रविवार, 23 सितंबर 2012

गोंडी धर्म, संस्कृति, साहित्य पर पराश्रय


          यह सर्व विदित है कि किसी भी मानव समूह की जीवन पद्धति, संस्कृति, साहित्य का उत्थान या यथावत सम्मान तभी कायम रह सकता है जब उस देश की राजसत्ता उसे सहयोग और संरक्षण प्रदान करे और उसका संवर्धन करे. इस देश में आर्य, हूड, यवन, अफगानी, मुसलमान और क्रिस्चन आये. उन्होंने अपने अपने शासनकाल में अपनी धर्म, भाषा, संस्कृति, साहित्य का प्रचार-प्रसार और संवर्धन किया.

          इन गैर मुल्क के लोग इस देश के मूल निवासियों की सत्ता, धर्म, संस्कृति और साहित्य को तो रौंदा ही साथ ही इस देश के निवासियों के ऊपर आर्य, इस्लाम, क्रिश्चन धर्म को थोप दिया. आर्य और अंग्रेज यवन तो किसी तरह अपने अपने पितृ देश लौट गए किन्तु इस देश में औलाद छोड़ गए. आर्य दुनिया में कई धर्म मानते हैं. किसी भी मुल्क में जा बसते हैं. लेकिन इस कोयवा राष्ट्र के जमीन से जुड़े कोईतुरियन अपने कोयापूनेम गोंडी धर्म को अनादि काल से अपने सीमित दायरा में रखे हैं.

          इस जन समूह में अनादिकाल में गोंडी धर्म के संस्थापक पहांदी पारी कुपार लिंगो द्वारा जीवन के नीति नियमों का प्रतिस्थापन किया गया था. वह आज भी जीवित है. इस गोंडी धर्म के बारह गुरु, धर्म प्रचारक लिंगो के बाद हुए. तब अनादि राजा शंभूशेक ने धर्मपाल की हैसियत से सम्पूर्ण कोयवा राष्ट्र में प्रचार किया था. उसके बाद अनेक प्रतापी राजाओं ने ईशा के कई हजार वर्ष पूर्व से और ईशा के बाद मुगलों के आगमन तक गोंडी धर्म, संस्कृति, साहित्य और कला का संरक्षण किया.

          महाराजा संग्रामशाह के शासन काल तक गोंडी भाषा, गोंडी साहित्य कला एवं संस्कृति फलते फूलते रही. विश्व में अनेक राष्ट्रों और देश में एकतंत्र शासन व्यवस्था में परिवर्तन होने लगा और औद्योगिक क्रान्ति में अनेक वैज्ञानिक अविष्कार ने नया रूप धारण किया.

          भारत अंग्रेजों से आजाद हुआ. जो इस धरती पर सबसे बाद में आये थे वे भारत को अनेक जाति, अनेक भाषा, अनेक धर्म को राज व्यवस्था के अंतर्गत एक बनाने का ढोंग किया. अंग्रेजी भाषा, ईसामशी को मनवाने के लिए अपना शाहित्य प्रचार किया. इस पर प्रवासी मंगोलियन, आर्यन, यूनानी भी अपने को जागृत करने का साधन सरंजाम करने लगे. भारत आजाद हुआ और धर्म निरपेक्ष की कहानी गढ़ी गई. इस देश में हर धर्म को मान्यता दी जावेगी कहा गया. लेकिन आजादी के बाद जो हिस्सेदारी मिलना चाहिए था वह सभी धर्म, संस्कृति, साहित्य को हकदारी मिली. उनके नाम से संविधान में उनकी भाषा को उनके राज्य के नाम, धर्म के नाम और संस्कृति को मान्यता दी गई. लेकिन इस देश के पुरातन काल से निवास करने वाले करोड़ो जन समूह के हितों का तिरस्कार, उपेक्षा, घृणा और अनादर कर उपरोक्त धर्मों का गुलाम घोषित किया गया.

          करोड़ो मूलनिवासी आजाद भारत में गुलाम हैं- भाषा से, धर्म से, संस्कृति से, साहित्य से, राजसत्ता में हकदारी से. इस समूह का गौरवशाली इतिहास, स्मृतिचिन्ह से वंचित किया गया. पुरातन वीर बालाओं, योद्धाओं और उनकी संस्कृति का विकृत चित्रण कर घृणा के बीज बोते रहे और बोते हैं.

          इसीलिए अपने अस्तित्व और सम्मान के लिए धर्म, संस्कृति और साहित्य के निर्माण हेतु राजाश्रय के आकांक्षी हैं. इस देश की संविधान का आदर करते हुए प्रत्येक मानवजाति को प्रलोभन, धोखा-धड़ी, वर्णशंकर धर्मी न बनाया जाय. इस समूह के लोग प्रकृति में आँख खोलते हैं, प्रकृति में जीवन यापन कर प्रकृति के गोद में ही आँख बंद कर लेते हैं. हम प्रकृति प्रदत्त शक्तियों को धर्म संस्कृति, साहित्य के रूप में देखना पसंद करते हैं. अतः हम अपने हकदारी की लड़ाई में भागीदार बनें. यही हमारा जीवन, यही हमारा धर्म, यही हमारी संस्कृति और यही हमारा साहित्य है. इसे पराश्रित न होने दें. इसका संरक्षण करें.

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