सोमवार, 30 सितंबर 2013

गोंडी धर्मावलंबियों और "गोंडी धर्म" कोड पर एक चिंतन

गोंड आदिवासी द्वारा पेड़ और प्रकृति की पूजा 
विश्व में ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण के संरक्षण हेतु विभिन्न योजनाएं बनाए जा रहे हैं तथा उसके क्रियान्वयन हेतु विभिन्न कार्यक्रम और सेमीनार आयोजित किये जा रहे है. सभी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को राजनेताओं को सेमीनार और कार्यक्रमों के नाम पर पैसा जो खाना है !! इसलिए वे लोग इस तरह के कार्यक्रम कर रहे हैं. कार्यक्रम करने से प्रकृति का कायाकल्प सुधरने वाला नहीं है. अनावश्यक कार्यक्रमों में पर्यावरण बचाने के लिए पैसा बहाना बड़े लोगों का सिर्फ नाटकबाजी है. पर्यावरण और प्रकृति को बचाना है तो प्रकृति से जुड़े संस्कारों को अपनाके या जुड़के तो देखे ! प्रकृति और पर्यावरण जरूर बचेगी, किन्तु इनमे वह साहस नहीं है कि वे गोंडी आदिवासी संस्कृति को धारण कर सकें. जो लोग सदियों से आदिवासी संस्कृति, जीवन की आस्था, परम्परा को अंध विश्वास और गिरा हुआ समझते है, वे लोग इस प्रकृति पूजक परम्परा को कभी स्वीकार नहीं कर सकते, क्योंकि इनके देवता स्वर्ग में जो निवास करते हैं ! ये स्वर्ग के ईश्वर पर विश्वास करने वाले लोगों को स्वर्ग में ही चला जाना चाहिए, किन्तु ये आडम्बरी लोग ऐसा क्यों नहीं करते और न ही इन्हें आदिवासियों को अंध विश्वासी और नीच और गिरा हुआ कहने और समझने में गुरेज नहीं हैं. ग्रामीण आदिवासियों को न तो ग्लोबल वार्मिंग और न ही पर्यावरण प्रदूषण को समझने से कोई लेना देना नहीं है किन्तु वे जन्मजात इस वैज्ञानिक सत्यता से परिचित है कि प्रकृति की रक्षा ही जीवन की रक्षा है. आडम्बर्पूर्ण आस्था को मानने वाले लोगों में वाकई में प्रकृति और पर्यावरण की सुरक्षा की चिंता है तो वे आदिवासियों के प्रकृति पूजक संस्कृति को धारण करके दिखाएँ ! प्रकृति और पर्यावरण की सुरक्षा अपने आप हो जाएगी. किन्तु इन ढोंगी लोगों को मंदिर बनवाने और उसमे ३३ कोटि देवताओं को बिठाकर उनकी पूजा करने में ही फुर्सत नहीं है. क्या ऐसे धर्मावलम्बियों की आस्था और संस्कृति से प्रकृति बचेगी ? कभी नहीं. जो आदिवासी जाने अनजाने में हिन्दूओं की आस्था, परम्परा, धर्म और संस्कृति को धारण करने में लगे हुए हैं, उनके लिए यह मेरी खुली चुनौती है कि क्या वे हिंदूवादी ब्राम्हण बन सकेंगे ? उनकी यह कुटिल चाल है कि वे आदिवासियों को सदियों से हिन्दू बनाने के लिए तुले हुए हैं ताकि उनकी हिन्दुवाद के जनसंख्या के आंकड़े बढे और देश हिन्दुओं का देश कहलाये.

आज विभिन्न राज्यों में धर्म कोड की मांग हो रही है. झारखंड के आदिवासी सरना धर्म की मांग कर रहे है क्योंकि वे सरना धर्म और संस्कृति की कट्टरता से पालन करते हैं और अपना धर्म सेन्सस रिपोर्ट (देश की जनगणना पत्रक) में भी गर्व से सरना धर्म लिखवाते है. उनकी जनसंख्या जैन धर्मावलम्बियों की जनसंख्या से भी अधिक है, फिर भी सरना धर्म को धर्म कोड नहीं दिया गया. मुझे यह लिखने में कतई खेद नहीं है कि देश के पढ़े लिखे गोंडो आदिवासियों की मानसिकता, सामाजिकता, सांस्कृतिकता का हिन्दुकरण हो गया है और वे लोग अपना धर्म हिन्दू लिखने लगे हैं. यह कटु सत्य है. देश में २०११ की जनगणना में धर्म के कालम में ऐसे कितने गोंड हैं जो "गोंडी" लिखे हैं, या कितने आदिवासी हैं जो धर्म के कालम में "आदिवासी" लिखे हैं, कोई नहीं बता सकता ? क्योकि वे हिन्दू ही लिखे है. किन्तु मै बता सकता हूँ कि मैंने अपने धर्म के कालम में "गोंडी" लिखा है, क्योकि मुझे अपनी परम्परा, संस्कृति और धर्म पर नाज है और रहेगा. झारखंड के एक आदिवासी सज्जन ने मुझे यह असलियत बताकर चौका दिया कि देश में २०११ की जनगणना के अनुसार सेन्सस रिपोर्ट में "गोंडी धर्म" मानने वालों कि संख्या केवल ५,००,००० (लगभग) दर्ज है. यह देश के गोंडों के लिए अत्यंत चिंताजनक और शर्म की बात है. केवल छत्तीसगढ़ में २००१ की जनगणना के अनुसार कंवर आदिवासी ६,००,०००. उराँव आदिवासी ९.००.००० एवं हल्बा हल्बी आदिवासी ३,००,००० है. अर्थात कुल आदिवासियों की संख्या ६६,००,००० छत्तीसगढ़ में ही निवास करते हैं, जिसमे से केवल गोंडों की संख्या ही ४४,००,००० है. अब सभी यह अनुमान लगा सकते हैं कि छत्तीसगढ़ के कितने गोंडो ने अपने धर्म के कालम में "गोंडी" लिखे होंगे ? २०११ के पूरे देश की जनगणना का आंकड़ा बता रहा है कि गोंडी धर्मावलंबियों की संख्या ५,००,००० है. क्या गोंडों के लिए "गोंडी" धर्म कोड मांग के लिए यह आंकड़ा पर्याप्त है ?

शासन से धर्म कोड मांग के लिए अन्य धर्मावलम्बियों के बराबर पर्याप्त जनसंख्या, भाषा बोलने वाले इत्यादि दस्तावेजों की आवश्यकता होती है. जनगणना के आंकड़े, एन.एस.एस.ओ. की रिपोर्ट में उनसे सम्बंधित जानकारी को प्रमुखता से मानी जाती है. ऐसी स्थिति में क्या गोंड "गोंडी धर्म" कोड या समस्त आदिवासी "आदिवासी धर्म" कोड, "प्राकृत धर्म" कोड, "आदि धर्म" कोड प्राप्त कर सकेंगे ? कदापि नहीं. देश के जितने भी आदिवासी है उन्हें इस विषय पर गहन चिंतन करना पड़ेगा. यदि आप गोंड हैं तो "गोंडी धर्म" लिखना चाहिए. किन्तु इस पर भी आदिवासियों के बीच वर्ण और जाति व्यवस्था से ग्रषित विचार उत्पन्न होंगे कि यह तो गोंड लोगों का धर्म कहलायेगा ! हम तो कंवर है, हम तो उराँव है, हम तो हल्बा हल्बी है, हम कैसे लिख सकते हैं गोंडी धर्म ? इस विषय पर आने से पहले आदिवासियों को यह जान लेना चाहिए कि गोंडवाना क्या है ? गोंडवाना एक भू भाग है जिसमे निवास करने वाले लोग गोंड हैं. गोंडवाना साहित्यों में लिखा है उसी आधार पर मेरा संकलन "गोंडवाना के गोंड और उनकी भाषाएँ" इसे समझने में काफी सहायक हो सकती है जो निम्नानुसार है :-

"गोंडवाना ऐसा शब्द है जिससे गोंडियनों के मूल वतन का बोध होता है, गोंडियनों की जन्मभूमि, मातृभूमि, धर्म भूमि और कर्मभूमि का बोध होता है. उनकी मातृभाषा का बोध होता है. फिर वे कोई भी गोंड हो, चाहे कोया गोंड हो, राज गोंड हो, परधान गोंड हो, कंडरी गोंड हो, माड़िया गोंड हो, अरख गोंड हो, कोलाम गोंड हो, ओझा गोंड हो, परजा गोंड हो, बैगा गोंड हो, भील गोंड हो, मीन गोंड हो, हल्बी गोंड हो, धुर गोंड हो, वतकारी गोंड हो, कंवर गोंड हो, अगरिया गोंड हो, कोल गोंड हो, उराँव गोंड हो, संताल गोंड हो, कोल गोंड हो, हो गोंड हो, सभी गोंडवाना भूखंड के गणराज्यों के गण, गण्ड, गोंड तथा प्रजा है.

गोंडवाना भूभाग के गणराज्यों में मूल रूप से तीन भाषाएँ बोलने वाले गोंडियनों की प्रभुसत्ता प्राचीन काल से ही रही है. भील, भिलाला, पावरा, वारली, मीणा यह भिलोरी भाषा बोलने वाले भीलवाड़ा एवं मच्छ गणराज्यों के गण्ड तथा गोंड है. कोया, कंडरी, ओझा, माड़िया, कोलाम, परजा, बिंझवार, बैगा, नगारची, कोयरवाती, गायता, पाडाती, ठोती, अरख आदि गोयंदाणी भाषा बोलने वाले गोंडवाना गणराज्यों के गोंड तथा गण्ड हैं. कोल, कोरकू, कंवर, मुंडा, संताल, हो, उराँव, अगरिया, आदि मुंडारी अर्थात कोल भाषा बोलने वाले कोलिस्थान गणराज्य के गण्ड तथा गोंड हैं. जिस गणराज्य के परिक्षेत्र को वर्तमान में झारखंड कहा जाता है. इस तरह गोंडवाना भूभाग के गणराज्यों से गोंडियनों की मूल मातृभाषाओं का बोध होता है. गोंडियनों के प्राचीन प्रशासनिक इतिहास का बोध होता है. गोंडियनों के सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक मूल्यों का बोध होता है. इसलिए "गोंडवाना" यह शब्द गोंडियनों की अस्मिता एवं स्वाभिमान बोधक है."

सम्पूर्ण आदिवासी समाज में जो लोग यह मानते हैं कि "गोंड" एक पृथक जाति है तथा गोंडियनों के उपरोक्त इतिहास को देखा जाये तो यह औचित्य प्रतिपादित होता है कि गोंडवाना के सभी निवासी गोंड हैं. इस आधार पर "गोंडी धर्म" कोड की मांग एक विकल्प भी है. जो आदिवासियों की सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक मूल्यों की अस्मिता एवं स्वाभिमान के टूटे हुए कड़ियों को जोड़ने के लिए संबल प्रदान कर सकता है.
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