयोग किया जाएगा |  बाजार विकास, उत्पादक समूहों के सृजन में और अनुसूचित जनजातियों के सहकारी आन्दोलन में ट्राईफेड और अन्य ऐसे संगठनों को सहयोजित किया जाएगा |

ग)   ग्राम रोजगार गारंटी योजना और कृषि और वन आधारित गतिविधियों को समर्थन जैसे रोजगार कार्यक्रमों से निरक्षर और अकुशल लोगों को जीविका उपलब्ध कराई जाएगी |  आश्वासित सिंचाई के साथ बेहतर कृषि और बागवानी, पुष्पकृषि और डेयरी में प्रशिक्षण भी उच्च पारिश्रमिक देने वाले विकल्प बन सकते हैं |  गुजरात और महाराष्ट्र में बी.ए.आई.एफ. द्वारा विकसित वाडी कार्यक्रम, त्रिपुरा और उड़ीसा में रबर बोर्ड रबड़ पौधे रोपड़, आंध्र प्रदेश में कॉफी पौधे रोपण आदि इसके साथ-साथ इस क्षेत्र में फसल मॉडलों को अपनाया जाएगा |  जल निकायों, जल संग्रहण प्रणालियों और चारागृह आदि का विकास करने से प्राकृतिक संसाधन आधार की उत्पादकता में वृद्धि होगी, जिससे जीविकोपार्जन के विकल्प, पशुपालन, डेयरी, मछली पकड़ने में वृद्धि होगी |

घ)  वनों में रहने वाली बड़ी संख्या में अनुसूचित जनजातियाँ अपने जीवन निर्वाह के लिए लघु वन उत्पाद के संग्रहण पर निर्भर रहती हैं |  लघु वन उत्पाद से सम्बंधित मूल्यवर्धित गतिविधियों को ट्राईफेड जैसे संगठनों और निजी क्षेत्रों के माध्यम से प्रोत्साहित किया जाएगा |  

कृषि और बागवानी

9.13  आम जनसंख्या के 53% के मुकाबले प्राथमिक क्षेत्र में 80% से अधिक अनुसूचित जनजातियों के लोग काम करते हैं |  आम जनसंख्या के 32.5% के मुकाबले लगभग 45% अनुसूचित जनजातियों के लोग कृषक हैं |  उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार अनुसूचित जनजातियों की संख्या, जो कर्षक थे, 2001 में 68% से अधिक घटकर 45% रह गई है, जबकि कृषि श्रमिकों की संख्या लगभग 20% से बढ़कर 37% हो गई है, जिससे यह संकेत मिलता है की अनुसूचित जनजातियां धीरे-धीरे अपनी भूमि से वंचित हो रहे हैं |

9.14  उच्च भूमि की सामान्यतः मिट्टी की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती और वर्षा भी अनियमित होती है |  इस पर अनुसूचित जनजातियों द्वारा कृषि की जाती है |  इसलिए रागी, ज्वार, बाजरा, तिलहन, दालें आदि जैसे मोटे अनाज उगाए जाते हैं |  इस प्रकार की घाटी भूमियों में चावल, गेहूँ और जल पर निर्भर अन्य फसलें बोई जाती हैं |  अपनाई जाने वाली प्रौद्योगिकी निम्न स्तर की होती है जिससे उत्पादन भी कम होता है |


9.15  नीति के अंतर्गत निम्नलिखित कार्यवाही की जाएगी :


क) सुलभ ऋण और बाजारों तथा आश्वस्त सिंचाई के संयोजन से जहां कहीं संभव हो स्थाई कृषि में परिवर्तन के माध्यम से उत्पादन में वृद्धि करने के प्रयास किए जाएंगे |  जनजातीय जिलों में औसत सिंचित क्षेत्र बहुत ही कम है लेकिन वहाँ उपलब्ध जल संसाधनों का इस्तेमाल करने की काफी गुंजाइश है |  यद्यपि अनुसूचित जनजातियों के स्वामित्व वाली भूमि के सम्बन्ध में तथा तघु सिंचाई सुविधाओं की उपलब्धता के संबंध में विशिष्ट आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं तथापि, यह प्रतीत होता है की इन क्षेत्रों में उत्पादन में सुधार लाने के लिए चैक बांधों, वर्षा और अन्य जल संग्रहण संरचनाओं के माध्यम से सिंचाई काफी उपयोगी होगी |


ख)  दूरस्थ संवेदन की मदद से जनजातीय क्षेत्रों में सतही जल और भूजल सहित जल संसाधनों का व्यापक सर्वेक्षण किया जाएगा ताकि भूमि उपयोग मानचित्र तैयार किए जा सकें |  जहां कहीं जल का स्तर कम हो गया है वहाँ एकीकृत जल विभाजक प्रबंधन दृष्टिकोण अपनाना होगा |  इष्टतम उपयोग के लिए तालाब और पोखरों की संख्या बढ़ाई जाएगी और उनका नवीकरण किया जाएगा |


ग)  अनुसूचित क्षेत्रों में लघु जल निकायों की आयोजना और प्रबंधन के अधिकार पेसा अधिनियम, 1996 के खंड(1) के अनुसार उपयुक्त स्तर पर पंचायतों में निहित होंगे तथा संबंधित संगत कानूनों और प्रलेखों को संशोधित किया जाएगा |  शीर्ष पर निर्णय लेने के बजाय ग्राम सभा में सामूहिक रूप से निर्णय लिए जाएंगे |


घ)  अनुसूचित जनजातियों से सम्बंधित क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर बागवानी कार्यक्रमों की परिकल्पना की जाएगी क्योंकि ढलवां भूमि और उच्च भूमि इस कार्य के लिए काफी उपयुक्त होती है |  इन कार्यक्रमों को लागू करने के लिए जनजातीय क्षेत्रों में स्व-सहायता समूह, विशेष रूप से महिला स्व-सहालता समूहों को इस प्रयोजन के लिए निधियां उपलब्ध कराई जाएंगी |


ड.)  बड़े पैमाने पर कृषि, बागवानी और लघु वन उत्पाद की प्रक्रियाओं के संबंध में व्यवस्था और इनके विपणन का कार्य ग्यारहवीं योजना में प्रारम्भ किया जाएगा |


च)  जनजातीय सहकारी समितियों और ऋण प्रणालियों को समर्थन दिया जाएगा |


छ)  संस्थात्मक ऋण और फ़ार्म निवेशों की समय पर आपूर्ति तथा जनजातीय कृषि और वन उत्पादों के क्रय का भी सुनिश्चय करने की आवश्यकता होगी |  राष्ट्र स्तरीय अनुसूचित जनजाति वित्त एवं विकास निगम ब्याज की विभेदात्मक दरों पर बिना किसी बाधा के संस्थात्मक वित्त देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा |  जनजातियों से सम्बंधित ऋण कार्यक्रमों पर विशेष रूप से ध्यान देने के लिए वाणिज्यिक बैंकों को प्रोत्साहित किया जाएगा |

प्रवास

9.16  बहुत से समुदायों में प्रवास एक आम बात है लेकिन कुछ जनजातीय क्षेत्रों में यह असाधारण रूप से अधिक है |  प्रवास के बहुत से प्रतीकूल परिणाम होते हैं : स्कूल जाने वाले बच्चों द्वारा स्कूल छोड़ने के कारण निरक्षरता की दर में वृद्धि हो जाती है ; वयस्कों का वित्तीय शोषण होने के साथ-साथ उनका यौन-शोषण होता है ; विशेष रूप से टी.बी., कुष्ठ आदि जैसे बीमारियों जिनका इलाज लम्बे समय तक चलता है, के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं प्राप्त करना कठिन हो जाता है |

9.17  प्रवास में कमी लाने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाएंगे :


क)   राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के अंतर्गत किए गए प्रावधान के अनुसार अकुशल मानवीय कार्य करने के लिए प्रत्येक वयस्क को गारंटी मजदूरी रोजगार उपलब्ध कराकर जनजातीय क्षेत्रों में सभी घरों को जीविका सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिए सरकार प्रयास करेगी |


ख)  पूर्व निर्दिष्ट कार्य के माध्यम से विद्यमान भूमि की उत्पादकता और कार्य में वृद्धि की जाएगी |


ग)  प्रवासी कार्यबल के संरक्षण का सुनिश्चय करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों की सहभागिता से संगत श्रम कानूनों का क्रियान्वयन |

ऋण देना एवं ऋण ग्रस्तता

9.18  अनुसूचित क्षेत्रों में धन उधार देने पर रोक लगाने के लिए कानूनी और संरक्षण उपायों के होते हुए तथा ऋण से मुक्ति के सम्बन्ध में प्रावधान होने के बावजूद भी, प्रवर्तन कमजोर और निष्प्रभावी रहा है |  जनजातियों की उपभोज्य वस्तुओं की जरूरतों के संबंध में ध्याम न दिए जाने तथा संस्थात्मक उपभोग ऋण की अनुपलब्धता के कारण जनजातीय लोग आसानी से ऋण देने वालों के चंगुल में फंस जाते हैं फलस्वरूप जनजातीय लोग ऋण देने वालों पर निर्भर हो जाते हैं और ब्याज की भारी दरों के कारण जनजातीय लोग निरंतर कर्जे में डूबे रहते हैं |  जिसके कारण उन्हें अपनी भूमि अथवा संपत्ति गिरवी रखनी पड़ती है और आखिर में उन्हें उससे वंचित होना पड़ता है |

9.19  स्व-सहायता समूहों के माध्यम से उपभोग के लिए संस्थात्मक ऋण के प्रभाव में सुधार के लिए सकारात्मक उपाय किए जाएंगे |  खाद्य सुरक्षा और उपभोग ऋण से संबंधित आंध्र प्रदेश माडल का अन्य राज्यों में अनुकरण किया जाएगा |


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10. क्रांतिक आधारभूत संरचना का सृजन

10.1  संविधान के निर्माता अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों में निम्न स्तरीय आधारभूत संरचना के प्रति और इनको शेष क्षेत्र के बराबर लाने की जरूरत के प्रति चिंतित थे |  संविधान के अनुच्छेद 275(1) के प्रावधान (1) में विशिष्ट रूप से ऐसी आधारभूत संरचना का सृजन करने और अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन का स्तर बढ़ाकर राज्य के शेष क्षेत्रों के बराबर करने का प्रावधान है |  यह कार्य भारत की समेकित निधि से लागत को वहन करके किया जाना है |

10.2  अनुच्छेद 275(1) के अंतर्गत अधिकतर राज्यों में आधारभूत संरचना सुविधाएँ जैसी सिंचाई, सड़कें, पुल, विद्यालय भवन आदि के लिए निधियों का प्रयोग किया गया है तथापि, निधिकरण के अपर्याप्त स्तर के कारण काफी अंतर अभी भी मौजूद है |  दुर्भाग्य से समयबद्ध ढंग से इस अंतर को पूरा करने के लिए संविधान के इस समर्थकारी प्रावधान का कारगर ढंग से उपयोग नहीं किया गया है |


10.3  जनजातीय क्षेत्रों के पिछड़ेपन का आंशिक कारण यह है की ये क्षेत्र भौगोलिक दृष्टि से अलग-थलग हैं, क्योकि पठार और उत्तर-पूर्व के प्रमुख जनजातीय क्षेत्र ऊबड़-खाबड़ हैं, पर्वतीय और वनों से भरे-पुरे भू-भाग हैं |  जनजातीय क्षेत्रों में सामाजिक और भौतिक आधारभूत संरचना अपर्याप्त हैं |  इसके अतिरिक्त, केवल पूरे राज्य अथवा जिला-वार उपलब्ध आंकड़े भ्रामक हैं, क्योंकि ये आंकड़े जिलों/ राज्य के भीतर बहुत ही विषम वितरण को नहीं दर्शाते हैं |  ऐसे राज्यों के भीतर भी बहुत ही पिछड़े अनुसूचित जनजातीय क्षेत्र हैं, जिनमें विकास दर ऊंची है |


10.4  जबकि देश में सार्वजनिक और निजी विनियोगों के माध्यम से सड़कों, स्वास्थ्य, दूरसंचार, विद्धुत वितरण आदि जैसी सेवाओं की उपलब्धता में सुधार हो रहा है, क्योंकि जनजातीय क्षेत्रों में स्थिति खराब होती जा रही है |  कारण यह है कि पहले से सृजित संपत्तियों का रख-रखाव अपर्याप्त है और कम प्रतिफल के कारण जनजातीय क्षेत्रों में विनियोग के लिए निजी क्षेत्र अनिच्छुक है |  इसलिए जनजातीय क्षेत्रों और देश के शेष क्षेत्रों के बीच आधारभूत संरचना का अंतर बहुत अधिक है |


10.5  इसके अलावा, जनसंख्या के आधार पर क्षेत्रों को अंतर्गत लाने से संबंधित विद्यमान मानदंड सदा अनुसूचित जनजाति, जो छोटे-छोटे गांवों में बिखरी आबादी वाले क्षेत्रों में रहते हैं, के अनुकूल नहीं हैं |  उदाहरण के लिए, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों के सभी असम्बद्ध निवास स्थानों को इस प्रकार अंतर्गत लाया जाता है कि 1000 व्यक्तियों की आबादी वाले और उससे अधिक आबादी वाले सभी सम्बद्ध स्थानों को सम्बद्ध किया जाएगा और उसके पश्चात 500 व्यक्तियों अथवा इससे ऊपर की आबादी वाले असम्बद्ध स्थानों को सम्बद्ध किया जाएगा |  अतः जनजातीय क्षेत्रों के ग्रामों, जिनमे सामान्यतया 500 व्यक्तियों में से कम व्यक्ति होते हैं, को छोड़ दिया जाता है |  इसी प्रकार, राजीव गांधी विद्धुतीकरण योजना, स्व-जलधारा और कृषि, पशुपालन, वानिकी, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास निर्माण आदि जैसे अन्य कार्यक्रमों और स्कीमों के अंतर्गत अनुसूचित जनजाति गांवों और लोगों को सम्मिलित नहीं किया जाता है |  जनजातीय क्षेत्रों में आधारभूत संरचना उपलब्ध कराने से संबंधित मानदंड को पर्याप्त रूप से शिथिल किया जाना चाहिए |


10.6  कमजोर वर्गों के लिए विकास के प्रयासों के असावधानीपूर्वक निर्धारित उद्देश्यों से अनु.जन.जा. के लोग लाभान्वित नहीं हो पाते हैं तथा स्वार्थी तत्वों एवं शोषण की पद्धति को और बल मिलता है |  वर्ष 1970 से ही जनजाति जनसंख्या के अनुपात में निधियां देने की बात पर जोर दिया जा रहा है, परन्तु इसका पालन गंभीरता से नहीं किया गया है |  यह निधियां जनजातीय क्षेत्रों की दयनीय स्थिति सुधारने के लिए पर्याप्त नहीं है |  अतएव, अनु.जन.जा. की जनसंख्या के अनुपात में निधियों का आवंटन जहां न्यूनतम निधि के रूप में दिए जाने का आग्रह किया जाना चाहिए वहीँ संविधान के अनुच्छेद 275(1) के प्रथम परंतुक के अधीन निधि को सम्यक रूप से बढ़ाना चाहिए ताकि अनु.जन.जा. क्षेत्र को देश के शेष भाग के समकक्ष समयबद्ध रूप से और ज्यादा से ज्यादा वर्ष 2020 तक लाया जा सके |


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11. उग्र अभिव्यक्ति

11.1  मध्यभारत के पठारी क्षेत्र एवं इसके साथ ही पूर्वोत्तर क्षेत्र की भूमि खानिज संपदा की दृष्टि से भारत की सबसे समृद्ध भूमि है एवं इन्हीं क्षेत्रों में जनजातीय जनसंख्या का अधिकांश भाग निवास करता है | यहाँ आधारभूत अवसंरचना अल्प मात्रा में है एवं मानव विकास सूचकांक निम्न है |

11.2  वर्षों से अनु.जन.जा. के लोगों को यह प्रतीत हो रहा है कि वे अलग-थलग हैं तथा कटे हुए हैं |  उनकी यह उद्विगन्न भावना विभिन्न जनजातीय क्षत्रों में जनजातीय आन्दोलन के रूप में सामने आई |  हिंसा में हो रही वृद्धि कई सामाजिक राजनैतिक एवं आर्थिक कारण हैं |  इन कारणों के सम्मिलित रूप से असंतोष पनपता है, उन्हें लगता है कि उनकी उपेक्षा हो रही है, एक ऐसी अनुभूति कि उन्हें उनके उचित अधिकारों से वंचित किया गया है तथा उनकी घोर उपेक्षा हुई है |  अत्यंत दरिद्रता, जीवन स्तर में घोर विषमता, आर्थिक एवं जीविकोपार्जन अवसरों की कमी आदि ऐसे कारक हैं जो हिंसात्मक आन्दोलन को फैलाने में सहायक होते हैं तथा जब ले लोग अपने पारंपरिक अधिकारों का इस्तेमाल करते हैं तो उन्हें क़ानून तोड़ने वाला और अपराधी के रूप में लिया जाता है |


11.3  इस प्रकार, एक ऐसी स्थिति विकसित हो रही है कि अनु.जन. के लोग राज्य को अपना शत्रु एवं शोषक के रूप में देखते हैं तथा हिंसा की राह दिखाने वाले को अपना संरक्षक तथा मित्र के रूप में समझते हैं |  जनजातीय लोग इन हिंसक आंदोलनों को समर्थन देते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उन्हें उनके अधिकार प्राप्त होंगे, शोषण के विरुद्ध उन्हें सुरक्षा मिलेगी तथा उनकी शिकायतों का समाधान होगा |


11.4  इन हिंसक गतिविधियों को मात्र क़ानून-व्यवस्था के मामले नहीं माना जाना चाहिए, जिन्हें पुलिस प्रशासन द्वारा अथवा जनजातियों को अस्त्र-शस्त्र देकर, जैसा कि कुछ क्षेत्रों में किया जाता है |  समाधान किया जा सकता, इसका वास्तविक समाधान अनु.जन.जा. समुदायों को सम्पूर्ण प्राकृतिक एवं वित्तीय संसाधनों पर अधिकार देना तथा आर्थिक विपन्नता का त्वरित एवं समयबद्ध रारीके से निदान करना है |


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12. विशेष कमजोर जनजातीय समूहों (पीटीजी) का संरक्षण तथा विकास

12.1  अनु.जनजातियों के एक वर्ग, जो अन्यों की तुलना में अधिक पिछड़ा है, को ऐतिहासिक रूप से वर्ष 1973 से आदिम जनजातीय समुदाय (पीटीजी) के रूप में वर्गीकृत किया गया है |  इस प्रकार की 75 जनजातियां हैं तथा वर्ष 1991 की जनगणना के अनुसार इनकी कुल आबादी 25 लाख है |  आदिम जनजाति समूहों की पहचान हेतु अपनाए जाने वाले मानदंड प्रौद्योगिकी का पूर्व-कृषि स्तर, अलग-अलग परिक्षेत्र, क्षेत्र संख्या में बहुत कमी, स्थिर व घटती जनसंख्या तथा साक्षरता दर में कमी |  इन मानदंडों में विशिष्टता का भी अभाव है, परंतु, चूंकि पी.टी.जी. की संख्या में और अधिक जनजातियों को शामिल करने का प्रस्ताव नहीं है, इसीलिए इस स्तर पर कोई बदलाव अनावश्यक है |  हालांकि, उनके नाम में बदलाव करने की आवश्यकता है भले ही यह साधारण परिवर्तन ही क्यों न हो |  "आदिम" शब्द प्रतिष्ठानुकूल नहीं हैं अतएव इस नीति के माध्यम से इसे बदलकर "विशेष" कमजोर जनजाति समूह (पी.जी.टी.) का नाम दिया जाएगा |

12..2  नीति के अंतर्गत विशिष्ट कमजोर जनजाति (पी.जी.टी.) की दशा को सुधारने के लिए निम्नांकित कार्रवाई की परिकल्पना की गई है :


क) अपर्याप्त डाटा की समस्या के निदान के लिए सम्बंधित राज्य 75 पी.टी.जी. में से प्रत्येक के लिए व्यापक डाटा बेस तथा रूपरेखाओं का समेकन करेंगे |


ख)  पी.टी.जी. के मुख्यतः दो वर्गों, तथा "विरासत समूह" जो आस-पास की आबादी से बिल्कुल अलग-थलग है तथा अलग पारिस्थितिकी एवं वातावरण में निवास करते हैं, जैसे जारवा, सेंटिनेल, शेमयेन, चोलानैकल इत्यादि तथा दूसरा वर्ग जो आबादी की "मुख्यधारा" के समीप रहते हैं तथा उनसे उनका कुछ संपर्क भी है, जैसे- बिरहोर, चेन्चुस, जेनु  कुरुवा इत्यादि के लिए अलग-अलग दृष्टिकोण अपनाया जाएगा |  विरासत समूहों के संदर्भ में विकास की रणनीति समूहोन्मुख होगी तथा दूसरे वर्ग के संदर्भ में समूहोन्मुख एवं क्षेत्र विकास का मिश्रण होगी |  प्रथम दृष्टिकोण का लक्ष्य होगा पारिस्थितिकी तंत्र, जीवन पद्धतियों तथा समूह के पारंपरिक कौशल का संरक्षण करना तथा दूसरे दृष्टिकोण के तहत आर्थिक कार्यक्रमों को समान महत्व दिया जाएगा |  इसमें सिद्धांत और दृष्टिकोण यह होगा की पी.टी.जी. को अपनी इच्छा के क्षेत्र में अपनी गति के साथ प्रगति करने योग्य बनाया जाए |  उनके स्थलों के विघटन की कोई कोशिश नहीं की जाएगी |


ग)  इस ढांचे के भीतर स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा तथा जीविका इत्यादि की विशेष आवश्यकताओं का आकलन करते हुए सामाजिक-आर्थिक, भौगोलिक, पर्यावर्णीय संसाधनों में असंतुलन के कारणों का पता लगाते हुए तथा उचित मध्यस्थों का प्रस्ताव करते हुए संरक्षण एवं विकास योजनाएं बनाई जाएंगी |  प्रशासन के लिए 3 प्रवेश बिंदु होंगे- पेयजल आपूर्ति, शिक्षा तथा स्वास्थ्य |


ग)  सभी पी.टी.जी. को जीवन व अक्षमता बीमा योजना के अधीन कवर लिया जाएगा |


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13. जनजातीय उपयोजना रणनीति को अपनाना

13.1  अनु.जन.जा. सहित सभी लोगों के लिए सेक्टोरल विकास कार्यक्रमों के कार्यान्वयन का दायित्व विभिन्न सेक्टोरल मंत्रालायों पर है |  क्योंकि, जनजाति कार्य मंत्रालय अनु.जनजातियों के विकासार्थ समग्र नीति, योजना एवं विकास कार्यक्रमों का समन्वय करता है तथा सार्थक उपलब्धियों के लिए इसे एनी सेक्टोरल मंत्रालयों के साथ काम करना पड़ता है |

13.2  इस भूमिका के आधार पर ही जनजातीय उपयोजना की अवधारणा का विकास हुआ तथा सर्वप्रथम पांचवी पंचवर्षीय योजना 1974-75 में इसे अपनाया गया |  वर्तमान में यह देश की अनु.जन.जनसंख्या के एक बड़े भाग वाले 21 राज्यों तथा 2 केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू होती है जहां अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या काफी अधिक है तथा इसके अंतर्गत संबंधित केन्द्रीय मंत्रालयों/ विभागों द्वारा देश की अनु.जन.जा. संख्या के अनुपात में निधियों का आवंटन होता है तथा प्रत्येक राज्य की अनु.जन.जा. जनसंख्या के अनुपात में वहाँ निधियों का आवंटन होता है |


13.3  मूल अवधारणा के अनुसार जनजातीय उपयोजना की दो आयामी रणनीति है : अनुसूचित जनजातियों के जीवन स्तर को सुधारने हेतु विकास गतिविधियों को बढ़ावा देना तथा कानूनी एवं प्रशासनिक समर्थनों द्वारा उनके हितों की सुरक्षा |  हालांकि, जनजातीय उपयोजना अधिकांश राज्यों में रोजमर्रा की तथा नीरस गतिविधि बन चुकी है इसके मूल उद्देश्यों के प्रति जागरूकता भी नहीं रही है |  जनजातीय उपयोजना लाइन विभागों द्वारा तैयार असंगठित योजनाओं का अम्बार बनकर रह गई है, जो जनजातीय क्षेत्रों एवं जनजातियों के विकास पर जोर अथवा विकास के बजाय विभाग की प्राथमिकताओं को ध्यान में रखकर चलाई जाती है |  विभिन्न योजनाओं में जनजातीय लोगों पर ध्यान केन्द्रित नहीं किया गया है तथा प्रतिशतता के लफ्जों में अनु.जन.जाति लाभार्थियों को अनुपातिक, बहुधा सांकेतिक कवर किया जाता है |  जहां कई राज्यों ने कम से कम सांकेतिक रूप से भी जनजाति उपयोजना का कार्यान्वयन किया है, वहीँ बहुत से केन्द्रीय मंत्रालयों ने वह भी नहीं किया है |  लगभग कोई भी केन्द्रीय मंत्रालय जनजाति जनसंख्या के अनुपात में जनजातियों के लाभार्थ निधियों का आवंटन नहीं करता है |  व्यय तदर्थ स्वरुप का होता है एवं उसमें कोई समन्वय भी नहीं होता |


13.4  यह आवश्यक है कि जनजातीय उपयोजना के प्रभावी पूलिंग हेतु एक प्रणाली बनाई जाए तथा सामाजिक क्षेत्रीय निधियों से संबद्ध प्रत्येक लाईन मंत्रालय द्वारा तैयार जनजातीय केन्द्रीय रणनीति के तहत उनका व्यय किया जाए |  सेवा एवं अवस्थापना के सामान्य मानदंड जनसंख्या मानदंडों के आधार पर नहीं होनी चाहिए, क्योंकि विरल जनसंख्या वाले अनु.जन.जा. गाँव व समूह इन मानदंडों को कभी पूरा नहीं कर सकेंगे |  अतएव, मानदंडों को शिथिल किया जाना चाहिए ताकि अनुसूचित जनजाति तक विकास पहुँच सके |


13.5  इस नीति के तहत निम्नांकित कदम उठाए जाएंगे :


क)   जनजातीय उपयोजना तंत्र को अनुपालन एवं प्रबोधन के लिए सशक्त बनाया जाएगा तथा संस्थात्मक व्यवस्था स्थापित की जाएगी |  प्रत्येक मंत्रालय को ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान जनजातियों को दी जाने वाली सेवा का निर्माण/ उन्नयन करने हेतु एक विशिष्ट रणनीति के तहत योजना बनाने की आवश्यकता होगी ताकि इसे शेष क्षेत्रों के समकक्ष लाया जा सके |


ख)  निम्नांकित मुख्य दिशा निर्देशों के अनुसार प्रत्येक राज्यों में योजना कार्यान्वयन हेतु जनजातीय उपयोजना को अलग "बजट शीर्ष" के अंतर्गत पूलिंग किया जाएगा |

  • सम्पूर्ण राज्य परिव्यय से राज्य/ संघ राज्य क्षेत्र कम से कम अनु.जन.जा. की जनसंख्या के अनुपात में जनजाति उपयोजना के लिए निधियों का आवंटन करना |
  • योजना आयोग द्वारा वार्षिक योजनाओं के अनुमोदन से पहले जनजाति कार्य मंत्रालय द्वारा राज्य जनजातीय उपयोजना का आवश्यक अनुमोदन |
  • योजना आयोग में जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा सेवित एक समिति द्वारा समान रूप से सभी केन्द्रीय मंत्रालयों की वार्षिक जनजाति उपयोजना को अंतिम रूप देना तथा अनुमोदन करना |
  • जनजातीय उपयोजना निधि को विशेष बजट शीर्ष "कोड 796" के अंतर्गत रखना |
  • जनजातीय उपयोजना निधि वर्ष के अंत में व्यपगत न हो तथा निधियों से वंचित न हो सकें- इसके लिए एक कार्यकारी व्यवस्था का विकास किया जाएगा |
  • राज्यों में नोडल विभाग, अर्थात जनजातीय कल्याण से संबंधित विभाग द्वारा जनजातीय उपयोजना का रिरूपन तथा कार्यान्वयन |
  • प्रत्येक आई.टी.डी.पी./ आई.टी.डी.ए. के लिए वार्षिक जनजातीय उपयोजना बनाना |
  • आई.टी.डी.ए. तथा डी.आर.डी.ए. की गतिविधियों का समन्वय ताकि आई.टी.डी.ए. को प्रभावी बनाना |
     केन्द्रीय मंत्रालयों तथा राज्यों के इस दिशानिर्देशों के अनुपालन के फलस्वरूप एक व्यापक परिमाण में राशि को जनजातीय उपयोजना रणनीति के अंतर्गत समेकित एवं एकीकृत रूप में व्यय किया जाएगा ताकि वांछित परिणाम प्राप्त किए जा सकें |

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14. सशक्तिकरण

14.1  पांचवी अनुसूची के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की परंपरा तथा रीति रिवाज के संरक्षण हेतु तथा उनके सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक पहचानों एवं पारंपरिक सामुदायिक ससाधनों के प्रबंधन प्रथा को संरक्षित तथा इसे सुरक्षा प्रदान करने हेतु पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा) 24 दिसंबर, 1996 को प्रभाव में आया |

14.2  पेसा अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों की अधिकारिता का एक विलेख है |  पेसा में अन्य बातों के साथ-साथ यह व्यवस्था है-

  • उपयुक्त स्तर पर पंचायतें और ग्राम सभाएं विशेष रूप से लघु वन उत्पाद (एम एफ पी) के स्वामित्व से संपन्न हों ;
  • गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के अंतर्गत हितग्राहियों का अनुमोदन करने के लिए ग्रामसभाओं को अधिकार प्रदान करता है और उसे लघु वन उत्पादों, लघु खनिजों और वन में भू-अधकारों के निर्धारण से संबंधित व्यवस्था है ;
  • विकास परियोजनाओं के लिए भूमि के अधिग्रहण से पूर्व उपयुक्त स्तर पर ग्राम सभाओं अथवा पंचायतों के साथ पूर्व परामर्श करना अनिवार्य बनाता है ;
  • लघु खनिजों के लिए पूर्वेक्षण-लाइसेंस अथवा खनन पट्टे के अनुदान के लिए ग्राम सभा अथवा पंचायत की सिफारिशों को उपयुक्त स्तर पर अध्यादेशात्मक बनाता है ;
  • इस बात की अपेक्षा करता है कि राज्य सरकारें अपने मौजूदा कानूनों में परिवर्तन करें जहां कहीं वे केन्द्रीय विधान से असंगत हों |
14.3  वास्तव में पेसा पारित होने के बाद से अब तक मुख्य नीति का हिस्सा नहीं बना है |  बहुत सी राज्य सरकारों ने केन्द्रीय क़ानून के अनुरूप क़ानून पास नहीं किए हैं |  भू-अधिग्रहण अधिनियम जैसे कई केन्द्रीय कानूनों में अभी भी संशोधन किया जाना है |  जबकि पेसा कार्यान्वित नही हुआ है, राष्ट्रीय और बहु राष्ट्रीय कारपोरेट निकायों द्वारा वाणिज्यिक शोषण के लिए राज्य सरकारों द्वारा जनजातीय क्षेत्रों को खोले जाते रहने में वृद्धि हुई है | 

14.4  अतः, इस नीति के अंतर्गत निम्नलिखित कार्रवाई प्रस्तावित है :


(क)   केन्द्रीय कानूनों और पेसा के बीच एकरूपता लाना |


(ख)   राज्य कानूनों और पेसा के बीच एकरूपता लाने के लिए राज्य सरकारों से बातचीत |


(ग)  विकेन्द्रित निर्णय संबंधित संरचनाओं का संवर्धन करना और जिला स्तर पर योजना से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना |


(घ)   ग्राम सभा, पंचायतों और नगर-निगमों का आयोजना और अनुच्छेद 243, 243 क, 243 घ सहित संविधान के प्रावधानों और पंचायत अधिनियम (अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार), 1996 के प्रावधानों के अनुसार आर्थिक विकास के कार्यन्वयन के लिए जिम्मेदार बनाना |


(ड) अनुसूचित शहरों में शहरी पॉकेटों के लिए पेसा विधान के तदनुरूप अधिनियम का समर्थन करना |


(च) जनजातीय परम्परा और संवैधानिक प्रावधानों, विशेष रूप से, छठी अनुसूची के क्षेत्रों के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए, स्व-शासन के क्षेत्र की समीक्षा करना और उसे सदृढ़ करना |


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15. लिंग समानता

15.1 सामान्यतः, महिलाओं और विशेष रूप से अनुसूचित जनजाति महिलाओं की स्थिति को ऊपर उठाना न केवल नैतिक अनिवार्यता है बल्कि इसका सामायिक महत्त्व भी है |  लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था के ढांचे के अन्दर हमारे कानून, विकास नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों का लक्ष्य विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की उन्नति करना है |  हाल के वर्षों में, महिलाओं की स्थिति का निर्धारण करने में महिलाओं की अधिकारिता को मुद्दा माना गया है |

15.2 सुविधावंचित और असुरक्षित समूह होने पर भी जनजातीय महिलाए, सामान्य आबादी की महिलाओं की तुलना में बेहतर स्थिति में है, वास्तव में कुछ क्षेत्रों में अपेक्षाकृत अधिक अधिकार प्राप्त हैं | सामान्यतः वे पृथक्करण अथवा अपेक्षाकृत निम्न स्थिति से ग्रस्त नहीं होतीं |  यह सामान्य आबादी की तुलना में उनका अपेक्षाकृत अधिक लिंग अनुपात (2001 जनगणना के अनुसार 933 की तुलना में 977) से भी परिलक्षित होता है |  अनुसूचित जनजातीय महिलाओं के लिए शिशु लिंग अनुपात भी सामान्य आबादी की तुलना में अनुकूल है, जो 2001 की जनगणना के अनुसार सामान्य आबादी के 919 की तुलना में 972 है |  तथापि, मुख्य धारा की जनसंख्या की नकारात्मक प्रक्रियाएं जनजातीय आबादी में भी दृष्टिगोचर होना  प्रारंभ हो गई है |  उदाहरणार्थ, अनुसूचित जनजातियों के लिए पुरुष लिंग अनुपात की तुलना में महिला शिशु 1991 में 985 (प्रति हजार पुरुष) से गिरकर 2001 में 972 हो गए |  तथापि, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में, जनजातीय महिलाएं महत्वपूर्ण रूप से एक कदम पीछे हैं |


15.3 जनजातीय महिलाओं के उत्थान के लिए निम्नलिखित प्रयास किए जाएंगे :-


(क) लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देते हुए, कम महिला साक्षरता वाले पाकेटों में विशेष साक्षरता कार्यक्रम अभियान जारी रखे जाएंगे अथवा शुरू किये जाएंगे |


(ख)  कतिपय हानिकर प्रक्रियाओं, जिनके परिणामस्वरूप महिलाओं का उत्पीड़न और उन पर अत्याचार, जैसे कि जादू-टोना, किया जाता है, को समाप्त करने के लिए सामुदायिक प्रयासों के माध्यम से उपाय भी किये जाएंगे |


(ग)  एक समर्थकारी विनियामक/ निति ढांचा उपलब्ध कराकर कम भुगतान वाले, घरेलू और दासोयित कार्य के लिए शहरी क्षेत्रों में जनजातीय महिलाओं के प्रवास को हतोत्साहित किया जाएगा |


(घ)  लैंगिक समानता लाने की दृष्टी से, प्रथागत प्रकियाओं (वंशानुगत, सम्पति का स्वामित्व आदि) जिनसे महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव किया जाता है, की जांच की जाएगी | 


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16. गैर-सरकारी संस्थाओं का समर्थन

16.1 विकास के प्रति भागीदारी दृष्टिकोण के महत्व को बलपूर्वक बताने की जरुरत नहीं है |  सतही स्तर पर सरकारी कार्यक्रमों और नीतियों के लाभ तक पहुचने के लिए गैर-सरकारी संगठन और स्वैच्छिक एजेंसिया उत्प्रेरक और सहायक का काम करते हैं और इस प्रकार उपलब्धियां इष्टतम रहती हैं |  ऐसे संगठनों का जनता के साथ सीधा सम्पर्क और तादातम्य होता है और वे उनकी समस्याओं से अवगत होते हैं |  वे उन्हें सततता भी प्रदान करते है |  इस प्रकार गैर-सरकारी संगठन परिवार और समुदाय आधारित कार्यक्रमों को प्रभावी रूप से शुरू करके उनका संवर्धन करते हैं तथा दीर्घकालिक आधार पर जनजातीय क्षेत्रों में संसाधन जुटाते हैं |

16.2 बहुत-सी स्वैच्छिक एजेंसियों ने जनजातियों के उत्थान में प्रशंसनीय कार्य किया है |  तथापि, हाल ही के वर्षों में गैर-सरकारी संगठनों/ स्वैच्छिक एजेंसियों, जो सरकार को वित्तीय सहायता देने के प्रस्ताव रखती है, को बेपनाह तरह से फैलते देखा गया है |  अच्छे गैर-सरकारी संगठन को बढ़ावा देने तथा अपनाने का प्रयास आंशिक रूप से इसलिए बाधित हुई है कि ऐसे गैर-सरकारी संगठन की संख्या में अत्याधिक वृद्धि हो रही है, जिनकी गतिवधियां संदिग्ध है |


16.3 सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, निति के अंतर्गत गैर-सरकारी संगठन को जनजातीय विकास गतिविधियों, विशेष रूप से आवासीय और गैर-आवासीय स्कूलों, छात्रावासों, औषधालयों, अस्पतालों, व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्रों, जागरूकता कार्यक्रम और क्षमता निर्माण करने में शामिल रहने के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा, लेकिन इसमें पारदर्शिता को सुनिश्चित किया जायेगा |


16.4 सरकार जनजातीय क्षेत्रों में स्वैच्छिक कार्रवाइयों का समर्थन करने का निम्न रूप में प्रस्ताव रखती है :-


(क) राज्य सरकारें भारत सरकार के स्तर पर ऐसी कार्रवाई का केन्द्रीयकरण करने की प्रक्रिया के मुकाबले गैर-सरकारी संगठन की परियोजनाओं को प्राप्त करेगी, उनकी समीक्षा करेगी और उनकी सिफारिश करेगी |  इससे राज्य सरकारों की अपेक्षाकृत अधिक भागीदारी को भी सुनिश्चित किया जायेगा |


(ख) गैर-सरकारी संगठनों की परियोजनाएं सेवा-वंचित अनुसूचित क्षेत्रों/जनजातीय क्षेत्रों में प्राथमिकता प्राप्त सेवाओं में शुरू की जाएंगी |  परियोंजनाएं परिभाषित परियोजना अवधि के लिए होंगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि परियोजना का लाभ प्रभाव सहित लक्षित जनसँख्या तक पहुंचे है और साथ गैर-सरकारी संगठनों की जवाबदेही को भी सुनिश्चित किया जा सके |


(ग) गैर-सरकारी संगठन को ऐसी अन्य सहायता प्रणालियां स्थापित करने के लिए भी बढ़ावा दिया जायेगा जिससे सरकार पर उनकी निर्भरता क्रमशः कम हो और स्वैच्छिक सेवा की भावना का विस्तार हो |


(घ) स्वैच्छिक संगठनों को सामाजिक कार्यकलापों में समुदाय को बढ़ावा देने और शामिल करने की आवश्यकता होगी और इसके लिए प्रचालन के क्षेत्र में समुदाय को सूचित करने और उसे सशक्त बनाने के लिए उत्साहवर्धक भूमिका निभाने की आवश्यकता होगी, समुदाय की वांछित अंतर्ग्रस्तता स्वैच्छिक अथवा गैर-सरकारी संगठन के कार्यनिष्पादन का एक मापदण्ड होगी |


(ड) गुणात्मक रूप में गैर-सरकारी संगठन के कार्यकरण को सुधरने के लिए यह संगठन के रूप में उनकी सदाशयता को सुनिश्चित करने के लिए, सर्कार गैर-सरकारी संगठन के प्रत्यायन के रास्ते खोजेगी |


(च) प्रत्यायित, प्रतिष्ठित और सुस्थापित स्वैच्छिक एजेंसियों को आपसी विश्वास के आधार पर और अभिज्ञात सेवा वंचित क्षेत्रों में दीर्घावधिक वचनबद्धता के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा |


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17. जनजातीय संस्कृति एवं पारंपरिक ज्ञान 

17.1 जनजातीय संस्कृति परंपरा और विरासत, कला और शिल्प, नृत्य तथा संगीत से संबंधित मामलों का व्यापक रूप से समाधान और समर्थन निम्नानुसार किया जायेगा :-

(क)  जनजातीय कला और शिल्प का प्रलेखन, संरक्षण, प्रचार प्रसार किया जायेगा और बाज़ार के साथ चयनात्मक संपर्क बनाए रखा जाएगा |

(ख)  राष्ट्रिय और राज्य स्तरों पर सांस्कृतिक मेलों और त्यौहारों का आयोजन किया जायेगा और जनजातीय कलाकारों तथा लोक कला निष्पादकों का बढ़ावा दिया जायेगा और उनकी विशेषता के संबंधित क्षेत्रों में उनका समर्थन किया जाएगा |

(ग)  राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय संगीत नाटक अकादमियों का, विभिन्न राज्यों के विभिन्न लोकनृत्यों का प्रलेखन करने और प्रतिष्ठित कलाकारों का पता लगाने के लिए समर्थन किया जाएगा |

(घ)  जनजातीय कलाकृतियों, वस्त्रों और आभूषणों को प्रदर्शनियों के माध्यम से बाज़ार तक पहुँचाने में और सुविधाजनक बनाने को बढ़ावा दिया जायेगा और रोजगार के लिए संभावना पैदा की जाएगी |

(ड)  जनजातीय कला, शिल्प, नृत्य, संगीत तथा जीवन-पद्धति को दर्शाने के लिए देश की राजधानी में आदिवासी भवन की स्थापना की जाएगी |  सेमिनारों और प्रदर्शनियों की सुविधाओं सहित विचारों के आदान प्रदान के लिए उसमें एक प्रलेखन व सन्दर्भ केंद्र भी होगा |

17.2 परंपरागत ज्ञान :- पहाड़ियों, जंगलों, तटीय क्षेत्रों और रेगिस्तानों के बीच रहने वाले जनजातीय लोगों ने शताब्दियों से पर्यावरणात्मक मुश्किलों से जूझते हुए अमूल्य और विस्तृत अनुभव प्राप्त किया है और वहनीय आजीविका में अग्रणी रहे हैं |  उनकी जल संचयन तकनीकों, स्वदेशी रूप से विकसित कृषि-संबंधी प्रक्रियाओं और सिंचाई प्रणालियों, पहाड़ियों पर बेंत (केन) पुलों के निर्माण, रेगिस्तानी जीवन के अनुकूलन, चिकित्सीय प्रयोजनों के लिए जड़ी-बुटियों और पौधों जैसे जंगली वस्तुओं का उपयोग, मौसम विज्ञानं सम्बन्धी निर्धारित आदि में उनकी बुद्धिमत्ता परिलक्षित होती है |  इस अमूल्य जानकारी का उचित रूप से प्रलेखन करने और आधुनिकीकरण और समय बीतने के परिणाम स्वरुप उसे खोने से बचाने के लिए इसे सुरक्षित करने की आवश्यकता है |

17.3  निम्नलिखित के सम्बन्ध में प्रयास किये जायेंगे :

(क)   जनजातीय परंपरागत जानकारी और बुद्धिमत्ता का संरक्षण, संवर्धन और प्रलेखन करने;

(ख)   परंपरागत बौद्धिकता के क्षेत्रों में जनजातीय युवाओं को प्रशिक्षित करने के लिए केंद्र की स्थापना;

(ग)   प्रतिरूपों के माध्यम से ऐसी जानकारी का प्रचार और उपयुक्त स्थानों पर उन्हें प्रदर्शित करना | 

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18.  जनजातीय क्षेत्रों का प्रकाशन 

 18.1  प्रशासन की गुणवत्ता विकास का एक अत्यधिक महत्वपूर्ण आदान है |  अनुसूचित और अन्य जनजातीय क्षेत्रों में प्रशासन का स्तर तेजी से बढ़ाना होगा ताकि बढती हुई परिवर्तन की गति के कारण आने वाली चुनौतियों का जनजातीय लोग उघ्कर मुकाबला कर सकें |

संविधान की पांचवी अनुसूची

18.2 अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित संविधान की पांचवी अनुसूची में अनुसूचित क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों के महत्वपूर्ण प्रशासनिक विधायी अधिकारों और संरक्षण की परिकल्पना की गई है |  लेकिन उसकी पूर्ण संभावनाओं का दोहन नहीं किया गया है |

18.3  पांचवी अनुसूची के भाग क का पैरा 3 दो महत्वपूर्ण प्रावधानों से संबंधित है पहला राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन से सम्बंधित, राज्यपाल द्वारा बनाई जाने वाली राष्ट्रपति को वार्षिक रूप से दी जाने वाली अथवा जब कभी राष्ट्रपति द्वारा वांछित हो, दी जाने वाली रिपोर्ट और दूसरे, अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित राज्य को निर्देश दिए जाने के लिए संघ के कार्यकारी अधिकार |

18.4 वर्षों से, राज्यपाल की रिपोर्ट दुर्भाग्यवश एक रूटीन दस्तावेज बन गया है और जनजातीय विकास में केवल राज्य सरकार की उपलब्धियों को उजागर करता है | अनुसूचित क्षेत्रों की समस्याओं का गहराई से विश्लेषण सामान्यतः रिपोर्ट में शामिल नहीं किया जाता |  राज्यपाल की रिपोर्ट को महत्वपूर्ण दस्तावेज बनाए जाने की आवश्यकता है, जिसमें सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक मामलों में अनुसूचित क्षेत्रों में कार्य की स्थिति प्रतिबिंबित होती है |


18.5  अनुसूची के पैरा 4 में जनजातीय परामर्शदात्री परिषदें (टीएसी) उन सभी राज्यों और संघ राज्यक्षेत्रों में स्थापित किए जाने की आवश्यकता है, जिनमें अनुसूचित क्षेत्र हैं और राष्ट्रपति के विवेक पर, अन्य राज्यों में भी जिनमें अनुसूचित जनजातियां हों, चाहे वहां अनुसूचित क्षेत्र न हों वहां भी ऐसी परिषदें स्थापित करने की आवश्यकता है |  इस समय, केवल अनुसूचित क्षेत्रों वाले राज्यों में टी ए सी है |  अनुसूचित जनजातियों  के हितों की जांच-पड़ताल करने के लिए अन्य राज्यों में टी ए सी होनी आवश्यक है |  तथापि, जहां वे हैं जनजातीय परामर्शदात्री परिषदों (टी ए सी) का ट्रैक-रिकार्ड अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण अथवा कल्याण को सुनुश्चित करने में उत्साहवर्धक नहीं रहा है |  सामान्यतः राज्य सरकारों द्वारा गठित मौजूदा टी ए सी रूटीन से बैठक करती है और मुद्दों पर चर्चा करती है |  अतः निम्नांकित कार्रवाई प्रस्तावित है -

(क)  उन राज्यों में टी ए सी स्थापित करने के लिए तंत्र व्यवस्था की जाएगी जिनमे अनुसूचित जनजातियां हैं, लेकिन अनुसूचित क्षेत्र नहीं है ;


(ख)  राज्य सरकारों को उन सभी संबंधित प्राधिकारियों, द्वारा प्रस्तावित सभी विधानों, नियमों, विनिमय आदि, जो जनजातीय हितों को प्रभावित करते हैं, के संबंध में टी ए सी से परामर्श करना आवश्यक होगा |

(ग)  टी ए सी और इसकी उप समिति सभी जनजातीय संबंधित कार्यक्रमों के लिए निरिक्षण और प्रबोधन निकाय के रूप में कार्य करेंगी |


18.6 अनुसूची के पैरा 5 में, राज्यपाल को अनुसूचित क्षेत्रों के लिए विनिमय बनाने के लिए असाधारण शक्तियां प्रदान की गई हैं |  यहां तक की उन्हें अनुसूचित क्षेत्र में किसी कानून को पूर्णतः अथवा अंशतः भावी प्रभाव से अथवा भूतलक्ष्मी प्रभाव से लागू करने से रोकने अथवा अनुसूचित क्षेत्र में उसे लागू करने के लिए संसद द्वारा अथवा राज्य विधानसभा द्वारा बनाए गए कानूनों को संशोधित करने का भी प्राधिकार दिया गया है |  चूँकि क़ानूनी मत के अनुसार ऐसा अधिकार केवल मंत्रिमंडलीय परामर्श पर ही प्रयुक्त किया जा सकता है इसलिए पांचवी अनुसूची के अंतर्गत अपने कार्यों का निर्वहन करने के लिए राज्यपाल को समर्थ बनाने हेतु कार्य प्रणाली का विकास किये जाने की आवश्यकता है |


18.7 अनुसूचित क्षेत्रों के निर्धारण के लिए ढेबर आयोग द्वारा चार मानदंड उद्धृत किए गए है, अर्थात (1) जनजातीय जनसंख्या की बहुलता; (2) क्षेत्र की सघनता और यथोचित आकर; (3) क्षेत्र की विकासाधीन प्रकृति; और (4) जनता के आर्थिक स्तरों में उल्लेखनीय असमानता और क्षेत्र के बाहर भी उनका सतत रूप से प्रयोग किए जाते रहना |  तथापि, तब से भौगोलिक परिवर्तनों विशेष रूप से, अनुसूचित क्षेत्रों में गैर-जनजातीय जनसंख्या के प्रवाह पर विचार करते हुए अनुसूचित क्षेत्रों के निर्धारण के लिए निम्नलिखित पर विचार किया जायेगा :-


(क)  जहां अनुसूचित जनजातीय जनसंख्या का प्रतिशत 50% से कम हो- मामला दर मामला आधार पर |


(ख)  ब्लॉक के बदले में ग्राम-पंचायत को एक एकक के रूप में लिया जाए |


18.8 जनजातीय उपयोजना क्षेत्र में अनुसूचित क्षेत्रों से कहीं अधिक बड़ा क्षेत्र सम्मिलित होता है |  तथापि, न्यायसंगत संरक्षण से अनुसूचित जनजाति के बड़ी संख्या को वंचित रखते हुए, सभी टीएसपी क्षेत्रों में संरक्षणात्मक और क़ानूनी उपाय उपलब्ध नहीं हैं |  अतः, जनजातीय उपाययोजना क्षेत्रों और अनुसूचित क्षेत्रों को एकसीम (को-टर्मिनस) बनाया जाएगा |


18.9  पेसा अधिनियम की धारा 4(ओ) के अधीन यथाविहित, छठी अनुसूची के कुछ हितकर प्रावधानों को अनुसूचित क्षेत्रों में जिला प्रशासन के पैटर्न में शामिल करने की व्यवहारिकता की जाँच की जाएगी |

संविधान की छठी अनुसूची 

18.10 संविधान की छठी अनुसूची की अभिकल्पना जिला एवं क्षेत्रीय परिषदों के लिए व्यापक स्वायतत्ता देने के लिए की गई थी |  यहाँ तक कि इस अनुसूची को संविधान के अंदर संविधान के रूप में वर्णित किया गया है |  स्वायत्तशासी परिषदों को बृहत वैधानिक, न्यायिक, अधिशासी एवं वित्तीय शक्तियां दी गई हैं |

18.11 यद्यपि छठी अनुसूची जिला परिषदों/ क्षेत्रीय परिषदों को पर्याप्त स्वायत्तता देने पर विचार करता है और यह पांचवी अनुसूची में विचारित प्रशासन से अधिक सशक्त है लेकिन उसमें एक प्रमुख कमी यह है कि जिला स्तर के नीचे लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं है |  ऐसा लगता है कि इस रिक्ति को पारंपरिक प्रमुखों से भरा जाना था |  फिर भी, पारंपरिक और औपचारिक प्रणाली में असंगति है, जो विकास के प्रयासों के आशा से कम परिणामों के मौलिक कारणों में से एक है |  राज्य सरकारों एवं स्वायत्तशासी परिषदों के संबंध भी प्रायः सामंजस्यपूर्ण नहीं हैं | इसमें अन्य कमियां भी आ गई हैं |  विशेषकर छठी अनुसूची में स्वायत्तशासी परिषदों की कार्य प्रणाली की समुचित समीक्षा और उसमें सुधार नहीं किए गए हैं |  इन पहलुओं का गंभीरता से अध्ययन किए जाने की जरुरत है |


18.12  इस निति के तहत निम्नलिखित कार्रवाई की जाएगी :-


क)  जिला परिषदों एवं संबंधित राज्य सरकारों के बीच अंतरापृष्ठ को सुधारा जाएगा, जिससे वे कार्यकारी सहायक संवैधानिक तीसरे स्तर के रूप में काम कर सकें |


ख)  शक्ति संतुलन की प्रणाली सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकारों एवं परिषदों के बीच समन्वय प्रणाली विकसित की जाएगी | 


ग)  राज्य सरकारों में परिषदों को निधियों का समय से हस्तांतरण सुनिश्चित किया जाएगा |


घ) देश में अन्य समुदायों के लिए उदहारण के रूप में स्वायत्तशासी परिषदों के माध्यम से जनजातीय समुदायों के समृद्ध सामुदायिकतावाद, समानतावाद, पर्यावरण के प्रति सचेत रहने की भावना का पोषण जारी रखा जाएगा | 

कार्मिक नीति

18.13 जनजातीय क्षेत्रों के प्रायः सुदूर एवं प्रतिकूल भू_भागों में होने के कारण वे बिजली, सुरक्षित पेयजल, शिक्षा एवं स्वास्थ्य की संस्थाएं, मनोरंजन के साधन, संचार इत्यादि जैसी सुविधाओं से वंचित होते हैं |  सरकारी कर्मचारी सामान्यतः इन क्षेत्रों में काम करने से अनिच्छुक होते हैं और उसे "दंडात्मक तैनाती" मानते हैं |  किसी भी समय पर वहां बहुत से पद खाली पड़े रहते हैं |  जनजातीय क्षेत्रों में तैनात कार्मिकों के लिए पदोन्नति की तीव्र गति, एकमुश्त भुगतान जैसे विशेष प्रोत्साहनों के माध्यम से इन पदों को आकर्षक बनाने का दृष्टिकोण अपनाया जाएगा तथा निम्नलिखित कदम उठाए राएंगे :

1)   प्रत्येक राज्य सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य, आईसीडीएस, कृषि इत्यादि क्षेत्रों में ऐसे विनिर्दिष्ट पदों की पहचान करेगी जिसे एकमुश्त भुगतान किया जाएगा जो प्रत्येक साल की सेवा पूरी होने पर या लंबी अवधि पर समुचित पंचायत निकाय के सत्यापन पर दिया जाएगा |


2)   प्रशासन के मौजूदा प्रतिमान को बदलने के लिए नई प्रणाली इस प्रकार शुरू की जाएगी कि सीमित कार्मिकों से ही बेहतर सेवाएं प्राप्त की जा सके (यथा एकल चिकित्सक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को बहुचिकित्सक संस्था में परिवर्तित करना, बेहतर संचार, साप्ताहिक ग्रामीण बाजारों, हाटों या शैंडीज में बीज आपूर्ति, मृदा परीक्षण, स्वास्थ्य परिचर्या इत्यादि जैसी विभिन्न सेवाएं शुरू करना) |


3)   जनजातीय क्षेत्रों की पंचायतों को ठेके पर स्टाफ लेने की अनुमति दी जाएगी |


4)   इस महत्वपूर्ण कार्मिक नीति का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए केन्द्रीय निधियों के राज्यों में प्रवाह को जनजातीय क्षेत्रों के पदों को भरने से जोड़ा जाएगा |  इसे प्राप्त करने के लिए एक अच्छी निगरानी प्रणाली होगी, जो प्रमुख संकेतकों पर राज्यों के निष्पादन को दर्शाएगी |


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19. नियामक एवं सुरक्षात्मक शासन प्रणाली 

     निम्नलिखित कदम उठाकर नियामा एवं सुरक्षात्मक शासन प्रणाली को तथा इसके कार्यान्वयन को और सुदृढ़ किया जाएगा :

क)   अनुसूचित क्षेत्रों में तथा जनजातीय क्षेत्रों में शराब बेचना बंद करने के लिए राज्य के आबकारी कानूनों, नियमों एवं विनियमों में संशोधन किया जाएगा और अनुसूचित जनजातियों को अपने घरेलू एवं सामाजिक उपभोग के लिए खुद अपनी शराब बनाने की अनुमति दी जाएगी |  यह सुनिश्चित किया जाएगा की राज्य की आबकारी नीति अनुसूचित क्षेत्रों पर लागू न हो |  अनुसूचित जनजाति को शराबखोरी एवं नशीली वस्तुओं के सेवन से वितर करने के लिए महिला संगठनों को प्रोत्साहित किया जाएगा |


ख)   अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के प्रावधानों को कड़ाई से लागू किया जाएगा |

ग)   भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1984 में, उसे पेसा अधिनियम, 1996 की धरा 4 में निहित उपबंधों के अनुरूप बनाने के लिए संशोधन किया जाएगा |  विस्थापित व्यक्तियों के पुनर्वास एवं पुनर्स्थापना से संबंधित चिंताओं का भी निराकरण किया जाएगा |


घ)   विभिन्न केन्द्रीय एवं राज्य अधिनियमों यथा कोयलाधारी क्षेत्र (अधिग्रहण एवं विकास) अधिनियम, 1957, राष्ट्रीय खनिज नीति, 1993, राज्य खनिज रियायत नियमावली, आबकारी अधिनियम, राज्य सिंचाई अधिनियम, भू-राजस्व संहिता, भू-हस्तांतरण क़ानून/ विनियम, साहूकारी क़ानून, नियमित बाजार कानूनों एवं नियमों इत्यादि में उन्हें पेसा अधिनियम 1996 के अनुरूप बनाने के लिए संशोधन किया जाएगा |


ड.)  जनजातीय भूमि को गैर-जनजातीयों में हस्तांतरण के अवैध पंजीकरण को रोकने के लिए भारतीय पंजीयन अधिनियम, जो एक केन्द्रीय अधिनियम है, संशोधन किया जाएगा |  इसमें अन्य बातों के साथ-साथ यह भी आवश्यक होगा की हस्तांतरण करने वाले सांगत प्रलेखों के साथ इस आशय का एक शपथपत्र भी हो कि हस्तांतरणकर्ता अनुसूचित जनजाति का सदस्य या ऐसी पंजीकृत समिति है या नहीं जो पूर्णतः अनुसूचित जनजाति के सदस्यों से बनी है |


च)   मानवीय एवं क़ानून सम्मत कार्य दशाएं सुनिश्चित करने के लिए अंतर्राज्यीय प्रवासी कामगार अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम तथा अन्य सांगत कानूनों को और कड़ाई से लागू किया जाएगा |


छ)   व्यापक रूप से ऐसी सूचना मिली है कि पेसा अधिनियम में कुछ उपबंध व्यावहारिक/ कारगर नहीं है |  इन कमजोरियों की जांच की जाएगी तथा पैसा को व्यावहारिक बनाने के लिए उसमें यथा आवश्यक संशोधन किए जाएंगे |


ज)   अनुसूचित जनजाति को उनकी जातीय मूल के ज्ञान एवं बुद्धिमता के लिए जाना जाता है |  इसके अलावा, बौद्धिक संपदा अधिकार के समुचित ढांचे से उनकी समृद्ध जैव-विविधता की रक्षा की जानी है |  संस्थागत प्रबंधों से उनके बौद्धिक संपदा अधिकारों को कानूनी सुरक्षा उपलब्ध कराई जाएगी |


झ)  वांछित क़ानून से आरक्षण प्रणाली को बनाए रखा जाएगा एवं उसे सशक्त किया जाएगा |  साथ ही जनजातीय बच्चों एवं युवाओं को दी जा रही शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए महत्वपूर्ण उपाय किए जाएंगे जिससे वे आधुनिक दुनिया में सामान शर्तों पर प्रतियोगिता करने में समर्थ हो सकें |


यं)   जहां तक सरकारी नौकरी का प्रश्न है, जहां कई अनुसूचित जनजाति आरक्षण के प्रावधानों से लाभान्वित हुई है, यह भी देखा गया है कि अनुसूचित जनजाति के एक छोटे से वर्ग ने अधिकांश नौकरियों पर कब्ज़ा कर रखा है |  यदि आरक्षण को वंचित लोगों की सहायता का उपकरण बनाना है तो उप रार्गीकरण की एक प्रणाली बनानी पड़ेगी जिससे लाभ का प्रसार सामान रूप से एवं बराबर हो सके |  विशेषकर आदिम जनजातीय समूहों के लिए ऐसे उपाय किए जाने की जरूरत है |


ट)   राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा की आरक्षित रिक्तियां भरी जाएं तथा केन्द्रीय निधियों की निर्मुक्ति को राज्य सरकारों द्वारा इन पदों को भरने के लिए उठाए जा रहे क़दमों से जोड़ा जाए |


ठ)   राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग नियामक शासन-प्रणाली के क्रियान्वयन की निगरानी करना और शिकायतों के निवारण के लिए एक मंच उपलब्ध कराना जारी रखेगा |


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20. जनजातियों को अधिसूचित एवं अन-अधिसूचित करना 

20.1  भारतीय संविधान का अनुच्छेद 366(35) अनुसूचित जनजाति को उन समुदायों के रूप में संदर्भित करता है, जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 332 के अनुरूप अधिसूचित किया गया है |  अनुसूचित जनजातियों की सूची राज्य/ संघ शासित प्रदेश में सापेक्ष है और यह आवश्यक नहीं है कि एक राज्य/ संघ शासित प्रदेश में अनुसूचित जनजाति घोषित कोई अनुसूचित जनजाति दूसरे राज्य/ संघ शासित प्रदेश में भी अधिसूचित है |

20.2  देश की अनुसूचित जनजाति का सर्वाधिक प्रतिशत मध्य प्रदेश में (14.5%) है जबकि उड़ीसा राज्य में इनकी सबसे अधिक संख्या (62) रहती है |  अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड तथा दादरा व नगर हवेली एवं लक्षद्वीप संघ शासित प्रदेशों में आबादी का 50% से अधिक अनुसूचित जनजाति हैं और इस प्रकार वे जनजातीय बहुल केंद्र हैं |


20.3  भारतीय प्रणाली की विशेषता यह है कि किसी समुदाय के अनुसूचित जनजाति की सूची में आमेलन एवं यदि किसी समुदाय में वांछित विशेषताएं समाप्त हो जाती हैं तो सूची से निष्कासन एक सतत प्रक्रिया है |  तथापि, किसी नए समुदाय को सूची में जोड़ने से वे लाभ कम होते हैं जो मौजूदा अनुसूचित जनजाति को मिल सकते थे, अतः उन्हें तभी शामिल करना चाहिए जब संदेह की कोई गुंजाइश न हो |  कई समुदाय अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किए जाने की मांग कर रहे हैं |  आमेलन के लिए प्राप्त प्रस्ताओं की छानबीन की जाएगी जिससे केवल उन पात्र मामलों को चुना जा सके जो असावधानीवश पहले शामिल होने से छूट गए थे |


20.4  लोकुर समीति ने कतिपय मानदंड निर्धारित किए थे कि किन समुदायों को अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया जाए ये हैं : आदिम चिन्हों के लक्षण, विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक अलगाव, समुदाय से संपर्क करने में झिझक एवं पिछड़ापन |  आज के दिन अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत समुदायों की संख्या लगभग 700 है |  लोकुर समिति द्वारा निर्धारित मानदंड आज शायद ही प्रासंगिक हैं |  उदाहरण के लिए आज कुछ एक जनजातियों में ही आदिम चिन्ह मिलेंगे और परिशुद्ध मानदंड निर्धारित करने की जरूरत है |


20.5  इसी के साथ-साथ विभिन्न अनुसूचित जनजाति समुदायों द्वारा सामाजिक-आर्थिक एवं राजनैतिक क्षेत्र में की गई उन्नति को भी देखने की जरूरत है |  कम विकसित अनुसूचित जनजाति समुदाय अक्सर अधिक विकसित अनुसूचित जनजाति द्वारा अपने बहिष्कार की शिकायत करते हैं |  यह सुनिश्चित करने के लिए कि अनुसूचित जनजाति को दी जा रही सुविधाएं सभी अनुसूचित जनजातीय समुदायों को समान रूप से मिले, इसलिए मौजूदा अनुसूचित जनजाति का उप-वर्गीकरण अन्यों की तुलना में उनकी अंतः-अनुसूचित जनजातीय स्थिति निर्धारित करने की दिशा में उचित कदम होगा |


20.6  कुल मिलाकर जो समुदाय सामान्य संख्या की बराबरी में पहुँच गए हैं उन्हें अनधिसूचित करने की प्रक्रिया भी शुरू की जाएगी |  अनुसूचित जनजातियों के मलाईदार तबके को आरक्षण के लाभों से बाहर करने पर कभी भी गंभीरता से विचार नही किया गया |  जब हम आगे बढ़ते हैं और सामान्य सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं, तो इस मुद्दे पर ज्यादा ध्यान देना और एक स्वीकार्य प्रणाली तैयार करना आवश्यक होगा |


20.7  अनुसूचित क्षेत्रों के समीप जनजातीय बहुल जनसंख्या वाले गावों को भी अनुसूचित क्षेत्रों में शामिल किया जा सकता है और अनुसूचित जनजातीय आबादी के विनिर्दिष्ट पॉकेटों को जिन्हें अनुसूचित क्षेत्रों से बाहर रखा गया है उन्हें भी अनुसूचित किया जा सकता है |


20.8  घुमंतु जनजातियाँ : बहुत-सी अनुसूचित जनजातियां घुमंतु हैं |  यद्यपि उन्हें अछूत नहीं माना जता, फिर भी सामाजिक संस्तरण में उनका स्थान सबसे नीचे है |  चूंकि घुमंतु जनजातियां निरंतर भ्रमण करती रहती हैं इसलिए उनका कोई एक स्थान या आवास का राज्य नही होता |  उनके पास पारंपरिक रूप से भूमि अधिकार या घर भी नही होते |  परिणामस्वरूप वे न सिर्फ कल्याण कार्यक्रमों से वंचित हैं, बल्कि राशन कार्ड, मतदाता पहचान-पात्र इत्यादि जैसे नागरिक अधिकारों से भी वंचित हैं |
20.9  इस समस्या को दूर करने के लिए उनकी जरूरतों की पहचान करने एवं विकास योजना तैयार करने के लिए एक समयबद्ध कार्यक्रम शुरू किया जाएगा |

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21. अनुसंधान एवं प्रशिक्षण

21.1  देश की अनुसूचित जनजातीय आबादी समरूप नहीं है |  यह लोगों के विविध समूहों से बना है जिनकी जीवन-शैली, प्रथाएं, परम्पराएं और भाषाएं सिर्फ सामान्य आबादी से ही भिन्न नहीं है बल्कि एक दूसरे से भी भिन्न है |  उदारवादी एवं वैश्वीकरण की अर्थव्यवस्था में इस विविध जनजातीय संस्कृति, लोकाचार एवं जीवन शैली को ख़तरा लगातार बढ़ रहा है |  अतः सूक्ष्म एवं बृहत दोनों स्तरों पर सघन और सतत अनुसंधान की जरूरत है जिससे जनजातियों पर विकासात्मक गतिविधियों के प्रभावों, झेली जा रही समस्याओं, व्यवहारात्मक प्रथाओं जीवन के मानदंडों का सामना करने की प्रणाली इत्यादि को समझा जा सके जिससे नीति बनाने के लिए महत्वपूर्ण आंकड़े प्राप्त हो सकें |

21.2  जनजातियों के जीवन पर विकास के विभिन्न पक्षों के प्रभावों को समझने के लिए जनजातीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं के अध्ययन को भी अन्य बातों के साथ-साथ प्रोत्साहित और प्रायोजित किया जाएगा |  विषयों के आधार पर अनुसंधान आंकड़े उपलब्ध कराने के लिए दीर्घावधिक आधार पर प्रतिष्ठित संस्थाओं को सम्मिलित किया जाएगा |


21.3  विभिन्न्य राज्यों में जनजातीय अनुसंधान संस्थान स्थापित किए गए हैं और वे अनुसंधान एवं मूल्यांकन अध्ययन करने, आंकड़े एकत्र करने, प्रशिक्षण संगोष्ठियां एवं कार्यशालाएं आयोजित करने, पारंपरिक कानूनों के प्रलेखन का कार्य कर रहे हैं |  जनजातीय अनुसंधान संस्थानों का उद्देश्य जनजातीय विकास के उद्देश्यों में सहायता होना और केंद्र और राज्य सरकारों को समुचित नीतियां एवं कार्यक्रम तैयार करने में सहायता देना था |  जनजातीय अनुसंधान संस्थानों की कार्य प्रणाली कुछ वर्षों से रोजमर्रा स्वरुप की हो गई है और वे गंभीर आर्थिक एवं प्रशासनिक कमी से जूझ रहे हैं |  बदलते परिदृश्य में अधिक संकेंद्रित भूमिका के लिए जनजातीय अनुसंधान का सशक्त तथा उनके ढांचे एवं कार्यों को नया रूप दिया जाना चाहिए, उनमे आपस में तथा अन्य शैक्षणिक अनुसंधान संस्थानों के साथ अधिक विचार-विमर्श होते रहना चाहिए |


21.4  जनजातीय अनुसंधान संस्थानों के मौजूदा संग्रहालयों का उन्नयन करके उन्हें विशेष स्कूली बच्चों के लिए अधिक अतः क्रियात्मक एवं उयोगकर्ता-हितैषी मनाया जाएगा |  आनलाईन सुगमता के लिए डिजिटलाइजेशन के माध्यम से संग्रहालयों को अन्य संग्रहालयों से जोड़ा जाएगा |


21.5  (क)  जनजातीय अनुसंधान संस्थानों के कार्यों का पर्यवेक्षण करने, समन्वय करने एवं सहक्रियाशील बनाने ; (ख)  शिक्षा एवं नीतिगत मुद्दों पर सलाह के द्वारा मंत्रालय की सहायता करने ; और  (ग)  राष्ट्रीय महत्व के मामलों पर अध्ययन करने के लिए केंद्र में राष्ट्रीय जनजातीय कार्य संस्थान की स्थापना करने के प्रश्न पर विचार किया जाएगा जिसे पर्याप्त स्वायत्तता प्रदान की जाएगी एवं बृहत कार्यआदेश सौंपे जाएंगे |


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22. संचार रणनीति

22.1    अनुसूचित जनजातीय लोग दूर-दराज के क्षेत्रों में रहते है जो प्रायः आधुनिक संचार के साधनों की पहुंच से परे होता है | परिणामतः अनुसूचित जनजातियां विकासात्मक शुरुआतों, रोजगार कार्यक्रमों से सम्बंधित महत्वपूर्ण एवं उपयोगी सूचनाओं से वंचित रह जाती हैं |  निहित स्वार्थों वाले समूह प्रायः भ्रामक सूचनाएं फैलाते हैं जिससे व्यवस्था से उनका मोहभंग होता है और उनमें असंतोष फैलता है | अनुसूचित क्षेत्रों में दिनों-दिन बढ़ रही हिंसा से अब यह और जरुरी हो गया है कि अनुसूचित जनजातियों से नियमित आधार पर संवाद किया जाए |

22.2   सरकार का यह प्रयास होगा कि वह विभिन्न तरह के संचार माध्यमों, दृश्य, एवं श्रव्य दोनों तथा इलेक्ट्रॉनिक एवं पारंपरिक संचार के साधनों के माध्यम से अनुसूचित जनजातियों तक पहुंचे |  इस उद्देश्य के लिए राज्य सरकारें एवं जनजातीय अनुसंधान संसथान जनजातीय लोगों, उनके क्षेत्रों से संबंधित ज्ञान एवं अनुभव के प्रसार तथा जनजातीय कार्य एवं संबंधित मुद्दों के अध्ययन से संबंधित साहित्य के प्रकाशन के लिए व्यापक रूप से संलग्न होगी |  इस निति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलू उन तक उनकी भाषा में और उनके लिए सुगम माध्यम से पहुँचना होगा |  


22.3   सावधानी से चयनित मुद्दों/ सूचनाओं के प्रसार के लिए सामजिक उत्सवों एवं ग्रामीण बाजारों (हाटों) का व्यापक का प्रयोग किया जायेगा |


23. निगरानी मूल्यांकन एवं समीक्षा तंत्र 
      *  कार्यान्वयन की समीक्षा 

23.1   किसी भी निति की सफलता उसके प्रभावी कार्यान्वयन पर निर्भर करती है |  राष्ट्रीय जनजातीय निति, 2006 देश में अनुसुचित जनजातियों तथा अनुसूचित क्षेत्रों के कल्याण एवं विकास की गति बढ़ाने के लिए कई नए एवं सतत अभियानों/ शुरुआतों की रुपरेखा बनाती है |  यह तभी संभव होगा जब विभिन्न राज्य/ संघ शासित प्रदेश सरकारें, केन्द्रीय मंत्रालय/विभाग तथा विभिन्न शुरूआतों के कार्यान्वयन में संलग्न लोक अभिकरण समन्वयपूर्ण एवं सामंजस्यपूर्ण तरीकें से कार्य करें | अतः इस निति में नितिरूप विभिन्न शुरुआतों/ उपायों के कार्यान्वयन की अवधिक समीक्षा, कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार विभिन्न लोक अभिकरणों का उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना और कार्यान्वयन की व्यावहारिक कठिनाईयों को उजागर करना आवश्यक है |


23.2   राष्ट्रिय एवं राज्य स्तर पर निगरानी एवं मूल्यांकन की संस्थागत प्रणाली स्थापित की जाएगी तथा परिणामों को टीएसी इत्यादि के समक्ष रखा जाएगा |  स्थानीय समुदायों को कार्यक्रमों के नियोजन एवं पेसा अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप क्रियान्वयन की निगरानी एवं पर्यवेक्षण के अधिकार दिए जाएंगे तथा कार्यान्वयन तंत्र को तृणमूल स्तर पर लोगों के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए समुचित रूप से सुदृढ़ किया जाएगा |


23.3  राष्ट्रीय जनजातीय नीति, 2006 के कार्यान्वयन की समीक्षा जनजातीय कार्य मंत्रालय वर्ष में एक बार तथा पिछले वित्तीय वर्ष की समाप्ति से 3 माह के भीतर करेगा और समीक्षा के परिणामों को नीति के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए ध्यान में रखा जाएगा |

      *  नीति की समीक्षा

23.4   देश की अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित क्षेत्रों के समक्ष जो कठिनाईयां एवं समस्याएं हैं, उनका निराकरण ही राष्ट्रीय जनजातीय निति, 2006 का उद्देश्य है, समय के साथ उसमें परिवर्तन होने की संभावना है |  इस समय अनुसूचित जनजातियों एवं अनुसूचित क्षेत्रों के लिए खतरा बने मुद्दे कुछ सीमा तक सुलझ सकते हैं तथा नए मुद्दे एवं समस्याएं पैदा हो सकती हैं |  अतः अपरिवर्तनीय राष्ट्रीय जनजातीय नीति दूरदर्शितापूर्ण नहीं होगी |  परिवर्तित परिदृश्य के आलोक में नीति को प्रत्येक कुछ वर्षों के बाद अद्यतन करने की जरुरत होगी |  तद्नुसार, जनजातीय कार्यों से संबंधित मंत्रिमंडल समिति (सीसीटीए) से प्रत्येक तीन वर्ष बाद राष्ट्रीय जनजातीय नीति की समीक्षा करने और यदि आवश्यक हो तो नीति के लक्ष्यों एवं मार्गदर्शी सिद्धांतों को पुनः परिभाषित करने और भावी नई चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए रणनीति को नया रूप देने का अनुरोध किया जाएगा |



स्त्रोत
जनजातीय कार्य मंत्रालय
भारत सरकार 
राष्ट्रीय जनजातीय नीति 
(भारत के अनुसूचित जातियों के लिए नीति)
जुलाई, 2006 (प्रकाशित प्रारूप पुस्तिका)

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