शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

आदिवासी कुल का महाबली रावण की पूजा

        भारत व दक्षिण गोलार्ध में अनार्य संस्कृति के अधिष्ठाता महान ज्ञानी रावण की पूजा होती है- मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, तमिलनाड़ू, कर्नाटक, केरल, श्रीलंका, मिनिकाय व्दीप, लक्ष्यव्दीप, अंडमान निकोबार, आफ्रिका, जावा, सुमात्रा, इंडोनेशिया, दक्षिण अमेरिका, और ब्रम्हदेश, थाईलेंड आदि देशों में महान दार्शनिक धर्मवेता वैज्ञानिक तंत्र-मंत्र के प्रकांड ज्ञाता अनार्य संस्कृति के प्रवर्तक गुरु पहांदी पारी कुपार लिंगो के अन्यन भक्त विश्व विजेता महाबली रावण की पूजा बड़े उत्साह और श्रद्धा से करते हैं.
        
        मध्यप्रदेश के राजपूत नगर से कोई ७० कि.मी दूर भाटखेड़ी नमक गांव पूरे देश में रावण मेघनाथ के गांव के नाम से जाना जाता है. इस गांव में रावण और मेघनाथ की दो विशालकाय मूर्तियाँ हैं. जिनकी पूजा की जाती है.


        गाँव वालों को रावण और मेघनाथ की मूर्तियों की स्थापना की पूरी जानकारी तो नहीं लेकिन वे कहते हैं कि हमारे बाप दादा बताते थे कि त्रेता युग में अवंतिका क्षेत्र से पुरी में संगम स्थान पर जाने के पश्चात रावण और मेघनाथ का यहाँ पड़ाव रहा है, तभी से यहाँ के लोगों ने रावण और मेघनाथ की मिट्टी की मूर्तियाँ बनाकर उनकी पूजा शुरू की. आज से छह दशक पूर्व कारीगरों को बुलाकर गांव वालों ने पैसा इकट्टा कर सीमेंट कांक्रेट की दो मूर्तियाँ बनवा दी.


        गाँव के बुजुर्ग रामलाल यादव, दयाराम, बद्रीलाल ने गोंडवाना दर्शन के  सम्पादक को बातचीत के दौरान जानकारी दी कि रामायण ग्रंथों में कुछ इसका उल्लेख है. सात आठ सौ की आबादी वाले गाँव में घर-घर में इनका जीवन बदल दिया है.


        आगरा-बंबई राजमार्ग से गुजरने वाले राहगीरों के मन में इन विशाल मूर्तियों को देखकर एक जिज्ञासा होती है. कि आखिर ये किसकी है. देश-विदेश के पर्यटकों को यह स्थान बहुत अच्छा लगता है. वे यहाँ रुककर विभिन्न मुद्राओं में इन मूर्तियों के साथ फोटो खीचकर संतुष्ट होते है. यह क्रम आज भी जारी है. लोग यहाँ मन्नतें भी मांगने लगे हैं. जिसकी मनोकामना पूरी हो जाती है. वे यहाँ आकर नारियल चढ़ाकर अगरबत्ती जलाकर इन मूर्तियों को प्रसन्न करते हैं और संतोष का अनुभव करतें हैं.


        विशालकाय मूर्तियों की ऊंचाई आठ फिट और चौड़ाई चार फिट है. अन्जाने में बस, ट्रक, कार, आदि वाहनों से गुजरने वाले यात्री इन्हें देखकर चकित हो जाते हैं. कुछ पैसे फेकते हैं तो कोई हाथ जोड़कर नमन करते हैं.


        इन मूर्तियों से कुछ दूरी पर उज्जैन-गुना रेल्वे लाइन है. रेलयात्री भी इनको देखकर आश्चर्य में पड़ जाते हैं. कुछ दूरी पर प्रचीन बावड़ी तथा समाधि स्थल का प्रतीक स्वरूप एक चबूतरा बना हुआ है. गाँव वालों को इनके संबंध में भी कोई जानकारी नहीं है.


        दशहरा यहाँ बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. रावण और मेघनाथ के लिए दो अलग-अलग रथ सजाकर जुलुस निकाला जाता है और सम्मान के साथ विसर्जन किया जाता है.


        रायपुर के शैलेन्द्र नगर में भी लगभग १२ फीट की महाबली रावन की मूर्ती बनाई गई है. शैलेंद्र नगर वासियों ने बताया की वे लोग १९८२ में रावन की मूर्ती सीमेंट और कांक्रीट से बनवाया है और स्थापित किया. मूर्ती के पास में रहने वाले एक बुजुर्ग बताते हैं कि लोग इस आदिवासी कुल के रावन को बुराई के प्रतीक में मानते हैं और हर वर्ष दशहरा के दिन इस महाबली का दहन करते हैं, किन्तु हमारे पूर्वजों नें इसकी पूजा करने के लिए इसे बनवाया है. हमारे पूर्वज इस महाबली की पूजा कबसे करते आ रहे हैं हमें नहीं मालूम, किन्तु उन्हें देखकर हम भी इनकी पूजा करते हैं. सच्चे मन से इनकी पूजा करने से जीवन फलित होता है, ऐसा हमारे पूर्वज कहते हैं. इसलिए हम भी इनकी पूजा करते हैं, सम्मान करते हैं. हम भी महाबली रावन के आशीर्वाद से फलित होते रहे हैं. इन्हें हम नहीं जलाते. इन्हें जलाने वाले उत्सवों और त्योहारों में हम शामिल भी नहीं होते.


        लोगों ने इसे बुराई के प्रतीक में क्यों माना हमें पता नहीं है, किन्तु लोग अपने मन की बुराई को मन से निकालने के बजाय इस देवता का दहन करते हैं. यह बात हमें समझ में नहीं आता कि लोग अपनी बुराई को जलाने के बजाय इसकी मूर्ती बनाकर क्यों उसे जलाते हैं ? जलाना है तो अपने अन्दर की बुराई को जलाएं.


        शैलेन्द्र नगर वासी दशहरा के दिन महाबली रावन की धूमधाम से पूजा करते हैं और मोहल्ले भर प्रसाद बांटकर अपनी मनोकामना फलित करने हेतु खुशियाँ मनाते हैं.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें