रविवार, 15 जुलाई 2012

"दलित आदिवासी दुनिया" पढ़ो, मनन करो, संघर्ष करो और आगे बढ़ो.

दलित आदिवासी दुनिया (साप्ताहिक)
देश का प्रथम एवं एक मात्र राष्ट्रीय आदिवासी अखबार

जिनकी आवाज नहीं उनकी आवाज बनिए 
दलित आदिवासी दुनिया 
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अभिव्यक्ति 

          देश में आदिवासियों की दुर्दशा तथा दुख, कष्ट, अन्याय, अत्याचार सहना उनकी नीयति नही है, बल्कि यह दूसरों के द्वारा किए जा रहे शारीरिक, मानसिक, संवैधानिक, राजनीतिक एवं अमानवीय अत्याचारों को चुप-चाप सहन करने का दुष्परिणाम है. हमारे संविधान निर्माताओं ने भारतीय संविधान में दलित आदिवासियों के उत्थान के लिए सबसे अधिक नीयम और क़ानून प्रतिपादित किए हैं. मेरे सामने एक ही सवाल आता है कि क्या हमारे लोग, क्या हमारा समाज देश की सवतंत्रता के ६५ वर्षों के बाद भी अक्षर-ज्ञान पढ़ने के लिए सक्षम हो पाए ? यदि देश के आदिवासी अक्षर-ज्ञान पढ़ने के लिए अब तक सक्षम नहीं हो सके तो यह समाज का सबसे बड़ा दुर्भाग्य तो है ही, किन्तु देश के लिए यह सबसे बड़ा कलंक भी है. उनके इस अन्धकारमय जीवन के लिए समाज तो जिम्मेदार है ही और साथ ही साथ देश का प्रशासन भी.

        पिछड़ापन और विकास दोनों समाज की शिक्षा और जागृति पर निर्भर करते हैं. मानवीय जीवन की आवश्यकता- रोटी, कपड़ा, मकान तथा शिक्षा के लिए साधन, मेहनत से ही जुटाई जा सकती है, किन्तु जगृत रहने के लिए जरूरी नही कि वह शिक्षित ही हो. जीवन के समुन्नत मार्ग को तलाशने के लिए शिक्षा के साथ-साथ जागृत एवं चिंतनशील बनना आवश्यक है. लक्ष्य तक पहुँचने के लिए एक ही रास्ता है- लगनपूर्ण मेहनत, परीश्रम. बगैर परीश्रम के हम किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति नही कर सकते. चाहे वह लक्ष्य समाज के लोगों को जागृत करने के लिए ही क्यों न हो. शिक्षित व्यक्ति की चिंतनशीलता उसके मार्ग के अंधेरेपन को दूर करता है. इसलिए जीवन में शिक्षा सर्वोपरी है.

          कुछ दशक पहले तक समाज में सामाजिक उन्नति, सांस्कृतिक उन्नति, आर्थिक उन्नति, शैक्षणिक उन्नति आदि के लिए सामूहिक चिंतन का माध्यम केवल सभा-सम्मलेन ही हुआ करते थे. यह इसके लिए सशक्त माध्यम था और है भी. किन्तु अब इस आधुनिक, विकासवादी एवं तकनीकी युग में समाज की चिंता और चिंतन प्रसार की दौड़ में शामिल होकर समाज के बुद्धीजीवी, चिंतनशील एवं विद्वतजनों ने साहित्य तथा पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से समाज के लोगों को उनके हक और अधिकारों के प्रति सचेत तथा जागरूक बनाने के लिए बीड़ा उठाया है. समाज को यह चिंतन ग्रहण करना निश्चित ही जीवित रहने के लिए प्राण वायु ग्रहण करने के बराबर सिद्ध होगा.

          भूत, वर्तमान एवं आधुनिक प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया ने आधुनिक भारत के विकास के चिंतन में एक अहम भूमिका निभाया है, जिसके कारण इन्हें देश ही नही दुनिया में विकास की भूमिका बाँधने वाले चौथे स्तंभ के रूप में जाना जाता है. इस भूमिका में साफ़ तौर पर देखा जाता रहा है कि पिछड़ेपन की अंतिम पंक्ति में खड़ा होकर देश में अपनी ईमानदारी, भागीदारी और अधिकारिता का झंडा लेकर विकास की बाट  जोह रहे समुदायों के पिछड़ेपन के कारण, उनके साथ होने वाले अन्याय, अत्याचार, बलात्कार और विवशता पर बखेड़ा तो अवश्य खड़ा करते हैं, किन्तु इन विकृतियों के स्थाई समाधान तथा उनके विकास के लिए देश हित में स्वस्थ मानव अधिकारात्मक एवं संवैधानिक चिंतन का अभाव पाया जाता है.

          देश की मीडिया फिल्मी सितारों के घर, बाथरूम, बिस्तर तथा उनके गर्भ में पल रहे बच्चे की भविष्य के लिए चिंतन के शिखर तक पहुँच जाती है, किन्तु देश और दुनिया में मूलनिवासियों पर हो रहे अन्याय और अत्याचार के अमानवीय एवं अनछुए पहलुओं को हल करने के लिए संवैधानिक विचार क्रान्ति पर बहस क्यों नहीं करती ? मूलनिवासियों के लिए संविधान में दिए गए प्रावधानों को समर्पित रूप से देश के लिए क्रियान्वित कराए जाने हेतु जोर क्यों नही देती ? मीडिया को देश के विद्वानों ने जिन अर्थों में देखा और समझा, वह वर्तमान परिवेष में बिलकुल भी नही दिखाई देता, क्यों ? क्या मीडिया फिल्मी सितारों, सरकारों और बाजारों की बात छापने के लिए ही पैदा हुआ है ? ऐसा लगता है कि अब सही मायने में इन लोगों का पालतू बन गया है. इन लोग जब कहेंगे भौंको, तो भौंकेंगे. जिस राग में भौंकने को कहेंगे, तो वे आँख मूँद कर भौंकेंगे. उन्हें यह भी मालूम होते हुए भी, कि यह इस मौसम का राग नही है, फिर भी भौंके जायेंगे. लोगों के ऊपर थोपने का प्रयास करेंगे कि यह वही है. यदि देश की मीडिया का यही राग है, तो जन-गण-मन का सुर तो बिगडेगा ही न ! कहाँ है जन-गण-मन ....? कहाँ है समता और समानता ? कैसे आएगी देश में समता और समानता ? किस कोने में रख दिए गए हैं संविधान के चीथड़े पन्ने और क्यों रख दिए गए हैं ? हमें पता है मीडिया यह पूछकर देश द्रोहियों की श्रेणी में खड़े नहीं होना चाहती. क्या यही खूबियाँ हैं देश के चौथे स्तंभ कहे जाने वाले वर्तमान मीडिया की ?

        यह केवल और केवल मीडिया का ही दोष नही है. मीडिया पर काम करने वाले लोगों के अपने सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनैतिक विकास आदि के दर्पण और दर्शन हैं, जिनमे वे अपने भविष्य की छवि देखते और दिखाते हैं. चाहे कितना ही सार्वजनिक और निष्पक्षता की बात करते हों, किन्तु उनके हित साधन की आकृति या गणित उनमे जरूर समावेश होते हैं. निश्चित ही वे अपनी मीडिया में अपनी हित की बातें भी करेंगे.

           मीडिया के सम्बन्ध में जब मै अपने आप से सवाल पूछता हूँ तो स्वयं निरुत्तर भी हो जाता हूँ. मै अब तक यह नहीं समझ पाया कि देश की स्वतंत्रता में और उसके पहले से दलितों, आदिवासियों की सक्रीय भूमिका रही है, किन्तु आज तक ऐसी किसी मीडिया का मिर्माण नहीं कर पाए जो समाज की बातों को निष्पक्ष रखा जा सके ! उनकी सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनैतिक, संवैधानिक तथा मानवमूल्य आधारित बातों को देश की वर्तमान छवि के साथ जोड़कर स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से अपनी स्थिति व परिस्थितियों का आईना दिखा सके ! देश के १० करोड़ से अधिक आबादी वाले आदिवासी आज दूसरों की मीडिया का मुह ताकते नजर आ रहा है. देश में एक से सेक धुरंधर आदिवासी राजनीतिज्ञों की भीड़ है. देश की भावी पीढ़ी के लिए स्वप्नदृष्टा हैं, धनवान हैं, अधिकारी हैं, कर्मचारी है, किन्तु उनके द्वारा सामाजिक मीडिया का यह मुख्य स्तंभ खड़ा करने की पहलू अब तक अनछुआ ही रह गया, क्यों ?

           सामाजिक व्यवस्था मिर्माण के लिए जिन सामग्रियों में हमारी भागीदारी आसानी से हो सकती थी, उन पर हमनें कभी गहनता से विचार नहीं किया. या यह भी नही रहा कि हमारे पास समाज की मीडिया का कोई अंश हमारे घरों के दरवाजे न खटखटाए हों, किन्तु वे सदैव हमारी अकर्मण्यता की भेंट चढ़ते रहे. हम लोगों ने अपने समाज, अपने धर्म, अपनी अनमोल संस्कृति, सामाजिक व्यवहार को दुत्कारते रहे. हमारी जमीन, हमारी गली में दूसरों नें हमें देखकर रेंगना सीखा, चलना सीखा, दौड़ते गए, फिर हम इतने पीछे क्यों रह गए ? इस बात का यह सबूत है कि हम अपनी ही दृष्टि और विचारों के शिकार हुए. इसके लिए हमारी सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक परम्पराएं कदापि जिम्मेदार नहीं हैं, बल्कि ये सभी मानव जीवन के मूल तत्व हैं, जिनसे समाज को युगों-युगों से ऊर्जा मिलते आ रही है. इन्ही के कारण आदिवासी भी है तथा उनकी अस्मिता और अस्तित्व की लड़ाई भी.

          अब आदिवासियों की अस्मिता और अस्तित्व की लड़ाई में हमारी खुद की मीडिया "दलित आदिवासी दुनिया" का देश की राजधानी में आगाज हो चुका है. अभी भी वह ११ वर्ष का बालक ही है, किन्तु उनकी प्रखर वाणी और तेज दृष्टि देश के प्रत्येक कोने में पहुंचकर सभी का दिल टटोल रहा है, झिंझोड़ रहा है तथा देश को और देश के लोगों को उनका असली चेहरा दिखा भी रहा है. इसकी आवाज की पहचान और परख हमें होना चाहिए. इसी तरह अब अनेक सामाजिक मासिक पत्र-पत्रिकाएं देश के प्रदेशों में हमारी आवाज बुलंद करने, हमें जगाने इस ओर अग्रसर हैं, जो अपने उम्र की रजत जयंति भी मना चुके हैं. जैसे- छत्तीसगढ़ की मासिक पत्रिका "गोंडवाना दर्शन" (१९८३ से निरंतर प्रकाशित), राजस्थान की "अरावली उद्घोष" (१९८४ से निरंतर प्रकाशित) तथा छत्तीसगढ़ की प्रचंड एवं विचार क्रान्ति का जयघोष करने वाली मासिक पत्रिका "आदिवासी सत्ता" (२००४ से निरंत प्रकाशित) प्रकाशित हो रहे हैं. हमने इन पत्रिकाओं और उनके संपादकों के विदारक  ह्रदय को झाँक कर कभी नही देखा ! यदि हम उनकी विदारक वाणी समझ गए होते तो आज हमारी यह दशा सायद होती. आज भी वे हमारी भ्रामरी दंद्रा तोड़ने के लिए कराह कर भी आवाज दे रही हैं, जरूरत है उनकी आवाज सुनने की. ये पत्रिकाएं समाज को सामाजिक, सांकृतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक एवं मानवीय दृष्टिकोण की जागृति तथा मूलनिवासियों की गुलामी की निद्रा से जागने और जगाने, समाज को आगे बढ़ने और बढ़ाने तथा विचार क्रान्ति परोसने के लिए अपनी भूमिका बखूबी निभा रहे है. उनका देश के समाज को इस आशय की ओर हमेशा इंगित करना रहा है कि हम अपने जल, जंगल, जमीन, अपनी अस्मिता, धर्म, संस्कृति की रक्षा के लिए एकता के सूत्र में खड़े हों तथा उसी ताकत से हम अपनी मीडिया को खड़ा करने की ताकत दें. मीडिया हमारी बौद्धिक जागृति के लिए ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत है. हमारी मीडिया हमारी और आने वाली पीढ़ी की बहुत बड़ी ताकत होगी. यही हमारे सन्देश वाहक पंख होंगे. हमारी मीडिया हमारा सबसे बड़ा हथियार होगा. हमारा अपना स्वप्नदृष्टा होगा. अपनों से प्यार करना सीखें. अपनों की बात सुनें. दुःख-दर्द बाँटें. अपना अधिकार जानें और अपने हक के लिए जागृत हों. भावी पीढ़ी को इसकी महति जरूरत है. वह इसे आत्मसात करे और अपनी भावी जीवन की लड़ाई और विजय हासिल करने के लिए इसे अस्त्र-शस्त्र के रूप में ग्रहण करे, तभी आदिवासी जीवन का उद्धार हो सकता है.

          समाज के पढ़े-लिखे लोगों का सोचने का तरीका अलग ही देखने और सुनने को मिलता है. समाज के ऐसे अनेक अफसरों को देखा है, जिनकी रूचि लेशमात्र भी समाज की ओर नही है और न ही वे समाज के बारे से जानना चाहते. समाज की पत्र पत्रिकाएं पढ़ने में भी उनकी रूचि नहीं दिखाई देती. कई लोग भारी व्यस्तता का बहाना बनाकर दैनिक अखबार भी पढ़ने से वंचित रह जाते हैं. ऐसे कई लोगों को हमने बिना मूल्य चुकाए उनके हाथों में पढ़ने के लिए समाज की पत्र-पत्रिकाएं पकडाते रहे, किन्तु वे उन्हें कभी खोले न ही पढ़े. ऐसे भी अनेक आफिसर हैं जो अपना गोत्र मान लिखने या बताने से कतराते हैं. दूसरों के सामने समाज की बातें करने से डरते हैं. बात करने से पहले बगलें झांकते हैं, कि कोई सुन तो नही लेगा या कोई जान तो नही लेगा कि मै आदिवासी हूँ ! धिक्कार है ऐसे लोगों को, जो समाज के हिस्से से आफिसर बनकर, समाज का खाकर, अपना आफिसरी थोंद बढ़ाकर धरती का बोझ बढ़ाते है और अपनी घटिया सोच से समाज की गरिमा को ही गन्दा करते हैं. समाज के नाम से थोड़ा बहुत चन्दा देने के पर उन्हें ऐसा लगता है कि वे समाज के लिए जीवन का सारा वैभव लुटा दिया हो. समाज के लिए कोई चन्दा मांगने वाला उन्हें भिखारी नजर आने लगता है. यदि दे भी दिया तो उनके साथ भिखारी जैसे व्यवहार भी किया जाता है. दूसरी ओर पान ठेले में सौ-दो सौ का पान खाकर थूक देना और बारों में दारू पीकर हजारों लुटा देना अपनी शान में इजाफे का प्रतीक समझते हैं. ऐसे लोगों के लिए मेरा एक सवाल है कि, क्या वे समाज की माताओं की कोख से, समाज की धरती पर पैदा नहीं हुए, जो अपने समाज की सामग्री और समाज के हित के लिए किए जाने वाले कार्य से घृणा करते हैं ? उन्हें समाज के नाम पर या समाज की सामग्री या समाज के लोगों को अपने सामने देखकर या पाकर खुद को स्तरहीन महसूस करते हैं. यह उनकी किस उच्च स्तर की निशानी है पता नही ?
---०००---

13 टिप्‍पणियां:

  1. hardik dhanyabad,
    "Dalit Adivasi Dunia" ko jyada se jyada logon tak pahuchane ke liye aapke prachar karya se ham abhibhut hue.
    Samaj ko aage badhane ke liye aap jaise mahanubhawo ka sahyog pakar aapar harsh hota hai.

    hamari shubhkamnaye

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  2. तिर्की जी जय जोहार.
    आप लोग अपना काम, उत्तरदाईत्व बखूबी निभा रहे हैं. हमें इस बात की खुशी है. देश के आदिवासी भी आप लोगों की कार्यों की प्रशंसा कर रहे हैं. हम लोगों में ही कमी रह जा पा रही है, किन्तु इसे जन-जन तक अपने स्तर से पहुंचाने में लगे हैं, धीरे ही सही आप लोगों की मेहनत बेकार नही जायेगी और न ही जाने देंगे.
    धन्यवाद. जय सेवा. जय जोहार.

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  3. anya akhabaro ka mulya adhik hone ke karan adhikatar adivasi log akhabar nahi padh pate hai. is liye isko dhyan me rakhate hue hamane iska mulya 5 Rs se 2 Rs kar diya hai, taki adivasi log asani se ise kharid kar padhe aur dusare ko bhi padha sake. "Dalit Adivasi Duniya" ko pratek adivasi tak pahunchana aap jaise sabhi padhe-likhe adivasiyon ka kartavya hai. hamara prayas hai ki ham desh ke sabhi adivasiyon ko jagruk kar sake, jisase aane wale samay me ko koi lut na sake.

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  4. धन्यवाद राजन जी. निश्चित ही आप लोगों का प्रयास लक्ष्य पर पहुंचेगा. पढ़े लिखे आदिवासियों को सबसे पहले समझना होगा तथा अपने समाज को भी समझाना होगा कि आदिवासियों की जागृति ही उसकी सबसे ताकत होगी और यह ताकत और शक्ती "दलित आदिवासी दुनिया" से ही ग्रहण की जा सकती है. दलित आदिवासी दुनिया की आवाज को हर हालत में देश के आदिवासियों को सुनना ही होगा.

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  5. maine dhanyawad denna chahata hu desh ke pahale eas dalit adevashi ptrika ko jo eas patrika ke madhayam se dalit or adiwaseyo ke samshya ko ujagar kr rahai hai

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  6. उत्तर
    1. चावरे जी सेवा जोहार,
      आपने मेगजीन शुरू करने की बात कही है. बहुत सराहनीय है. मेगजीन शुरू करने के लिए धन के साथ साथ, उद्देश्य का भी पूरा पूरा ध्यान रखना पड़ता है. उद्देश्य की पूर्ति हेतु अपेक्षित सामग्री तैयार करना या लेखकों से जुटाना कठिन एवं दुर्लब कार्य है. मेगजीन शुरू भी करले इसके साथ साथ इसके भविष्य का भी विशेष ध्यान रखना पडेगा. इन सब परिस्थितियों को देखते हुए कार्य शुरू करें. केवल समाचार देने के लिए बहुत सारी पत्र पत्रिकायें हैं. इन सबको देखते हुए स्वयं पत्रिका संपादन, संचालन हेतु कार्य शुरू करें.

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  8. ~~~~~~आदिवासी तेरा शोषण~~~~~~~

    जिस आरक्षण के वृक्ष तले तुमने छाया और फल खाया है
    उसकी जड़ो मे दुश्मन ने तेजाब आज गिरवाया है!
    जिसके पैरो को तुम पुजो वह सिर पर अब चढ आया है
    वह स्वयं सामने नही आता,भीलो पे रंग चढाया है!
    आदिवासी तेरा शोषण सदियो से होता आया है!!
    --------------------------------------------------------
    आदिवासी तुम राजा थे,अब रंको जैसा हाल किया
    संस्कृति तुम्हारी नष्ट करी,इतिहास तुम्हारा जला दिया!
    जौंक की तरह आदिवासी सदियो से तेरा खुन पिया
    संभूक ऋषि को मरवाया,एकलव्य का अगुंठा काट दिया!
    अब नया षणयन्त्र रचा मीना-मीणा मे भेद किया
    फिर भी तुम इनको आदर दो,यह समझ नही आया है!
    आदिवासी तेरा शोषण सदियो से होता आया है!!
    --------------------------------------------------------
    अब तो जागो सोने वालो नही काम चलेगा सोने से!
    हल्दी क्या अपना रंग छोड़े क्या? लाख बार धोने से!!
    समय चूक पछताओगे ,क्या होगा फिर रोने से!
    आगे कैसे बढ पाओगे,यो दब-दब-दबके रहने से!!
    मत दुध पिलाओ सर्पो को,इसलिये तुम्हे चेताया है!
    आदिवासी तेरा शोषण सदियो से होता आया है!!
    --------------------------------------------------------
    तुम प्रकृति पुजक रहे सदा,अब दिशाहीन क्यो होते हो!
    सदियो से गुलामी का बोझा क्यो अपने सिर पर ढोते हो!!
    तुम मूलनिवासी भारत के,क्यो भुला दिया अपने बल को!
    तुम नही अभी तक समझ सके,दुश्मन के कपट भरे छल को!!
    अपने बल को तुम याद करे,दुश्मन को खुब छकाया है!
    आदिवासी तेरा शोषण सदियो से होता आया है!!
    --------------------------------------------------------
    सिन्धु घाटा का इतिहास गवाह,तुम प्रेम सहित सब रहते थे!
    था नही कही पर भेदभाव,ना जाति-पाति करते थे!!
    प्रकृति उन्नत यहॉ रही सदा धन धान्य युक्त यह देश था!
    पावन जल सिन्धु नदी का था,सौन्दर्य प्रकृति परिवेश था!!
    वह क्षेत्र तुम्हारा अनुपम था,वहॉ झरने अविरल झरते थे!
    तब नर तो क्या हिंसक पशु भी आदिवासी से डरते थे!!
    कर स्वर्ग नरक का भेद देख,तुमको कमजोर बनाया है!
    आदिवासी तेरा शोषण सदियो से होता आया है!!
    --------------------------------------------------------
    युरोप एशिया से आकर आर्यो ने पॉव जमाया है!
    धन धान्य युक्त भारत देखा,फिर इनका जी ललचाया है!!
    यहॉ जातिवाद को फैलाकर ऊच नीच का भेद किया!
    मुखिया बन बैठे भारत के,मनुस्मृति का निर्माण किया!!
    जिसने देखा नही वेदो को,वह चतुर्वेदी कहलाया है!
    आदिवासी तेरा शोषण सदियो से होता आया है!!
    --------------------------------------------------------
    यहॉ वर्ण व्यवस्था लागू कर,हमको शुद्रो का नाम दिया!
    खुद सबसे ऊचे बन बैठे,हमको नीचो का काम दिया!!
    हमको ही दानव असुर कहा,हम सुरापान नही करते थे!
    हम आन बान की रक्षा के हित,जीते थे और मरते थे!!
    हमको शिक्षा से दुर रखा,नहू अक्षर का ज्ञान कराया है!
    आदिवासी तेरा शोषण सदियो से होता आया है!!
    ---------------------------------------------------------
    चाहे युवा मौत भी घर मे हो,तुम घर पर इन्हे बुलाते है!
    नही शौक कभी ये करते,देशी घी को खा जाते है!!
    है नमक मिर्च कम सब्जी मे,ये मिर्च नमक करवाते है!
    खा पीकर माल हमारा ये,फिर दान दक्षिणा पाते है!
    खुद तो जमकर खाते है,घर घंटी मे भरकर ले जाते है!!
    कितना पूजो चाहे दान करो,फिर भी देखो घुर्राया है!
    आदिवासी तेरा शोषण सदियो से होता आया है!!
    ---------------------------------------------------------
    ये ही कोर्टो मे बैठे है,और समाचार पेपर इनके!
    इलेक्ट्रिक,मिडिया,न्याय पालिका,टेलिविजन भी इनके!!
    अारक्षण विरोधी स्वर्ण पार्टी,मिशन 72 भी इनके!
    यहा सब मंदिर बने हमारे,लेकिन महंत बने इनके!!
    अब योग्य हुए हम पढ लिखकर,इसलिये तो ये घबराया है!
    आदिवासी तेरा शोषण सदियो से होता आया है!!
    ---------------------------------------------------------
    जब जागेगा आदिवासी, नही कर्महीन टिक पायेगा!
    हुंकार भरेगा भूमि पुत्र,तब कौन सामने आयेगा!!
    मीणा-मीना मे भेद किया,सब मिनटे मे मिट जायेगा!
    इसलिये एकजुट हो जाओ,संघर्ष करो,संगठित रहो!!
    सदियो से किया तेरा शोषण,सब ब्याज सहित चुक जायेगा!
    आदिवासी तेरा शोषण,तब नही कोई कर पायेगा!!
    आदिवासी तेरा शोषण,तब नही कोई कर पायेगा!!

    जयसिंह नारेड़ा

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  9. मैने जो कविता भेजा है कृपया इसे प्रकासित करे

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  10. ~~~~~~आदिवासी तेरा शोषण~~~~~~~

    जिस आरक्षण के वृक्ष तले तुमने छाया और फल खाया है
    उसकी जड़ो मे दुश्मन ने तेजाब आज गिरवाया है!
    जिसके पैरो को तुम पुजो वह सिर पर अब चढ आया है
    वह स्वयं सामने नही आता,भीलो पे रंग चढाया है!
    आदिवासी तेरा शोषण सदियो से होता आया है!!
    --------------------------------------------------------
    आदिवासी तुम राजा थे,अब रंको जैसा हाल किया
    संस्कृति तुम्हारी नष्ट करी,इतिहास तुम्हारा जला दिया!
    जौंक की तरह आदिवासी सदियो से तेरा खुन पिया
    संभूक ऋषि को मरवाया,एकलव्य का अगुंठा काट दिया!
    अब नया षणयन्त्र रचा मीना-मीणा मे भेद किया
    फिर भी तुम इनको आदर दो,यह समझ नही आया है!
    आदिवासी तेरा शोषण सदियो से होता आया है!!
    --------------------------------------------------------
    अब तो जागो सोने वालो नही काम चलेगा सोने से!
    हल्दी क्या अपना रंग छोड़े क्या? लाख बार धोने से!!
    समय चूक पछताओगे ,क्या होगा फिर रोने से!
    आगे कैसे बढ पाओगे,यो दब-दब-दबके रहने से!!
    मत दुध पिलाओ सर्पो को,इसलिये तुम्हे चेताया है!
    आदिवासी तेरा शोषण सदियो से होता आया है!!
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    तुम प्रकृति पुजक रहे सदा,अब दिशाहीन क्यो होते हो!
    सदियो से गुलामी का बोझा क्यो अपने सिर पर ढोते हो!!
    तुम मूलनिवासी भारत के,क्यो भुला दिया अपने बल को!
    तुम नही अभी तक समझ सके,दुश्मन के कपट भरे छल को!!
    अपने बल को तुम याद करे,दुश्मन को खुब छकाया है!
    आदिवासी तेरा शोषण सदियो से होता आया है!!
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    सिन्धु घाटा का इतिहास गवाह,तुम प्रेम सहित सब रहते थे!
    था नही कही पर भेदभाव,ना जाति-पाति करते थे!!
    प्रकृति उन्नत यहॉ रही सदा धन धान्य युक्त यह देश था!
    पावन जल सिन्धु नदी का था,सौन्दर्य प्रकृति परिवेश था!!
    वह क्षेत्र तुम्हारा अनुपम था,वहॉ झरने अविरल झरते थे!
    तब नर तो क्या हिंसक पशु भी आदिवासी से डरते थे!!
    कर स्वर्ग नरक का भेद देख,तुमको कमजोर बनाया है!
    आदिवासी तेरा शोषण सदियो से होता आया है!!
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    युरोप एशिया से आकर आर्यो ने पॉव जमाया है!
    धन धान्य युक्त भारत देखा,फिर इनका जी ललचाया है!!
    यहॉ जातिवाद को फैलाकर ऊच नीच का भेद किया!
    मुखिया बन बैठे भारत के,मनुस्मृति का निर्माण किया!!
    जिसने देखा नही वेदो को,वह चतुर्वेदी कहलाया है!
    आदिवासी तेरा शोषण सदियो से होता आया है!!
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    यहॉ वर्ण व्यवस्था लागू कर,हमको शुद्रो का नाम दिया!
    खुद सबसे ऊचे बन बैठे,हमको नीचो का काम दिया!!
    हमको ही दानव असुर कहा,हम सुरापान नही करते थे!
    हम आन बान की रक्षा के हित,जीते थे और मरते थे!!
    हमको शिक्षा से दुर रखा,नहू अक्षर का ज्ञान कराया है!
    आदिवासी तेरा शोषण सदियो से होता आया है!!
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    चाहे युवा मौत भी घर मे हो,तुम घर पर इन्हे बुलाते है!
    नही शौक कभी ये करते,देशी घी को खा जाते है!!
    है नमक मिर्च कम सब्जी मे,ये मिर्च नमक करवाते है!
    खा पीकर माल हमारा ये,फिर दान दक्षिणा पाते है!
    खुद तो जमकर खाते है,घर घंटी मे भरकर ले जाते है!!
    कितना पूजो चाहे दान करो,फिर भी देखो घुर्राया है!
    आदिवासी तेरा शोषण सदियो से होता आया है!!
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    ये ही कोर्टो मे बैठे है,और समाचार पेपर इनके!
    इलेक्ट्रिक,मिडिया,न्याय पालिका,टेलिविजन भी इनके!!
    अारक्षण विरोधी स्वर्ण पार्टी,मिशन 72 भी इनके!
    यहा सब मंदिर बने हमारे,लेकिन महंत बने इनके!!
    अब योग्य हुए हम पढ लिखकर,इसलिये तो ये घबराया है!
    आदिवासी तेरा शोषण सदियो से होता आया है!!
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    जब जागेगा आदिवासी, नही कर्महीन टिक पायेगा!
    हुंकार भरेगा भूमि पुत्र,तब कौन सामने आयेगा!!
    मीणा-मीना मे भेद किया,सब मिनटे मे मिट जायेगा!
    इसलिये एकजुट हो जाओ,संघर्ष करो,संगठित रहो!!
    सदियो से किया तेरा शोषण,सब ब्याज सहित चुक जायेगा!
    आदिवासी तेरा शोषण,तब नही कोई कर पायेगा!!
    आदिवासी तेरा शोषण,तब नही कोई कर पायेगा!!

    जयसिंह नारेड़ा

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    उत्तर
    1. धन्यवाद जयसिंह जी.
      आपने सारगर्भित कविता का प्रस्तुतीकरण किया है. यह कविता मुझे gondwanasandesh@gmail.com पर भेजें. मै चाहूँगा कि यह कविता गोंडवाना दर्शन पत्रिका और अन्य पत्र पत्रिकाओं में छपे.

      पत्रिका प्राप्त करने के संबंध में ऊपर दिए गए मोबाईल नंबरों पर संपादक, सह संपादक आदि सभी के नंबर दिए हुए हैं से, संपर्क कर नियमानुसार सदस्यता ग्रहण कर प्राप्त कर सकते हैं.

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  11. jay adiwasi https://bhartiyadiwasi.blogspot.com/2021/11/pesa-kayda.html

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