मंगलवार, 7 जनवरी 2014

दलाईलामा द्वारा दिनांक १४ जनवरी २०१४ को सिरपुर, छत्तीसगढ़ प्रवास पर चांदा दाई गुफा में साधना करने पर विरोध

बौद्ध धर्म गुरु दलाईलामा 
आदिवासी गोंड समाज की न्यायपूर्ण मांग को महासमुंद जिला प्रशासन एवं छत्तीसगढ़ राज्य सरकार द्वारा अनदेखी कर आदिवासी गोंड समाज के धार्मिक भावनाओं पर चोट पहुंचाई जा रही है. हम प्रशासन के अड़ियल रवैये से निरास होकर जनता के अदालत में अपनी बात पहुंचाने हेतु प्रेस जगत से निवेदन करते हैं कि :-

१-     जैसा कि पूर्व में भी हमारे द्वारा प्रेस को अवगत कराया गया था कि महासमुंद जिला प्रशासन द्वारा आदिवासी गोंड समाज के श्रृद्धास्थल माता कली कंकाली माँ (चांदा दाई) की पूजा स्थली चांदा दाई गुफा को "नागार्जुन" का साधना स्थल बताकर जनता को गुमराह किया जा रहा है. शासन के इस कथन से आदिवासी गोंड समाज की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंची है.

२-     राज्य के पर्यटन एवं धर्मस्व विभाग द्वारा बौद्ध धर्म के धर्म गुरु दलाईलामा की आस्था एवं विश्वास से खिलवाड़ कर उक्त गुफा को नागार्जुन गुफा बताकर वहाँ दलाई लामा को ले जाने की घोषणा की गई है, जो कि छत्तीसगढ़ राज्य के पूरातत्व एवं धार्मिक न्यास विभाग के अधिकारियों की घोर गैर जिम्मेदाराना हरकत है.

३-     दलाईलामा की यात्रा को लेकर कलेक्टर, महासमुंद द्वारा समाज के पदाधिकारियों के साथ बैठक की गई. बैठक में आदिवासी गोंड समाज द्वारा चांदा दाई गुफा के इतिहास का विस्तार से उनके समक्ष में वर्णन किया गया तथा बताया गया कि रतनपुर के गोंड राजा हीरासाय (हीरा सिंह) द्वारा महासमुंद स्थित कौडिया क्षेत्र सिंघा धुर्वा को प्रदान किया गया था, जिन्होंने सिंघनगढ़ सहित कई गढ़ बनाए थे. सिंघानगढ़ की चांदा दाई गुफा में राजा सिंघा धुर्वा द्वारा पूजा पाठ की जाती थी. आज भी सिंघानगढ़ में उनके द्वारा बनाए गए गढ़, ताल-तलैया के अवशेष मौजूद हैं. परम्परागत और रीति नीति के अनुसार आदिवासी गोंड समाज सिंघा धुर्वा के चांदा दाई गुफा में अपनी आराध्य देवी महाकाली कली कंकाली की श्रृद्धापूर्वक पूजा करता है तथा नवरात्री में जंवारा बोकर ज्योतिकलश जलाई जाती है. साथ ही कुंवार नवरात्री में सामूहिक नवा खाई संपन्न कराई जाती है.

४-     बैठक में कलेक्टर द्वारा उक्त गुफा में दलाई लामा को ले जाने एवं वहाँ उनका ध्यान करवाने की जिद पर अडी रही तथा आदिवासी गोंड समाज को संकीर्ण मानसिकता वाला बताकर अपमानित किया गया तथा दैनिक समाचार पत्रों में पत्रकार लोग लोंग, इलायची, मशाला लगाकर झूठा जानकारी छापते हैं.

५-     महासमुंद कलेक्टर सुश्री संगीता द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य के पुरातत्व सलाहकार श्री अरुण कुमार शर्मा का हवाला देकर उनके द्वारा चांदा दाई गुफा को "नागार्जुन" की साधना स्थली कहा गया. श्री अरुण शर्मा द्वारा अपने निष्कर्ष का आधार चीनी यात्री व्हेनसांग की पुस्तक को मानते हैं.

        परन्तु दूसरी ओर भारतीय पुरातत्व विभाग के रायपुर मंडल के अधीक्षक डॉ.अरुण राज द्वारा बताया गया कि शाकीय रिकार्ड में ऐसा कोई तथ्य मौजूद नहीं है, जिस आधार पर कहा जा सके कि सिरपुर के पास कभी "नागार्जुन" ने निवास किया था एवं चांदा दाई गुफा में आराधना की थी.

        रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर श्री निगम द्वारा भी कहा गया कि व्हेनसांग पुस्तक में कहीं सिरपुर का उल्लेख नहीं है. केवल दक्षिण कौशल की राजधानी  और वहाँ से १७ ली (१ ली = ४० मील) दूरी स्थित "पोलो मोलो किली" पहाड़ी पर नागार्जुन का निवास करना बताया गया है.  उक्त पुस्तक के अनुसार भी उक्त पहाड़ी दक्षिण कौशल की राजधानी से दक्षिण में ६८० किलोमीटर दूर रही है. जबकी चांदा दाई वाली पहाड़ी सिरपुर से अन्य दिशा में १७ किलोमीटर उत्तर पूर्व दिशा में स्थित है.

         इस प्रकार श्री अरुण सरमा का "नागार्जुन" गुफा का दावा बगैर आधार का मनगढंत है. छत्तीसगढ़ शासन द्वारा शासन के अन्य पुरातत्व विद्वानों से चर्चा नहीं करना यह भी एक विचारणीय प्रश्न है !

६-     आदिवासी गोंड समाज द्वारा अपनी पीड़ा का महामहिम राष्ट्रपति को ज्ञापन देकर अवगत कराया गया है. साथ ही दलाईलामा के भारत स्थित कार्यालय धर्मशाला में भी फैक्स द्वारा जानकारी भेजकर फर्जी "नागार्जुन" गुफा के बारे में उन्हें अवगत कराया गया है. साथ ही यह भी अवगत कराया गया कि आदिवासी समाज की देव स्थली में केवल आदिवासी समाज अपनी रीति नीति और परम्परा के अनुसार देवी की पूजा करती है. देवी स्थल के अंदर किसी अन्य धर्म से सम्बंधित विधान से पूजा नहीं हो सकती. अगर ऐसा किया गया तो यह आदिवासी गोंड समाज की धार्मिक भावनाओं से सीधा खिलवाड़ होगा.

७-     शासन द्वारा दलाईलामा जो भारत सरकार के विशिष्ट अतिथि हैं, उनकी  सुरक्षा के अनदेखी कर चांदा गुफा में उनका प्रवास कराया जा रहा है. क्योंकि चांदा दाई गुफा स्थली, जहरीली साँपों, बिच्छुओं का निवास स्थल है. साथ ही जंगली मधुमक्खियाँ भी है, जो छेड़ दिए जाने पर हमला कर देती है, जो प्राणघातक भी हो सकता है.

८-     आदिवासी गोंड समाज की नीति सदा से सहअस्तित्व के साथ जीने की रही है. आदिवासी गोंड समाज मनुष्यों के साथ-साथ अन्य जीव जंतु तथा पेड़, नदी पहाड़ के साथ भी हिलमिल कर रहने पर विश्वास करता है. जिस कारण दक्षिण कौशल में हजारों हजारों वर्षों से शुख शान्ति रही है. परन्तु आदिवासी समाज की धर्म स्थली में किसी भी छेड़-छाड़ को समाज कभी  भी बर्दास्त नहीं करता रहा है, न अब करेगा. यदि शासन द्वारा दलाईलामा को जोर जबरदस्ती कर चांदा दाई गुफा को "नागार्जुन" गुफा बताकर वहाँ उनसे ध्यान पूजा पाठ कराया जाता है, तो आदिवासी समाज इसका कड़ा विरोध करेगा. ऐसी स्थिति में दलाईलामा के सम्मान में कोई ठेस पहुँचती है तो राज्य शासन स्वयं इसके लिए जिम्मेदार होगा. आवश्यकता पड़ने पर आदिवासी गोंड समाज दलाई लामा से भेंट कर उन्हें दिए जा रहे धोखे से उन्हें अवगत कराएगा.

      अतः प्रेस वार्ता के माध्यम से आम जनता को आदिवासी समाज वास्तविकता से अवगत कराना चाहता है तथा आम जनता से अपील भी करता है कि संघर्ष की स्थिति में आदिवासी गोंड समाज की भावनाओं को समझे तथा समर्थन करें. साथ ही छत्तीसगढ़ शासन भी इस प्रेस वार्ता के कथनों को आदिवासी समाज की ओर से अंतिम चेतावनी समझे.

मंगतू जगत,
अध्यक्ष,
जय सिंघा धुर्वा सेवा समिति,
सिंघंनगढ़, जिला महासमुंद,
छत्तीसगढ़.
पंजीयन क्रमांक-१९८७८ 
मो. 9907788961, 9303048494