गुरुवार, 2 जून 2011

माननीय उच्चतम न्यायालय ने माना कि "गोंड" हिंदू नहीं है.

          मै Orkut या Facebook में गोंड समुदाय के युवाओं का Profile देखकर बहुत खुश होता हूँ, जब उसमे गोंडी झलकता हो मै Orkut और Facebook के गोंड समुदाय के सभी दोस्तों का Profile पढ़ा समुदाय के कई लोगों ने अपना Religion-Hindu लिखा है इससे ऐसा लग रहा है कि पूर्वजों से गोंडवाना या गोंड समुदाय के लोगों का कोईतुरों के सम्बन्ध में अगली पीढ़ी को जानकारी नहीं मिल पाया है या वे लोग जानबूझकर अनभिज्ञता प्रदर्शित कर रहे हैं मै चाहता हूँ कि सभी गोंड समुदाय के लोग अपने Profile या दस्तावेजों में Religion-Hindu के स्थान पर "गोंडी" Gondi लिखें या कुछ लिखने कि आवस्यकता नहीं है. क्योंकि Facebook या Orkut file के Religion कालम में हिन्दू, मुस्लिम, जैन, बौद्ध, सिक्ख आदि की तरह "Gondi" अंकित नहीं है, किन्तु निरास होने की जरुरत भी नहीं है हम गोंड हैं। इसलिए हमारा धर्म "Gondi" है मै ऐसा मानता हूँ और आज इसकी आवश्यकता भी है कि गोंड समुदाय के लोगों द्वारा इसका कट्टरता से पालन किया जाना चाहिए यदि आप अपने आप को हिन्दू कहते हैं तो इसका मतलब भी मालूम होनी चाहिए किस आधार पर हमारे पढ़े-लिखे लोग स्वयं को हिन्दू मानते हैं ? कदापि मुझे यह कहने में झिझक नहीं है कि हमारे पूर्वज हमें गोंडवाना और गोंड के सम्बन्ध में ज्यादा जानकारी नहीं दे पाए हमने स्वयं गोंडी साहित्य कि पुस्तकें पढ़कर इस दुनिया के सबसे प्राचीनतम जन समुदाय गोंड समुदाय और गोंडवाना के सम्बन्ध में जानकारी हासिल की है इसलिए सभी गोंड समुदाय तथा समस्त जनजातीय समुदाय से विनती है कि सभी लोग गोंडी आदिवासी साहित्यों का अध्ययन करें और पुरातन गोंडवाना के गौरवशाली इतिहास को जानकर गौरवान्वित हों

          गोंड या आदिवासी समुदाय भारत ही नहीं पूरी दुनिया में विलुप्त हो रही है भारत में मिजोरम, आसाम, नागालैंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखण्ड, उत्तरप्रदेश, आंध्रप्रदेश आदि राज्यों में आज भी बहुतायत हैं, किन्तु अब धीरे-धीरे विभिन्न धर्मों में विलीन होते जा रहे हैं इसका भी कारण हम ही हैं, क्योंकि हम गोंड और गोंडवाना की गौरवशाली इतिहास, पृष्ठभूमि को नहीं जानते और अपने आप को औरों से तुच्छ महसूस करते हैं हमारे समुदाय का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि वह अशिक्षा और जानकारियों के अभाव में गोंडी सभ्यता की पहचान नहीं कर पा रहा है। इसलिए गोंड आदिवासियों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को जानना हमारा प्रथम कर्तव्य एवं दायित्व भी है

          इस सृष्टि पर सबसे पहले आदिमानव ने अपनी अधिसत्ता स्थापित की उसी आदिमानव की संतान हम गोंड आदिवासी हैं हमारे पूर्वजों ने सबसे पहले प्रकृति को समझा, उसके संचलन के गुणधर्मो को जाना और उसे ही अपने जीवन के संस्कार के रूप में समाहित कर लिया यही उसका धर्म हो गया इसलिए आदिकाल से अब तक गोंड आदिवासियों का कोई लिखित धर्म नहीं बन सका प्रकृति के विधान का कोई लिखित स्वरुप इस धरती का तुच्छ मानव कर ही नहीं सकता प्रकृति की उत्पत्ति और विनाश का कोई लेखा कोई कागज पर रखा ही नहीं जा सकता प्रकृति से उत्पन्न वस्तु या भौतिक शरीर का अंत निश्चित है। इसलिए गोंड आदिवासी प्रकृति के शाश्वत विधान को ही अपने जीवन का संस्कारिक गुणधर्म मान लिया यही हमारा सर्वोच्च प्राकृतिक धर्म ही "गोंडी" धर्म है प्रकृति की तरह अडिग, सच्चा, प्रकृति प्रेमी, प्रकृति को मानने वाले, प्रकृति की पूजा करने वाले, माता-पिता की पूजा करने वाले बूढ़ादेव के रूप में अपने पूर्वजों की पूजा साजा झाड़ के नीचे बैठकर करने वाले कदापि हिन्दू नहीं हो सकते

          हिन्दू धर्म आदिवासियों की विनाश की कृति हैआदिवासियों का पूज्य "बड़ादेव" हैबड़ादेव अर्थात वह सर्वव्यापी सत्व तत्व जो सृष्टि का निर्माण करता है और विनाश भीकिसी भी नवीन संरचना निर्माण के लिए वैज्ञानिक और सर्वव्यापी आधार है कि किन्ही तत्वों को मिलाकर ही तीसरी संरचना का निर्माण किया जा सकता हैवे निर्माणकारी तत्व हैं (+) धन तत्व और (-) ऋण तत्वइन्हें धनात्मक और ऋणात्मक शक्ति भी कहते हैं। इन्हें गोंडी में सल्लें-गांगरे शक्ति कहते हैं. इन दोनों धनात्मक और ऋणात्मक (सल्लें-गांगरे) शक्तियों के संयोग के बिना किसी तीसरी संरचना का निर्माण किया ही नहीं जा सकतायह गोंडवाना का प्रथम एवं अंतिम वैज्ञानिक प्रमाण है। गोंड आदिवासी समाज द्वारा इस (+) धन शक्ति को "पितृशक्ति" अर्थात पितातुल्य तथा (-) ऋण शक्ति को "मातृशक्ति" अर्थात मातातुल्य माना जाता हैइसलिय सृष्टि के उत्पत्तिकारक सर्वोच्च शक्ति अर्थात संरचना की निर्माण करने वाले, पैदा करने वाले, बनानेवाले माता-पिता के रूप में इनकी पूजा की जाती हैवास्तव में कोई जीव, तत्व, ठोस, द्रव्य किसी भी भौतिक-अभौतिक चीजों की संरचनाओं का निर्माण उनके उत्पत्तिकारक माता-पिता के रूप में इन्ही प्राकृतिक शक्तियों के संयोग से ही होता हैचुम्बकत्व से लेकर परमाणु बम की शक्ति भी यही शक्तियां हैंइसलिए इन्हें उत्पत्ति एवं विनाश की शक्ति अर्थात सबसे बड़ा शक्ति "बड़ादेव" के रूप में इन शक्तियों की पूजा गोंड आदिवासी समुदाय द्वारा किया जाता हैइसलिय "गोंडी" धर्म के लिए प्रकृति/सृष्टि से बड़ा कोई ईस्वर का साक्षात् प्रमाण हो ही नहीं सकताऐसी स्थिति में उन्हें अन्य धर्मों की तरह "धर्म" और "धर्मग्रंथों" की आवश्यकता ही नहीं है, किन्तु यह सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है कि समस्त आदिवासी समुदायों की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए धर्म के रूप में "गोंडी धर्म, आदिम धर्म, आदिवासी धर्म, प्राकृत धर्म" या समाज के बुद्धिजीवियों का कोई अन्य प्रस्ताव हो सकता है, जिसका पंजीयन हिन्दू, मुस्लिम, जैन, बौद्ध, सिक्ख धर्मदि की तरह कराया जा सकता हैइसके लिए आदिवासी समाज के बुद्धिजीवियों को तन-मन-धन से प्रयास करना होगा.

          दूसरी ओर हिदू धर्म आदिवासियों का आशियाना (जल, जंगल, जमीन) उजाड़कर काल्पनिक आस्था के भगवानों के मंदिर बनवाने और उसमे मूर्ती बैठाकर पूजा करने में विश्वास रखता है. उसे अपने माता-पिता और मानव से ज्यादा मूर्ती पर विश्वास होता है, इन्शान पर नहीं. हिन्दुवादी लोग अपने माता-पिता और पूर्वजों को उनके देहावसान के बाद उन्हें जलाकर राख कर देता है तथा उसका अस्तित्व मिटा देता है, किन्तु आदिवासी अपने पूर्वजों को इस धरती पर ही दफन करता है और उनकी आत्मा को अपने कुल देवता में शामिल करता है तथा यह मानता है कि उनके पूर्वज उनके साथ घर में निवास करते हैं और कठिन परिस्थितियों में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सहायता करते हैं. हिन्दुवादी व्यवस्था में वर्ष में एक बार पितृ पक्ष मनाया जाता है तथा उन्हें बुलाकर भोग दिया जाता है. गोंडी व्यवस्था में प्रतिदिन के भोजन का प्रथम भोग अपने पूर्वजों को चढ़ाया जाता है. उसके पश्चात ही परिवार भोजन ग्रहण करता है. हिंदू मंदिरों में भगवानों की पूजा-पाठ पर विश्वास करता है तथा जन्म देने वाले माता-पिता को वृद्ध होने पर सेवा करने के बजाय वृद्धाश्रम भेज देता है. अर्थात हिंदुओं के लिए माता-पिता भगवन नहीं हो सकते ? यह कार्य विकसित हिंदुओं के लिए आम प्रचलन बन चुकी है. आदिवासी कभी भीख नहीं मांगता. दूसरे धर्मों में भगवान के नाम से भीख मांगने का धंधा बन गया है, एक व्यवसाय बन गया है. हमारा आदमी मेहनत और कर्म पर विश्वास करता है. झूठ नहीं बोल सकता इसलिए व्यवसाय का गुर नहीं सीख सकता. इस कारण सफल व्यवसायी भी नहीं बन सकता और न ही रूपये कमा सकता किन्तु धर्म के नाम पर अपना और अपने परिवार का पेट नही भरता. अपना ईमान भगवान के घर और मंदिरों में नहीं छोड़ता. अपना ईमान कभी नहीं बेचता. जीवन भर अपने कमरतोड़ परीश्रम और कर्मों को ही अपना ईमान और जीवन का परिणाम समझता है. वह किश्मत का रोना नहीं रोता.

          इस तरह बहुत सारी बातें हैं, जो गोंड और हिंदुओं के धार्मिक जीवन व्यवस्थाओं से मेल नहीं खाता. आदिवासियों का अतीत सृष्टि की उत्पत्ति के पश्चात प्रथम मानव के रूप में पुराविद और इतिहासकारों ने दर्ज किया है. उसके करोडों वर्ष बीत जाने के बाद भी अपने मूल संस्कारों को बचाकर रखा है तो वह केवल आदिवासी ही है. इसी संरक्षित सांस्कारिकता के कारण भारत आज दुनिया का सांस्कारिक देश कहलाता है. इसी सांस्कारिकता के कारण भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू की गयी है और इसका लाभ समाज, आप और हम सभी आदिवासी समाज उठा रहा है. यदि हम अपने समाज का खाकर दूसरों का नक़ल करेंगे तो हमसे बड़ा समाज को धोखा देने वाला धोखेबाज, गद्दार कोई होगा नहीं. इसलिए हमें अपने समाज पर गर्व करना चाहिए और गर्व से हमें अपना Religion-"Gondi" लिखना चाहिए.

गोंडी धर्म रस्टर्ड नहीं होने के कारण सामने वाला इस बात को उठता है किन्तु संविधान में यह व्यवस्था है कि हम अपना धर्म लिखने और पढ़ने के लिए स्वतंत्र हैं. भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने व्यवस्था दी है कि "Gond" Hindu नहीं है. धार्मिक व्यवस्थाओं के दूरगामी परिणामों को देखते हुए सर्वोच्च न्यायलय ने प्रकरण (सन्दर्भ 1971/MPLI/NOTE-71, त्रिलोकसिंह विरुद्ध गुलबसिया) के महत्वपूर्ण फैसले में निर्णय दिया है कि "It is true that gonds are not hindu. They are governed by Customs Prevalint in the caste.- Justice S.P.Sen, Suprem Court." इसकी प्रति भी उपलब्ध है. अतः माननीय उच्चतम न्यायलय ने गोंड समुदाय कि रीति रिवाज और विशुद्ध प्रकृतिवादी सांस्कारिक संरचना के आधार पर यह निर्णय दिया है. रीति रिवाज और विशुद्ध प्रकृतिवादी संस्कारिक संरचना के धारक गोंड आदिवासी समुदाय किसी भी रूप में हिंदू नहीं हैं. अतः गोंड आदिवासी समुदाय के लोगों को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गयी व्यवस्था का कट्टरता से पालन करना चाहिए कि गोंड आदिवासी समुदाय "हिंदू" नहीं है. लोगों कि मांग को देखते हुए निर्णय/ नोट की प्रति नीचे अपलोड कर दिया गया है.


निर्णय की प्रति






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91 टिप्‍पणियां:

  1. Dear Parate Ji,
    Jai Sewa

    you have written a excellent thing, Kindly provide the copy of this historical judgment please at " adivasi2005@gmail.com "

    with regard
    Umesh Chandra Gond

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    1. आप लिखने वाले को ये भी पता नहीं है की कौन सा गोंड पितृ को मानता है और कौनसा नही मानता है और आप कैसे बोल दिए की गोंड हिंदू नही और आप लिखे हो आपको सबसे पहले पता करना चाहिए था कितने गोंड है और उनमें भिन्नता क्या है उसके बाद में ही ये जानकारी गूगल पर अपलोड करनी चाहिए थी आप पूरी जानकारी लिए नही हो फिर से सभी क्षेत्रों से जानकारी जुटाकर लिखेंगे तो बेहतर रहेगा , ऐसा लगता है आप के पहले हमारे समाज कोई शिक्षित व्यक्ति नही थे जो क्रांतिकारी थे जो आप सब बताते हो की ये आदिवासी क्रांतिकारी है ये वो है तब क्या उनका दिमाग घुटनों पर रहा होगा क्या जी मै क्षमा चाहता हूं जी शायद मेरा लिखना गलत हो ,अगर आप सच पूरी जानकारी रखते हो देते हो तो मै आपके बातों में सहमत होता जी

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  2. गोंड साहब,
    जय सेवा.

    मैंने जजमेंट की प्रति आपके ई-मेल से भेज दिया है. कृपया ई-मेल चेक कर लें.धन्यवाद.

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    1. तुम लोग गोंड हिन्दू नहीं है बस इसी बात में लगे रहो..
      उधर तुम्हारे चाचा ईसाई धर्म अपनाने लगे हैं..
      गोंड सामाज को सही दिशा देना है तो पहले खुद को पहचानो.. यार हिन्दू कोई जाति नहीं है जिस से खुद को अलग बता रहे हो. हिन्दू एक संस्कृति है जिसका पालन आदिवासी समाज भी करते आ रहे हैं. हिन्दू संस्कृति में धरती मां से लेकर अग्नि वायु सूर्य गौ माता आदि प्राकृतिक चीजों की पूजा की जाती है जिसे आदिवासी समाज भी सदियों से पूजता आया है.
      दूसरी बात हिन्दू संस्कृति में पुराने देवी देवताओं की पूजा की जाती है चाहे वह शिव जी की प्रतिमा हो या श्री राम जी की . क्यूंकि इनको कहीं ना कहीं हम अपना पूर्वज मानते आए हैं और इनको कुलदेवता भी माना जाता है. आदिवासी समाज भी यही करता आ रहा है वह अपने पूर्वजों की पूजा करते आया है और हम सबके पूर्वज आदि देव महादेव हैं.
      अब मुझे ये बताओ आपका आदिवासी समाज हिन्दू धर्म संस्कृति से अलग कैसे हो गया. भाई हिन्दू धर्म संस्कृति वह संस्कृति है जिसे हर जाति के लोग मानते हैं ये बात अलग है कि हिंदू धर्म संस्कृति से परे होने के बाबजूद भी आदिवासी समाज की पूजा-अर्चना की विधि भी लगभग हिन्दू धर्म संस्कृति से मिलती जुलती थी इसलिए हर समुदाय के लोगों को मिलाकर हिन्दू धर्म संस्कृति में शामिल किया गया क्यूंकि हर किसी की संस्कृति अलग अलग नहीं लिख सकते..
      अब जो समझदार होगा वो समझ चुका होगा कि हमे हिन्दू धर्म संस्कृति का विरोध नहीं करना है बल्कि उस धर्म का विरोध करो जो हमारे और हमारे साथियों की संस्कृति से हटकर हमे बरगलाकर दूसरे धर्म मे ले जा रहा है

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    2. Hindu sanskrati par itna hi garv hai to garv Karo, lekin Hindu shabd ka bhi arth search kar us arth par thoda chintan kar lijiye
      Thailand Hindu sanskrati aur Sanskrit ka baap hai.
      Mohanjodaro aur hadppa sabhyata sanskrati Jo vastav me India me mila hai vo gondian hi hai.

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    3. मुझे भी इस जजमेंट की कॉपी चाहिए

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  3. हिंदू मत आदिवासियों के प्राकृतिक आध्यात्म, आस्था, संस्कृति को नष्ट करना और उनके विकास के रास्ते को बंद कर गुलाम बनाए रखने का पर्याय है. यह मूलनिवासियों, आदिवासियों के इतिहास में कभी नहीं पाया गया. जो आदिवासी हिंदुत्व मत, आस्था, आध्यात्म और संस्कृति का गुलाम हो चूका हो, उन्हें निश्चित ही गोंडवाना की बातें समझमें नहीं आएगी. ऐसे दुराहे पर खड़े रहने वाले लोग सिर्फ लाभ के लिए सामाजिक भावनाओं के साथ खड़े होते है, किन्तु आस्था का पैर हिन्दुवाद की जमीन पर. ऐसा करना समाज के साथ सबसे बड़ा धोखा और गद्दारी है. यदि आस्था एक है तो वह है प्रकृति/सृष्टि जो शास्वत है. इसी शास्वत शक्ति को आदिवासी समाज पूजता है. वह इसलिए क्योंकि प्रकृति से ही जीवानदाईनी/जीवान तत्व जीवन भर ग्रहण करता है. इस सृष्टि पर जन्म देने वाले उसके माता-पिता पूर्वज होते हैं, इसीलिए सृष्टि के बाद दूसरा सबसे बड़ा शक्ति/ईश्वर माता-पिता को माना गया है. गोंडवाना समाज यह मानता है कि आध्यात्म में इन दोनों के स्थान से ऊंचा किसी ईश्वर और भगवान का नहीं है. किन्तु हिंदू मत इस प्रमुख प्राकृतिक आध्यात्म के मत से भिन्न है. यदि हिंदु इस मत में सामिल होता तो वह विभिन्न भगवानो के नाम पर मानने वालों से ज्यादा मंदिरें नहीं बनवाता. अभी भी इनके द्वारा प्राकृतिक संपदा को नष्ट कर वहाँ मंदिरें बनवाकर भगवान के नाम से व्यवसाय करने और स्वयं तथा अपने समाज के पालन-पोषण करने का क्रम जारी है.

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  4. Dear Parte Ji,
    Your thinking is very good, i have already wrote in my facebook id "GONDI" and i have added with you on facebook and your blog and i would like to meet you personaly. i also doing work for our comunity , kindly provide me a copy of suprem court judgment.

    Regards
    Nandkumar Nagvanshi
    Mo. 9098870480.

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  5. विचारों के लिए धन्यवाद नंदकुमार नागवंशी जी. मै शीघ्र ही इसकी प्रति आपको उपलब्ध करा दूंगा. वैसे अवकाश के दिनों में हम मिल सकते हैं. आज २३ जून २०१२ को मै जगदलपुर जा रहा हूँ. वहाँ पर समाज द्वारा छत्तिसगर स्तर पर २४ जून को "वीरांगना रानी दुर्गावती" का शहीद दिवस कार्यक्रम रखा गया है. श्रृद्धा सुमन के लिए समाज के साथ खडा होना जरूरी है. हमेशा आवाहन करने पर समाज के लोग रायपुर में आकार खड़े होते हैं, जिससे रायपुर वालों का भी फर्ज बनता है कि वो भी वहाँ जाकर उनके साथ खड़े हों.
    अतः अगली छुट्टियों में हम अवश्य मिल सकते है.
    धन्यवाद.

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    1. sir, kya aap mujhe bhi us case k decision ki copy e-mail kr sakte hain..
      mera email add.- ankitsaiyam6@gmail.com

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  6. can u please provide me the copy of that historical judgement
    my email id is bhupi21@gmail.com

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  7. aap aadiwasi hain, gond hai bahut achchi baat hai, par aap hindu logo ko kyo ghasit rahe hain..
    maine gondwana ki bahut kitab padhi hai mai bhi pahle bharmit tha hindu dharma ko kosta tha, par aaj mere man se bhram chhant gaya hai, maine net itni jankariya khangali hai ki mai hindu sanatan dharm ko galat nahi manta, uske manne wale swarthi log yadi kalntar me galat karte hai to usme dharm ko dosh kyo du, maine Ved puran upnishad ramayan mahabhart bhi padha hai original sanskrit. ab uska arth aap jaisi mati waisi hi karenge na. mai western historian ko nahi maanta jo desh ko todne ka prachar karte ho. sare sansar me bharat ki khyati hai is dharm ki wajah se. aapko aur bhi links mai de sakta jise padhkar aap garv karenge ki hum un logo ke wansaj hai.
    jitne bhi tathya wanwasiyo ke durdash wa pichde hone ka dete hai,sab maikale prerit itihas "aaryo ka aakraman sidhant" se upja hai. ye na ho to sabhi barabar. mana ki paramparaye bhinn hain...., atah gondi ek alag samuday dharm ho sakta hai par iske liye hindu dharm ko koshna mai thik nahi manta.

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  8. ek baat kahta hun...itihas me gond raja raniyo ke naam hindu ke jaise hi milte hai jaise sangram singh, durgawti, iska matalb inke purwaj hindu sabhyata se mil chuke the tatha ho sakta hai ved, puran bhi sunte rahe hon. par jangal me rahne aadiwasi log ki parampara thode hi badlegi. raja log nagar me rahte the isliye ye bharat ki sanatan se kabhi prabhwawit huye honge wo murkh to nahi rahe honge. jangal me rahne wale aadiwasi bhi sanskrit wala hi naam rakhte hai. todi si parampara aur dewta alag ho jane alag dharma . mai to ise kshetriy sanskriti manta hu. bharat me har prant me aisi bhinnata hai.

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  9. aapne likha hai hinduo me bhikh mange bhi hote hain , hindu grantho ko thik se padhen, mandir me bhule bhatke anath, apang aadi logo ke palan ke liye ye vyavastha thi, bhale hi aaj vikrit ho gayi ho. bhikh mangna kiska kartavya tha, ise pahle jaane... bramhan ka dharm hai bhikh mangna. isse jitna usko milta usi me guzar basar karta tha samay nikal kar koi granth ya fir gurukul chalata tha. gond to kewal ek jati hai agar samaj hai matlab ek kabile ke saman.

    mai pahle jab gondwana ke bare me jana to mai prabhawit tha, hirasingh markam , durge bhagat ji jo gondwana ke aajkal dharm guru mane jaate hain, mai unke padosh ke gaw ka hu. maine unke bhasan bhi sune hain. jo ki puri tarah hindu virodhi hai. mai bhi isse hindutwa aur brahman se nafrat karne laga ....par ek din inhi gondwana walo se ek pustak mili "sachchi ramayan" pata nahi aapne padha hai ya nhi. aur log gondwana ke baare me jitna pustak padhte the usse kahi adhik mai unki sari kitabe padh leta tha. sachchi ramayan ek viwadit pustak hai isko padhne ke baad mere dil ek bada dhakka laga ....yaha wahi baat aayi Arya aur Dravid. aaj se 3 sal pahle ki ye baat hai. us din de mai net par aarya dravid ke bare me aur hindutwa ke baare itna search kiya mere paas puri ek dvd hai. itna sab padha to mai jana ki log kya kar rahe hai. bharat me kya ho raha hai.....foot dalo raj karo...niti .........pahle desh todo fir dharm todo. agar aap aur charcha karna chahte hain to mujhe reply karen

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  10. sir, kya aap mujhe bhi us case k decision ki copy e-mail kr sakte hain..
    mera email add.- ankitsaiyam6@gmail.com

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  11. sir jai badadev , jai seva
    kya aap mujhe gondi culture se related photograph send kar sakte hai . please sir .. mera id redmoon750@gmail.com jai gondwana

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  12. Jai sewa jai johar jai badadev Raaj karega gondwana... Aur jo hamse takrayega vo mitti m mil jaayega

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  13. ठीक है अपनी जाति धर्म का प्रचार प्रसार करने का सबको अधिकार है पर हम भी गोंड. लोंगों के साथ एक साथ हर एक काम में रहते है आज की तारीख में जातिवाद की बीज बोना गलत है

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    1. अवध पटेल जी, हमने जाति धर्म का बीज नहीं बोया है. तथाकथितों ने जाति धर्म का बीज बोकर और उसमे खाद पानी (प्रचार प्रसार) कर इसे पेड़ बना दिया है. हमने तो केवल उच्चतम न्ययालय द्वारा निर्णय लिए गए तथ्यों के आधार पर केवल चर्चा कर रहे हैं. जिसकी हम चर्चा कर रहे हैं वह हमारे हित में है, यदि आपको अच्छा नहीं लगा तो कोई बात नहीं. तथाकथितों ने जाति और धर्म बनाया, किन्तु आदिवासियों ने बनाया क्या ? आज भी गोंड/आदिवासी सदियों से मानवतावादी, संस्कृतिवादी, पूर्वजवादी, प्रकृतिवादी पारंपरिक जीवन निर्वाह कर रहा है. सदियों बाद आज आदिवासियों की धर्मवादी वास्तविकता की बात उठ रही है तो आपके मन में दर्द क्यों हो रहा है ? यदि आप गोंड/आदिवासी नहीं हैं तो आपके मन में दर्द आज किस जाति धर्म की विचार अवधारणा के तहत उठ रही है ?

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    2. #Gondwanasandesh Bhaiya hamare lie to Hindutwa kisi bhi jati se badhkar he or aap hamare hi bhai henn to aap bhi Hindu hi hue na 😊

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  14. aadivasi ho to ? ----- dharm ke matlab ko samjhe nahi ho shayad isliye aisa kah rahe ho.

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  15. Jo log mante hen o bharm me ji rahe hain aur jis din jaan jaoge us din manne ka sawal khatm ho jayega gondi sanskriti manavta ko jodta hai 85% logon ki ghar aur basti me ja ke dekho jo uske apne devi devta jo unki samradh sanskriti hia jo kitab me nahi hakeekt me dekha ja sakta hai aaj media nahi hai uske pas jo hakeekt ko baya kar sake jo sachcha adivasi hai o prakrtik sidhdhant se ji raha hai logon ko o bhi ras nahi aa rahi hai sabhi dharmon ke log apni apni kahani sunate hai koi awaaz nahi uthata agar gindi sanskriti ki bat hoti hai to logon ko jaln hoti hai qun ki sach kadwa hota hai

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  16. Nice writ.
    Parte ji gondian people ko apane amulya sanskratik mulyo ki jankari dena aavasyak hai aur yah sabhi ke sanyukt prayaso se hi sambhav hai.aapke lekh me uchchtam nyayalas ke faisale ki bat ki gai hai.
    Please kya mujhe judgement ki copy send kar sakate hai
    My email is
    M
    markamshiva@gmail.com

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    1. मैंने आपको इसकी प्रति ईमेल से भेज दिया है। कृपया चेक कर लें।

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  17. विजय श्याम जी मैंने प्रति आपको भेज दी है.

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    उत्तर
    1. धन्यवाद महोदय जी
      आप ने प्रति उपलब्ध किया हम इसके लिए हम आपका हृदय से आभार व्यक्त करते हैं
      आप एक सच्चे समाज सेवी है समाज आपका सदैव आभारी रहेगा!
      गोंड समाज के लिए जो आप संघर्षरत है हम आपकी भूरी भूरी सराहना करते हैं
      पुनः आपको कोटि कोटि धन्यवाद
      जय सेवा,जय बड़ा देव

      हटाएं
  18. Sir, Please kya aap mujhe judgement ki copy send kar sakate hai

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  19. धन्यवाद महोदय जी
    आभार सहित अभिवादन

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  20. मुझे भी इस फैसले की प्रति चाहिए थी. ईमेल आई डी दे रहा हूँ
    sandeeppambhoi@yahoo.com

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  21. प्रिय गोंडी
    में गोंडी लिपी का फांट बना रहा हुं (चाणक्य (हिंदी) सटाईल का )

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    उत्तर
    1. बहुत अच्छा रोहिल्ला जी. आप धन्यवाद के पात्र है. इस कार्य के लिए हमसे किसी प्रकार की अपेक्षा हो तो अवश्य कहें.

      हटाएं
  22. respected sit kripya mujhe is aadesh ki copy send karne ka kasht karain
    e mail id kakodia.abhi@gmail.com

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  23. सभी सुधि पाठकों और दोस्तों को धन्यवाद. मैंने अपेक्षित प्रतियां आप लोगों के आई.डी. पर भेज दिया है.

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  24. मै रामनारायण मरकाम अपने समाज के प्रति समर्पित हू। जय सेवा

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  25. Pls send me the above mentioned judgment copy in detail.I would be thankful 2 u.

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  26. Pls send me the above mentioned judgment copy in detail.I would be thankful 2 u.

    thanudhruw@gmail.com

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  27. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  28. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  29. Sir muje bhi iski copy chahiye,iske alava bhi ho to muje uski PDF bheje, mahidamayurkumar@gmail.com.

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  30. सुधि पाठकगण सादर सेवा जोहार।

    हमारे अधिकतर साथियों ने निर्णय की प्रति भेजने के लिए आग्रह किया है। इस विषय मे बताना चाहूँगा कि आपलोग स्वयं ही निर्णय की प्रति अपने डिवाईस मे सेव/ट्रांसफर/share कर सकते हैं. मेरे लिए इतने ईमेल से भेजना संभव नहीं है। इसलिए हमने निर्णय/जजमेंट का इमेज इस लेख के साथ अपलोड किया है, ताकि आप यदि चाहें तो अपने मोबाईल, लेप्टाप, डेस्कटॉप में दिखाई देने वाले इमेज को सिलेक्ट करके आसानी से Download image के माध्यम से डाउनलोड कर सकते हैं अथवा Share image के माध्यम से डायरेक्ट वाट्सअप, फेसबुक वाल पर Share कर सकते हैं या अपने मेल मे ट्रांसफर कर सकते हैं, ब्लूटूथ के माध्यम से भी ट्रांसफर कर सकते हैं।

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  31. respected sir

    I searched online judgement copy in all government sites (High Court & SUPREME COURT ) but I could not find it anywhere ..

    What was the case number of judgement copy, please provide detailed

    kundanmarkam@gmail.com /kundanmarkam1987@gmail.com


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  32. गोंड जाति शंकर भगवान की पूजा करती थी और गोंड जाति के महाराजा श्री हनुमान जी the अभी जो लोग थोड़ा पढ़ लिए हैं ना दो चार क्लास सारे लोग की बुद्धि नहीं है उनकी अगर मैं कहूं तो गोंड जाति अभी भी पूरी तरह से शिक्षित नहीं हुई है। वह अपनी जाति नहीं पहचान रही है राम जी के थे तो पूरे गोंड वंश हिंदू था
    एक और बात बोलूं क्या दुर्गावती की शादी गोंड राजवंश के राजा संग्राम शाह के सबसे बड़े बेटे दलपत शाह के साथ हुई रानी दुर्गावती एक राजपूत थी इतनी पागल तो थी नहीं कि वो राजपूत एक दलित घर में शादी करें और जो लोग गोंड जाति को दलित बोलते हैं यह गलत है वह दलित नहीं था गोंड जाति था लेकिन गरीब था और दूसरी बात गोंड जाति अशिक्षित था वो खुद अपने आप को नहीं पहचानता था तो वह अपनी जाति धर्म को क्या बताता गोंड एक हिंदू जाति है और जो लोग आदिवासी के राजा बने बैठे हैं ना वह सब मुसलमान है सारे लोग गोंड जाति अशिक्षित के कारण आज पिछड़ा वर्ग में आता है और आना भी चाहिए ना लोग आज उन्हें पहचानते भी नहीं है




    ( From mp )

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    2. या तो आप बामसेफिये हो या आरएसएस का एजेंट
      गोंड समुदाय अपने रूढ़िवादी परम्पराओ संचालित होते हैं न कि हिन्दू लॉ से
      हनुमान का संबंध गोंड जनजाति से नहीं है बल्कि गोंड जिनकी पूजा अर्चना करते हैं वो भिमालपेन हैं, और इंडिया में जितने भी हिन्दू देवी देवताओं संस्कृति से सम्बंधित सब कुछ चुराया हुआ है, थाईलैंड, कम्बोडिया, इंडोनेशिया का इतिहास तक हम पर थोपा गया है। हिन्दू का अर्थ ही चोर है
      दुर्गावती चंदेल वंश की राजकुमारी थी न कि राजपूत थी।
      रही शिक्षा की बात तो शिक्षा गोंड समुदाय कबिलाई में निवास करने के कारण हर जगह पहुंच नहीं पाई, आजाद होने के बाद से आप जैसे लोग दलित, वनवासी, पिछड़ा, अछूत शब्द स्वीकार किये जो आरएसएस ने दिया है।
      इसके बावजूद भी सवर्ण वर्ग आदिवासी समुदाय के साथ भेदभाव नहीं करता क्योंकि वो राजकीय वंश से संबंध रखते हैं।

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  33. मैं गोंड हूं जय सेवा जय जोहर जय गोंडवाना जय आदिवासी 🙏🙏

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  34. सेवा जोहार, मै कुंवर बीरबल सिंह अर्मो, सिंगरौली mp से
    मुझे सुप्रीम कोर्ट की फैसला की कॉपी चाहिए please भेजिये, बहुत जरूरी है।

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  35. 7089147867 मेरा whatsapp no है, trilok singh vs गुलबासिया wala वाद की hard कॉपी सेंड कीजिये,
    जय सेवा
    जय गोंडवाना

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  36. सर क्या आप मुझे पूरी निर्णय की प्रति मेल कर सकते है
    chandrakantjagat1@gmail.com

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  37. मुझे भी भेज दिजियेगा ।। जय सेवा ।।

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  38. मुझे भी फैसले का कापी चाहिए मेरा ई मेल आरडी bahoranbahoran5@gmail.com

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  39. क्या आप के पास गोडी संस्कृति या आदिवासियों की विवाह आधिनियम और सम्पत्ति के अधिनियम भी है महोदय तो आप मुझे बता सकते ंंहै क्या निवेदन है महोदय जी

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